Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – वक्फ के असीमित अधिकार पर विवाद

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारे में देश में कहते हैं सभी भूमि गोपाल की या यह कहा जाता है कि जिसका कोई नहीं उसका तो खुदा है यारों.कहा जाता है कि जिस जमीन का कोई मालिक नहीं है या अगर वक्फ की नजर पड़ जाए तो वह जमीन वक्फ की हो जाती है. और वक्फ बोर्ड के खिलाफ न्यायालय भी नहीं जा सकते हैं. वक्फ बोर्ड को जो अधिकार मिले हैं, उसमें मोदी सरकार कटौती करने जा रही है. इस विषय पर एक साल पहले 5 तारीख को गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा था. अब एक साल बाद वही 5 तारीख आते-आते विवाद गहरा गया. वक्फ का मतलब होता है ‘अल्लाह के नाम’, यानी ऐसी जमीनें जो किसी व्यक्ति या संस्था के नाम नहीं है। वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है। वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं। इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं- अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित होता है तो वक्फ बोर्ड मुस्लिम समाज की जमीनों पर नियंत्रण रखने के लिए बनाया गया था। पर जब जमीनों के नियन्त्रण की बात होती है तो सवाल उठता है, जर, जोरों और जमीन पर कौन नियन्त्रण रखता है. इस पर नियन्त्रण पावरफुल लोग नियन्त्रण रखते हैं. कोई गरीब इन पर तो क्या बहुत सारी चीजों पर नियन्त्रण रख पाता है. इसलिए कहा जाता है कि गरीब की लुगाई सबकी भौजाई. अंतत: जमीनों पर नियन्त्रण पावरफुल लोग, संस्था और धार्मिक संस्था रखते हैं. बात केवल एक धार्मिक संस्था की नहीं है. इसलिए जरुरी है कि जमीनों के बेजा इस्तेमाल और उसे बेचने पर रोक लगनी चाहिए. कानून हमेशा अच्छी नियत से बनाए जाते हैं. 1905 में वक्फ आयोग का गठन किया गया था. इसमें अधिकांश ब्रिटिश अधिकारी और अल्पसंख्यक इस्लामी अधिकारी शामिल थे, जो सल्तनत का प्रतिनिधित्व करते थे और जिन्होंने द्वीप पर कुछ हद तक प्रभाव बनाए रखा था। वक्फ को लेकर विवाद अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है. वक्फ की संपत्ति पर कब्जे का विवाद लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल तक पहुंचा था. अंग्रेजी हुकूमत के दौरान ब्रिटेन में जजों की एक पीठ बैठी और उन्होंने इसे अवैध करार दिया था लेकिन, ब्रिटिश भारत की सरकार ने इसे नहीं माना और इसे बचाने के लिए 1913 में एक नया एक्ट लाई थी.
देश के आजाद होने के सात साल बाद 1954 में वक्फ अधिनियम पहली बार पारित किया गया. उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे. उनकी सरकार वक्फ अधिनियम लेकर आई लेकिन, बाद में इसे निरस्त कर दिया गया. इसके एक साल बाद 1955 में फिर से नया वक्फ अधिनियम लाया गया. इसमें वक्फ बोर्डों को अधिकार दिए गए. 9 साल बाद 1964 में केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन था. इसका काम वक्फ बोर्ड से संबंधित कामकाज के बारे में केंद्र सरकार को सलाह देना होता है. भारत सरकार ने भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की जमीन वक्फ बोर्ड को दे दी. हालांकि, 1995 के संशोधन से वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियां मिलीं। 1991 में बाबरी विध्वंस की भरपाई के लिए 1995 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड अधिनियम में बदलाव करके वक्फ बोर्ड को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए. वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चेरिटेबल) परोपरकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी। वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। बाद में वर्ष 2013 में संशोधन पेश किए गए, जिससे वक्फ को इससे संबंधित मामलों में असीमित और पूर्ण स्वायत्तता प्राप्त हुई। जब किसी को असीमित अधिकार मिले हों तो उसकी स्थिति यह होगी कि सैया भी कोतवाल अब डर कहे का.एक थानेदार या बाबु को अधिकार मिलते हैं तो वह उसका दुरूपयोग करता है. अब एक बोर्ड को इस तरह के असीमित अधिकार मिले होंगे तो उसने क्या-क्या न किए होंगे, जब इसकी पड़ताल होगी और जमीनों का लेखा-जोखा निकलेगा तब पता चलेगा कि इस असीमित अधिकार की आड़ में किसकी जमीन हड़पी गई. किसने क्या-क्या दुरूपयोग किया? अगर हम वक्फ बोर्ड की बात करते हैं तो मठ मन्दिरों का भी यही हाल है. लोगों ने मठ मन्दिरों को धार्मिक कार्यों के जमीन दान की थी, लेकिन उसके प्रबंधकों ने अपने अधिकारों का दुरूपयोग कर मठ मन्दिरों की जमीनों को बेच दिया. उसकी भी अगर जांच होगी तो बहुत से तथ्य निकलेंगे. अब बात करते है वक्फ बोर्ड की.
