-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ भी इसी देश का हिस्सा है। उसकी राजनीतिक आबोहवा भी देश के दूसरे हिस्सों से बहुत ज्यादा पृथक नहीं है। जैसी राजनीतिक उठापठक, छिछालेदारी और आरोप-प्रत्यारोप देश के दूसरे हिस्सों में होते हैं वैसा ही छत्तीसगढ़ में भी होता है। छत्तीसगढ़ की राजनीति भी इस तरह के मामलों में पीछे नहीं रहना चाहती है। छत्तीसगढ़ में समय-समय पर और ख़ासकर चुनाव से पहले अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर पोस्टर, कार्टून वार की परंपरा रही है। सोशल मीडिया के आने के बाद वीडियो कार्टून , पोस्टर और पोस्ट के ज़रिए राजनीतिक दल, सोशल मीडिया पर अपने आपके एक्टिविस्ट बताने वाले लोग बहुतों की छवियां बनाने-बिगाडऩे के काम में लगे हैं। अब जब छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय और पंचायतों के चुनाव होने वाले हैं तो एक बार फिर पोस्टर युद्ध की शुरुआत हो गई है। प्रत्येक राजनीतिक दल अपने राजनीतिक आकाओं और वरिष्ठ नेताओं को बताना चाहता है कि इस तरह के आभासी युद्ध में छत्तीसगढ़ की राजनीति भी पीछे नहीं है। कुचक्र, षड्यंत्र, आरोप-प्रत्यारोप और एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अपमानित करने के मामले मेंं उनकी प्रतिभा को भी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। राज्य पिछड़ा हुआ हो सकता है। इस मामले में तो छत्तीसगढ़ विकास के राजपथ पर है। इस बार के पोस्टर वार में रामायण के पात्रों के आधार पर एक दूसरे को राम-रावण बताया जा रहा है। चूँकि लंबे समय से भगवान राम और उनसे जुड़ीं बातों पर भाजपा का एक तरह से अघोषित कॉपीराइट है इसलिए राम और उनसे जुड़े पात्र भाजपा के पास ही रहेंगे। भाजपा तो यह मानकर चलती है कि राम दरबार या राम परिवार भाजपा के अघोषित सदस्य हैं। अयोध्या में रामलला के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के समय अनुपस्थित कांग्रेस को लंकापति रावण की ओर रखा जायेगा। लेकिन इस मामले में तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस और भाजपा के लोग पोस्टर को लेकर थाने तक पहुँच गये हैं। वैसे तो मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र प्रत्येक हिंदू के आस्था देव हैं। भक्ति के प्रथम केंद्र हैं। भगवान रामचंद्र हम सबकी आस्था के केन्द्र में हैं। किन्तु धर्म, जाति और वोट बैंक की राजनीति करने वालों के लिए राम राजनीतिक वैतरणी पार कराने का बहुत बड़ा सहारा हैं। छत्तीसगढ़ जिसे भगवान राम का ननिहाल कहा जाता हैं, जहाँ देश का कौशल्या माता का एकमात्र मंदिर है, जहां राम वनगमन के पद चिन्ह ढूँढकर दोनों ही पार्टियां राम वनगमन पथ के निर्माण और श्रेय लेने में होड़ लगा रही है। पोस्टर के ज़रिए जो माहौल खड़ा किया गया है उसने जनता का मन खिन्न कर दिया। क्योंकि राम भारत के ही नहीं पूरे विश्व के हिंदू समाज के आस्था के सबसे बड़े केंद्र हैं। ईश्वर को इस तरह से राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करना धार्मिक ना सही लेकिन नैतिक अपराध तो है। भाजपा ने निश्चित रूप से अयोध्या का राम मंदिर बनाकर पूरे देश की हिंदू आस्था को प्रभावित किया है। लेकिन यह आस्था और धर्म की विजय की तरह देखा जाना चाहिए राजनीतिक विजय की तरह नहीं। अयोध्या में राम मंदिर बनाकर भाजपा ने भगवान राम पर उपकार नहीं किया है, बल्कि भगवान राम के असंख्य उपकारों और हिंदू धर्म की आस्था के प्रति कृतज्ञता प्रकट की है। इस बात को किसी भी राजनीतिक दल को भूलना नहीं चाहिए। भगवान राम सभी के हैं। उनपर किसी भी व्यक्ति, दल या संस्था का एकाधिकार नहीं है। अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में सिर्फ भाजपा ही नहीं पूरे देश के हिंदुओं ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक योगदान दिया है। अत: राम मंदिर के निर्माण का श्रेय समस्त हिंदू समाज को जाता है।
