Parliament session : संसद सत्र का बेहतर इस्तेमाल हो

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अजीत द्विवेदी

Parliament session : संसद सत्र का बेहतर इस्तेमाल हो

Parliament session : संसद का मॉनसून सत्र निर्धारित समय से चार दिन पहले ही समाप्त हो गया। सत्रहवीं लोकसभा में यानी मई 2019 के बाद से ऐसा सातवीं बार हुआ है कि सत्र को निर्धारित समय से पहले समाप्त किया गया। इसमें दो साल के करीब कोरोना महामारी का समय भी शामिल है, जब स्थितियां बहुत विषम थीं।

तब अगर सत्र का आयोजन नहीं हुआ या सत्र समय से पहले समाप्त हुआ तो उसकी वाजिब वजह थी। लेकिन अभी आजादी के अमृत महोत्सव से ठीक पहले के एक महीने से भी कम समय के सत्र का समय से पहले समाप्त होना हैरान करने वाला है। इसके जो कारण बताए जा रहे हैं वे भी हैरान और निराश करने वाले हैं।

Parliament session :सरकार की ओर से आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया लेकिन सरकार के सूत्रों के हवाले से मीडिया में जो खबरें आईं, उसमें दो कारण बताए गए। पहला कारण तो यह कहा गया कि सरकार के पास विधायी काम नहीं बचे थे इसलिए सत्र समाप्त कर दिया गया।

दूसरा कारण यह बताया जा रहा है कि सत्र के आखिरी सप्ताह के दौरान दो छुट्टियां थीं इसलिए सांसद चाहते थे कि सत्र जल्दी समाप्त हो। यह बहुत बचकानी बात है।

Parliament session : स्कूलों में बच्चे ऐसा चाहते हैं कि दो दिन की छुट्टी है तो दो दिन और छुट्टी ले लें ताकि पूरा हफ्ता छुट्टी हो जाए। सरकारी कर्मचारी भी ऐसा करते हैं। लेकिन सांसद सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं। वे भारत भाग्य विधाता होते हैं। उन 780 लोगों को देश के 140 करोड लोगों की किस्मत के बारे में फैसला करना होता है। वे इस तरह के बहाने से छुट्टियां लें, यह अच्छी बात नहीं है।

Parliament session : खासतौर से इस सत्र में तो समय से पहले सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने के बारे में सोचा भी नहीं जाना चाहिए था क्योंकि पहले दो हफ्ते वैसे ही हंगामे की भेंट चढ़ गए थे।

विपक्ष पहले दिन से महंगाई, बेरोजगारी और खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी लगाए जाने के मामले पर बहस की मांग कर रहा था लेकिन सरकार किसी न किसी बहाने से इसे टाल रही थी। इस वजह से दोनों सदनों में गतिरोध बना रहा।

Parliament session : टकराव इतना बढ़ गया कि दोनों सदनों के 27 सांसद निलंबित भी हुए। इसी दौरान राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव भी हुए और सांसद उसमें भी बिजी रहे। सो, कुल मिला कर तीसरे हफ्ते में कुछ कामकाज हुआ और चौथे हफ्ते के पहले दिन सत्र समाप्त हो गया। सत्र के समापन पर खुद राज्यसभा के निवर्तमान सभापति एम वेंकैया नायडू ने बताया कि 16 बैठकों में सिर्फ 35 घंटे कामकाज हुआ और 47 घंटे बरबाद हुए। लोकसभा में इससे थोड़ी बेहतर स्थिति रही। वहां 44 घंटे से थोड़ा ज्यादा काम हुआ और 37 घंटे के करीब समय बरबाद हुआ। इसके बावजूद सत्र चार दिन पहले समाप्त कर दिया गया।

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Parliament session : सरकार के सूत्रों के हवाले दिया गया यह तर्क भी पूरी तरह से सही नहीं है कि सरकार के पास विधायी काम नहीं थे। राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने बताया कि सरकार को वन्य जीव संरक्षण संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश करना था। इस बिल को लोकसभा ने पास कर दिया है और इसे राज्यसभा में पेश किया जाना था। रमेश ने कहा कि मंगलवार की मुहर्रम की छुट्टी के अगले दिन बुधवार को इस पर बहस के लिए उन्होंने तैयारी कर रखी थी लेकिन सरकार ने सोमवार को सत्र समाप्त कर दिया।

Parliament session : आमतौर पर किसी सत्र में अगर एक सदन में कोई बिल पास होता है तो उसी सत्र में उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है और पास भी कराया जाता है। लेकिन इस बार कम से कम दो विधेयकों के मामले में ऐसा नहीं हुआ। लोकसभा में सात विधेयक पास हुए लेकिन राज्यसभा सिर्फ पांच ही विधेयक पास हुए।

विधायी कामकाज के अलावा भी संसद सत्र में कई और काम होते हैं। जरूरी मसलों पर सवाल पूछे जाते हैं और मंत्री उनका जवाब देते हैं। हंगामे के बावजूद सवालों के जवाब सदन के पटल पर रखे जाते हैं, जिनसे देश के लोगों को कई बातों की जानकारी मिलती है।

Parliament session : इसके अलावा देश के सामने मौजूद ज्वलंत मुद्दों पर संसद के अंदर चर्चा होती है। सरकार ने दो हफ्ते के गतिरोध के बाद महंगाई पर चर्चा कराई लेकिन उसके अलावा कई अहम मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा नहीं हो सकी। सरकार ने सेना में बहाली की दशकों से चल रही प्रक्रिया को बदल दिया है।

Parliament session : नियमित बहाली की जगह अग्निपथ योजना लाई गई है, जिसके तहत सेना में चार साल की नौकरी मिलेगी। बहुत बड़ा फैसला है, जो सरकार ने उस समय किया, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा था। ऐसे में क्या यह सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती थी कि वह संसद को इसकी जानकारी दे और इस पर चर्चा कराए? विपक्ष के कई नेताओं ने इस अहम मसले पर चर्चा के लिए नोटिस दिया था लेकिन सरकार ने चर्चा नहीं कराई।

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Parliament session : सोचें, विपक्षी पार्टियां पिछले दो साल से चीन की घुसपैठ और सीमा पर चल रहे गतिरोध के बारे में चर्चा कराने की मांग कर रही हैं लेकिन सरकार इसके लिए भी तैयार नहीं हुई।

विपक्ष ने केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए इस मसले पर चर्चा की मांग की थी। विपक्ष इस बात से आहत था कि सत्र के दौरान राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को ईडी ने तलब कि या और उनसे सात घंटे तक पूछताछ की लेकिन पीठासीन पदाधिकारी ने उनका बचाव नहीं किया।

यह एक अहम मसला है। केंद्रीय एजेंसियों खासतौर से ईडी की कार्रवाई जिस अंदाज में विपक्षी पार्टियों के नेताओं के खिलाफ हो रही है वह सामान्य नहीं है। इस पर चर्चा कराई जानी चाहिए थी। लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। हैरानी की बात यह है कि संसद में गतिरोध के लिए सरकार सारे समय विपक्ष को जिम्मेदार ठहराती रही। सवाल है कि क्या संसद चलाने की जिम्मेदारी सिर्फ विपक्ष की होती है?

Parliament session : सरकार ने कब सुचारू रूप से संसद चलाने का प्रयास किया? यहां तक कि जब 27 सांसद धरने पर बैठे थे तो सरकार की ओर से कोई भी उनसे बात करने नहीं गया! ध्यान रहे संसद को सुचारू रूप से चलाने की विपक्ष से ज्यादा जिम्मेदारी सरकार की होती है। उसे संसद सत्र का बेहतर इस्तेमाल करने के उपाय करने चाहिए।

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