वक्फ बोर्ड देशभर में जहां भी कब्रिस्तान की घेरेबंदी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को भी अपनी संपत्ति करार दे देता है। इन मजारों और आसपास की जमीनों पर वक्फ बोर्ड का कब्जा हो जाता है। चूंकि 1995 का वक्फ एक्ट कहता है कि अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई जमीन वक्फ की संपत्ति है तो यह साबित करने की जिम्मेदारी उसकी नहीं, बल्कि जमीन के असली मालिक की होती है कि वो बताए कि कैसे उसकी जमीन वक्फ की नहीं है। यह बहुत मुश्किल काम है. लोग अपनी नहीं बता पाते हैं. वो अपना मूल निवासी प्रमाण पत्र लाओ तो वह देना मुश्किल होता है. आमतौर हम दस्तावेज सुरक्षित नहीं रख पाते हैं. ऐसे में अगर उससे 1956 या 1958 की दस्तावेज की माँगा जाए तो वह कहाँ से देगा, जब वह अपना मूल निवासी प्रमाण पत्र नहीं दे पा रहा है तो दस्तावेज कहां से देगा. कई लोगों तो अपनी जन्मकुंडली भी नहीं बनवाते थे. लोग अलग अलग तरह से अनुमान लगाते थे. पहले लोग स्मृति में रखते थे. 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन यह तय कैसे होगा कि संपत्ति निजी है? अगर वक्फ बोर्ड को सिर्फ लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो उसे कोई दस्तावेज या सबूत पेश नहीं करना है। सारे कागज और सबूत उसे देने हैं जो अब तक दावेदार रहा है। कौन नहीं जानता है कि कई परिवारों के पास जमीन का पुख्ता कागज नहीं होता है। वक्फ बोर्ड इसका फायदा उठाता है, क्योंकि उसे कब्जा जमाने के लिए कोई कागज नहीं देना है। यह बात केवल वक्फ बोर्ड तक नहीं है, बहुत से लोग जो जमींन की खरीद-बिक्री का काम करते हैं. वे लोगों की जमीन पर कब्जा कर लेते हैं. जब जमीन का मालिक पहुंचता तो उसके सारे कागजात होने के बावजूद सालों अदालत के चक्कर काटने पड़ते हैं. अदालत से न्याय मिलने के बाद भी दबंग लोग उसकी जमीन खाली नहीं करते हैं. ऐसे किस्से आए दिन सुनने को मिलते हैं. यहाँ तो वक्फ बोर्ड को तो असीमित अधिकार मिले हैं. क्या वक्फ बोर्ड में पंच परमेश्वर बैठे हैं, जो लोगों के साथ न्याय ही करेगे? या अलगू चौधरी और जुम्मन मियां जैसे लोग हैं. आखिर वक्फ में बैठे कौन लोग हैं? अगर खोजबीन करेंगे तो पता चलेगा कि ये लोग राजनीतिक रूप से बहुत मजबूत लोग हैं. यह एक अलग ताकतवर वर्ग है. 1947 में बंटवारे के समय पूर्वी एवं पश्चिमी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश को मिलाकर लगभग 10 लाख 32 हजार स्क्वायर किलोमीटर जमीन दी गई थी और एक अनुमान के मुताबिक कम से कम इतनी ही जमीन/संपत्ति भारत में वक्फ बोर्ड के कब्जे या रिकॉर्ड में है। मगर, इस समय वक्फ बोर्ड के पास 9 लाख एकड़ से ज्यादा की संपत्ति, 15 साल में डबल हुई. रेलवे-डिफेंस के बाद सबसे ज्यादा प्रॉपर्टी है. वक्फ बोर्ड सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूस्वामी है. यूपी में सबसे ज्यादा वक्फ संपत्ति है. यूपी में सुन्नी बोर्ड के पास कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां हैं, जबकि शिया बोर्ड के पास 15 हजार 386 संपत्तियां हैं. साल 1989 में वक्फ की ओर से जारी आंकड़ों में छत्तीसगढ़ में वक्फ के पास 255 मस्जिद, 69 मदरसा, 7 स्कूल, 100 ईदगाह, 380 कब्रिस्तान, 79 दरगाह, 479 मकान, 340 दुकान और गोदाम, 80 प्लाट, 49 इमामबाडा, 3 खानकाह, 10 मुसाफिरखाना और 105 कृषि भूमि है. अकेले राजधानी रायपुर में वक्फ के पास 36 मस्जिद, 12 मदरसा, 3 स्कूल, 15 ईदगाह, 31 कब्रिस्तान, 38 