Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – खेल में हम क्यों हैं दुनिया में फेल
-सुभाष मिश्र
आज यह सवाल हमारे जेहन में आता है कि आखिर खेल में हम क्यों हैं दुनिया में फेल? विभिन्न चर्चा में यह बात सामने आई कि आमतौर पर खेल की चमक क्रिकेट और ओलंपिक में देखने को मिलती है. इन खेलों के खिलाड़ियों को जब पुरस्कार मिलता है तो हमें इसके महत्व के बारे में पता चलता है. इसके बाद पता चलता है कि विज्ञापन कपनियां इन खिलाड़ियों को कुछ पैसे भी देता है. इन्हीं खिलाड़ियों को कुछ सरकारें भी सम्मान में रकम देती हैं. पर हकीकत में खेल की क्या स्थिति है? खेलों की जमीनी हालात क्या है? इन सवालों पर खेल से जुड़े लोगों ने चौकाने वाली जानकारियां दीं. उन्होंने बताया कि खेल संघों के पास पर्याप्त बजट ही नहीं होता है. खेल संघों के पास इतना पैसा भी नहीं होता कि वे अपने खिलाड़ियों के ठहरने की व्यवस्था कर सकें. उनके खान-पान तक की व्यवस्था कर सकें. नतीजा यह होता है कि हमारे खिलाडी धर्मशालाओं में रुकते हैं. उनको डाईट भी नहीं मिलती है. दुर्भाग्य से हमारे यहाँ बच्चों में खिलाडी होने का गुण पहचानने का कोई कार्यक्रम नहीं चलता है. हमारी व्यवस्था में खेल सेकेंडरी है. खेल के मैदान स्कूल से गायब हैं. सार्वजनिक मैदान भी खेल के काम के ही आता है. कभी पर मेला लगाया जाता है तो कभी प्रवचन का आयोजन होता है. स्कूलों में खेल के शिक्षक नहीं हैं. स्कूल प्रबन्धन की भी खेल में कोई रूचि नहीं है. खेल पर उतना ही ध्यान दिया जाता है, जितने में औपचारिकता पूरी हो जाए. आमतौर पर लोग मोबाइल और टीवी पर खेलते देखते हैं तो सोचते हैं कि उनका बच्चा भी खेल के मैदान तक चला जाएगा. ऐसी परिस्थिति में बच्चा कैसे सोचेगा कि वह क्या खेले? उसके लिए कौन सा खेल ठीक है? खेल में आगे बढने में उसकी मदद कौन करेगा? नौकरी में खेल के लिए 2 प्रतिशत आरक्षण है, उसकी कोई मानिटरिंग नहीं है? खिलाड़ियों को आरक्षण के तहत नौकरी नहीं मिल पा रही है. हमारे यहाँ कहावत है कि
‘खेलों कूदोगे तो बनोगे खराब, पढोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब’
अब तो हालात यह है कि पढने-लिखने के बाद भी नवाब तो बन रहे हैं और खेलों की स्थिति भी खराब है. यह स्थिति बहुत ही चिंताजनक है. भारत और छत्तीसगढ़ में प्रतिभावान खिलाड़ी तो हैं, लेकिन उनकी
प्रतिभा की पहचान कर सुविधा देने की जरूरत है. अगर हम विदेश की तर्ज पर बचपन में ही बच्चों में खिलाडी होने का गुण पहचानेगे तो यह सुनिशिचत कर पाएंगे कि अमुक बच्चा किस खेल में बेहतर प्रदर्शन कर पाएगा. भारत और छत्तीसगढ़ में खेल संगठन और खिलाड़ियों को मजबूत करने की जरूरत है.
खिलाड़ियों को रोजगार और लाइफ सेक्युरिटी देने से उनमें खेलों के प्रति रुझान बढ़ेंगे. उनके माता-पिता को भी लगेगा कि अगर उनका बच्चा खेलेगा तो वह आगे बढ़ेगा और उसका भविष्य सुरक्षित रहेगा. मगर, इसके विपरीत खिलाड़ियों के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. कहीं ग्राउंड तो कहीं कोच नहीं है. उनको आर्थिक सपोर्ट देने की भी जरूरत है. इसके लिए बहुत से एनजीओ आगे आ सकते हैं. बहुत से उद्योग समूह आगे आ सकते हैं. सरकार का खनिज का फंड भी इसमें दिया जा सकता है. छत्तीसगढ़ सहित देशभर में अच्छे कोचों की जरूरत है. खिलाड़ी अगर अपनी प्रतिभा को निखारना चाहता है तो उसे अच्छे कोचों की जरूरत होगी. साथ ही अगर खिलाड़ियों को अच्छे और पर्याप्त डाइट मिलेंगे तो निशिचत रूप से खिलाड़ी आगे बढ़ेंगे और प्रतियोगिता के लिए तैयार होंगे. प्रतियोगिता लगातार होनी चाहिए. साल में 15-20 प्रतियोगिता खिलाड़ियों को प्रतिभा को निखारते हैं. प्रतियोगिता उन्हें मुकाबला करने के लिए हमेशा तैयार रखते हैं. विषम परिस्थितियों में खिलाड़ी अपनी प्रतियोगिता की तैयारी करते हैं. इससे लक्ष्य पर फोकस नहीं हो पाता है. जमीनी स्तर पर खिलाड़ियों को पहचानना और उनको तरासने की जरूरत है. हमारे सुदूर क्षेत्रों के खिलाड़ी बस एक प्रतिभावान खिलाड़ी बनकर रह जाते हैं. जैसे आदिवासी क्षेत्रों के खिलाड़ियों को अवसर नहीं मिलता है. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में आश्रम जिस प्रकार से खिलाड़ियों को अवसर दे रहा है. उस प्रकार के पहल की जरूरत है. सरकार के स्तर पर भी ठोस पहल और कदम उठाने की जरूरत है. एनजीओ और दूसरे संगठन भी अगर मदद को आगे आएं तो निशिचित रूप खेल आगे बढ़ेगा और खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलेगा. स्कूल से लेकर कॉलेज लेवल तक के खिलाड़ियों को उनकी प्रतिभा का पहचान करना होगा और उन प्रतिभाओं को मौका देना होगा, तभी कोई खिलाड़ी अच्छे रिजल्ट दे सकेगा. प्रदेश सहित देशभर में सरकार और अच्छे संस्थानों को आगे आना होगा. खेल को हम तभी आगे बढ़ा सकेंगे, जब अलग-अलग राज्यों में वहां के अलग-अलग खेलों के प्रतिभावान खिलाड़ियों को आगे लाएंगे, तभी खेल और खिलाड़ियों प्रोत्साहित कर पाएंगे. देश-प्रदेश में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी नहीं है. मगर उनको डाइट, ट्रेवलिंग से लेकर ग्राउंड तक अच्छी सुविधा देने होंगे तो वे भी अच्छे रिजल्ट देंगे. सभी खेलों को एक समान देखने की जरूरत है. कोई खेल छोटा या बड़ा नहीं होता है. अभी 2036 में ओलंपिक में मेजबानी करने को तैयार हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रयाप्त व्यवस्था है?