Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – तेज आवाज का दुष्प्रभाव 

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

दुष्यंत कुमार का शेर है कि-
रोने गिड़गिड़ाने का यहां कोई असर होता नहीं।
पेट भर के गालियां दें, जी भर के बद्दुआ।।
हम बात कर रहे हैं आवाज की और आवाज का मतलब शोर है, जो हमारे कानों से टकराता है। हम उतनी ही तेज आवाज में कोई बात सुन सकते हैं, जितनी हमारे कान की क्षमता है। जब हम धीरे-धीरे बोलते हैं तो लगता है कि बात स्पष्ट नहीं हो पा रही है, पर जब कोई बात साफ तौर पर कहनी है तो हम उतनी ही तेज बोलते हैं,जितना कि सामने वाला आसानी से सुन ले, लेकिन आजकल तेज आवाज का जो शोर है, वह तकलीफ दे रहा है।
कैफी आजमीं का एक शेर है-
‘चीखता था मगर आवाज न थी, मौत लहराती थी सौ शक्लों में।’
यह मौत लहराती है, यह कई तरह से लहराती है। कभी प्रदूषण के कारण, उसमें एक ध्वनि प्रदूषण भी है।
मुनव्वर राणा साहब लिखते हैं कि-
‘बस तू मेरी आवाज से आवाज मिला दे, फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता।’
यहां किसी भी बात को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आवाज से आवाज मिलाने की बात हो रही है।
नुमान शौक भी कहते हैं कि –
‘सुना शोर से हल होंगे सारे मसले एक दिन, सो हम आवाज से आवाज को टकराते हैं।’
इसी तरह की बातें बहुत सारी शेर-’ओ शायरी की जरिए कही जाती हैं। कई शायर और लेखकों ने शोर को लेकर अपनी बातें कहीं हैं।
जिया जालंधरी कहते हैं कि-
‘हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज का आलम, चुप बैठने से हल नहीं होने का मसला।’
ध्वनि प्रदूषण का भी एक ऐसा ही मसला है, जो चुप होने से हल नहीं होगा। लेकिन सवाल ये है कि क्या हम इतना शोर मचाएं कि लोगों की जान चली जाए? लोग बहरे हो जाएं? लोगों को सुनाई देना बंद हो जाए? हम बात कर रहे हैं ध्वनि प्रदूषण की। आखिर ये ध्वनि प्रदूषण क्या है? ध्वनि प्रदूषण से हमारे समाज में इसका असर हो रहा है। इससे यह समझ में आता है कि सरकार लाख कहे कि ध्वनि विस्तारक यंत्रों को इतने बजे से इतने बजे तक ही बजाया जाए। बहुत शोर नहीं करना चाहिए, लेकिन देखने में यह आ रहा है कि लगातार शोर हो रहा है। इस शोर से लोगों की जान तक जा रही है। आखिर ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों की जान कैसे जा रही है? इसका ताजा उदाहरण अभी गणेश उत्सव हो रहा है। गणेश उत्सव में बहुत सारे माइक और डीजे बजाए जा रहे हैं। कोई भी जुलूस निकल रहा है या फिर बारात निकल रही है तो उसमें डीजे बज रहा है। यह हाल पूरे देश में है। किसी भी धर्म-जाति-समुदाय का हो। लोग जमकर लाउडस्पीकर और डीजे का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसमें इतने जोर-जोर से गाने और भजन बज रहे हैं कि लोगों के कान के पर्दे फट जाएं। जाहिर है कि इससे ध्वनि प्रदूषण फैल रहा है।
