-सुभाष मिश्र
आज छत्तीसगढ़ और देश के लिए एक बहुत बड़ा दिन है, क्योंकि आज देश के गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद की समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए एक बैठक ली। नक्सलवाद जो 40 साल पुरानी एक समस्या है। क्या इस बैठक के बाद उसे निर्धारित समय के अंदर समाप्त कर लिया जाएगा? इसकी डेड लाइन भी गृह मंत्री मार्च 2026 तक की तय कर चुके हैं। इस बैठक में ऐसे कौन-कौन से निराकरण तलाशे गए जो इस समस्या को समाप्त करने में सहायक होंगे। आज देश के गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलवाद प्रभावित राज्यों के डीजीपी के साथ बैठक कर के इसका समाधान तलाशने पर चिंतन किया। इसके साथ ही साथ अमित शाह का ये मानना है कि नक्सलवाद की जड़ पर अब करारा प्रहार किया जाए। जब से देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है तब से इसमें निरंतर तेजी आई है।
40 साल पहले पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी जिले के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुई इस समस्या क्या अब समाप्त होगी? गृह मंत्री शाह कह रहे हैं कि जिन्होंने भी बहकावे में आकर हथियार उठाया, उनको समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का प्रयास किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में बस्तर सुकमा से लेकर कोंटा तक नक्सलवाद का खात्मा किया जाएगा। उन्होंने ये भी कहा कि 2019 के बाद बहुत से राज्यों को नक्सलवाद से मुक्त कराया गया है। बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना जैसे कई राज्य नक्सलवाद से मुक्त हुए हैं। अब अगर हम हालिया घटनाओं की बात करें तो ताजा मामला गढ़चिरौली का है। वैसे भी नक्सली एक राज्य से दूसरे राज्य में विचरण करते रहते हैं।
अब अगर हम नक्सलवाद के आंकड़ों की बात करें तो 2004 से 2014 तक और 2014 से 2024 तक में नक्सलवाद के मामलों में 54 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। गृह मंत्री ने इस बात का भरोसा दिलाया है कि मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद की समस्या से मुक्त करा लिया जाएगा। गृह मंत्री भी इस बात को मानते हैं कि अब तक इसमें 17 हजार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। जब से केंद्र में नरेंद मोदी की सरकार बनी है तब से इसे एक चैलेंज के रूप में स्वीकार किया गया है। नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में तेजी से विकास हो रहा है। उन्होंने इससे संबंधित कई आंकड़े भी दिए। उन्होंने ये भी माना कि देश को नक्सलवाद से धीरे-धीरे छुटकारा मिल रहा है। उन्होंने कहा कि दोहरे उद्देश्य को लेकर काम किया है। उन्होंने नक्सलवाद से निपटने को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की जमकर तारीफ भी की। उन्होंने कहा कि मैं छत्तीसगढ़ के सीएम, डिप्टी सीएम और होम मिनिस्टर को हृदय से धन्यवाद देता हूं, कि इन्होंने इस समस्या को लेकर काफी शिद्दत से काम किया है। उप मुख्यमंत्री का नक्सली हिडमा के गांव जाकर आम जनता को राशन कार्ड देना एक बेहद ही साहस का काम है। हमारी कोशिश तो ये रही है कि सुकमा जैसे गांव में लोगों ने जाकर पहली बार मतदान किया। भारत सरकार ने सभी उग्रवाद और नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में काफी काम किया है। उन्होंने आज सड़क, शिक्षा, संचार तंत्र के विकास समेत तमाम विकास कार्यों को अपनी पत्रकारावार्ता के दौरान गिनाया। गृह मंत्री ने कहा कि नक्सलवादी अगर हथियार छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुडऩा चाहते हैं तो हम उनसे चर्चा भी करने को तैयार हैं। गृह मंत्री ने कहा कि सरकार की मंशा नक्सलवाद को खत्म करने की है।
