-सुभाष मिश्र
बेलगाम अफसरशाही और घुड़सवार कहा जाता है कि अफसरशाही घोड़े की तरह होती है और घुड़सवार जिस तरह उसका लगाम कसेगा, घोड़ा उस तरह से चलेगा। अब सवाल है कि अफसरशाही बेलगाम हो जाए तो क्या किया जाए। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार है। भाजपा नेतृत्व ने दोनों राज्यों में नए व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया है। मध्य प्रदेश में डा. मोहन यादव तो छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय को जिम्मेदारी दी है। डॅा. मोहन यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही तेजतर्रार नजर आए और आदिवासी समुदाय के विष्णुदेव साय सीधे, सरल और सहज स्वभाव के हैं। लोगों को लगा कि विष्णुदेव साय के सीधे और सरल स्वभाव के होने के कारण अफसरशाही अपने मनमुताबिक चलाएंगे। सरकार को मंत्री और उपमुख्यमंत्री अपने हिसाब से चलाएंगे। ओपी चौधरी जैसे मंत्री पुराने अफसर रहे हैं, इसके अलावा कई दिग्गज नेता हैं, सरकार पर उनका प्रभाव रहेगा। अब तक ऐसा लग रहा था कि सरकार विष्णुदेव साय नहीं, बल्कि दिल्ली से चल रही है. हालांकि विष्णुदेव साय बहुत ही संयमित होकर सारे कार्यकलाप पर नजर रखे हुए थे मगर हाल में ही दो दिन की कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस हुई। इसमें सभी विभागों के बड़े अधिकारी मौजूद रहे। बैठक और मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को लेकर सोशल मीडिया पर तरह-तरह की बातें चल रही हैं। सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बैठक में समय पर पहुचंने, कामों में शिथिलता पर नाराजगी, अफसरों पर सख्ती आदि वायरल हो रहा है। बैठक में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय कलेक्टर के प्रेजेंटेशन आदि देख रहे थे। अफसरों के हाव-भाव देख रहे थे और ध्यान से सुन रहे थे कि अफसर क्या कुछ कह रहे हैं। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के बारे में माना जाता है कि वह ज्यादातर लोगों के काम में हस्तक्षेप नहीं करते हैं. बैठक में सबकी बात सुनने के बाद लगा कि जब सीधी अंगुली से घी ना निकले तो अंगुली को टेढ़ी करना पड़ती है। मुख्यमंत्री ने दो दिवसीय कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस में अपनी सीधी-साधी छबि को तोड़ते हुए जब आक्रामक तेवर दिखाए तो बैठक को हल्के में लेने वाले अफसरों के होश पाखता होने लगे। बैठक के बाद दो कलेक्टर और एक एसपी का तबादला कर प्रशासन अमले को यह संदेश दे दिया कि वे सीधे, सरल और सहज के साथ-साथ मौका आने पर कठोर निर्णय लेने में नहीं हिचकिचेंगे. भाजपा का नारा है ‘हमी ने बनाया है, हमी संवारेंगेÓ। अब इस नारे को जमीन पर फलीभूत होने का समय आ गया है। कांग्रेस का आरोप है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार में प्रदेश की कानून व्यवस्था खराब हुई है, जुआ-सट्टा का बढ़ता चलन, अवैध शराब का धंधा. महादेव एप बंद नहीं हो रहा है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने राजस्व के मामलों में ढिलाई पर कलेक्टरों को घुट्टी पिलाई, भू-माफियाओं को संरक्षण देने जैसे मुद्दों पर एसपी की खिंचाई भी की। