-सुभाष मिश्र
आजकल मीडिया और राजनीतिक गलियारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सेवानिवृत्ति को लेकर खासी हलचल है। सितंबर 2025 में 75 वर्ष की आयु पूरी करने वाले मोदी पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने आग में घी डाल दिया है। भागवत ने कहा कि 75 वर्ष की उम्र में शॉल ओढ़ाने का मतलब है कि व्यक्ति को एक तरफ हट जाना चाहिए और युवाओं को मौका देना चाहिए। इसी दिन गृहमंत्री अमित शाह ने भी सेवानिवृत्ति का जिक्र किया, जिसे विपक्ष मोदी के लिए संकेत मान रहा है। कांग्रेस के जयराम रमेश और शिवसेना (यूबीटी) के संजय राउत जैसे नेताओं ने इसे मोदी की ‘घर वापसी और सेवानिवृत्ति का इशारा बताया है। लेकिन क्या यह वास्तव में मोदी के राजनीतिक करियर का अंत है, या महज राजनीतिक अटकलें?
‘ब्रांड मोदी भारतीय राजनीति का एक मजबूत प्रतीक बन चुका है। यह ब्रांड दृढ़ नेतृत्व, विकास, राष्ट्रवाद और व्यक्तिगत छवि पर टिका है। मोदी ने खुद को ‘चायवाले से ‘विश्व नेता तक की यात्रा में स्थापित किया, जहां उनकी रैलियां लाखों को आकर्षित करती हैं। यह ब्रांड न केवल भाजपा की जीत का आधार है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की छवि को मजबूत करता है। हाल ही में विदेश यात्राओं में प्राप्त सम्मानों से यह और मजबूत हुआ है। राजनीतिक विशेषज्ञ अभय कुमार दुबे का मानना है कि मोदी अब अपनी विरासत को स्थापित करने की दिशा में हैं, जो सेवानिवृत्ति की अफवाहों को बल देता है।
‘मोदी की गारंटी इसी ब्रांड का अभिन्न हिस्सा है। यह नारा विकास योजनाओं, जैसे पीएम किसान, आयुष्मान भारत और आत्मनिर्भर भारत की विश्वसनीयता पर आधारित है। मोदी ने इसे चुनावी हथियार बनाया, जहां उनकी गारंटी मतलब ‘काम होकर रहेगा। लेकिन हालिया लोकसभा चुनावों में भाजपा की सीटें घटने से इस गारंटी पर सवाल उठे हैं। सेवानिवृत्ति की चर्चा में यह ब्रांड कितना प्रभावित होगा? यदि मोदी हटते हैं, तो क्या भाजपा इस गारंटी को बनाए रख पाएगी, या नया नेतृत्व इसे कमजोर कर देगा?
राजनीति में सेवानिवृत्ति की कोई तय उम्र नहीं है। अमेरिका में जो बाइडेन 81 वर्ष की आयु में राष्ट्रपति चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि भारत में इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता उम्र के बावजूद सक्रिय रहे। लेकिन पार्टियां अपनी नीतियां बनाती हैं। भाजपा में 75 वर्ष की अनौपचारिक सीमा का ट्रेंड 2014 से दिखा, जब मोदी ने कैबिनेट में 75 से ऊपर के नेताओं को जगह नहीं दी। यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को मार्गदर्शक मंडल में भेजा गया। 2016 में गुजरात की सीएम आनंदीबेन पटेल ने 75 वर्ष पर इस्तीफा दिया, और 2019 में अमित शाह ने कहा कि 75 से ऊपर किसी को टिकट नहीं मिलेगा। 2024 चुनावों में संतोष गंगवार, रीता बहुगुणा जोशी जैसे नेताओं का टिकट कटा।
क्या भाजपा हमेशा इस नियम का पालन करती है? नहीं, अपवाद भी हैं। 2022 में कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा (79 वर्ष) को राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिली, लिंगायत वोटबैंक के लिए। इसी तरह सत्यनारायण जटिया (76 वर्ष) को दलित समुदाय साधने के लिए शामिल किया गया। 2023 के मध्य प्रदेश चुनाव में 80 वर्ष के नागेंद्र सिंह को टिकट दिया गया। ये अपवाद चुनावी जरूरतों पर आधारित हैं, जो बताते हैं कि नियम लचीले हैं।
भागवत का बयान मोरोपंत पिंगले की किताब लॉन्च पर था, लेकिन समय संयोग से मोदी की उम्र से जुड़ गया। शाह का जिक्र सामान्य लगता है, लेकिन विपक्ष इसे दबाव का हिस्सा मानता है। एक्स प्लेटफॉर्म पर भी यह चर्चा जोरों पर है, जहां कुछ यूजर्स इसे मोदी के खिलाफ साजिश बता रहे हैं, तो कुछ हास्य के साथ ले रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि आरएसएस और भाजपा हवा में बात नहीं करते, यह मोदी को संकेत हो सकता है। लेकिन मोदी अपवाद साबित हो सकते हैं, जैसे येदियुरप्पा।
अंत में, सेवानिवृत्ति मोदी के ब्रांड और गारंटी को चुनौती देगी, लेकिन राजनीति में उम्र से ज्यादा प्रभाव मायने रखता है। यदि मोदी जारी रखते हैं, तो यह भाजपा की एकता का परीक्षण होगा, यदि हटते हैं, तो नया नेतृत्व उभरेगा। फिलहाल, यह अटकलें ही हैं—सच्चाई सितंबर में पता चलेगी।