संतुलन का समीकरण- क्या है विज्ञापन का सच? विज्ञापनों पर बाजारवाद का प्रभाव

क्या है विज्ञापन का सच? विज्ञापनों पर बाजारवाद का प्रभाव
0 भ्रामक विज्ञापन का असर सभी सेक्टर पर
0 प्रोडक्ट लेने से पहले फैक्ट चेक जरूरी
0 स्मार्ट के साथ सजग उपभोक्ता का होना जरूरी
0 संतुलन का समीकरण कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के एक्सपर्ट ने रखी अपनी राय

जनधारा समाचार
रायपुर। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव की कम्पनी पतंजलि द्वारा भ्रामक विज्ञापन दिखाए जाने को लेकर कंपनी को फटकार लगाई है। जिसके बाद कम्पनी प्रमुख ने सार्वजनिक रूप से इस पर माफी भी मांगी है जबकि उत्तराखंड सरकार ने भ्रामक प्रोडक्ट्स को बैन कर दिया है। आज बाज़ारवाद को बढ़ावा देने के लिये कई ऐसे तंत्र है जो जोर-शोर से प्रचार करतें हैं फिर चाहे वो किसी वस्तु का हो, व्यक्ति का हो या फिर किसी कंपनी का।
आज इसी विषय पर एशियन न्यूज़ के कार्यालय में संतुलन का समीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस विषय पर प्रधान संपादक सुभाष मिश्र ने कहा कि विज्ञापन के जरिये प्रलोभन जगाया जाता है और लोग इससे प्रभावित होकर मायाजाल में फंस जाते हैं। मीडिया और फेमस सेलेब्रिटीज़ कोई विज्ञापन करते है तो लोग उससे प्रभावित होकर उसी को अपनाने की होड़ में लग जाते हैं। अभी विज्ञापन का महत्व इस कदर बढ़ गया है कि लोग सिर्फ ब्रांड के पीछे भाग रहे हैं। आज चहुँओर विज्ञापन की भरमार है। अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक विज्ञापन से सराबोर है। दूसरी ओर कई संस्थान मजबूर है अपने मैनेजमेंट को बचाने के लिए। जबकि कुछ तबके ऐसे हैं जो मेहनत तो करते हैं और उनके कार्य भी औरों के मुकाबले बेहतर है लेकिन बिना विज्ञापन के वो अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। हालांकि एडिटोरियल न्यूज़ की महत्ता बढ़ी है, पहले जमाने में दीवारों के जरिये ब्रांडिंग की जाती थी अब इसका रूप डिजिटलाइज हो चुका है।