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बहाने प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त करने के साथ नई छवि भी पेश की। इस समय पूरे प्रदेश में इसकी खासी चर्चा है. उन्होंने कलेक्टरों को अपने मातहतों को सुधारने से लेकर आम लोगों से अच्छे से पेश आने की नसीहत भी दी। अब सवाल है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को ऐसा क्यों कहना पड़ा? दरअसल, अधिकांश सरकारी दफ्तर थाने की तरह काम रहे हैं। हाल में कुछ लड़कियां अपनी मांगों को लेकर गई तो वहां बैठे तहसीलदार और अन्य अधिकारियों ने उनके साथ बदसलूकी की। इसके बाद मुख्यमंत्री को एक्शन लेना पड़ा। सरकारी अधिकारियों की बोली-भाषा को लेकर भी मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई और कहा कि ऐसा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी। आमतौर पर कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद अधिकारियों की तबादला सूची जारी होती है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने सरकार बदलने के बाद भी किसी अधिकारी का तबादला नहीं किया। गृह सचिव अमिताभ जैन भूपेश बघेल की सरकार में गृह सचिव थे और विष्णुदेव साय सरकार में भी हैं. हालांकि बहुत से अधिकारी जो दिल्ली गई थे। उनकी प्रतिनियुक्ति खत्म होने के बाद उनके लौटने का सिलसिला जारी है। अपर मुख्य सचिव ऋचा शर्मा को खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की जिम्मेदारी दे दी है. उनके पास पहले से वन विभाग है। ऋचा शर्मा छत्तीसगढ़ आने से पहले तक भारत सरकार में खाद्य विभाग की अतिरिक्त सचिव थीं। 2018 में केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाने से पहले भी राज्य की खाद्य सचिव थीं। अगले महीने से धान खरीदी की तैयारी शुरू हो जाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत सरकार से बेहतर समन्वय के लिए साय सरकार ने ऋचा शर्मा को फिर से फ़ूड की कमान दी है, वह एक अच्छी और सफल अधिकारी मानी जाती है सोनमणि बोरा, रजत कुमार वापस आए और बहुत सारे आईपीएस अधिकारी दिल्ली से वापस आ गए और उनको अच्छी जिम्मेदारी दी गई है लेकिन कलेक्टर कान्फ्रेंस के माध्यम से मुख्यमंत्री विष्णु साय ने अधिकारियों की नब्ज टटोलकर उनको जिम्मेदारी सौंपने का काम शुरू किया है।
ऋचा शर्मा की पदस्थापना की बात की जाए तो अब धान खरीदी शुरू होने वाली है ऐसे में लगता है कि वह भारत सरकार के साथ बेहतर संबंध में स्थापित कर सकती है। अक्सर केंद्र और राज्य के बीच टकराव की बात आती है, लेकिन केंद्र की सेवा से लौटे अधिकारी वहां के वातावरण को अच्छी तरह समझते हैं, इसलिए सरकार के साथ अच्छा तालमेल में कर सकते हैं। छत्तीसगढ़ में बहुत सारे अधिकारी वापस हुए हैं तो निश्चित रूप से उसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा। अब हम बात करना चाहते हैं हमारे पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश की, जिससे अलग होकर छत्तीसगढ़ बना है, वहां कलेक्टर कान्फ्रेंस मुख्यमंत्री मोहन यादव ने नहीं ली है, लेकिन नए मुख्य सचिव को लेकर कवायद शुरू हो गई है। वीरा राणा कभी अविवाहित मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव हुआ करते थे।