ध्वनि प्रदूषण पर रोक लगाने के लिए बनाए गए कोलाहाल अधिनियम की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है, उससे न सिर्फ जनस्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि ध्वनि प्रदूषण को लेकर खूनी संघर्ष की स्थिति भी बन रही है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के नंदिनी क्षेत्र में डीजे की तेज आवाज को लेकर दो पक्षों के बीच विवाद इस कदर बढ़ा कि तीन लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इसके पहले भी छत्तीसगढ़ में डीजे की तेज आवाज को लेकर विवाद की स्थिति बनती रही है, जिसके चलते मारपीट की घटनाएं भी हो चुकी है। इसके बावजूद शासन प्रशासन ध्वनि विस्तारक यंत्रों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठा पा रहा है। आदिवासी बाहुल्य सरगुजा क्षेत्र में डीजे की आवाज के कारण एक व्यक्ति को ब्रेन हेमरेज होने की घटना भी सामने आई है। इससे स्पष्ट है कि डीजे इस कदर जन स्वास्थ्य के लिए खतरनाक सिद्ध हो रहा है। हृदय रोगियों और बुजुर्गों के लिए तो डीजे की आवाज जान लेवा साबित हो सकती है। इस मामले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने लाउडस्पीकर और डीजे सहित अन्य ध्वनि विस्तारक यंत्रों के उपयोग को लेकर कड़े दिशा निर्देश जारी किए हैं। पिछले दिनों मेडिकल कालेज अंबिकापुर में पदस्थ नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ डा शैलेंद्र गुप्ता के पास व्हील चेयर पर बलरामपुर जिले के सनावल निवासी संजय जायसवाल पहुंचे। सामान्य प्रक्रिया में उसका ब्लड प्रेशर जांचा गया। ब्लड प्रेशर 110-70 था। घरवालों के मुताबिक़, मरीज को रात से अचानक चक्कर आ रहा था। रात में उसे उल्टियां भी हुई हैं। यह स्थिति सिर में चोट के कारण होती है। अत्यधिक ब्लड प्रेशर में भी ऐसा होता है। मगर, युवक का ब्लड प्रेशर सामान्य था। किसी से मारपीट, सडक़ दुर्घटना या किसी अन्य कारण से भी सिर में चोट नहीं आई थी। चिकित्सक ने मरीज का सीटी स्कैन कराया। सीटी स्कैन की रिपोर्ट आश्चर्यजनक थी। ब्रेन के पिछले हिस्से में खून का थक्का जमा था, क्योंकि ब्रेन हेमरेज से पहले वह युवक गांव के सार्वजनिक गणेश पूजास्थल पर गया था। वहां तेज आवाज में डीजे बज रहा था, इसलिए आशंका है कि ब्रेन हेमरेज का कारण डीजे का तेज आवाज हो सकता है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही लाउडस्पीकर की ऊंची आवाज पर रोक लगाने का आदेश दिया था। हालांकि, इंदौर के तिलक नगर क्षेत्र में धर्मस्थलों पर अभी भी तेज आवाज में लाउडस्पीकर का उपयोग हो रहा है। अगर कबीर के समय की बात करें तो उस समय लाउडस्पीकर नहीं था, कबीरदास कहते हैं- ‘कांकर पाथर जोरि कै मस्जिद लई बनाय। ता चढि मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ खुदाय॥‘ ध्वनि प्रदूषण की बात कबीर के समय से हो रही है। इस मुद्दे पर इंदौर हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है, जिसके बाद संबंधित अधिकारियों और संस्थानों से जवाब तलब किया गया है। इस मामले में अक्सर कोर्ट ध्वनि विस्तारक यंत्र को लेकर अलग-अलग लोगों को हिदायत देती रहती है। कोर्ट प्रशासन को भी तलब करता है। वहीं जब किसी कार्यक्रम की प्रशासन अनुमति देता है तो उसमें यह भी लिखा होता है कि कितने बजे से कितने बजे तक लाउडस्पीकर या डीजे बजाया जा सकता है और इतनी ही आवाज में बजाएंगे कि दूसरों का तकलीफ ना हो, पर लोग नहीं मानते। लोगों को लगता है कि उत्सवधर्मिता का मतलब है कि चौक-चौराहों पर लाउडस्पीकर लगाओ और