Aaj kee janadhaara : आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से  हनुमान जंयती को भी खूब याद किये गये परसाई

Aaj kee janadhaara :

Aaj kee janadhaara आज की जनधारा के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र की कलम से  हनुमान जंयती को भी खूब याद किये गये परसाई

Aaj kee janadhaara हरिशंकर परसाई की एक रचना है हनुमान विश्व के प्रथम साम्यवादी की वजह से भी बहुत याद किये गये। सोशल मीडिया पर हनुमानजी की ट्रेडिंग के साथ परसाई भी याद किये गये।

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Aaj kee janadhaara विचारों से नास्तिक समझे जाने वाले परसाई को लोगों ने हनुमान जंयती के दिन भी खूब याद किया। दरअसल परसाई ने अपने लेखक में हमारी मिथक कथाओ, धार्मिक ग्रन्थों, पात्रों, रीति रिवाज, कला, संस्कृति साहित्य से बहुत सारी बातें जो लोकजीवन में प्रचलित रही हैं, उन्हें लेखन का आधार बनाया। उनकी कहानी, निबंध, लेख आदि में वे पात्र खूब आते हैं ।

Aaj kee janadhaara जब उन्हें भारतीय जाति व्यवस्था, चुनाव व्यवस्था पर व्यंग्य करना होता है तो वे भगवान कृष्ण को लेकर आते हैं और अपनी कालजयी रचना हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं लिखते हैं । बिहार में व्याप्त जातिवाद के सामने भगवान कृष्ण भी चुनाव लडऩे से तौबा कर लेते हैं । उनके लेखन के प्रिय पात्रों में हनुमान सबसे ज़्यादा आते हैं।

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Aaj kee janadhaara वे राम चरित मानस, रामायण, महाभारत से लेकर हमारे पुराणों तक के पात्रों को अपनी रचना में संजीव लाकर खड़ा कर देता हैं । उनकी रचना के पात्र जनमानस में सहज स्वीकार है या कहें की उन्हीं के बीच के हैं जो नहीं होगा। भोलाराम का जीव से लेकर वैष्णव की फिसलन हो या फिर ठिठुरता हुआ गणतंत्र हो , सदाचार का ताबीज़ हो या फिर टार्च बेचने वाला ।

बाल समय रवि भक्षी लियो तब
तीनहुं लोक भयो अंधियारों
ताहि सों त्रास भयो जग को
यह संकट काहु सों जात न टारो
देवन आनि करी बिनती तब
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो
को नहीं जानत है जग में कपि
संकटमोचन नाम तिहारो
संकटमोचन नाम तिहारो

सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक हरिशंकर परसाई का यह जन्मशताब्दी वर्ष है । उन्हें पढऩे वाले, चाहने वाले उन्हें जानने और मानने वाले देश दुनिया में अलग – अलग तरीक़े से सालभर उनकी जन्मशती के बहाने उन पर आयोजन कर रहे हैं ।

हम बिहार से चुनाव लड़ रहे हैं में परसाई भगवान कृष्ण के माध्यम से कहते हैं –

Aaj kee janadhaara भारतीय राजनीति में व्याप्त अवसरवाद, मूल्यहीनता और अस्थिरता को देखकर हर सच्चे जनसेवक का हृदय फटने लगता है। राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण आज देश के करोड़ों मानव भूखे हैं, नगे हैं, बेकार। वे अकाल, बाढ़, सूखा और महामारी के शिकार हो रहे हैं। असंख्य कंठों से पुकार उठ रही है- हे भगवान, आओ और नई राजनीतिक पार्टी बनाकर सत्ता पर कब्जा करो और हमारी रक्षा करो। जनता के आत्र्तनाद को सुनकर भगवान कृष्ण बिहार में अवतरित हो गए और एक पार्टी की स्थापना कर ली है।


पार्टी का नाम भारतीय जनमंगल कांग्रेस होगा। नाम में जन या जनता या लोक रखने का आधुनिक राजनीति में फैशन पड़ गया है। इसीलिए हमने भी जन शब्द रख दिया है। जनता से प्रार्थना है कि जन को गंभीरता से न लें, इसे वर्तमान राजनीति का एक मजाक समझें।…..

