ELI Scheme – नौकरियों की बहार या बेरोजगारी का समाधान?

केंद्र सरकार ने हाल ही में रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन (ईएलआई) योजना को मंजूरी दी है, जिसका लक्ष्य अगस्त 2025 से जुलाई 2027 के बीच निजी क्षेत्र में 3.5 करोड़ नई नौकरियां सृजित करना है। इस योजना के तहत 1 लाख करोड़ रुपये का परिव्यय निर्धारित किया गया है, जिसमें पहली बार नौकरी करने वाले युवाओं को 15,000 रुपये तक की वित्तीय सहायता और नियोक्ताओं को अतिरिक्त कर्मचारी भर्ती के लिए प्रोत्साहन शामिल हैं।

यह योजना विशेष रूप से विनिर्माण क्षेत्र पर केंद्रित है, जो भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। क्या यह योजना वास्तव में बेरोजगारी की समस्या का समाधान करेगी? आइए, इसकी संभावनाओं और चुनौतियों का विश्लेषण करें।

योजना की मुख्य विशेषताएं

ईएलआई योजना को दो हिस्सों में बांटा गया है:

  1. पार्ट-1 (कर्मचारी केंद्रित):
  • पहली बार नौकरी करने वाले युवाओं को 15,000 रुपये तक की सब्सिडी दो किस्तों में दी जाएगी।
  • यह राशि 1 लाख रुपये तक के वेतन वाले कर्मचारियों के लिए है, जो ईपीएफओ के साथ पंजीकृत हों।
  • पहली किस्त 6 महीने की सेवा के बाद और दूसरी किस्त 12 महीने की सेवा व वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम पूरा करने के बाद मिलेगी।
  • प्रोत्साहन राशि का एक हिस्सा बचत खाते में जमा होगा, जिसे निश्चित अवधि के बाद निकाला जा सकेगा, ताकि युवाओं में वित्तीय अनुशासन और बचत की आदत विकसित हो।
  • इस हिस्से से 1.92 करोड़ फ्रेशर्स को लाभ मिलने की उम्मीद है।
  1. पार्ट-2 (नियोक्ता केंद्रित):
  • नियोक्ताओं को प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारी के लिए दो साल तक 3,000 रुपये प्रति माह का प्रोत्साहन मिलेगा।
  • विनिर्माण क्षेत्र में यह लाभ तीसरे और चौथे वर्ष तक बढ़ाया जाएगा।
  • 50 से कम कर्मचारियों वाले संस्थानों को कम से कम 2 अतिरिक्त कर्मचारी और 50 से अधिक कर्मचारियों वाले संस्थानों को कम से कम 5 अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त करने पर लाभ मिलेगा।
  • इस हिस्से से 2.6 करोड़ अतिरिक्त रोजगार सृजन की उम्मीद है।
  • सभी भुगतान डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) मोड के माध्यम से होंगे, जिसमें कर्मचारियों को सीधे उनके खातों में और नियोक्ताओं को पैन-लिंक्ड खातों में राशि हस्तांतरित की जाएगी।

बेरोजगारी की वर्तमान स्थिति

भारत में बेरोजगारी एक जटिल समस्या है। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, 2024 में भारत की बेरोजगारी दर शहरी क्षेत्रों में 7-8% और ग्रामीण क्षेत्रों में 4-5% के आसपास रही। युवा बेरोजगारी (15-29 आयु वर्ग) विशेष रूप से चिंताजनक है, जो 20-25% तक पहुंच चुकी है। आईएलओ (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन) के अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 1.2-1.5 करोड़ युवा श्रम बाजार में प्रवेश करते हैं, लेकिन नौकरियों का सृजन इस गति से नहीं हो रहा।