उसे बहुत तेज आवाज में बजाओ। इस तरह के आयोजनों पर रोक-टोक इसलिए नहीं करता है क्योंकि यह मामला जन आस्था से जुड़ा है। मगर सच्चाई यह है कि जनस्वास्थ्य के विरूद्ध है। यानी ध्वनि प्रदूषण पर रोक अधिनियम का पालन कहीं नहीं होता है। इसमे सरकारे मूकदर्शक बनी रहती हैं। क्योंकि ज्यादतर लाउडस्पीकर धार्मिक स्थलों पर बजते हैं। सार्वजनिक समारोह में बजते हैं या समाज के ऐसे लोग तेज आवाज में बजाते हैं, जिनको रोकना स्थानीय प्रशासन के बस की बात नहीं है। ऐसे में जिनको गाने और भजन ना सुनना हो उन्हें भी मजबूरन सुनना पड़ता है। आजकल के बच्चे कान में इयर फोन लगाकर दिनभर तेज आवाज में गाने सुनते हैं। साथ ही जहाँ कहीं पार्टी होती है, वहां, बंद कमरे में तेज आवाज में डीजे बजता है। एक नया शब्द है ‘डिस्क जॉकी’। इस शब्दप्रयोग का संक्षिप्त रूप है ‘डीजे’। बड़े-बड़े लाउडस्पीकर और डीजे पर गाने बजते हैं। अगर आप वहां जाएंगे तो लाउडस्पीकर पर उसकी ध्वनि की तरंगें अनुभव करेंगे। शरीर में भी कंपन सा होने लगता है। हमारे यहां जुलूस -जलसे या कार्यक्रमों में भी बिना अनुमति के लाउडस्पीकर और डीजे बजाए जाते हैं और बहुत तेज आवाज में बजाए जाते हैं।
आजकल किसी भी समारोह में डीजे बहुत तेज आवाज में बजता है। इसकी आवाज कान फोडूं होती है, पर वहां जो लोग होते हैं, और जिनको नाचना-गाना है उनको इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि दूसरों को क्या परेशानी हो रही है। उनको लगता है कि जब तेज आवाज में बजेगा तभी हमारे पैर थिरकेंगे और वो नाच गा सकेंगे। पर इसके कितने विपरीत प्रभाव पड़ रहे हैं, इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि आसपास के बहुत से लोग बीमार पड़ रहे हैं। उनको भी इसे झेलना पड़ता है। तेज आवाज से कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता है कि उनके कानों में जो आवाज जा रही है वह किस तरह की है? सामान्यत: लाइट इवेंट में इतनी तेज़ आवाज़ होती है कि सुनने की क्षमता को नुकसान पहुँच सकता है। लाइव इवेंट में बजने वाला संगीत 110-120 डेसीबल के आसपास होता है, जो सुरक्षित ध्वनि के लिए 85 डेसीबल सीमा से ज़्यादा तेज़ होता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन से पता चला है कि 1 बिलियन से अधिक युवा असुरक्षित संगीत सुनने से सुनने की क्षमता खोने का जोखिम उठाते हैं। खासकर हेडफ़ोन या ईयरबड्स का उपयोग करते समय इसका बात का ध्यान नहीं रखते हैं। इसके बावजूद लोग कहते हैं कि हम तो तेज आवाज में ही सुनेंगे, आपको इससे क्या? अगर आप शांतिप्रिय हैं तो वहां से हट जाइए। मगर सवाल ये है कि अगर घर के बगल में बज रहा है तो लोग घर छोडक़र कहां जाएंगे? अगर आप बीमार हैं और आप सो रहे हैं, आपके कान में इस तरह की तेज आवाज जा रही है तो आप उससे अपने आपको कितना अलग कर सकते हैं? यह एक प्रकार से चुनौती है। इसके कारण लगातार उनके कानों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इसी तरह का एक मामला बालीवुड से जुड़ा है। प्रसिध्द गायिका अलका याज्ञनिक ने भी बीच एक पोस्ट किया था कि उनके कानों के सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो रही है। जब हम प्रदूषण की बात करते हैं और