Aaj kee janadhaara हम जनता को विश्वास दिलाते हैं कि उसे मिटाकर हम ऊंची क्वालिटी की सरकार बनाएंगे। हमारा न्यूनतम कार्यक्रम सरकार में रहना है।

कृष्ण ने कहा, मैं ईश्वर हूं। मेरी कोई जाति नहीं है।’’उन्होंने कहा, देखिए न, इधर भगवान होने से तो काम नहीं न चलेगा। आपको कोई वोट नहीं देगा। जात नहीं रखिएगा, तो कैसे जीतिएगा।


Aaj kee janadhaara जाति के इस चक्कर से हम परेशान हो उठे- भूमिहार, कायस्थ, क्षत्रिय, यादव होने के बाद ही कोई कांग्रेसी, समाजवादी या साम्यवादी हो सकता है। कृष्ण को पहले यादव होना पड़ेगा, फिर चाहे वे मार्क्सवादी हो जाएं।

 

हरिशंकर परसाई अपनी एक और कालजयी रचना इंस्पेक्टर मातादीन चाँद पर में भी हनुमानजी को बड़ी ख़ूबसूरती से लाते हैं और चाँद के पुलिस वालों को बताते हैं की तुम हनुमान जी को नहीं जानते वे रामराज्य में स्पेशल क्राइम ब्रांच में थे । उन्हीं ने माता सीता का पता लगाया था । रावण की लंका में आग लगाई थी । अभी हमारे देश में अपराधियों को सजा दिलाने कोर्ट कचहरी जाना पड़ता है । जब रामराज्य आ जायेगा , तब पुलिस अपराधियों को खुद सजा दे सकेगी ।

Aaj kee janadhaara वैसे हरिशंकर परसाई ने ग़लत नहीं सोचा था ।यू पी में लगभग रामराज्य आ चुका है । योगी आदित्यनाथ की पुलिस अब अपराधियों को खुद सजा दे रही है , उनके घरों पर बुलडोजऱ चला रही है ।

परसाई का इंस्पेक्टर मातादीन चाँद के पुलिस वालों को अपने पर्स से हनुमानजी की तस्वीर निकाल कर देता है और बताता है की ये पुलिस वालों के सबसे आराध्य देव है । हर थाने के बाजू में हनुमान जी का मंदिर होता है ।

इंस्पेक्टर मातादीन चाँद का अंश –

Aaj kee janadhaara इधर हनुमान जी खूब याद किये जा रहे हैं । कई बार तो उन्हें उनके आराध्य भगवान राम से भी बढ़चढक़र प्रदर्शित किया जा रहा है। इस बार की हनुमान जंयती पर हनुमानजी सोशल मीडिया से लेकर शहरों के खंभों पर शुभकामनाओं, नेताओं के फ़ोटो के साथ बधाई संदेशों में भी खूब दिखे। अब के हनुमानजी सीता राम के सामने सिर झुकाये वाली मुद्रा में बहुत कम दिखे। अब वे महाबलशाली, ताकतवर मुद्रा में लोगों के सामने आये। भक्तगण जैसा चाहते हैं , उनके भगवान वैसे दिखते हैं। तुलसीदास जी ने यूँ ही नहीं लिखा है –

जाकी रही भावना जैसी , प्रभु मूरत देखांई तिन तैसी

 

Aaj kee janadhaara अब यह सच भी है की जब देश इतने गहरे आर्थिक,सामाजिक ,राजनीतिक संकट में हो तब हर चौराहे पर, हर गली में संकट मोचक हनुमान जी की पूजा जरूरी है।अकेले हनुमानजी ऐसे दिखाई देते हैं जो हमें इस संकट से उभार सकते है। को नहीं जानत है प्रभु संकट मोचन नाम तिहारो मानस का हंस उपन्यास में अमृत लाल नागर तुलसीदास के बाल भय की परिणति के रूप में लिखी गई हनुमान चालीसा का जिक़्र करते हुए कहते हैं कि हनुमानजी के ज़रिए तुलसी अपने भय को कम करते हैं । भारतीय राजनीति और जनमानस में कथित भय को कम करने बहुत सारे लोग हनुमानजी , रामजी की शरण में है । हम तो हर बार यही कहते हैं की तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार उदासी मन काहे को डरे।

 

परसाईजी संभवत: पहले अकेले ऐसे लेखक हैं, जिनके निबंध, कहानी पर सबसे ज्यादा नाट्य रूपांतरण कर नाट्य मंचन किए गए हैं और किये जा रहे हैं। परसाईजी की रचना पर आधारित नाटक इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर पिछले सात दशकों में सर्वाधिक मंच और नुक्कड़ पर प्रदर्शित हुआ। रानी नागफनी की कहानी, निठल्ले की डायरी, सदाचार का ताबीज, भोलाराम का जीव, एक लडक़ी पांच दीवाने, अकाल उत्सव, प्रेमचंद के फटे जूते जैसी कितनी ही रचनाएं जिन पर आज भी लगातार नाट्य मंचन हो रहे हैं।

