Universities of Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में पटवारी संस्कृति का प्रवेश ठीक से आवभगत नही हुई तो अधिष्ठाता को जेल

Universities of Chhattisgarh
पूरे भारत में कहीं भी उतनी बडी संख्या में नौकरशाह विश्व विद्यालयों में कुलपति के प्रभार में नती होगें जितने की छत्तीसगढ़ में है। चाहे वे विश्वविद्यालय कला संगीत, पत्रकारिता, उद्यानिकी से लेकर किसी खास विधा से क्यों न जुड़े हो। विश्वविद्यालयों में नौकरशाह कुलपति और कुल सचिवों के जरिये पटवारी संस्कृति का प्रवेश हो चुका है जिसका खामियाजा यहां के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

 

अभी हालिया घटना में खैरागढ़ इंदिरा संगीत विश्व विद्यालय के नाट्य विभाग के विभागाध्यक्ष, अधिष्ठाता देश के जानेमाने रंगकर्मी एनएसडी पास आउट डा. योगेन्द चौबे को जो कि तीन दिवसीय आक्टेव- 2025 के संयोजक भी थे। उन्हें ठीक से आदर्श सत्कार खानपान की व्यवस्था की वजह से जलील किया गया और षड्यंत्र पूर्वक सरकारी अवकाश के दिन गिरफ्तार किया गया। 21 से 23 मार्च तक आयोजित आक्टेव 2025 जिसमें नार्थ इंडिया के अलग-अलग प्रदेशों के 250 कलाकार जुटे थे। इस आयोजन के उद्घाटन समारोह में खानपान की व्यवस्था को लेकर जिले के मुखिया ने न केवल उन्हें सार्वजनिक रूप से गाली गलौज कर अपमानित किया।

 

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डा. योगेन्द चौबे

डा. योगेन्द चौबे के शिकायत की कापी

उल्टे इस घटना की लिखित शिकायत कमिश्नर एवं कुलपति से करने पर नाराज होकर उन्हें पुलिस के जरिए विश्वविद्यालय के नाट्य विभाग की एक छात्रा द्वारा एक साल पहले अश्लीलता और छेड़छाड़ की पुरानी घटना में पूछताछ के बहाने बुलाकर जेल भेजने का इंतजाम किया। श्री लाल शुक्ल के चर्चित उपन्यास रागदरबारी में उल्लेखित शिवपालगंज की तरह ही खैरागढ़ का माहौल है। यहां बाहर से आकर स्वतंत्र रूप से काम करने वालों को स्थानीय राजनीति का शिकार होना पड़ता है।

 

डॉ. योगेंद्र चौबे

डॉ. योगेन्द्र चौबे की दुर्भावनापूर्ण गिरफ्तारी को लेकर कला संस्कृति के क्षेत्र में रोष व्याप्त है और संस्कृतिकर्मी इस घटना की जांच को लेकर राज्यपाल मुख्यमंत्री से मिलकर ज्ञापन सौंपने वाले हैं।
खैरागढ़ कला विश्वविद्यालय में सुप्रसिद्ध गायिका पद्मश्री ममता चन्द्राकर कुलपति के पद पर कार्यरत थी। विष्णुदेव की नई सरकार आते ही उन्हें इस पद से हटा दिया। किंतु उसके बाद कुलपति के के पद पद अभी तक किसी की नियुक्ति नहीं की गई है। दुर्ग संभाग के कमिश्नर सत्यनारायण राठौर इस समय कुलपति के प्रभारी है वे इसी तरह वे दुर्ग विवि के कुलपति के प्रभार में भी है। यही हाल रायपुर कमिश्नर का है। महादेव कावरे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के अलावा बिलासपुर ओपन विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रभार में है।

खैरागढ़ कला विश्वविद्यालय

दक्षिण मध्य सांस्कृति केंद्र नागपुर के सहयोग से तीन दिवसीय आक्टेव 2025 का आयोजन खैरागढ़ में किया गया। उनके पहले भारत रंगमहोत्सव का आयोजन भी यही हुआ था। डॉ. योगेंद्र चौबे इस आयोजन के संयोजक थे। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री रमेन डेका ने इस समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि संगीत ‘कला मनुष्य के तनावपूर्ण जीवन में ऑक्सीजन का काम करते है।Ó राज्यपाल कुलाधिपति भी होते हैं और विश्व विद्यालयों की कामकाज की समय-समय पर समीक्षा भी करते हैं। क्या वजह है कि छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में संभाग के आयुक्तों को कुलपति की जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। इस संबंध में जानकारों का कहना है कि सत्ता और संगठन की एक राय नहीं होने की वजह से तथा कुलपति की कुर्सी की चयन प्रक्रिया को लंबित रखने के और भी बहुत सारे कारण है।