पर्यावरण की रक्षा की बात करते हैं तो हमें ध्वनि प्रदूषण के बारे में भी बात करनी चाहिए। हालांकि इसको लेकर समय-समय पर सचेत भी किया जाता है। तेज ध्वनि का हमारे आसपास रहने वाले पशु- पक्षी और पौधों पर भी असर होता है। अगर ओम उच्चारण की ध्वनि अलग होती है। हमारे संगीत की ध्वनि अलग होती है। हमारे यहां अलग-अलग समय के लिए अलग-अलग राग-रागिनी जिसे उस समय गाया जाता है। मगर आज कल जिस तरह से लाउडस्पीकर और डीजे पर कानफोडूं गाने बज रहे हैं। वह निश्चित रूप से लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से ठीक नहीं है और घातक है।
इस विषय पर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की एक कहानी है कि- ‘भगत की गत’ इस कहानी में परसाई जी लाउड-स्पीकर पर अखण्ड कीर्तन के शोर और उसके प्रभाव के बारे बताते हैं।
उस दिन जब भगतजी की मौत हुई थी, तब हमने कहा था- भगतजी स्वर्गवासी हो गए, पर अभी मुझे मालूम हुआ कि भगतजी, स्वर्गवासी नहीं, नरकवासी हुए हैं। मैं कहूं तो किसी को इस पर भरोसा नहीं होगा, पर यह सही है कि उन्हें नरक में डाल दिया गया है और उन पर ऐसे जघन्य पापों के आरोप लगाये गये हैं कि निकट भविष्य में उनके नरक से छूटने की कोई आशा नहीं है। अब हम उनकी आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करें तो भी कुछ नहीं होगा। बड़ी से बड़ी शोक-सभा भी उन्हें नरक से नहीं निकाल सकती। सारा मुहल्ला अभी तक याद करता है कि भगतजी मंदिर में आधीरात तक भजन करते थे। हर दो-तीन दिनों में वे किसी समर्थ श्रद्धालु से मंदिर में लाउडस्पीकर लगवा देते और उस पर अपनी मंडली समेत भजन करते। पर्व पर तो चौबीसों घंटे लाउडस्पीकर पर अखण्ड कीर्तन होता। एक-दो बार मुहल्ले वालों ने इस अखण्ड कोलाहल का विरोध किया तो भगतजी ने भक्तों की भीड़ जमा कर ली और दंगा कराने पर उतारू हो गए। वे भगवान के लाउडस्पीकर पर प्राण देने और प्राण लेने पर तुल गये थे।
ऐसे ईश्वर-भक्त, जिन्होंने अरबों बार भगवान का नाम लिया, नरक में भेजे गए और अजामिल, जिसने एक बार भूल से भगवान का नाम ले लिया था, अभी भी स्वर्ग के मजे लूट रहा है। अंधेर कहां नहीं है!
भगतजी बड़े विश्वास से उस लोक में पहुँचे। बड़ी देर तक यहां-वहां घूमकर देखते रहे। फिर एक फाटक पर पहुंचकर चौकीदार से पूछा- स्वर्ग का प्रवेश-द्वार यही है न? चौकीदार ने कहा- हां यही है। वे आगे बढऩे लगे, तो चौकीदार ने रोका- प्रवेश-पत्र यानी टिकिट दिखाइए पहले। भगतजी को क्रोध आ गया। बोले- मुझे भी टिकिट लगेगा यहां? मैंने कभी टिकिट नहीं लिया। सिनेमा मैं बिना टिकिट देखता था और रेल में भी बिना टिकिट बैठता था। कोई मुझसे टिकिट नहीं मांगता। अब यहां स्वर्ग में टिकिट मांगते हो? मुझे जानते हो। मैं भगतजी हूं। चौकीदार ने शान्ति से कहा- होंगे, पर मैं बिना टिकिट के नहीं जाने दूंगा। आप पहले उस दफ्तर में जाइए। वहां आपके पाप-पुण्य का हिसाब होगा और तब आपको टिकिट मिलेगा। भगतजी उसे ठेलकर आगे बढऩे लगे, तभी चौकीदार एकदम पहाड़ सरीखा हो गया और उसने उन्हें उठाकर दफ्तर की सीढ़ी पर खड़ा कर दिया। भगतजी दफ्तर में पहुँचे। वहां कोई बड़ा देवता फाइलें लिए बैठा था। भगतजी ने हाथ जोडक़र कहा- अहा मैं पहचान गया भगवान कार्तिकेय विराजे हैं। फाइल से सिर उठाकर उसने कहा- मैं कार्तिकेय नहीं हूं। झूठी चापलूसी मत करो। जीवन-भर वहां तो कुकर्म करते रहे हो और यहां आकर च्हें-हेंज् करते हो। नाम बताओ।
