Aaj ki Jandhara :आज की जनधारा का प्रेम विशेषांक दिल्ली पुस्तक मेले में विमोचित

आज की जनधारा का प्रेम विशेषांक दिल्ली पुस्तक मेले में विमोचित

नई दिल्ली/रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र आज की जनधारा ने 6 फरवरी को दिल्ली के विश्व पुस्तक मेले में अपनी साहित्य वार्षिकी का विमोचन किया। इस वर्ष की साहित्य वार्षिकी का विषय ‘प्रेम: अगम और अपरिभाष्य अनुभव’ है, जो प्रेम के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करता है। पिछले तीन वर्षों से आज की जनधारा विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर विशेषांक प्रकाशित करता आ रहा है, जैसे ‘सूचना सभ्यता के स्वप्नपाश’, ‘आजादी के 75 बरस’, ‘हिंदी साहित्य और स्त्री’ और ‘ग्लोबल गांव में स्त्री’, जिन्हें पाठकों ने खूब सराहा है।
साहित्य वार्षिकी के इस विशेष अंक का विमोचन देश के प्रतिष्ठित लेखकों, चिंतकों और संपादकों की उपस्थिति में किया गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध कवि-संपादक लीलाधर मंडलोई, कथादेश के संपादक हरि नारायण, उपन्यासकार महेश कटारे, कहानीकार योगेंद्र आहूजा, कवि-कहानीकार शैलेय, कहानीकार आनंद हर्षुल, कवि रामकुमार तिवारी, और कहानीकार कैलाश वानखेड़े भी उपस्थित थे। विमोचन समारोह में आज की जनधारा के संपादक भालचंद्र जोशी और मैनेजिंग एडिटर सौरभ मिश्र भी उपस्थित रहे।

इस अंक में प्रेम पर केंद्रित विभिन्न पहलुओं पर गहरे विचार किए गए हैं, जो इसे हिंदी साहित्य में अब तक का अनूठा विशेषांक बनाते हैं। लेखकों ने प्रेम के दर्शन, विचार, इतिहास, सिनेमा और साहित्य में उसकी उपस्थिति पर गंभीर लेख प्रस्तुत किए हैं, जिनसे यह अंक एक बड़े इतिहास ग्रंथ की तरह प्रतीत होता है। यह अंक न केवल प्रेम को नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है, बल्कि निरर्थक भावुकता को भी नकारता है और इसे एक गंभीर साहित्यिक विमर्श का हिस्सा बनाता है।

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साहित्य वार्षिकी के संपादक भालचंद्र जोशी ने कहा कि इस अंक के पीछे हमारे प्रधान संपादक सुभाष मिश्र का मार्गदर्शन और स्वतंत्रता का बड़ा हाथ है, जिससे हमें इस अंक को प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली। आज की जनधारा का यह अंक छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। उन्होंने आज की जनधारा की समर्पण और प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा कि यह पत्र 35 वर्षों से निरंतर अपने पाठकों से जुड़ा हुआ है और मीडिया के इस जटिल समय में अपनी निर्भीकता और निष्पक्षता बनाए हुए है। इस विशेषांक के विमोचन के अवसर पर उपस्थित लेखकों ने इस अंक को हिंदी साहित्य में एक नया कीर्तिमान बताया और इसे साहित्यिक समुदाय के लिए एक अमूल्य धरोहर बताया।

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