Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – गांधी कभी नहीं मरते

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आज ही के दिन 30 जनवरी 1948 को भले ही दिल्ली के बिड़ला भवन में नाथुराम गोडसे की गोली से महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई हो लेकिन गांधीजी जैसे लोग कभी नहीं मरते। वे अपने सत्य, अहिंसा और नैतिक आचरण विचारधारा की वजह से हमेशा जीवित रहते हैं। जिस तरह उनकी हत्या के पूर्व भी गांधीजी को मारने की बहुत सारी कोशिशें असफल हुई उसी तरह इतने सालों बाद भी सोशल मीडिया और अन्य तरीकों से उन्हें मारने, बदनाम करने की कोशिशें निरंतर जारी है, किंतु गांधी अमर हैं। वे किसी गोली, सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये बदनामी के डर से मरने वाले नहीं हैं। वे हमेशा प्रासंगिक रहेंगे। आप उन्हें पसंद करो या ना करो पर आप उन्हें विस्मृत नहीं कर सकते। आपको राजघाट पर उनकी समाधि पर जाकर शीश झुकाना ही पड़ेगा। जब आप आत्मनिर्भर भारत की बात करोगे तो आपको गांधी का हिन्द स्वराज याद करना होगा।
महात्मा गांधी की विचारधारा सत्य, अहिंसा, आत्मनिर्भरता और सामाजिक समरसता पर आधारित थी। उन्होंने अपने जीवन में सत्याग्रह, अहिंसा और स्वराज के सिद्धांतों को अपनाया और इन मूल्यों को राजनीति, समाज और व्यक्तिगत जीवन में लागू किया। गांधीजी का मानना था कि किसी भी संघर्ष को अहिंसा के माध्यम से सुलझाया जा सकता है। अंग्रेज़ों के खिलाफ असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन को इसी सिद्धांत पर आधारित थी। गांधीजी स्वराज (स्वशासन) के समर्थक थे, जिसमें न केवल राजनीतिक स्वतंत्रता बल्कि आत्मनिर्भरता भी शामिल थी। सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा उनके आंदोलन का मूल मंत्र था।
उन्होंने खादी पहनने और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार पर ज़ोर दिया। गांधीजी सभी धर्मों को समान मानते थे और हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। वे छुआछूत और जातिवाद के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने दलितों के लिए हरिजन शब्द का प्रयोग किया और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए काम किया। अन्याय और दमन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध करना गांधीजी की रणनीति थी। उनका मानना था कि अहिंसक सत्याग्रह से ही अन्यायपूर्ण कानूनों को बदला जा सकता है। उनकी हत्या धार्मिक और राजनीतिक असहिष्णुता का परिणाम थी। इसके बावजूद गांधीजी का योगदान और उनकी विचारधारा आज भी पूरी दुनिया में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। गांधी कभी नहीं मरते वे अपने विचारों आचरण और सत्य के आग्रह के साथ जीवित रहते हैं। यही वजह है कि महात्मा गांधी की विचारधारा और उनके सिद्धांत केवल उनके समय तक सीमित नहीं थे, बल्कि वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। वर्तमान वैश्विक और भारतीय परिस्थितियों को देखते हुए गांधीजी के विचार पहले से भी अधिक जरूरी हो गए हैं। आज दुनिया आतंकवाद, युद्ध और हिंसा से जूझ रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध, इसराइल-फिलिस्तीन संघर्ष जैसे मुद्दों ने विश्व शांति को संकट में डाल दिया है। मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा जैसे नेताओं ने गांधीजी के विचारों को अपनाकर सामाजिक बदलाव किए।
इस समय जब भारत और दुनिया में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहे हैं। तब गांधीजी की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। गांधीजी हिंदू-मुस्लिम एकता के सबसे बड़े समर्थक थे और उन्होंने हमेशा धार्मिक सहिष्णुता पर जोर दिया।
जब हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं तो हमें गांधीजी की आत्मनिर्भरता और आर्थिक नीतियों की ओर देखना होगा। गांधीजी का स्वदेशी और ग्राम स्वराज का विचार आज भी आर्थिक विकास के लिए उपयोगी है। भारत में मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल जैसी योजनाएं गांधीजी के आत्मनिर्भरता के सिद्धांत से मेल खाती हैं। उनके विचार ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिससे गांवों से पलायन रुके और छोटे उद्योग फले-फूले। आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय संकट से जूझ रही है। तब गांधीजी का सादा जीवन, उच्च विचार का मंत्र अत्यधिक उपभोक्तावाद के खिलाफ जाता है।
यदि हम गांधीजी की जीवनशैली को अपनाएं और प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करें तो पर्यावरणीय संकट को कम किया जा सकता है। महात्मा गांधी के सिद्धांत केवल इतिहास का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि वे आज भी दुनिया को दिशा दिखा सकते हैं। चाहे वह हिंसा और युद्ध का दौर हो, पर्यावरण संकट हो, सांप्रदायिक तनाव हो या भ्रष्टाचार—हर समस्या का समाधान गांधीवादी विचारों में मौजूद है।
आज यदि समाज, सरकारें और व्यक्ति गांधीजी के विचारों को अपनाएं तो एक शांतिपूर्ण, समतामूलक और सतत विकासशील दुनिया बनाई जा सकती है।
इस सार्वजनिक प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा मैं इतना ही कहूँगा कि यह हिन्दू धर्म का कत्ल हो रहा है। आप लोग सोचिए और समझिए। इसके ठीक दूसरे दिन प्रार्थना सभा में ही बोलते हुए उन्होंने कहा यदि आपको झगड़ा करके ईश्वर का नाम लेना है तो वह नाम तो ईश्वर का होगा पर काम शैतान का होगा। हिन्दू धर्म के कत्ल की बात करने से एक दिन पहले गांधी ने अपने प्रार्थना-प्रवचन में कहा था और वे जैसा करते हैं वैसा हम नहीं करते क्या? बिहार में हमने औरतों के साथ क्या नहीं किया! हिन्दुओं ने किया याने मैंने किया। यह शर्मिंदा होने की बात है। गांधी की संवेदना पूरी तरह धर्म में पली थी और इस धर्म को वे हिन्दू धर्म मानकर चलते थे। पर उनका हिन्दू धर्म किसी संकीर्ण पारिभाषिक अर्थ में हिन्दू नहीं था। वह एक व्यापक अर्थ में केवल धर्म था। हिन्दुओं ने किया याने मैंने किया वाले प्रवचन में ही उन्होंने कहा मेरे सामने अलग-अलग धर्म जैसा कुछ नहीं है।

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