Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – महंगाई ने बढ़ाई आरबीआई की चिंता

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - महंगाई ने बढ़ाई आरबीआई की चिंता

From the pen of Editor-in-Chief Subhash Mishra – Inflation has increased RBI’s, concern

सुभाष मिश्र 

भारत के लोग जानते हैं कि हमारा देश त्योहारों का देश है। इस समय त्योहारों का मौसम है और यह महंगाई का मौसम है। आने वाले महीनों में बहुत से त्योहार होंगे। त्योहार के समय वे लोग भी बाजार में खरीदारी करने जाते हैं, जो आम दिनों में नहीं जाते हैं। जो लोग हमेशा बाजार से रु-ब-रु होते हैं, वे जानते हैं कि महंगाई क्या होती है? इस पर मुनव्वर राना का शेर है-
‘ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूँ
महँगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है।।
त्योहारों में आम दिनों से अलग खान-पान होता है। कुछ अलग से पकवान बनते हैं। त्योहारों में हम कुछ लोगों को उपहार देते हैं, बच्चों के लिए कपड़े खरीदते हैं। इस दौरान लोगों की आवाजाही भी बढ़ती है। इसके लिए लोग बस, कार और रेलगाडिय़ों का प्रयोग करते हैं। इस तरह से त्योहारों में कई तरह की गतिविधियां बढ़ जाती हैं। ये सारी चीजे बाजार और महंगाई से जुड़ी हैं। महंगाई कोई नई बात नहीं है। महंगाई पहले भी थी। मगर, इस बार महंगाई चरम पर है। प्रतिदिन बढ़ती महंगाई से आम जनजीवन पूरी तरीके से आर्थिक बोझ के तले दबते चले जा रहा है और इसमें जनता पीसती चली जा रही है। देश में बढ़ती महंगाई के बीच रोजमर्रा के सामान बेचने वाली कंपनियों ने आम लोगों की मुश्किल बढ़ा दी हैं। बीते दो-तीन महीनों में इन कंपनियों ने फूड और पर्सनल केयर से जुड़े प्रोडक्ट्स के दाम 2 से 17 फीसदी तक बढ़ा दिए हैं। चुनाव के बाद मंहगाई ने फिर सबको रूला दिया है। महंगाई इस कदर बढ़ गई है कि गरीब तबके के लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए भी सोचना पड़ रहा है। अगर हम पीछे जाएं और पुराने दौर की बात करें तो मशहूर शायर कैफी आजमी कहते हैं कि-
‘ऐसी महंगाई है कि चेहरा भी
बेंच के अपना खा गया कोई।
अब वो अरमान है न सपने,
सब कबूतर उड़ा गया कोई’।।
जब महंगाई की खबरें आती हैं तो देखा जाता है कि सरकारी कर्मचारी इसके खिलाफ लामबंद होते हैं, और महंगाई भत्ते की मांग करते हैं। कई बार आम लोगों को यह समझ नहीं आता कि ये महंगाई भत्ता क्या है? ये लोग क्यों महंगाई भत्ते की बात करते हैं? दरअसल इंडेक्स में जब यह दर्शाया जाता है कि महंगाई की दर बढ़ गई है, तो सरकारी कर्मचारी उसी बाजार के हिस्से हैं जहां से उनको सामाना खरीदना पड़ता है। उनको भी लगता है कि महंगाई बढ़ रही है, तो वे महंगाई भत्ते की मांग करने लगते हैं। सबसे पहले केंद्र सरकार अपने कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाती है, तो राज्य सरकार के कर्मचारी भी डिमांड करने लगते हैं। अभी हाल में ही छत्तीसगढ़ कर्मचारी संघ ने महंगाई भत्ते को लेकर एक बड़ा प्रदर्शन किया है।
देश में तेल, गैस से लेकर पेट्रोल तक, फल से लेकर सब्जी तक आदि के दाम आसमान छू रहे है। हालत यह है कि सभी चीजों पर महंगाई की मार पड़ी है। 80 करोड़ लोगों को सरकार अनाज तो दे रही है, लेकिन सिर्फ अनाज से काम नहीं चलेगा। उन्हें आटा भी लेना है, तेल भी लेना है, साबुन और दूसरी जरूरतों की चीजें भी खरीदनी हैं। इसी तरह सब्जियों और फल के भाव भी आसमान छू रहे हैं। हालत यह हो गई है कि महंगाई पर किसी का नियंत्रण नहीं है। एक बार किसी चीज का दाम बढ़ जाता है तो फिर कम नहीं होते है। प्रशासन का तंत्र इस बात की भी मानिटरिंग नहीं करता कि जिन वस्तुओं के दाम बढ़े थे, उनकी परिस्थितियां बदलने के बाद भी कम हुए या नहीं। ऐसा कभी नहीं होता है। सर्वे में भी सामने आया है कि जिन चीजों के दाम बढ़ गए उनके दाम कम नहीं होते। दुकानदार या बेचने वाला बढ़े हुए दाम पर ही सामान बेंचता है। पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में भी बढ़ोत्तरी हुई है, उसकी वजह से बसों का किराया बढ़ा है। इससे मध्यम और गरीब वर्ग के बजट पर और दैनिक खर्चों पर असर पड़ता है। उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उनके लिए महंगाई बहुत ही कष्टकारी है। सामान्य रूप से 2 रूपए में बिकने वाला नींबू अगर 12-15 रूपए में बिकने लगे तो समझ लीजिए कि आदमी की जिंदगी नींबू की तरह निचुड़ गई है।
आरबीआई ने इसको लेकर चिंता जाहिर की है। जून में दूध और मोबाइल टैरिफ महंगा हो गया। आरबीआई इसके असर की समीक्षा की। जून 2024 में लोकसभा चुनावों के बाद दूध की कीमतों में बढ़ोतरी और मोबाइल टैरिफ में इजाफा ने बैंकिंग सेक्टर के रेग्यूलेटर और मॉनिटरी पॉलिसी के जरिए जिस पर महंगाई पर नकेल कसने की जिम्मेदारी है, उस भारतीय रिजर्व बैंक को भी परेशान कर दिया है। यही कारण है कि भारतीय रिजर्व बैंक की 50वीं मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की मीटिंग के बाद बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि दूध की कीमतों में बढ़ोतरी और मोबाइल टैरिफ में इजाफे से पडऩे वाले असर पर नजर रखने की जरूरत है। आरबीआई गवर्नर ने दूध की कीमतों और मोबाइल टैरिफ में बढ़ोतरी पर चिंता जाहिर की है। आरबीआई रेग्यूलेटर और मॉनिटरी कमेटी ने महंगाई को देखते हुए रेपो रेट में बदलाव नहीं किया। आरबीआई ने मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी की बैठक में ब्याज दरों को कम करने पर कोई फैसला नहीं लिया और रेपो रेट को यथावत रखा है। क्योंकि जून 2024 में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स आरबीआई के 4 फीसदी के टारगेट से ज्यादा 5.08 फीसदी पर जा पहुंची है। जिसमें खाद्य महंगाई का बड़ा योगदान रहा है। खुदरा महंगाई दर में 46 फीसदी वेटेज खाद्य महंगाई का है और मई और जून महीने के महंगाई दर में 75 फीसदी योगदान इसी का रहा है। जून महीने के महंगाई दर में 35 फीसदी योगदान सब्जियों का रहा है। आरबीआई के मुताबिक इसका दबाव दूसरे खाने-पीने की चीजों पर भी पड़ा है।
एक जून 2024 को लोकसभा चुनाव के आखिरी चरण का चुनाव जैसे ही संपन्न हुआ, नतीजे अभी घोषित भी नहीं हुए थे कि अमूल से लेकर मडर देयरी ने दूध के दामों में 2 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोत्तरी कर दी। इससे ऐसा लगा कि ये डेयरी कंपनियां दाम बढ़ाने के लिए चुनाव के खत्म होने का इंतजार कर रही थीं। दूध के महंगा होते ही जिन मतदाताओं ने ये सोच कर मतदान किया था कि नई सरकार के गठन पर उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया, क्योंकि चुनावों में महंगाई बड़ा मुद्दा बना था। आम जनता पर दूध के महंगे होने के चलते महंगाई का बोझ बढ़ गया। दूध के महंगे होने का मतलब है कि पनीर, दही, खोआ, मिठाइयां से लेकर दूध से बनने वाली सभी खाने-पीने की चीजें महंगी हो गई। हद तो तब हो गई जब जून महीने के आखिरी हफ्ते में दो दिनों के भीतर ही तीनों बड़ी निजी टेलीकॉम कंपनियों रिलायंस जियो, भारतीय एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने 25 फीसदी तक मोबाइल टैरिफ महंगा कर दिया। प्रीपेड से लेकर पोस्टपेड टैरिफ दोनों महंगे हो गए। साथ में डेटा भी महंगा हो गया। ऐसे में मोबाइल रिचार्ज कराने पर उपभोक्ताओं को अब ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ रही है। भारतीयों को तकलीफ में भी मजा लेने की आदत है। जब अम्बानी परिवार में विवाह हो रहा था, तो उसी दौरान जीओ ने मोबाइल के टैरिफ के दाम बढ़ाए तो सोशल मीडिया पर बहुत तरह के मीम और जोक वायरल होने लगे। इसमें लोगों ने ऐसे प्रतिक्रिया दी कि मानों हम भी अम्बानी परिवार के हिस्सा हैं, उनके विवाह में शामिल हैं। मगर इस विवाह में वह जो अनाप-शनाप खर्च कर रहे हैं, इसकी भरपाई पूरे देश को करनी होगी। यही कारण है कि जीओ के टैरिफ में महंगाई की गई है।