Aaj kee janadhaara 22 अगस्त 1924 को जमानी होशंगाबाद में जन्मे हरिशंकर परसाई की कर्मभूमि जबलपुर रही। कुछ साल जबलपुर के माडल स्कूल में शिक्षकीय दायित्व के बाद स्वतंत्र लेखन कर अपनी और अपने विधवा बहन के परिवार का जीवनयापन करते रहे। परसाईजी ने अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं को स्तंभ लेखक के रूप में जितना लिखा शायद ही किसी ने लिखा होगा। सामयिक घटनाओं को राष्ट्र्रीय, अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों के साथ जोडक़र त्वरित टिप्पणी के रूप में अपना कालम लिखने वाले हरिशंकर परसाई के कालम आज भी सामयिक हैं, प्रासंगिक हैं। परसाईजी वैज्ञानिक चेतना से लैश प्रगतिशील मूल्यों की स्थापना के संघर्षरत ऐसे लेखक थे जिन्होंने जीवनभर लोकशिक्षण के जरिए एक शिक्षक की भूमिका निभाई।

परसाई जन्मशती पर उनके अपने शहर जबलपुर में प्रगतिशील लेखक संघ अगस्त माह में एक बड़ा आयोजन करने जा रहा है । वैसे जबलपुर की नाट्य संस्था विवेचना रंगमंडल हरिशंकर परसाई के नाम से हर साल नाट्य समारोह का आयोजन करती है ।

लेखक और रंगकर्मी समुदाय भले ही परसाईजी को अपने ढंग से याद करें पर हनुमानजी के बहाने परसाई हनुमान जंयती को अपनी रचना हनुमान विश्व के प्रथम साम्यवादी की वजह से भी बहुत याद किये गये ।

Aaj kee janadhaara जिस दिन राम रावण को परास्त करके अयोध्या आए , सारा नगर दीपों से जगमगा उठा . यह दीपावली पर्व अनंत काल तक मनाया जाएगा . पर इसी पर्व पर व्यापारी खाता -बही बदलते हैं और खाता-बही लाल कपडे में बाँधी जाती है .
प्रश्न है राम के अयोध्या आगमन से खाता -बही बदलने का क्या संबंध ? और खाता -बही लाल कपड़े में ही क्यों बाँधी जाती है ?
बात यह हुई कि जब राम के आने का समाचार आया तो व्यापारी वर्ग में खलबली मच गयी।

वे कहने लगे – सेठजी , अब बड़ी आफत है। शत्रुघ्न के राज में तो पोल चल गयी. पर राम मर्यादा-पुरुषोत्तम हैं । वे सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स की चोरी बर्दाश्त नहीं करेंगे। वे अपने खाता-बही की जाँच कराएंगे और अपने को सजा होगी ।

एक व्यापारी ने कहा भैया , तब तो अपना नंबर दो का मामला भी पकड़ लिया जाएगा ।
अयोध्या के नर -नारी तो राम के स्वागत की तैयारी कर रहे थे , मगर व्यापारी वर्ग घबरा रहा था ।
अयोध्या पहुँचने के पहले ही राम को मालूम हो गया था कि उधर बड़ी पोल है । उन्होंने हनुमान को बुलाकर कहा सुनो पवनसुत , युद्ध तो हम जीत गए लंका में , पर अयोध्या में हमें रावण से बड़े शत्रु का सामना करना पड़ेगा वह है , व्यापारी वर्ग का भ्रष्टाचार । बड़े – बड़े वीर व्यापारी के सामने परास्त हो जाते हैं। तुम अतुलित बल बुद्धि निधान हो । मैं तुम्हे ‘एनफोर्समेंट ब्रांच ‘ का डायरेक्टर नियुक्त करता हूँ । तुम अयोध्या पहुँचकर व्यापारियों की खाता -बहियों की जाँच करो और झूठे हिसाब पकड़ो । सख्त से सख्त सजा दो।

 इधर व्यापारियों में हडक़ंप मच गया । कहने लगे अरे भैया , अब तो मरे । हनुमान जी एनफोर्समेंट ब्रांच के डायरेक्टर नियुक्त हो गए । बड़े कठोर आदमी हैं । शादी -ब्याह नहीं किया । न बाल , न बच्चे । घूस भी नहीं चलेगी ।
व्यापारियों के कानूनी सलाहकार बैठकर विचार करने लगे । उन्होंने तय किया कि खाता बही बदल देना चाहिए । सारे राज्य में ‘ चेंबर ऑफ़ कामर्स ‘ की तरफ से आदेश चला गया कि ऐन दीपोत्सव पर खाता-बही बदल दिए जाएँ ।