दरगाह, 152 मकान, 86 दुकान और गोदाम, 5 प्लाट, 4 इमामबाडा, 1 मुसाफिरखाना और 14 कृषि भूमि है. इसी तरह बिलासपुर में 38 मस्जिद, 4 मदरसा, 1 स्कूल, 8 ईदगाह, 26 कब्रिस्तान, 2 दरगाह, 64 मकान, 8 दुकान और गोदाम, 6 प्लाट, 1 इमामबाडा, 2 मुसाफिरखाना और 21 कृषि भूमि है. दुर्ग में 24 मस्जिद, 4 मदरसा, 10 ईदगाह, 56 कब्रिस्तान, 14 दरगाह, 17 मकान, 54 दुकान और गोदाम, 3 प्लाट, 9 इमामबाडा, 2 मुसाफिरखाना और 11 कृषि भूमि है. सरगुजा में 48 मस्जिद, 17 मदरसा, 22 ईदगाह, 135 कब्रिस्तान, 3 दरगाह, 11 मकान, 3 दुकान और गोदाम, 1 प्लाट, 26 इमामबाडा, 3 खानकाह, 1 मुसाफिरखाना और 13 कृषि भूमि है और राजनांदगांव में 18 मस्जिद, 2 मदरसा, 1 स्कूल, 7 ईदगाह, 28 कब्रिस्तान, 5 दरगाह, 39 मकान, 44 दुकान और गोदाम, 2 प्लाट और 3 कृषि भूमि है.
अल्पसंख्यक मंत्रालय ने दिसंबर 2022 में इसके बारे में लोकसभा में जानकारी दी थी. हालांकि, सबसे अधिक विवाद वक्फ के अधिकारों को लेकर है. क्योंकि वक्फ एक्ट के सेक्शन 85 में इस बात पर जोर दिया गया है कि बोर्ड के फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसके बाद 8 दिसंबर 2023 को वक्फ बोर्ड (एक्ट) अधिनियम 1995 को निरस्त करने का प्राइवेट मेंबर बिल राज्यसभा में पेश किया गया था. यह बिल उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने पेश किया. राज्यसभा में इस बिल को लेकर विवाद भी हुआ और उस समय इस बिल के लिए मतदान भी कराया गया. तब बिल को पेश करने के समर्थन में 53, जबकि विरोध में 32 सदस्यों ने मत दिया. उस दौरान भाजपा सांसद ने कहा था कि ‘वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995’ समाज में द्वेष और नफरत पैदा करता है. वक्फ एक अरबी शब्द है. जिसका अर्थ होता है खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु. वक्फ बोर्ड के अधिकार में चल और अचल संपत्तियां आती हैं. इन संपत्तियों के रखरखाव के लिए राष्ट्रीय से लेकर राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड होता है. वक्फ बोर्ड को जो संपत्ति दान दी जाती है, उससे गरीबों की मदद की जाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाल के एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई व्यक्ति वक्फ का ट्रस्टी नहीं है, न ही सह-स्वामी है, लेकिन वह लाभार्थी है तो ‘प्रतिकूल कब्जे’ के जरिये वक्फ की जमीन होते हुए भी वह उसका अधिकार प्राप्त कर सकता है. प्रतिकूल कब्जे को अंग्रेजी में ‘एडवर्स पजेशन’ कहते हैं. अगर किसी व्यक्ति की जमीन पर कोई दूसरा व्यक्ति निर्विरोध रह रहा है, उस जमीन पर उसे निर्विरोध रहते हुए 12 साल हो गए हैं तो वह प्रतिकूल कब्जे यानी एडवर्स पजेशन का दावा कर सकता है. अगर उसका दावा सही पाया गया तो उसे जमीन का टाइटल यानी मालिकाना हक प्राप्त हो जाता है. इसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी जमीन 30 साल से ज्यादा समय से निर्विरोध रह रहा है तो वहां भी वह प्रतिकूल कब्जे का दावा कर उस जायदाद का अधिकार प्राप्त कर सकता है. जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने वक्फ अधिनियम, 1995 से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते यह फैसला दिया था. शीर्ष अदालत के इसे फैसले के कारण अब वक्फ की जमीनें भी इसी परिधि में आ गई हैं. इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति जिसका संबंध वक्फ से उसके ट्रस्टी या सह-स्वामी के रूप में नहीं है और अगर