छत्तीसगढ़ के सोशल मीडिया में जो वीडियो इन दिनों वायरल हो रहा है उसमें सत्ता पक्ष के मुखिया विष्णु देव साय को राम और उनके सहयोगियों को राम सेना और विपक्ष के नेता पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दंभी रावण और कांग्रेस के लोगों को रावण की अहंकारी सेना के रूप में दिखाया गया है। वायरल वीडियो में कांग्रेस की महिला नेत्रियों को जिस तरह से चित्रित करने की कोशिश हुई है वो तो बहुत ही शर्मनाक है। यह एक तरह से संपूर्ण महिला जाति का अपमान है। इस वायरल वीडियो में छत्तीसगढ़ प्रमुख राजनीतिक नेताओं को रामायण के जिन पात्रों के रूप में दर्शाया गया है।
उनमें भाजपा नेता -मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय को भगवान राम, उपमुख्यमंत्री- अरुण साव को लक्ष्मण और विजय शर्मा को हनुमान बताया गया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण सिंह देव को भरत बताया गया है। वहीं कांग्रेस नेता भूपेश बघेल को रावण ,टीएस सिंहदेव को विभीषण, दीपक बैज को कुंंभकरण और जेल में बंद भूपेश बघेल सरकार में डिप्टी सेक्रेटरी रही सौम्या चौरसिया को कैकई बताया गया है।
इस वीडियो के प्रसार के बाद, पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नाराजगी जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री की पीआर टीम ने स्वयं को भगवान राम के रूप में प्रस्तुत किया है, जो जनभावनाओं का अपमान है। कांग्रेस पार्टी ने इस वीडियो के खिलाफ रायपुर के सिविल लाइन थाने में शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि यह वीडियो सामाजिक समरसता को भंग करने वाला है और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की मांग की है।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के मीडिया सलाहकार पंकज झा ने स्पष्ट किया है कि इस वीडियो का मुख्यमंत्री की पीआर टीम से कोई संबंध नहीं है और इसे सहज अभिव्यक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। पंकज झा का यह बयान बहुत ही आश्चर्यजनक है। ईश्वर के अपमान को सहज अभिव्यक्ति कैसे माना जा सकता है? इस वीडियो को क्यों सहज अभिव्यक्ति की तरह देखना चाहिए? दूसरे राजनीतिक दल जब भगवान राम के बारे में सामान्य सी टिप्पणी भी करते हैं तो उसे धर्म के अपमान की तरह भाजपा प्रचारित- प्रसारित करती है। लेकिन जब वह खुद भगवान राम का राजनीतिक उपयोग बहुत ही शर्मनाक ढंग से, अशालीन और अधार्मिक लगने वाले तरीके से जो जन भावनाओं में अपमानजनक माना जा रहा है, कर रहे हैं तो वह सहज अभिव्यक्ति कैसे हुई?
इस विवाद के बीच, उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने कहा कि इस वीडियो को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए और इसे हंसी-मजाक के रूप में ही देखना चाहिए। यह बयान तो और भी गंभीर है। क्या आस्था और धर्म से जुड़े मामले हंसी-मजाक के हो सकते हैं? क्या भगवान राम के साथ हंसी-मजाक सामान्य बात है? क्या भाजपा के लिए सामान्यजन की आस्था और धार्मिक भावनाओं का अपमान हंसी-मजाक की बात है! इस तरह की अनेक बातें इस समय छत्तीसगढ़ के सामाजिक और राजनीतिक माहौल के बीच फैली हुई है। अब यह राजनीतिक दलों, सरकार और प्रशासन को तय करना है कि क्या हंसी मजाक है और क्या गलत है। और क्या कानूनन अपराध है!