भगतजी ने नाम बताया, धाम बताया। उस अधिकारी ने कहा- तुम्हारा मामला बड़ा पेचीदा है। हम अभीतक तय नहीं कर पाये कि तुम्हे स्वर्ग दें या नरक। तुम्हारा फैसला खुद भगवान करेंगे। भगतजी ने कहा- मेरा मामला तो बिल्कुल सीधा है। मैं सोलह आने धार्मिक आदमी हूं। नियम से रोज भगवान का भजन करता रहा हूं। कभी झूठ नहीं बोला और कभी चोरी नहीं की। मंदिर में इतनी स्त्रियां आती थीं, पर मैं सबको माता समझता था। मैंने कभी कोई पाप नहीं किया। मुझे तो आंख मूंदकर आप स्वर्ग भेज सकते हैं।
अधिकारी ने कहा- भगतजी आपका मामला उतना सीधा नहीं है, जितना आप समझ रहे हैं। परमात्मा खुद उसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। आपको मैं उनके सामने हाजिर किये देता हूं। एक चपरासी भगतजी को भगवान के दरबार में ले चला। भगतजी ने रास्ते में ही स्तुति शुरू कर दी। जब वे भगवान के सामने पहुँचे तो बड़े जोर-जोर से भजन गाने लगे-
च्हम भगतन के भगत हमारे,
सुन अर्जुन परतिज्ञा मेरी, यह व्रत टरै न टारे।ज्
भजन पूरा करके गदगद वाणी में बोले- अहा, जन्म-जन्मान्तर की मनोकामना आज पूरी हुई है। प्रभु, अपूर्व रूप है आपका। जितनी फोटो आपकी संसार में चल रही हैं, उनमें से किसी से नहीं मिलता। भगवान स्तुति से च्बोरज् हो रहे थे। रुखाई से बोले- अच्छा अच्छा ठीक है। अब क्या चाहते हो, सो बोलो। भगतजी ने निवेदन किया- भगवन, आपसे क्या छिपा है! आप तो सबकी मनोकामना जानते हैं। कहा है- राम, झरोखा बैठ के सबका मुजरा लेय, जाकी जैसी चाकरी ताको तैसा देय! प्रभु, मुझे स्वर्ग में कोई अच्छी सी जगह दिला दीजिए। प्रभु ने कहा- तुमने ऐसा क्या किया है, जो तुम्हें स्वर्ग मिले?
भगतजी को इस प्रश्न से चोट लगी, जिसके लिए इतना किया, वही पूछता है कि तुमने ऐसा क्या किया! भगवान पर क्रोध करने से क्या फायदा- यह सोचकर भगतजी गुस्सा पी गये। दीनभव से बोले- मैं रोज आपका भजन करता रहा।
भगवान ने पूछा- लेकिन लाउड-स्पीकर क्यों लगाते थे? भगतजी सहज भाव से बोले- उधर सभी लाउडस्पीकर लगाते हैं। सिनेमावाले, मिठाईवाले, काजल बेचने वाले- सभी उसका उपयोग करते हैं, तो मैंने भी कर लिया। भगवान ने कहा- वे तो अपनी चीज का विज्ञापन करते हैं। तुम क्या मेरा विज्ञापन करते थे? मैं क्या कोई बिकाऊ माल हूं। भगतजी सन्न रह गये। सोचा, भगवान होकर कैसी बातें करते हैं। भगवान ने पूछा- मुझे तुम अन्तर्यामी मानते हो न? भगतजी बोले- जी हां! भगवान ने कहा- फिर अन्तर्यामी को सुनाने के लिए लाउडस्पीकर क्यों लगाते थे? क्या मैं बहरा हूं? यहां सब देवता मेरी हंसी उड़ाते हैं। मेरी पत्नी मजाक करती है कि यह भगत तुम्हें बहरा समझता है। भगतजी जवाब नहीं दे सके।
भगवान को और गुस्सा आया। वे कहने लगे- तुमने कई साल तक सारे मुहल्ले के लोगों को तंग किया। तुम्हारे कोलाहल के मारे वे न काम कर सकते थे, न चैन से बैठ सकते थे और न सो सकते थे। उनमें से आधे तो मुझसे घृणा करने लगे हैं। सोचते हैं, अगर भगवान न होता तो यह भगत इतना हल्ला न मचाता। तुमने मुझे कितना बदनाम किया है!