हाल ही में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान शाह ने कहा था कि अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार तीसरी बार चुने जाते हैं तो अगले तीन साल में छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद का खात्मा हो जाएगा। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री के नेतृत्व में नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियानों और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में विकास कार्यो को लेकर समीक्षा बैठक आयोजित की गई। केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को खत्म करने और प्रभावित इलाकों में विकास कार्यों को गति प्रदान करने हेतु चलाए जा रहे आभियान को तेज़ करने का फैसला लिया है। बैठक में नक्सलवाद या वामपंथी अतिवाद प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए। केंद्रीय गृह मंत्री ने वामपंथी अतिवाद को राष्ट्र के सामने की सबसे बड़ी चुनौती बताया।
सरकार की दृढ इच्छाशक्ति के चलते ही अब ये आंदोलन समाप्ति की ओर जाता हुआ दिखाई दे रहा है। जो सरकार, सुरक्षा बलों एवं स्थानीय लोगों की संयुक्त कोशिशों का परिणाम है कि पिछले एक दशक में वामपंथी अतिवाद संबंधी घटनाओं, मौतों और उनके भौगोलिक प्रसार में काफी कमी आई है। जहाँ वर्ष 2010 में वामपंथी अतिवाद से प्रभावित जि़लों की संख्या 96 थी वहीं वर्ष 2018 में प्रभावित जि़लों की संख्या 60 रह गई है। देश के जिन 8 राज्यों के लगभग 60 जि़लों में यह समस्या बनी हुई है उनमें ओडिशा के 5, झारखंड के 14, बिहार के 5, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के 10, मध्य प्रदेश के 8, महाराष्ट्र के 2 तथा बंगाल के 8 जि़ले शामिल हैं।
असल में नक्सलवादी ये मानते हैं कि वे हिंसा के माध्यम से समाज में बदलाव ला सकते हैं। ये लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक संस्थाओं के खिलाफ हैं और ज़मीनी स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को खत्म करने के लिये हिंसा का सहारा लेते हैं। ये समूह देश के अल्प विकसित क्षेत्रों में विकासात्मक कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं और लोगों को सरकार के प्रति भड़काने की कोशिश करते हैं। वे लोगों से वसूली करते हैं एवं समांतर अदालतें लगाते हैं। प्रशासन तक पहुँच न हो पाने के कारण स्थानीय लोग नक्सलियों के अत्याचार का शिकार होते हैं। अशिक्षा और विकास कार्यों की उपेक्षा ने स्थानीय लोगों एवं नक्सलियों के बीच गठबंधन को मज़बूत बनाया है। जानकार यह मानते हैं कि नक्सलवादियों की सफलता की वज़ह उन्हें स्थानीय स्तर पर मिलने वाला समर्थन रहा है, जिसमें अब धीरे-धीरे कमी आ रही है।
गृह मंत्री का कहना है कि वो 3 साल में नक्सलवाद समस्या का समाधान कर सकते हैं। यदि अच्छी पॉलिसी तो, सरकार को सामाजिक आर्थिक समाधान के रूप में रखकर पुनर्वास ही अच्छी पॉलिसी हो तो नक्सलवाद का सफाया हो सकता है। बहुत से विकल्प खुले हैं सरकार और समाज की इच्छा शक्ति से यह संभव है। शहरी नेटवर्क को तोडऩा होगा। विपक्ष को भी साथ लेना होगा। यह किसी एक दल किसी एक राज्य की समस्या नहीं है।
नक्सलवाद के खात्में के लिए किए जा रहे प्रयासों में नक्सल प्रभावित जि़लों की संख्या को लगभग इसके पाँचवें भाग तक कम करने का निर्णय लिया गया था।
सरकार नक्सली चरमपंथ से निबटने के लिये बहुआयामी रणनीति अपना रही है। इसमें सुरक्षा एवं विकास से संबंधित उपाय तथा आदिवासी एवं अन्य कमज़ोर वर्ग के लोगों को उनका अधिकार दिलाने से संबंधित उपाय शामिल हैं। सरकार की इस नीति के परिणामस्वरूप नक्सलियों के हौसले कमज़ोर हुए हैं तथा उनके आत्मसमर्पण की संख्या लगातार बढ़ रही है। विमुद्रीकरण ने भी नक्सलियों को पहुँचने वाली वित्तीय सहायता पर लगाम लगाई है और इसके बाद से अब तक 700 से अधिक माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बनाने की योजना पर तेज़ी से काम कर रही है और वर्ष 2022 तक 48877 किमी. सड़कें बनाने का लक्ष्य रखा गया है। वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में संचार सेवाओं को मज़बूत बनाने के लिये सरकार बड़ी संख्या में मोबाइल टावर लगाने का काम कर रही है। इसके तहत कुल 4072 टावर लगाने का लक्ष्य रखा गया है। सरकार वामपंथी अतिवाद से प्रभावित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे, कौशल विकास, शिक्षा, ऊर्जा और डिजिटल संपर्कता का यथासंभव विस्तार करने के भी प्रयास कर रही है।
कोई भी सरकार नहीं चाहती कि नक्सलवाद फले-फूले, क्योंकि सबका विश्वास लोकतंत्र में है। जब ये लोकतंत्र के खिलाफ काम करते हैं, हिंसा करते हैं, तो हिंसा किसी को भी पसंद नहीं है। कोई नहीं चाहता कि निर्दोष लोग मारे जाएं। ऐसे में ये जरूरी है कि पूरे देश में नक्सलवाद को लेकर एक जैसी पॉलिसी बनें। सरेंडर की पॉलिसी हो या फिर विस्थापन की पूरे देश में एक तरह की नीति बननी निहायत जरूरी है। सारी सरकारें अगर एक साथ मिलकर इस मुद्दे पर पहल करेंगी, तो यह मुहिम रंग लाएगी। जो लोग इसमें शामिल रहे हैं वो मुख्यधारा की ओर लौटेंगे, देश की संवैधानिक संस्थाओं में उनकी आस्था बनेंगी। न केवल छत्तीसगढ़, न सिर्फ बस्तर बल्कि पूरे देश का नक्सलवाद प्रभावित इलाका इससे मुक्त होगा। हम जिस समाज की कल्पना करते हैं कि हमारे समाज में समानता होगी, कोई किसी का शोषण नहीं करेगा। इनको लिखने-पढऩे का अधिकार होगा। समान रूप से न्याय पाने का अधिकार होगा। जब ऐसा होगा तभी तो लोगों तक मोबाइल पहुंचेगा, स्कूल पहुंचेंगे, अस्पताल पहुंचेंगे, बेहतर सड़कें भी पहुंचेंगी। नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में जहां हम कुछ दिन पहले गए भी थे, वहां के बच्चे भी शिक्षा में टॉप करेंगे। खेल में आगे आएंगे। तो हम ये समझते हैं कि ऐसा बंदूक के जरिए नहीं किया जा सकता हैं। कहीं न कहीं शिक्षा इसमें बड़ा रोल प्ले करेगी। रोजगार के अवसर पैदा होंगे।
गृह मंत्री ने जो कल्पना की है, और उसके लिए मार्च 2026 की डेड लाइन तय की है। नक्सलवाद के खात्मे की आखिरी तारीख का ऐलान किया है तो आम लोगों के उत्साह को और भी ज्यादा बढ़ाएगा। कांग्रेस ने इसमें अपने शीर्ष नेतृत्व को खोया है, बहुत सारे आदिवासी मारे गए हैं। बहुत से पुलिस बल और सीआरपीएफ के जवान भी शहीद हुए हैं। जो हिंसा नक्सलवाड़ी से शुरू हुई थी वो अब खत्म होगी।