फिर भी व्यापारी वर्ग निश्विन्त नहीं हुआ ।हनुमान को धोखा देना आसान बात नहीं थी। वे अलौकिक बुद्धि संपन्न थे । उन्हें खुश कैसे किया जाए ? चर्चा चल पड़ी
कुछ मुठ्ठी गरम करने से काम नहीं चलेगा ?
वे एक पैसा नहीं लेते ।
वे न लें , पर मेम साब ?
उनकी मेम साब ही नहीं हैं । साहब ने ‘मैरिज ‘ नहीं की । जवानी लड़ाई में काट दी ।
-कुछ और शौक तो होंगे ? दारु और बाकी सब कुछ ?
वे बाल ब्रह्मचारी हैं । काल गर्ल को मारकर भगा देंगे । कोई नशा नहीं करते । संयमी आदमी हैं ।
तो क्या करें ?
तुम्ही बताओ , क्या करें ?
  किसी सयाने वकील ने सलाह दी देखो , जो जितना बड़ा होता है वह उतना ही चापलूसी पसंद होता है । हनुमान की कोई माया नहीं है । वे सिन्दूर शरीर पर लपेटते हैं और लाल लंगोट पहनते हैं । वे सर्वहारा हैं और सर्वहारा के नेता । उन्हें खुश करना आसान है । व्यापारी खाता बही लाल कपड़ों में बाँध कर रखें ।
रातों-रात खाते बदले गए और खाता -बहियों को लाल कपड़े में बाँधा गया ।
अयोध्या जगमगा उठी । राम-सीता-लक्ष्मण की आरती उतारी गई । व्यापारी वर्ग ने भी खुलकर स्वागत किया । वे हनुमान को घेरे हुए उनकी जय भी बोलते रहे ।
  दूसरे दिन हनुमान कुछ दरोगाओं को लेकर अयोध्या के बाज़ार में निकल पड़े ।
पहले व्यापारी के पास गए । बोले खाता -बही निकालो । जाँच होगी ।
व्यापारी ने लाल बस्ता निकालकर आगे रख दिया । हनुमान ने देखा – लंगोट का और बस्ते का कपड़ा एक है । खुश हुए ;
बोले मेरे लंगोट के कपडे में खता-बही बाँधते हो ?
व्यापारी ने कहा हाँ , बल-बुद्धि निधान , हम आपके भक्त हैं । आपकी पूजा करते हैं । आपके निशान को अपना निशान मानते हैं ।
हनुमान गदगद् हो गए ।
व्यापारी ने कहा बस्ता खोलूँ । हिसाब की जाँच कर लीजिये ।
हनुमान ने कहा रहने दो। मेरा भक्त बेईमान नहीं हो सकता ।
हनुमान जहाँ भी जाते , लाल लंगोट के कपड़े में बंधे खाता-बही देखते । वे बहुत खुश हुए । उन्होंने किसी हिसाब की जांच नहीं की ।
रामचंद्र को रिपोर्ट दी कि अयोध्या के व्यापारी बड़े ईमानदार हैं । उनके हिसाब बिलकुल ठीक हैं ।
हनुमान विश्व के प्रथम साम्यवादी थे । वे सर्वहारा के नेता थे । उन्ही का लाल रंग आज के साम्यवादियों ने लिया है ।
पर सर्वहारा के नेता को सावधान रहना चाहिए कि उसके लंगोट से बुर्जुआ अपने खाता-बही न बाँध लें।
एक दिन आराम करने के बाद मातादीन ने काम शुरू कर दिया। पहले उन्होंने पुलिस लाइन का मुलाहिजा किया। शाम को उन्होंने आई।जी। से कहा-आपके यहां पुलिस लाइन में हनुमानजी का मंदिर नहीं है। हमारे रामराज में पुलिस लाइन में हनुमानजी हैं।
आई.जी. ने कहा-हनुमान कौन थे-हम नहीं जानते।
मातादीन ने कहा-हनुमान का दर्शन हर कर्तव्य परायण पुलिसवाले के लिए जरूरी है। हनुमान सुग्रीव के यहां स्पेशल ब्रांच में थे। उन्होंने सीता माता का पता लगाया था। ‘एबडक्शन’ का मामला था-दफा 362। हनुमानजी ने रावण को सजा वहीं दे दी। उसकी प्रॉपर्टी में आग लगा दी। पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि अपराधी को पकड़ा और वहीं सजा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं। मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत खुश हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं। मैं पकड़ा और वहीं सजा दे दी। अदालत में जाने का झंझट नहीं मगर यह सिस्टम अभी हमारे रामराज में भी चालू नहीं हुआ है। हनुमानजी के काम से भगवान राम बहुत खुश हुए। वे उन्हें अयोध्या ले आए और ‘टौन ड्यूटी’ में तैनात कर दिया। वही हनुमान हमारे अराध्य देव हैं। मैं उनकी फोटो लेता आया हूँ। उस पर से मूर्तियां बनवाइए और हर पुलिस लाइन में स्थापित करवाइए।
थोड़े ही दिनों में चांद की हर पुलिस लाइन में हनुमानजी स्थापित हो गए।

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