मध्य प्रदेश में संजय राणा कभी सपा हुआ करते थे वह यहां पर बस थी अभी वह 30 सितंबर को उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है। मध्य प्रदेश में अब उनकी जगह नए मुख्य सचिव की तलाश है। अनुराग जैन, एसएन मिश्रा, डा.राजेश राजौरा और मोहम्मद सुलेमान की चर्चा है। वीरा राणा को राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए जाने की चर्चा है। हम देखते हैं कि जो आईएएस अफसर राज्य में काम करते हैं, उनके सेवानिवृत होने के बाद भी उन्हें कहीं ना कहीं प्रतिनियुक्ति मिल जाती है, उनका सामायोजन किया जाता है। अगर छत्तीसगढ़ की बात करें तो हमारे यहां पूर्व मुख्य सचिव अजय सिंह, आरती मंडल और बहुत सारे पूर्व मुख्य सचिवों को सरकार में कहीं ना कहीं समायोजित किया गया और उनकी सेवाओं का लाभ सरकार ले रही है, ताकि उनके अनुभव का लाभ मिल सके। साय सरकार में पिछली रमन सरकार से जिस तरह के अधिकारी थे, उसे तरह के अधिकारी अभी नहीं है. कलेक्टर कान्फ्रेंस अमिताभ जैन भी थे। वह भी सौम्य माने जाते हैं। उन्होंने भी देखा कि बैठक में कुछ कलेक्टर फोन पर बात कर रहे हैं तो उन्होंने कलेक्टरों को झिड़की लगाई और कहा कि इस तरह बैठक को कैजुअल ना लें।
जब निजाम बदलता है तो निजाम के तेवर देखकर ब्यूरोक्रेसी सबसे पहले अपने तेवर को बदलती है। इसके लिए कहावत है जैसी चले बयार पीठ को वैसे कीजिए. ब्यूरोक्रेसी अपने हाव-भाव तेजी से बदला लेती है, क्योंकि वह समझता है कि जो हुक्मरान है वह क्या चाहते हैं? अब विष्णुदेव से जिस तरह से बैठकर ली और अपने मंसूबे बताएं वह निश्चित रूप से समझने की जरूरत है. वह अधिकारियों से क्या अपेक्षा करते हैं? फील्ड में किस तरह की उम्मीद करते हैं? यह संदेश जमीन स्तर पर जाना चाहिए। इससे निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ सरकार के बारे में जो अलग-अलग तरह की बातें हो रही थीं। कलेक्टर-एसपी कांफ्रेंस के बाद अब विष्णुदेव साय को लेकर इस तरह की बात नहीं होगी, यह बात नहीं होगी कि वह जो निर्णय लेते हैं वह अधिकारी नहीं मानते हैं। बैठक में लॉ इन ऑर्डर की बात हो रही थी तो उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा नहीं थे. उनको भी इस कांफ्रेंस में बोलना था। यह भी चर्चा का विषय है। विपक्ष को तो मौका मिल गया। अगर राहुल गांधी अमेरिका में जाकर कहते हैं कि आरक्षण तब तक खत्म होगा, जब सब कुछ सामान हो जाएगा. अब तो बात यह है कि ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। राहुल गांधी के इस कथन पर सबने कहा कि वह आरक्षण विरोधी, इसी तरह पक्ष खोजता है कि कौन सा मौका मिले कि विपक्ष पर हमला किया जा सके। विजय शर्मा की अनुपस्थिति को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भी आरोप लगाया है कि वह जानबूझकर इस कांफ्रेंस से दूर रखा गया। यह अलग बात है कि वह आए दिन पुलिस अधिकारियों के साथ बैठ करते हैं, उनको निर्देश देते हैं, क्योंकि वह गृहमंत्री हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने दो दिवसीय कलेक्टर-एसपी कॉन्फ्रेंस लिया तो उसमें अफसर की गड़बडिय़ां उजागर हुई। राजस्व विभाग हो या पंचायत, स्वास्थ्य विभाग हो या शिक्षा सभी विभागों के अधिकारी और बाबू की कार्यप्रणाली में उदासीनता नजर आई। सरकार अपने कामकाज के पारदर्शी और सुचारू होने के साथ सुशासन का दावा करती रही, मगर शासन की नाक नीचे अफसर सरकार के दावे को पलीता लगाते रहे इस पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने धीमी गति पर नाराजगी जताई और कलेक्टर को तेज गति से निपटाने के निर्देश दिए। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह ने जब जिला सरकार चालू किया था तो धीरे-धीरे कमिश्नरी पद्धति को खत्म कर दिया गया और जो कमिश्नर किसी समय में सबसे मजबूत इकाई होती थी। अब उस तरह से पावरफुल नहीं है. अधिकांश जगहों पर प्रमोटी डिप्टी कलेक्टर को कमिश्नर बनाया जाता है इसलिए कमिश्नर की जिस तरह से पकड़ होनी चाहिए वह नहीं है। मुख्यमंत्री ने पंचायत विभाग की योजनाओं की समीक्षा करते हुए मनरेगा में मानव दिवस की सृजन कम होने पर बस्तर कलेक्टर पर नाराजगी जताई। साथ ही अमृत सरोवर योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना की पूर्णता सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए। स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री पोषण पुनर्वास केंद्र, खैरागढ़ में बेड ऑक्यूपेंसी और क्योर रेट जीरो होने पर नाराज़ हुए । मुख्यमंत्री ने शिक्षा विभाग की समीक्षा के दौरान कुछ जिलों में साइकिल वितरण में देरी पर नाराजगी जाहिर की। मुख्यमंत्री जर्जर स्कूलों पर सख्त हुए उन्होंने कहा कि स्कूलों की गुणवत्ता से समझौता नहीं होगा।
एसपी-कलेक्टर कॉन्फ्रेंस खत्म होने के 2 दिन बाद मुंगेली में गिरे हुए कबूतर में जान आ गई….कबूतर तो 15 अगस्त को एसपी साहब के हाथों से गिरा था, इसको लेकर मीन भी बना मजाक भी बना और और एसपी को वहां से हटना पड़ा। उसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं, जुआ-सट्टा बढ़ रहा था। वहां कुछ गड़बडिय़ां हो रही थी, लेकिन कबूतर ने उड़ान नहीं भरी। जो लोग कबूतर की उड़ान को जानते हैं उन्हें पता है कि सरकार 26 जनवरी और 15 अगस्त को भी कबूतर उड़ाए जाते हैं। इस कबूतर की व्यवस्था जेल विभाग करता है जब कबूतर उड़ाए जाते हैं तो कई बार यह समझ में नहीं आता है कि कबूतर जाते कहां है? दरअसल कबूतर वही जेल में वापस चले जाते हैं, जहां उनको दाना-पानी मिलता है कबूतर हमारे यहां कभी संदेश वाहक की भूमिका में था. एक कबूतर की घटना से लोग मुंगेली में एसपी के तबादले के रूप में देख रहे हैं। इसी तरह बस्तर में राजस्व प्रकरण निपटाने में देरी, प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना और मनरेगा में रोजगार सृजन करने में लापरवाही बरतने पर बस्तर के कलेक्टर को हटा दिया। इस तरह ब्यूरोक्रेसी में या संदेश दिया गया कि आप अगर ठीक से काम नहीं करेंगे तो आप पर भी कार्रवाई हो सकती है. प्रदेश में नशाखोरी बढ़ी है, अवैध शराब की बिक्री हो रही है, कहीं चाकूबाजी हो रही है, ऐसी बहुत सारी चीज समाज और शहर में हो रही है. इसको लेकर पिछले दिनों कांग्रेस ने प्रदर्शन भी किया। इन सारे मुद्दों को लेकर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने दो दिन लगातार बैठक की और