सायबर लॉ और डिजिटल मार्केटिंग एक्सपर्ट मोहित साहू ने इस विषय पर कहा कि आज डीप फेक वीडियोस का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। सोशल ब्रांडिंग के बहकावे में लोग फ्रॉड का शिकार हो रहे हैं। धीरज दुबे ने विज्ञापन के उदाहरण के जरिये अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि यदि विज्ञापन बनाया भी जाये तो उसका असर उसकी कॉस्टिंग पर ना पड़े। किसी झूठ को बार-बार दोहराया जाये तो उसे सच मान लिया जाता है, खाद्य पदार्थों से युवा वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है। जनसंपर्क अधिकारी विकास ने कहा कि विज्ञापन की प्रतिस्पर्धा से आज बाज़ारवाद को बढ़ावा मिल रहा है। अखबार में सम्पादकीय जैसे हिस्सा भी प्रचार तंत्र का हिस्सा बन रहा है। पेड न्यूज पर निर्वाचन कार्यलय चुनाव के दौरान नकेल कसती है। उसी तरह दिग्भ्रमित करने वाले विज्ञापनों से बचना चाहिए, उपभोक्ता को सजग होना होगा। उपभोक्ता फोरम भी इसलिए बनाये गए है ताकि समस्या का सही समाधान किया जा सके।
डॉक्टर अजय त्रिपाठी ने कहा कि अभी प्रचार-प्रसार जो कम्पनियां कर रही है उससे वो अपना ब्रांड वैल्यू बढ़ा रही है। सादगी अब जीवन से लुप्त होते जा रहा है। लेटेस्ट बनने की होड़ में वास्तविकता से लोग दूर हो चुके हैं। भ्रामक विज्ञपनों का असर कभी स्कूल पर, मोबाइल फोन्स पर, कॉलेज पर, अस्पतालों समेत सभी क्षेत्र पर पड़ रहा है। कंटेंट राइटर दीक्षा ने इस विषय पर कहा कि विज्ञापन की दुनिया अपनी बात रखने का स्मार्ट जरिया तो है लेकिन इसके दुष्प्रचार से लोग अभी भी दिग्भ्रमित हुए जा रहे हैं।
ललिता चक्रधारी ने कहा कि आजकल विज्ञापन बहुत ही ज्यादा भ्रामक हो गया है। पहले विश्वास जीता जाता है और बाद में आदत लग जाने के बाद क्वालिटी से खिलवाड़ किया जाता है। इसलिए जो भी आप खरीदते है तो पहले जांच करिए उसके बाद किसी ऐसे प्रोडक्ट पर अपने पैसे खर्च करें। महेश कुमार साहू ने कहा की आज के दिनों में विज्ञापन पैसे कमाने का साधन बन गया है। चाहे यूट्यूब,न्यूज चैनल, सोशल मीडिया सभी विज्ञापन बाजी कर रहे हंै। नेता भी अपने आप को चमकाने के लिए विज्ञापन कर रहे हैं, लेकिन इसकी सच्चाई लोग नहीं जान पाते है, और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।
गौरव शर्मा ने कहा कि आज विज्ञापन को लेकर लोग वास्तविकता भूल गए हैं। लोगों को सही और गलत की समझ नहीं है। हर कोई चाहता है मैं लेटेस्ट बने रहूं। प्रतिस्पर्धा की होड़ में भूल चुका है कि वास्तविकता क्या है।
वेद ने कहा कि देश में भ्रामक विज्ञापन चरम पर है। कुछ साल पहले मैगी गुणवत्ता जाँच में फ़ैल हो गया था। जिसके बाद रामदेव बाबा के पतंजलि ने आटा मैगी लांच किया था। आश्चर्य की बात ये रही पतंजलि का आटा मैगी भी गुणवत्ता जाँच में पास नहीं हो पाया। फूड सेफ्टी एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफएसडीए) की टीम ने जांच में पाया कि पतंजलि नूडल्स में लिमिट से तीन गुना ज्यादा ऐश कन्टेंट हैं। जो मैगी में पाए गए सैम्पल से भी ज्यादा था। उत्तराखण्ड में खाद्य सुरक्षा विभाग की तरफ से किए गए परीक्षण में शुद्ध गाय का घी खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा नहीं उतरा था। पतंजलि के शुद्ध गाय घी का नमूना उत्तराखंड में एक दुकान से लिया गया था। इसे जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया था। जांच में इसे मिलावटी और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया गया था। देश में इन भ्रामक विज्ञापन के चलते आयुर्वेद का मतलब पतंजलि हो गया है, जबकि ऐसा नहीं है।
इसके अलावा इस मुद्दे पर देशभर के अलग-अलग क्षेत्रों से विज्ञापन की दुनिया के जानकार लोगों की राय ली गयी। जिनमें से वरिष्ठ कथाकार भालचंद्र जोशी ने कहा है कि कंपनियों के पास ज्यादा संसाधन होते है जो आमजनों की मानसिकता बदलने के लिए काफी होता है। जबकि आम जनता इसके चंगुल से नहीं निकल सकती, लेकिन अभी का समय विज्ञापनों के झूठ और फरेब का समय बन गया है।
प्रफुल्ल पारे ने कहा कि विज्ञापन की ग्लैमरस दुनिया से लोगों का प्रभावित होना सामान्य सी बात है। हालांकि इसे पूर्णत: बंद नहीं किया जा सकता लेकिन अंकुश लगाया जा सकता है।

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