सक्ती छुरी जब तक इस धरती में, गौ माता, गंगा मैया, गायत्री माता और गौरी अर्थात कन्या सुरक्षित रहेगी, तब तक ही मनुष्यों की भावी पीढ़ी अपना जीवन जी सकती है

सक्ती- सक्ती छुरी जब तक इस धरती में, गौ माता, गंगा मैया, गायत्री माता और गौरी अर्थात कन्या सुरक्षित रहेगी, तब तक ही मनुष्यों की भावी पीढ़ी अपना जीवन जी सकती है l बेटियां है तभी तो कल है l एक बेटी ही अपने पिता को कन्यादान के समय दाता शब्द से अलंकृत और सम्मानित कराती है, इसलिए वर्तमान परिदृश्य में बेटियों का सम्मान और उनके शिक्षा दीक्षा पर विशेष स्थान होना ही चाहिए l यह उद्गार छुरी नगर पंचायत के लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर में आयोजित संगीत मय श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन व्यास पीठ से आचार्य राजेंद्र महाराज ने प्रकट किया l
श्रीमद् भागवत महापुराण के दसवें स्कंद पूर्वार्ध में अध्याय क्रमांक 29 से 33 तक पांच अध्यायों में रास पंचाध्ययी सरस वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि, महाराज लीला भगवान श्री कृष्ण की दिव्य लीला है, जिसे जानने समझने के लिए गोपी भाव की आवश्यकता है l रास अर्थात रस रूप परमात्मा से हमारी आत्मा को मिलने पर जिस आनंद की अनुभूति होती है, यही महाराज है l गो अर्थात हमारी इंद्रियां , और पी का अर्थ है, पीना या आत्मसात करना – जो अपनी इंद्रियों से कृष्ण प्रेम को अपने अंदर उतारे, वही श्रीमद् भागवत की गोपियाँ है l गोपी का तात्पर्य किसी स्त्री अथवा पुरुष से नहीं है/
भगवान के सामने हमें अपनी महानता या विशिष्टता का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए, यही अहंकार गोपियों को अपनी सुंदरता और दिव्यता का हुआ,, तब भगवान श्री कृष्ण रास मंडल से अदृश्य हो गए थे, इन गोपियों का परित्याग कर दिया l अहंकार ही भगवान और भक्त के बीच में एक दीवार बन जाता है, इसी अहंकार की दीवार को गिरा देने पर भगवान की अति कृपा प्राप्त होती है/
आचार्य राजेंद्र जी महाराज ने बताया कि , भगवान श्री कृष्ण ने गोपियों के दिव्य प्रेम और समर्पण का मान रखा और बताया कि मैं जन्म जन्मांतर तक गोपियों के दिव्य प्रेम का ऋणी रहूंगा l पूरे 11 वर्ष तक भगवान ब्रजभूमि में रहे, और मथुरा गमन करने के पश्चात अपनी मैया देवकी और बाबा वासुदेव का प्रणाम कर उनकी सेवा की l अवंतिका पुरी में , संदीपनी जी महाराज के आश्रम में जाकर वेद अध्ययन करते हुए दीक्षा भी प्राप्त किया l भगवान भी अवतार लेकर जब धरती पर आते हैं तो उन्हें भी गुरु शरण में जाना पड़ता है, क्योंकि इन्हीं के श्री चरणों में मनुष्यों का सुखद भविष्य है/
रुक्मणी मंगल का वर्णन करते हुए आचार्य ने यह भी बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने विदर्भ देश की राजकुमारी रुक्मणी , जो साक्षात लक्ष्मी जी के अंश से जन्म प्राप्त की थी, इनका हरण कर विवाह किया , और गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया/
छठवें दिन की कथा में नगर वासियों ने , आयोजक परिवार के साथ भगवान श्री कृष्ण को दूल्हा बनकर बाजे गाजे के साथ भव्य बारात निकाल सैकड़ो लोगों ने विवाह का आनंद लिया l प्रतिदिन सैकड़ो लोगों को कथा श्रवण संकीर्तन एवं जीवंत झाकियों के दर्शन का लाभ प्राप्त हो रहा है /
नगर का वातावरण धर्म और आध्यात्मिकता के साथ राधे राधे के जयकारा से गूंज रहा है l भागवत कथा के आयोजक बेचू राम कविता देवी देवांगन, संतोष कुमार निर्मला देवी देवांगन द्वारा अधिक से अधिक संख्या में कथा श्रवण हेतु आने की अपील की गई है l सभी श्रोताओं के लिए प्रतिदिन विशाल भंडारा का भी आयोजन किया गया है/