वह केवल वक्फ का लाभार्थी होते हुए निर्विरोध वक्फ की जमीन पर रह रहा है, तो वह प्रतिकूल कब्जे (एडवर्स पजेशन) का दावा कर उस जमीन का अधिकार प्राप्त कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया है कि 1947 से पहले ट्रांसफर किये गए किसी भी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार नहीं होगा, क्योंकि उसके कागज मान्य नहीं होंगे. इसके अलावा 1947 के बाद भी जिन संपत्तियों पर वक्फ बोर्ड अपना अधिकार जताता है. उनके कागज उसे दिखाने होंगे कि वे संपत्तियां उसके पास आईं कहाँ से अगर वक्फ बोर्ड अपने किसी संपत्ति के सही, जायज और कानूनी कागज नहीं दिखा पाता है तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आलोक में वो जमीन/संपत्ति अपने मूल मालिक को वापस दे दी जाएगी. अगर जमीन/ संपत्ति का मूल मालिक बंटवारे के बाद देश छोड़कर जा चुका है अथवा 1962, 1965 & 1971 के युद्ध में पाकिस्तान का साथ देने के आरोप के कारण भाग गया है. तो, उस स्थिति में वो संपत्ति “शत्रु संपत्ति अधिनियम 2017” के तहत सरकार की हो जाएगी. जैसा कि हमने देखा कि मुंबई के बड़े बड़े गैन्गस्टर दाउद इब्राहीम की संपत्ति को “शत्रु संपत्ति घोषित किया गया.
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार वक्फ बोर्ड अधिनियम में बड़े संशोधन करने के लिए तैयार है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों को मंजूरी दे दी है, जिसे वक्फ बोर्ड की शक्तियों को फिर से परिभाषित करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है. कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार वक्फ़ बोर्ड की किसी भी संपत्ति को “वक्फ संपत्ति” बनाने की शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहती है. 40 प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार वक्फ़ बोर्डों द्वारा संपत्तियों पर किए गए दावों का अनिवार्य रूप से सत्यापन किया जाएगा. सरकार के इस कदम का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विरोध किया है और कहा है कि वक्फ बोर्ड की कानूनी स्थिति और शक्तियों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. दरअसल भाजपा को लोग मुस्लिम विरोधी मानते हैं. भाजपा के कई बड़े नेता तो यहाँ तक कह चुके हैं कि हमें मुस्लिम वोटों की जरूरत नहीं है. मुस्लिमों और उनके नेताओं को लग रहा है कि यह हमारे अधिकारों में हस्तक्षेप है.कुछ लोग अतिशय में भी कह रहे हैं कि देश में एक और विभाजन की स्थिति पैदा हो सकती है.मगर कोई भी कानून अगर किसी का असीमित अधिकार देता है और उन अधिकारों का दुरूपयोग करता है तो उस पर अंकुश लगेगा. अब सवाल यह है कि ऐसा किस नियत से किया जा रहा है?क्यों किया जा रहा है? क्या सरकार एक स्वतंत्र संस्था वक्फ बोर्ड को नियंत्रित करना चाहती है? अगर इसलिए नियत्रंण करना चाहती है कि उसमें बहुत सी गडबड़ियाँ हैं तो उसकी जांच करनी चाहिए. मगर सवाल यह है कि क्या केवल वक्फ बोर्ड की ही जांच होनी चाहिए? दूसरे धर्म समुदाय के भी धार्मिक संस्थाओं की गडबड़ियों की भी जांच होनी चाहिए. संविधान में सभी बराबर हैं तो उनके साथ सरकार को व्यवहार भी बराबरी का होना चाहिए. सरकारी संपति का जहाँ कहीं भी दुरुपयोग हो रहा हो तो उस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए. अब देखते हैं कि वक्फ बोर्ड के असीमित अधिकार में कितनी कटौती होती है.

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