बारूद के गंध में दिग्भ्रमित हो गई थी… बस्तर की संस्कृति… अब लौट आई है अपने मूल धारा में

मुख्य वन संरक्षक आलोक तिवारी  ने   कहा कि  किसी भी उत्थान का रोड मैप होता है. वे वर्ष 1994-95 से 2002 तक बस्तर में पदस्थ थे- इस दौरान वे बस्तर के कई अंदरूनी इलाके में गए भोपालपटनम, कोंटा में गए  उस समय बस्तर बारूद के साये में थे. यदा कदा बारूद की गंध सुंघने में आता था इस बजह से बस्तर की संस्कृति की दिशा थोडे समय के लिए भ्रमित हो गई थी अब ऐसा समय आया है कि जब फिर से हम वास्तव में मूल धारा मूल स्थान में फिर से अपने समाज को  साथ संजोने कर चलने के लिए फिर से कमर कस चुके है. जिस तरह की शासन ने संकल्प के साथ प्रतिबद्धता नजर आ रही है उसमे सकारात्मकता नजर आ रही है.

हम अगर किसी भी व्यवसाय या किसी तरह के बाजार या समाज के उत्थान पतन की बात करें तो वह दो बातों पर निर्भर होता है एक होता है जो भी काम आप कर रहें हैं जिस भी तरह का व्यवसाय या उत्पादन है वो शासन की नीति से समर्थित हो. अगर उनका समर्थन शासन की नीति करती है तो मान कर चलिए की आपका एक चरण पूरा हो गया है.

 दूसरा चरण भी महत्वपूर्ण है जो भी काम आप शासन की नीति के तहत कर रहे हैं उसे बाजार स्वीकार कर लें. यदि बाजार इसे स्वीकार कर लेता है तो मान कर चलिए आपका दूसरा काम हो गया वो बाजार में स्थायी रहेगा. यदि दोनों में कोई एक विसंगति हो जाती है तो वो बाजार में टिक नही पाएगा. 

शासन ने भी बड़े खुले मंच से कई सारे घटक जो पहले लालफीताशाही में होते थे किसी न किसी मर्यादा से बंधे रहते थे उनको सरकार खुला आफर दे रही है कि आप हमारे मूल विकास की धारा से जुड़िए और साथ मिल कर चलें हमारे पास बस्तर का अपना यूएसपी है. बस्तर जिस तरह प्रकृति की गोद में बसा है इसमें किसी प्रकार की मिलावट की गुंजाइश कम है. संगोष्ठी का जो दूसरा भाग है बाहरी हस्तक्षेप को बस्तर ने गहराई से आघात झेला है.

बस्तर की वेदना बताती है कि बाहरी हस्तक्षेप ने बस्तर को कई तरह के डैमेज किये जिससे सुधरने में बस्तर को समय लग रहा है. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं  क्योंकि न सिर्फ बस्तर के सांस्कृतिक विरासत या संसधानों की बात करें तो ये सभी अपने आप में समृद्ध भू भाग है. जब हम समृद्ध की बात करतें हैं तो यहां आदिकाल से रह रहे लोग बहुत ही सीमित आवश्यकता मे रहने में गर्व महसूस करते हैं और इसे अपनी दिनचर्या का भाग मानते हैं. लेकिन धीरे धीरे कर मूल धारा की बात जुड़ने की बात आई तो बाहर से दूसरे प्रकार की सांस्कृतिक चीजे प्रवेश कराने की कोशिश की गई.

उन्होने एक संस्मरण याद करते हुए कहा कि मुझे याद है कि एक समय शासन की योजना के तहत जो आवास बने थे उसमें ग्रामीण अपने मवेशी रखते थे और अपना निवास उसी पुरानी कुटिया में रहते थे. ये बस्तरवासियों की सहजता है  कि वे अपने भीतर प्रकृति से हट कर होने वाले बदलाव नही कर पाते. 

थोड़ा सा हम अगर देखने की कोशिश करे कि हमारे पास संसाधन के रूप् में क्या है तो वानिकी के रूप् में जिस संसाधन का उपयोग हम करते है वो सारे के सारे पुनर्चक्रण वाले है. रिन्यूवेबल है. लेकिन इसकी भी एक सीमा होती है आज के समय में हमारे पास 67 प्रकार की वनौषधि प्रजाति है.

जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य तय है. इसके विदोहन का हम अंतिम चरण तक पहुंचते है.  गांव स्तर पर थोड़ा सोचने और नियमन की आवश्यकता है. आज जो प्रचुरता में है हो सकता है अधिक दोहन की वजह से वह भविष्य में न दिखाए दें. इसलिए इनके नियमन जरूरी है.

अब बात आती है कि हमारे पास क्षमता कितनी है. छत्तीसगढ़ को हर्बल स्टेट का दर्जा प्राप्त है. बस्तर में हर्बल की एक प्रजाति है जिसे लाख कहते है. बस्तर में गणना के अनुसार साढ़े 5 लाख कुसुम के वृक्ष है.  हमारे 4 वनमंडल बीजापुर दंतेवाड़ा सुकमा और बस्तर इन चारों वन मंडल में साढ़े 5 लाख कुसुम के वृक्ष हैं.

यदि कुसुम के वृक्ष में लाख का पालन किया जाता है ता 1 पेड़ से 25 हजार का लाख पैदा होता है. यदि 25 हजार के अनुसार आंकलन किया जाए तो 1375 करोड़ की आय लाख से हो सकती है. इसी तरह से रैली कोसा यहां की कीमती धरोहर है. लगभग यहा साढ़े 4 करोड़ से 5 करोड़ तक कोसा उत्पन्न होते है. एक कोसा की एमएसपी 6 रूप्ए से अधिक है.

हमारे पास दूसरे धरोहर के रूप् में कोसा है. हमारे पास अनंत संभावना है. इसी तरह इमली महुआ काजू भी है. 16 हजार हेक्टेयर इलाके में काजू के वृक्षारोपण किए गए है. कई प्रसंस्करण केद्र भी खोले गए लेकिन कुछ बंद है. यदि इन पर भी पूरी क्षमता से काम होगा तो बस्तर के युवा के पास रोजगार की कमी नही होगी.

इसके अलाव इको टूरिज्म की हमारे हर क्षेत्र में आपार संभावना है लेकिन इसके प्लानिंग में हम पाते है कि पर्यटको को आकर्षित करने के लिए एक्टिविटी कम है. हमें इसे अच्छे से निर्धारित करना होगा. मुझे कई इको टृरिज्म के एक्टिविटी कम लगी.

 कई सारी जल संधारण रचना विकसीत की गई है. इसमें हम मछली पालन कर रोजगार भी पैदा कर सकते है. ये रोजगार तो देगा हैी साथ ही बस्तर में न्यूट्रिषियन में प्रोटिन की  भी पूर्ति करेगा. क्षमता हमारे पास असीमित है इसके लिए वृहद प्लानिंग की आवष्यकता है. 

गांव का पानी और गांव की जवानी गांव मे रोक लिया जाए तो गांव का कायाकल्प हो जाएगा.  आज की जनधारा से गुजारिष है कि अपने सकारात्मक पत्रकारिता के साथ बस्तर की वेदना को दूर कर इसे विकास की राह पर और उंचाई पर पहुंचाएंगे.

Related News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *