Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – बुलडोजर का ‘न्याय’ या प्रशासनिक गुंडागर्दी !

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

आजकल किसी भी मामले में आरोपी के घर पर बुलडोजर चला देने का चलन चल पड़ा है। भाजपा समेत कई दलों के नेता इसे बड़े गर्व के साथ बयान करते हैं, किसी के खिलाफ आरोप सिद्ध हुए बिना उसे दंडित करना किसी भी संदर्भ में न्यायसंगत नहीं है। और ऐसा करने की इजाजत हमारा संविधान भी नहीं देता लेकिन पिछले कुछ सालों से कुछ राज्यों में इस तरह का चलन चल पड़ा है। बुलडोजर चलाने का ये चलन वैसे तो उत्तर प्रदेश से शुरु हुआ है लेकिन उसके बाद भाजपा शासित मध्यप्रदेश, असम में और अब छत्तीसगढ़ में भी बड़े पैमाने पर इसका उपयोग होते नजर आ रहा है। अगर प्रशासन इसी तरह फैसले करता रहा तो कई स्तर पर अदालत की और न्याय व्यवस्था की क्या जरूरत होगी। हाल ही विधानसभा चुनाव में बुलडोजर को भाजपा ने प्रचार के दौरान खासतौर पर इस्तेमाल किया और आम जनता के बीच रॉबिनहुड वाली छवि गढऩे की कोशिश हुई कई कांग्रेस शासित राज्यों में भी इस तरह की कार्रवाईयां सामने आई है. इस तरह की कार्रवाई को मीडिया ने भी जमकर महिमा मंडित किया है इससे भी उत्साहित होकर नेताओं ने इसके बहाने अपनी राजनीति चमकाई है।
उज्जैन की एक महिला का मकान नगर निगम ने तोड़ा था इस मामले पर सुनवाई के दौरान मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इस बुलडोजर संस्कृति पर कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि नियमों का पालन किए बगैर मकान तोडऩा और इस कार्रवाई का समाचार प्रकाशित करना फैशन बन गया है।
इस तरह बुलडोजर, प्रतीक बन गया है गवर्नेंस का, यानी शासन करने की कला के नए उपकरण का। अगर यही फैशन जारी रहा तो देश संसद द्वारा पारित कानूनी प्रावधानों और अदालती प्रक्रिया के द्वारा नहीं बल्कि बुलडोजर से लागू किये जायेंगे। इस नीति का कोई कानूनी आधार नहीं है और न ही कानून में ऐसे किसी कदम का प्रावधान है, यह सवाल भी उठता है कि क्या कानून व्यवस्था को लागू और अपराध नियंत्रण करने के लिये, कानूनी प्रावधानों को बाईपास कर के ऐसे रास्तों को अपनाया जा सकता है जो कानून की नजऱ में खुद ही अपराध हो बुलडोजर, प्रतीक बन गया है गवर्नेंस का, यानी शासन करने की कला के नए उपकरण का। अब कानून, संसद द्वारा पारित कानूनी प्राविधानों और अदालती प्रक्रिया के द्वारा नहीं बल्कि बुलडोजर से लागू किये जायेंगे। दरअसल भाजपा के राज में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए जिस आक्रामक नीति की घोषणा 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा की गई थी, वह थी ठोंक दो नीति। यह अपराधियों और कानून व्यवस्था को बिगाडऩे वालों के प्रति अपनाई जाने वाली एक आक्रमक नीति है जो लोगों में लोकप्रिय और सरकार की छबि को एक सख्त प्रशासक के रूप में दिखाने के लिये लाई गई थी। इस नीति का कोई कानूनी आधार नहीं है और न ही कानून में ऐसे किसी कदम का प्रावधान है, यह सवाल भी उठता है कि क्या कानून व्यवस्था को लागू और अपराध नियंत्रण करने के लिए कानूनी प्रावधानों को बाईपास कर के ऐसे रास्तों को अपनाया जा सकता है जो कानून की नजऱ में खुद ही अपराध हो?
कांग्रेस नेता और जाने-माने वकील विवेक तन्खा इसको लेकर कहते हैं तन्खा ने शनिवार रात यहां संवाददाताओं के साथ बातचीत करते हुए कहा ”मैं अपराधियों से निपटने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित इस बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ हूं । उन्होंने कहा, ”यह व्यवस्था उन्हें देश के कानून के अनुसार (खुद का बचाव करने के लिए) कोई अवसर नहीं देता है और भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इसे मंजूरी नहीं दी जा सकती, मैं इसे पूरी तरह से अस्वीकार करता हूं क्योंकि यह अलोकतांत्रिक है। ऐसे में हमें इस पर और बात करने की जरूरत है, सवाल उठाना जरूरी है कि जिस तरह नेता और कुछ अधिकारी किसी घटना के बाद आनन-फानन में आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाने का फरमान जारी करते हैं वो कानून सम्मत है या सिर्फ किसी को हीरो बनाने के लिए सत्ता के ताकतों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
समाज की भूमिका भी इस तरह के कृत्यों को बढ़ावा देने और रोकने में अहम है। समाज को मीडिया को इस तरह की गतिविधि को महिमा मंडित करने से बचना चाहिए। सदैव कानूनी नजरिए से ही मामले से निपटाना चाहिए अन्यथा बुलडोजर की कोई आत्मा नहीं होती लोहे से बनी ये मशीन किसी तानाशाह के इशारे पर किसी के भी घर के दरवाजे तक पहुंचने में देरी नहीं लगाएगा।

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