-सुभाष मिश्र
भारत, जहां नदियां जीवन की धारा मानी जाती हैं, आज एक विरोधाभासी जल संकट से गुजर रहा है। एक ओर करोड़ों लोग पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं तो दूसरी ओर वही वर्षा का जल बाढ़ बनकर तबाही मचा रहा है। अप्रैल 2025 में हैदराबाद में आई भीषण बारिश ने चारमीनार तक को नहीं बख्शा। इससे पहले देश भर में सूखे की स्थिति बनी हुई थी। सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ मौसम का कहर है या जल प्रबंधन की गंभीर विफलता?
सूखा और बाढ़ : जल संकट के दो चेहरे
विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक, 1997 से अब तक भारत में सूखा प्रभावित क्षेत्र 57% बढ़ा है, जबकि अतिवृष्टि की घटनाएँ 85 प्रतिशत तक बढ़ चुकी हैं। भारत में 600 मिलियन से अधिक लोग उच्च या अत्यधिक जल तनाव का सामना कर रहे हैं। वर्षा तो औसतन 1,178 मिमी होती है, लेकिन यह जरूरतमंद क्षेत्रों तक नहीं पहुँचती। बारिश कभी कम, कभी अत्यधिक हो रही है, और भूजल रिचार्ज की व्यवस्था नगण्य है।
सेंट्रल ग्राउंडवॉटर बोर्ड की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत प्राकृतिक रिचार्ज से कहीं अधिक दर से भूजल का दोहन कर रहा है, जिससे 2080 तक यह संकट तीन गुना हो सकता है। गंगा और यमुना जैसी नदियाँ प्रदूषण और घटते जलस्तर से जूझ रही हैं। वहीं, सिंचाई में 80 प्रतिशत पानी भूजल से आता है, लेकिन 40 प्रतिशत से अधिक जल व्यर्थ बह जाता है।
जल विवाद : अंतरराष्ट्रीय और आंतरिक राजनीति
जल संकट सिर्फ प्राकृतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक भी है। भारत-पाकिस्तान के बीच 1960 की इंडस जल संधि के अंतर्गत पूर्वी नदियाँ भारत और पश्चिमी पाकिस्तान को सौंपी गई थीं। लेकिन अप्रैल 2025 में भारत द्वारा संधि का आंशिक निलंबन पाक कृषि संकट का कारण बन गया। वहीं, भारत के भीतर कावेरी, सतलुज-यमुना और यमुना जल विवाद दशकों से चले आ रहे हैं, जहाँ राजनीति ने समाधान के रास्ते रोक रखे हैं।
जड़ में प्रबंधन की विफलता
समस्या की जड़ में बारिश की कमी नहीं, बल्कि जल संचयन और प्रबंधन की कमी है। शहरीकरण ने वेटलैंड्स खत्म कर दिए हैं, जो कभी बाढ़ रोकते थे। वर्षा जल संचयन प्रणाली आज भी बेहद सीमित है देश में मात्र 10-15 प्रतिशत वर्षा जल ही संरक्षित किया जाता है। आईएमडी के अनुसार 2025 के मानसून में औसत से खास अंतर नहीं रहा, लेकिन असमान वितरण और नालों में बह जाने वाला पानी आपदा बनकर लौट रहा है।
इसके लिए आवश्यक है कि वर्षा जल संचयन को सभी भवनों में अनिवार्य किया जाए। राज्यों के प्रदर्शन के आधार पर जल नीति को अपडेट करें। गुजरात, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने ग्राउंडवॉटर रिचार्ज में बेहतर प्रदर्शन किया है। जल विवादों के समाधान हेतु अंतर्राज्यीय जल न्यायाधिकरण प्रभावी रूप से कार्य करें। ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए, जिससे सिंचाई में 50 प्रतिशत पानी बच सकता है। • ग्रेस सैटेलाइट जैसे तकनीकों से भूजल की निगरानी की जाए।
छत्तीसगढ़: बाढ़ और जल संकट की दोहरी मार
छत्तीसगढ़, जो कभी जल संपन्न राज्य माना जाता था, आज जल प्रबंधन की खामियों के कारण बाढ़ और जल संकट दोनों से जूझ रहा है।
भारी वर्षा की मार
1 जून से 27 जुलाई 2025 तक राज्य में औसतन 592.2 मिमी वर्षा दर्ज की गई। बालरामपुर में सर्वाधिक 928.6 मिमी, जबकि बेमेतरा में सबसे कम 368.3 मिमी वर्षा हुई। बंगाल की खाड़ी में बने डिप्रेशन के कारण रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव सहित कई जिलों में भारी बारिश से सड़कें और घर जलमग्न हो गए। बिलासपुर में एक स्कूल पानी में डूब गया और कई स्थानों पर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना पड़ा। महानदी और शिवनाथ उफान पर हैं, जिससे फसलें नष्ट हो रही हैं और बिजली-पानी की आपूर्ति बाधित हुई है।
पेयजल संकट
छत्तीसगढ़ में भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। 2025 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,000-1,700 क्यूबिक मीटर रह गई है, जो जल तनाव की स्थिति है। दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, बेमेतरा, कवर्धा आदि जिलों में पानी में यूरेनियम की मात्रा डब्ल्यूएचओ के मानक से कई गुना अधिक पाई गई। कुछ क्षेत्रों में आर्सेनिक प्रदूषण भी सामने आया है। जल जीवन मिशन के अंतर्गत कई गांवों में पाइपलाइन तो बिछी है, लेकिन पानी नहीं पहुँच रहा।
मई 2025 में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने ‘शहरी भूजल मिशनÓ लॉन्च किया, पर अमल धीमा है। फरवरी 2025 तक 2,857 गांवों को ‘हर घर जलÓ प्रमाणित किया गया, लेकिन माओवादी इलाकों में अब भी हालात चिंताजनक है। मई में कौड़ीकासा गांव में पानी की कमी से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करना पड़ा। अप्रैल 2025 से जल संरक्षण अभियान में 56,000 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया गया, जो सकारात्मक संकेत हैं।
भारत को 2025 में जल संकट को आपदा से अवसर में बदलने की आवश्यकता है। बहता पानी बर्बाद न हो, भूजल रिचार्ज हो, वर्षा जल संरक्षित हो और जल विवाद राजनीति के शिकार न बनें—ये प्राथमिकताएँ तय करनी होंगी। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों को भी अपनी नीतियों में सुधार कर इस दोहरी विडंबना से मुक्त होना होगा। सरकार, समाज और नागरिकों की साझा जिम्मेदारी है कि जल को संकट नहीं, संपदा बनाएं अन्यथा आने वाली पीढिय़ां इतिहास के कठघरे में हमें कठोर प्रश्न पूछेंगी।