भगत ने साहस बटोरकर कहा- भगवना आपका नाम लोंगों के कानों में जाता था, यह तो उनके लिए अच्छा ही था। उन्हें अनायास पुण्य मिल जाता था। भगवान को भगत की मूर्खता पर तरस आया। बोले- पता नहीं यह परंपरा कैसे चली कि भक्त का मूर्ख होना जरूरी है और किसने तुमसे कहा कि मैं चापलूसी पसंद करता हूं? तुम क्या यह समझते हो कि तुम मेरी स्तुति करोगे तो मैं किसी बेवकूफ अफसर की तरह खुश हो जाऊंगा? मैं इतना बेवकूफ नहीं हूं भगतजी कि तुम जैसे मूर्ख मुझे चला लें। मैं चापलूसी से खुश नहीं होता कर्म देखता हूं। भगतजी ने कहा- भगवन, मैंने कभी कोई कुकर्म नहीं किया। भगवान हंसे। कहने लगे- भगत, तुमने आदमियों की हत्या की है। उधर की अदालत से बच गये, पर यहां नहीं बच सकते। भगतजी का धीरज अब छूट गया। वे अपने भगवान की नीयत के बारे में शंकालु हो उठे। सोचने लगे, यह भगवान होकर झूठ बोलता है। जरा तैश में कहा- आपको झूठ बोलना शोभा नहीं देता। मैंने किसी आदमी की जान नहीं ली। अभी तक मैं सहता गया, पर इस झूठे आरोप को मैं सहन नहीं कर सकता। आप सिद्ध करिए कि मैंने हत्या की।
भगवान ने कहा- मैं फिर कहता हूं कि तुम हत्यारे हो, अभी प्रमाण देता हूं। भगवान ने एक अधेड़ उम्र के आदमी को बुलाया। भगत से पूछा- इसे पहचानते हो? हां, यह मेरे मुहल्ले का रमानाथ मास्टर है। पिछले साल बीमारी से मरा था- भगतजी ने विश्वास से कहा। भगवान बोले- बीमारी से नहीं, तुम्हारे भजन से मरा है। तुम्हारे लाउडस्पीकर से मरा है। रमानाथ, तुम्हारी मृत्यु क्यों हुई? रमानाथ ने कहा- प्रभु मैं बीमार था। डॉक्टर ने कहा कि तुम्हें पूरी तरह नींद और आराम मिलना चाहिए। पर, भगतजी के लाउडस्पीकर पर अखण्ड कीर्तन के मारे मैं सो न सका, न आराम कर सका। दूसरे दिन मेरी हालत बिगड़ गयी और चौथे दिन मैं मर गया। भगत सुनकर घबरा उठे। तभी एक बीस-इक्कीस साल का लडक़ा बुलाया गया। उससे पूछा- सुरेंद्र,तुम कैसे मरे? मैंने आत्महत्या कर ली थी- उसने जवाब दिया। आत्महत्या क्यों कर ली थी?- भगवान ने पूछा। सुरेंद्रनाथ ने कहा- मैं परीक्षा में फेल हो गया था। परीक्षा में फेल क्यों हो गये थे? भगतजी के लाउडस्पीकर के कारण मैं पढ़ नहीं सका। मेरा घर मंदिर के पास ही है न! भगतजी को याद आया कि इस लडक़े ने उनसे प्रार्थना की थी कि कम से कम परीक्षा के दिनों में लाउडस्पीकर मत लगाइए। भगवान ने कठोरता से कहा- तुम्हाने पापों को देखते हुए मैं तुम्हें नरक में डाल देने का आदेश देता हूं। भगतजी ने भागने की कोशिश की, पर नरक के डरावने दूतों ने उन्हें पकड़ लिया। अपने भगतजी, जिन्हें हम धर्मात्मा समझते थे, नरक भोग रहे हैं।
परसाई ने 50 साल पहले ये कहानी लिखी थी। हम अपने देश की आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, लेकिन लाउडस्पीकर की आवाज को कम नहीं कर पा रहे हैं। उल्टे हम अब डीजे भी बजाने लगे हैं। अब इस तरह के ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाले यंत्रों को लेकर घूम रहे हैं, जो लोगों का जीना हराम कर देते हैं। हमें तमाम तरह के प्रदूषण के प्रति सचेत होते हुए इस ध्वनि प्रदूषण के प्रति भी सचेत होने की जरूरत है।

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