उपभोक्ता भी मंहगाई को लेकर उतने जागरूक नहीं है। इस समय एक लीटर सरसों तेल 210 रुपए का है। कुछ महीने पहले इसका भाव 120 रुपए लीटर था। रसोई गैस का सिलेंडर अब 1,050 रुपए का हो गया है। फूलगोभी 100 रुपए किलो, तो टमाटर 60 रुपए और प्याज़ 50 रुपए है। टाटा, डाबर और इमामी जैसी कंपनियों ने संकेत दिए हैं कि वे भी अपने प्रोडक्ट के दाम बढ़ाने जा रही हैं। कंपनियां इसकी मुख्य वजह कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोत्तरी को बता रही हैं। महंगाई लगातार बढ़ रही है और लोग मूकदर्शक बने हुए हैं। महंगाई के खिलाफ कोई बड़ा आन्दोलन नहीं हो रहा है। सरकार और विपक्ष महंगाई के मुद्दे पर बात तो करती हैं, लेकिन महंगाई कम नहीं होती। लोकसभा चुनाव में भी महंगाई इतना बड़ा मुद्दा नहीं बना, जितना बड़ा होना चाहिए। महंगाई से बड़ा मुद्दा धार्मिक विवाद रहा, जातिगत विवाद रहा।

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जैसे- जैसे आदमी के जीवन स्तर में बदलाव आ रहा है। वे कंपनियों के प्रोडक्ट खरीदने के आदी बन रहे हैं। बाजार और विज्ञापन का दबाव ये है कि ब्रांड के रूप में जिन चीजों को प्रस्तुत किया जा रहा है, लोग उसे खरीदने में प्राथमिकता देते हैं। कई बार विज्ञापन प्रभाव यह होता है कि कुछ ऐसी चीजें भी खरीद लेते हैं, जिनकी आवश्यकता उनको नहीं होती है। ऐसे में अगर कंपनियां अपने प्रोडक्ट की कीमत बढ़ा देती हैं तो इसका सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ता है। यह महंगाई कब और कहां जाकर कम होगी, इसका कोई अंदाजा नहीं है। रिजर्व बैंक की चिंता केवल दूध और मोबाइल रिचार्ज व डाटा तक है, जब कि महंगाई का असर रोजमर्रा की चीजों पर तेजी से पड़ रहा है। खासकर सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं, बरसात में खेतों में पानी भर जाने के कारण सब्जियां सड़ जाती हैं। इसके कारण किसान भी सब्जियों के दाम बढ़ाने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि बरसात में सब्जियां मांग की तुलना में कम आती हैं। नतीजा यह है कि महंगाई से आम आदमी हलकान है, और जिस तरह का नियंत्रण सरकार का होना चाहिए, वह नहीं है।
देखा जा रहा है कि महंगाई के कारण कभी लोगों के खाने में से दाल गायब हो जाती है, कभी सब्जी गायब हो जाती है, कभी अच्छे तेल नहीं मिलते, लोग रूखी-सूखी खाकर किसी तरह अपने बजट को बचाए रखना चाहते हैं, और उसी में गुजारा करते हैं। महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, इस पर चिंता जिस तरह की होनी चाहिए वह देखने को नहीं मिल रही है। इसको लेकर प्रदर्शन होना चाहिए, शोरगुल होना चाहिए, समाज में चर्चा होनी चाहिए, वह आज कहीं नहीं दिख रहा है। लोगों को लगता है कि जाही विधि रखैं राम ताही विधि रहिए, बाजार के भरोसे अपने को छोड़ दीजिए। बाजार में कई तरह के प्रोडक्ट अगर वे गुणवत्ता में कमतर हैं और कम कीमत में मिल रहे हैं, तो लोग उसका इस्तेमाल करने लगेंगे। भले ही इसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा हो, मगर आपकी जेब ब्रांडेड और महंगी चीजें खरीदने की इजाजत नहीं देती। हाल यह है कि आमदनी अठन्नी और खर्चा रूपैया हो गया है। आम आदमी यह समझ नहीं पा रहा है कि वह अपनी आमदनी कैसे बढ़ाए? या फिर खर्च को कैसे कम करे? यदि वह अपनी जरूरतों में कटौती करता है तो भी बाजार में चीजें इतनी महंगी हैं उसे वह कैस नजरअंदाज करेगा। आखिर वह कितने दिन सब्जी नहीं खाएगा, कितने दिन दाल नहीं खाएगा? कितने दिन शैम्पू से नहीं नहाएगा? इनसे किसी तरह से समझौता कर भी ले तो मोबाइल से कैसे करेगा, क्योंकि उसे मोबाइल डाटा चाहिए। बच्चों को दूध चाहिए, चाय पीने के आदी लोगों को दूध चाहिए, जिनको मिठाई खानी है उनको भी दूध चाहिए। ऐसे में निश्चित रूप से बढ़ती हुई महंगाई सभी की चिंता का विषय है।

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