उन्होंने एक-एक अधिकारी को निर्देश दिया कि आपको अपने-अपने विभाग में किस तरह से काम करना है. कॉन्फ्रेंस का मतलब होता है सम्मेलन सभा, परामर्श और वार्तालाप. कॉन्फ्रेंस में दोनों तरफ से विचार रखे जाते हैं। अभी मुख्यमंत्री जनदर्शन लगते हैं। बिलासपुर का आदमी अगर शिकायत लेकर राजधानी आता है तो इसका मतलब है कि वहां ठीक ढंग से कामकाज नहीं हो रहा है। अब जिस अधिकारी की शिकायत आएगी या जिस जिले से लोग अधिकारियों की शिकायत लेकर आएंगे, उनके खिलाफ कार्रवाई होगी। आवेदन ब्लॉक मिले तो वहीं समाधान हो जाना चाहिए या जिले में हो जाना चाहिए, इसके लिए अगर राजधानी आना पड़ता है तो निश्चित रूप से चिंता की बात है।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि कॉन्फ्रेंस में समीक्षा के बाद बड़े पैमाने पर तबादले होंगे, क्योंकि सरकार बदलने के बाद भी बड़े पैमाने पर तबादले नहीं किए थे और यह संदेश दिया कि अधिकारी कोई हो वह सरकार के अधिकारी हैं और उनसे हम काम लेना जानते हैं। जिलाधिकारी पर कार्रवाई हुई है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे अधिकारी खराब थे। दरअसल सरकारी नौकरी में कोई पनिशमेंट नहीं होता,. वह सरकारी प्रक्रिया है। यह अलग बात है कि कोई कलेक्टर को मंत्रालय में भेज दिया जाए तो आम बोलचाल की भाषा में कहा जाता है कि वह लूप लाइन में चला गया है, कोई एसपी पीएचक्यू में कर दिया जाए तो माना जाता है कि लूप लाइन में चला गया. बहुत सारे अधिकारी फील्ड में पदस्थ हैं। उनको जब मुख्यालय में लाया जाता है तो कहा जाता है कि लूप लाइन में चला गया है। लूप लाइन का आशय सभी लोग समझते हैं। कुछ पद मलाईदार होते हैं, पावरफुल होते हैं, वहां बहुत सारे अधिकार होते हैं, लेकिन जब मंत्रालय में आ जाते हैं तो सुबह शाम के अधिकारी हो जाते हैं। वहां उस प्रकार के अधिकार नहीं होते हैं, निश्चित रूप से अधिकारी फील्ड में होता है तो वहां उसका रौब होता है, जलवा होता है, उसके पास सलाम करने वालों की भीड़ होती है, पर जब वह ऑफिस में आ जाता है तो वहां उसकी पूछ परख कम हो जाती है तो लोगों को लगता है कि जो कोई अधिकारी अच्छा काम नहीं कर रहा है। पहले अवधारणा थी कि किसी अधिकारी का तबादला बस्तर कर दिया तो उसे सजा दे दी गई है। अभी भी लोगों को लगता है कि बस्तर के नारायणपुर, सुकमा, बीजापुर में तबादला सजा होती है। हालांकि यह सजा नहीं है. वह जिस तरह का इलाका है, वहां अच्छे अधिकारी भेजने की जरूरत है. वहां हमारे बनवासी और आदिवासी रहते हैं. उनके लिए बहुत सारी योजनाएं हैं. पिछली सरकार में हमने देखा कि डीएफ फंड जिससे खनिज नीधि कहते हैं, उसमें बहुत गड़बडिय़ां पाई गई। इसकी शिकायत आई और जांच भी चल रही है। यह एक बंदरबाँट हो रही थी। अभी जो सरकार के कामकाज को समझते हैं। वह यह जानते हैं कि अब सरकार की खरीदारी प्रक्रिया बदल गई है. अब खरीदारी जैम पोर्टल के जरिए हो रही है। अब कोई भी अधिकारी जो पहले टेंडर बुलाकर या कोटेशन लेकर खरीदारी करता था, वह नहीं कर पाएगा। इसको लेकर भी ब्यूरोक्रेसी और मंत्रियों के बीच बड़ी नाराजगी है कि वह अपने विभाग में कुछ खरीद नहीं पा रहे हैं। जैम पोर्टल के जरिए ही उनको खरीदना पड़ रहा