वर्तमान में, निजी क्षेत्र में संगठित रोजगार सीमित है, और असंगठित क्षेत्र में 90% से अधिक कार्यबल कार्यरत है, जहां सामाजिक सुरक्षा और स्थिरता की कमी है। सरकारी नौकरियों की स्थिति भी चुनौतीपूर्ण है। हाल के वर्षों में सरकारी भर्तियों में देरी, रिक्तियों की कमी, और प्रतियोगी परीक्षाओं में अनियमितताओं की शिकायतें सामने आई हैं। यूपीएससी, एसएससी, और रेलवे जैसी भर्ती प्रक्रियाओं में लाखों रिक्तियां लंबित हैं, और 10 लाख से अधिक सरकारी पद खाली पड़े हैं।

 

ईएलआई योजना का संभावित प्रभाव

  1. निजी क्षेत्र में रोजगार सृजन:
  • 3.5 करोड़ नौकरियों का लक्ष्य महत्वाकांक्षी है, जो भारत की बेरोजगारी दर को काफी हद तक कम कर सकता है।
  • विनिर्माण क्षेत्र पर विशेष ध्यान भारत को मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्यों के करीब ले जा सकता है।
  • फ्रेशर्स के लिए प्रोत्साहन नियोक्ताओं को अनुभवहीन उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिए प्रेरित करेगा, जिससे युवाओं को नौकरी मिलने की संभावना बढ़ेगी।
  1. वित्तीय समावेशन और बचत:
  • बचत खाते में राशि जमा करने की नीति युवाओं में वित्तीय जिम्मेदारी को बढ़ावा देगी।
  • ईपीएफओ के साथ पंजीकरण सामाजिक सुरक्षा को मजबूत करेगा।
  1. नियोक्ताओं के लिए प्रोत्साहन:
  • छोटे और मध्यम उद्यमों (एसएमई) को 2-5 अतिरिक्त कर्मचारी नियुक्त करने का लाभ मिलेगा, जो स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन को बढ़ावा देगा।
  • विनिर्माण क्षेत्र में लंबी अवधि के प्रोत्साहन निवेश को आकर्षित कर सकते हैं।

चुनौतियां और सीमाएं

  1. कार्यान्वयन की चुनौती:
  • इतनी बड़ी योजना के लिए मजबूत डिजिटल बुनियादी ढांचा और पारदर्शी निगरानी तंत्र आवश्यक है। डीबीटी में तकनीकी खामियां या देरी योजना की प्रभावशीलता को कम कर सकती हैं।
  • ईपीएफओ पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल करना होगा, क्योंकि कई छोटे उद्यम और कर्मचारी इससे बाहर हैं।
  1. क्षेत्रीय असमानता:
  • योजना का लाभ मुख्य रूप से औद्योगिक राज्यों (जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु) तक सीमित हो सकता है, जिससे पिछड़े राज्यों में रोजगार सृजन पर असर पड़ सकता है।
  1. असंगठित क्षेत्र की अनदेखी:
  • योजना का फोकस संगठित क्षेत्र पर है, जबकि भारत का 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है। असंगठित क्षेत्र के लिए अलग से नीति की आवश्यकता है।
  1. सरकारी नौकरियों की स्थिति:
  • ईएलआई योजना सरकारी नौकरियों की रिक्तियों को संबोधित नहीं करती। युवाओं में सरकारी नौकरियों की चाहत बनी रहेगी, जिससे निजी क्षेत्र की नौकरियों का आकर्षण कम हो सकता है।

निष्कर्ष

ईएलआई योजना भारत में बेरोजगारी की समस्या से निपटने के लिए एक साहसिक और स्वागत योग्य कदम है। 3.5 करोड़ नौकरियों का लक्ष्य, विशेष रूप से 1.92 करोड़ फ्रेशर्स के लिए, युवाओं में नई उम्मीद जगा सकता है। हालांकि, इसका सफल कार्यान्वयन सरकार की प्रशासनिक क्षमता, निजी क्षेत्र की भागीदारी, और क्षेत्रीय समावेशिता पर निर्भर करेगा। साथ ही, सरकारी नौकरियों में रिक्तियों को भरने और असंगठित क्षेत्र के लिए समानांतर नीतियों की आवश्यकता है। यदि यह योजना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करती है, तो यह न केवल बेरोजगारी को कम करेगी, बल्कि भारत को वैश्विक आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा.