Mahangaee Daayan : महंगाई डायन का डंडा
देश की जनता इस वक्त बाढ़ के साथ ही साथ एक और चीज से परेशान है। वह है लगातार बढ़ती हुई महंगाई। लोगों को अपने गृहस्थी से लेकर तमाम तरह की जरूरतों के सामान खरीदने के लिए जेब ढीली करनी पड़ रही है।

उस पर भी तुर्रा ये कि पैक में कुछ भी लेकर जाओ तो जीएसटी जरूर चुकाओ। एक देश एक आधार की योजना चलाकर सरकार ने बड़ी सफाई से आम अवाम की जेब में हाथ डाल लिया।
यह काम किसी और ने नहीं चाल-चरित्र और चेहरे वाली पार्टी ने किया है। ये वही लोग हैं जिन्होंने जनता को अच्छे दिन लाने के सपने दिखाकर बड़ी सफाई से अपने सपने पूरे कर लिए।
यही नहीं अपने उन तमाम खैर-ख्वाहों के भी सपनों को नई उड़ान, नया आसमान मुहैय्या करा दिया। जो इनकी पैरोकारी करने में कोई कोर-कसर नहीं रखते।
तो वहीं इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश की मजलूम अवाम की झोली में इनकी जानिब से अगर कुछ आया है, तो वो है तनाव, महंगाई और भ्रष्टाचार, उस पर जीएसटी की मार।

कोरोना काल में देश की जनता को सरकार ने मुफ्त में जो भी राशन दिया था, लगता है अब उसकी असल कीमत वसूली जा रही है। सबसे चिंता की बात तो ये है कि देश की युवा पीढ़ी का विरोध अब लगता है कि मरता जा रहा है।
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पेट्रोल- डीजल और रसोई गैस की लगातार बढ़ती कीमतें, देश के वाहनों से ज्यादा महंगाई को रफ्तार देने में जुटी हुई हैं।
इतना सब कुछ होने के बावजूद भी देश की सियासी पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है। कहीं से कोई भी चेहरा ऐसा नहीं दिखाई दे रहा है, जो इस देश के गरीब और मजदूर तबके की पीड़ा को समझ सके। उनकी समस्याएं सुनकर उनका समुचित निदान कर सके।

एक वक्त था जब पेट्रोल की थोड़ी सी कीमत बढ़ाने के चक्कर में केंद्र से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की गठबंधन वाली सरकार गिर गई थी।
यह वही समय था जब भाजपा के रणनीतिकारों ने ये निर्णय लिया था कि वे गठबंधन वाली सरकारों से परहेज करेंगे।
उसके बाद जब भी भाजपा की सरकार देश में आई पूर्ण बहुमत में ही आई। जनता ने देश को बहुमत वाली सरकार तो दे दी मगर सरकार जनता को क्या दे रही है ? इसको देश की जनता बेहतर तरीके से समझ रही है।
कुछ लोगों का ये भी तर्क हो सकता है कि इन्हीं पैसों से देश का विकास हो रहा है। इन्हीं पैसों से हमारी सेनाओं को अत्याधुनिकतम हथियार दिए जा रहे हैं।
हथियारों के अनुसंधान और संवर्धन तथा उत्पादन पर लगातार खर्च आ रहा है। इसके कारण महंगाई बढ़ती जा रही है। देश में लगातार पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग लगातार उठाई जाती रही है।
बाजार के जानकारों का मानना है कि इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतों में हो रही बढ़ोत्तरी से लोगों को राहत मिल सकेगी। तो वहीं सरकार बड़ी सफाई से खुद के बहरे होने का स्वांग किए बैठी है।
ऐसे में अगर कोई हलाकान और परेशान है तो वो है इस देश का गरीब और मजदूर तबका। ये वो लोग हैं जो रोज कमाते हैं, रोज ही खाते हैं। उसके बाद चौपालों में बैठकर ढोलक की थाप पर गाते भी हैं कि – सखी सैयां तो खूबै कमात हैं, महंगाई डायन खाए जात है।
लगातार देश में होने वाले सर्वे पर अगर नजर डाली जाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गरीब और भी गरीब होता जा रहा है।
तो वहीं धनाढ्य और पैसे वाले होते जा रहे हैं। हमारे देश की ज्यादातर आबादी गरीबी रेखा के नीचे निवास करती है। उनकी मूलभूत आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान की हैं।
उनको स्पेसक्रॉफ्ट और लड़ाकू विमान से नहीं उनको उनकी साप्ताहिक हाट में बिकने वाले महंगे चावल से मतलब है। उनकी जरूरत सर्दी- बुखार से लेकर तमाम बीमारियों की सस्ती दवाओं से है।

उनकी जरूरत उनके मजरे में बिजली की आपूर्ति बहाल होने को लेकर है।
उनको स्कूलों के भवन, अस्पतालों के भवन, पुलिस थाने, सरकारी राशन की दुकानें, भ्रष्टाचार विहीन दफ्तर, ईमानदार अफसर और सुरक्षित माहौल चाहिए।
ऐसे में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को चाहिए कि जितनी जल्दी हो सके, महंगाई पर तत्काल प्रभाव से विराम लगाएं। शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे मामलों में भी सरकार की सक्रिय भागीदारी हो। तभी तो हमारे लोकतंत्र में हमारे देश की जनता की आस्था मज