है। यह बात भी कलेक्टर कान्फ्रेंस में अधिकारियों ने रखी. आईएएस अधिकारियों ने मौके का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री के साथ संगठन की बैठक ली और रात्रि भोज भी कर लिया। एक साथ सारे आईएएस नहीं आ सकते थे क्योंकि ला एंड ऑर्डर के कारण सारे कलेक्टर नहीं आ सकते, कलेक्टर कान्फ्रेंस एक तरह से सरकारी मिशनरी को बिल्डअप करने की प्रक्रिया है। अभी मध्य प्रदेश में कॉन्फ्रेंस नहीं हुई है, पर मुख्यमंत्री जगह-जगह घूम रहे हैं। वहां तीन-तीन जगह उपचुनाव है। वहां के मुख्यमंत्री ने पहले दिन से ही अपने तेवर दिखाए थे। लाउडस्पीकर को लेकर और खुले में मांस की बिक्री को लेकर बहुत सारे निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री जब अपने विभाग में निर्देश देते हैं या सरकार में कुछ कहते हैं तो ब्यूरोक्रेसी देखती है कि उनके तेवर क्या है? और कितने तेज हैं? क्या कर सकते हैं? क्या कोई कार्रवाई हो सकती है? या कुछ दिन बाद सब भूल जाएंगे। यह ऐसे अनेको उदाहरण है कि शुरुआत में कार्रवाई हुई लेकिन बाद में उसे भुला दिया गया, इसलिए लोगों को लगता है कि अभी बवाल ठंडा हो जाएगा तो फिर मामला रफा-दफा हो जाएगा। आमतौर पर कहीं कोई घटना होती है तो उसे शांत करने के लिए मजिस्ट्रेट जांच के आदेश देता है। बाद में पता चलता है कि मामले को ठंडे बसते में डाल दिया गया, आयोग की रिपोर्ट ही नहीं आती, लेकिन तात्कालिक रूप से लोगों को शांत करने की कोशिश होती है। अगर भाजपा की सरकार यहां है और वह कह रही है कि सुशासन की सरकार है, मोदी की गारंटी की सरकार है तो उसे यह देखने पर दिखाना पड़ेगा कि लोग भय मुक्त रहे, भ्रष्टाचार मुक्त रहे, यह केवल नारों में नहीं केवल मंचों से भाषण में नहीं बल्कि धरातल पर दिखाना चाहिए। अगर व्यवहारिक जीवन में लोगों को भ्रष्टाचार के जरिए ही उनके काम हो रहे हैं। वहां भू-माफियाओं और दलालों का ही राज है। सरकारी दफ्तरों में कामकाज नहीं होगा तो सरकार कुछ भी दवा करें जनता के बीच मैसेज जाता है कि वास्तविकता क्या है मगर यह कलेक्टर कान्फ्रेंस में मुख्यमंत्री ने जिस तरह अपने तेवर दिखाए हैं, उससे लगता है कि आने वाले समय में परिवर्तन दिखेगा। उन्होंने अपने गृह क्षेत्र जयपुर के अधिकारियों की पीठ भी थपथपाई। कुछ अधिकारी जो अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे थे, उनकी भी सराहना की। हम देखते हैं कि छत्तीसगढ़ में नशे का कारोबार बढ़ रहा है। उड़ीसा से लगातार गांजा आता है और नशीले पदार्थों की बिक्री बढ़ रही है। इस पर भी सीएम ने चिंता जाहिर की है। नक्सलवाद को लेकर पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आए थे. उन्होंने बैठक ली थी उसके बाद नक्सली क्षेत्र में भी सफलता से कार्रवाई शुरू हुई। उसमें एक समय सीमा निर्धारित की गई है कि 3 साल के डेट लाइन में नक्सलवाद को खत्म कर देंगे। चिटफंड के मामले में जिस तरह पिछली सरकार काम कर रही थी अभी भी कार्रवाई होना बाकी है, जो पीडि़त हैं उनको अभी राहत नहीं मिली है। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार के सामने बहुत सारी चुनौती है, उम्मीद है कि कलेक्टर कान्फ्रेंस से प्रशासन में कसावट आएगी।