आयोजन में राज्यपाल रमेन डेका

आक्टेव 2025 कार्यक्रम

कुलपति की चयन प्रक्रिया में राजभवन में पदस्थ असम और गुजरात के अधिकारियों की भूमिका भी चर्चा में है।
विश्वविद्यालयों में अफसर संस्कृति की झलक यहां के आयोजनों में साफ दिखाई देती हो जिन्हे कला संस्कृति की कोई खास समझ नही है, जिसका पत्रकारिता से कोई संबंध नही है जो तहसीलदार, डिप्टी कलेक्टर से प्रमोट होकर संभागायुक्त के पद पर काबिज है, ऐस लोगो के हाथों में विश्वविद्यालय की बागडोर है यदि छत्तीसगढ़ की बात की जाए तो यहां कमिश्नर प्रणाली लगभग डंप सी हो चुकी है। यही वजह है कि अधिकांश जगह ऐसे अफसरों को कमिश्नर के रूप में पदस्थ किया जाता है, जो प्रमोटी है और जिन्हें अपनी सर्विस में बहुत बेहतर परर्फांम नहीं किया है। किंतु कुलपति के लिए सरकार को इनसे उपयुक्त उसी प्रोफेशन का कोई क्यों नहीं दिखता?

 

खैरागढ़ कला संगीत विश्वविघालय में आयोजित आक्टेव 2025 में राज्यपाल पहुंचे तो कुलपति को भी पहुंचना था कमिनश्रर पहुंचे तो कलेक्टर एसडीएम तहसीलदार समेत आला अधिकारी भी वहां मौजूद थे। नौकरशाहों को आयोजन की गरिमा और प्रस्तुति से कोई लेना देना नहीं उन्हे आदर सत्कार चाहिए। राजभवन के अधिकारी पत्ता गोभी की सब्जी बनाने से नाराज हो जाते है, और कलेक्टर का कोपभाजन डॉ योगेंद्र चौबे जैसे लोगों को होना पड़ता है। कलेक्टर द्वारा उन्हे सार्वजनिक रूप से अपमानित करने और गाली-गलौज करने पर न केवल उन्होंने कलेक्टर को जवाब दिया बल्कि कुलपति, कमिश्नर से उनकी लिखित शिकायत भी की। कलेक्टर को जब इस बात की भनक लगी तो और यह बात मीडिया में आ गई तो कलेक्टर ने मामले को शांत करने की गरज से योगेंद्र चौबे और 2 अन्य को बुलाकर चाय के साफ मामले को खत्म किया।
किन्तु यहीं से उन्होंने योगेंद्र चौबे को सबक सीखाने की गरज से जिले के मित्र पुलिस अधिकारी के सहयोग से डॉ. योगेंद्र चौबे के विरूद्ध एक साल पहले हुई कथित अश्लीलता और छेड़छाड़ की शिकायत जो कि लगभग नस्तिबद्ध हो गई थी उसे निकलवाकर योगेंद्र चौबे को खैरागढ़ थाने में बुलाकर रातभर बिठाकर सुबह गिरफ्तार कर राजनांदगांव की स्पेशल कोर्ट में पेश किया। चूँकि दो दिन का अवकाश या सो उन्हें न्यायिक हिरासत में राजनांदगांव जेल में भेज दिया गया।


डॉ. योगेंद्र चौबे न केवल अच्छे कलाकार गायक है बल्कि वे देश के जाने माने रंगकर्मी है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी में गांजे की कली जैसे शानदार फिल्म निर्देशित की है। इंद्राकला संगीत विश्वविद्यालय को उचाईयों पर ले जाने में और नाट्य विभाग को सक्रिय बनाए रखने में उनकी अहम भूमिका है। खैरागढ़ विश्वविद्यालय देश का ऐसा विश्वविद्यालय है जिसके नाट्य विभाग का अपना रंगमंडल है।
शायद डॉ. योगेंद्र चौबे नहीं जानते रहे होंगे कि केवल अच्छे नाटक अच्छे आयोजन और अच्छे तरह से पढ़ाना काफी नहीं है। उससे कहीं ज्यादा जरूरी है। आला अफसरों और राजभवन के अफसरों की आवभगत करना। छत्तीसगढ़ के राज्यपाल श्री रमेन डेका बहुत सक्रिय है वे जगह जगह दौराकर के जमीनी हकीकत जान रहे है। और सरकार की मंशा के अनुसार सुशासन लाने की कोशिश कर रहे हैं। महामहिम को चाहिए कि वे अपने सचिवालय विश्वविद्यालय की भी थोड़ी खोज खबर ले ऐसा न हो कि राज्यपाल के दौरे के बाद किसी डॉ. योगेंद्र चौबे को अनुकूल आवभगत भोजन व्यवस्था न करने के कारण षड्यंत्रपूर्वक जेल जाना पड़े।

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