- सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ विधानसभा का शीतकालीन सत्र 14 दिसंबर 2025 से नवा रायपुर स्थित नए विधानसभा भवन में शुरू हुआ। राज्य गठन के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर यह सत्र कई मायनों में ऐतिहासिक है—पहली बार रविवार को सत्र की शुरुआत, पूरी तरह पेपरलेस कार्यवाही और मुख्य एजेंडा के रूप में “छत्तीसगढ़ अंजोर विज़न @2047” पर विशेष चर्चा।
वित्त मंत्री ओपी चौधरी द्वारा प्रस्तुत यह विज़न दस्तावेज़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “विकसित भारत @2047” की अवधारणा से प्रेरित बताया गया है। सरकार के अनुसार, इसमें करीब एक लाख नागरिकों के सुझाव शामिल हैं और इसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ को वर्ष 2047 तक एक विकसित राज्य के रूप में स्थापित करना है।
सरकार ने इस विज़न के तहत बड़े और महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए हैं। वर्तमान में लगभग 5–5.67 लाख करोड़ रुपये की राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) को 2030 तक 11 लाख करोड़ और 2047 तक 75 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है—यानी करीब 15 गुना वृद्धि। प्रति व्यक्ति आय को दस गुना बढ़ाकर लगभग 20 लाख रुपये वार्षिक करने की बात कही गई है। सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 35 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने, 5000 से अधिक स्मार्ट गांव और 10 से ज्यादा स्मार्ट शहर विकसित करने का भी दावा है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी बड़े लक्ष्य सामने रखे गए हैं—शिशु मृत्यु दर को 38 से घटाकर 5 से नीचे लाना और औसत जीवन प्रत्याशा को 65 वर्ष से बढ़ाकर 84 वर्ष तक ले जाना। इसके साथ ही गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई में कमी, तथा कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्रों को मजबूत करने का वादा किया गया है।
वित्त मंत्री का तर्क है कि भारत युवा आबादी वाला देश है, उसकी अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी बन चुकी है और 2047 तक भारत 30–40 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था होगा। उसी रफ्तार से छत्तीसगढ़ भी आगे बढ़ेगा।
लेकिन सत्र का पहला दिन ही राजनीतिक विवादों में उलझ गया। विपक्षी कांग्रेस ने सत्र का बहिष्कार किया, क्योंकि कार्यसूची में केवल विज़न दस्तावेज़ पर चर्चा रखी गई थी—न प्रश्नकाल था, न ध्यानाकर्षण। कांग्रेस ने इसे “शिगूफा” बताते हुए जनता को गुमराह करने वाला करार दिया। उनका आरोप है कि महंगाई, बेरोजगारी, महिला सुरक्षा, धान खरीदी जैसे जमीनी मुद्दों को दरकिनार कर दिया गया। दिलचस्प यह है कि सत्ता पक्ष के वरिष्ठ विधायक अजय चंद्राकर ने भी विज़न में महिला सुरक्षा और रोजगार को लेकर ठोस कार्ययोजना की कमी की ओर इशारा किया।
यहां सवाल उठता है—क्या यह विज़न जमीनी हकीकत से मेल खाता है? छत्तीसगढ़ खनिज और वन संपदा से भरपूर राज्य है—कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट इसकी पहचान हैं। यहां 30 प्रतिशत से अधिक आदिवासी आबादी है, फिर भी बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं और प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से कम है। भिलाई स्टील प्लांट जैसे बड़े औद्योगिक प्रोजेक्ट आए, लेकिन स्थानीय रोजगार अपेक्षित स्तर तक नहीं बढ़ सका। बस्तर जैसे इलाकों में खनन से विस्थापन हुआ, जबकि लाभ बड़े उद्योगों को ज्यादा मिला।
यदि विकसित छत्तीसगढ़ @2047 को महज़ नारा नहीं बनाना है, तो विकास को समावेशी बनाना होगा। आदिवासी समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार में वास्तविक हिस्सेदारी देनी होगी। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन टिकाऊ तरीके से करना होगा, ताकि “अमीर धरती के गरीब लोग” वाली छवि बदले। बहुराष्ट्रीय और बड़े उद्योग आएं, लेकिन स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता और हिस्सेदारी मिले—यही विकास की कसौटी होगी।
विपक्ष का बहिष्कार लोकतंत्र में असहमति का एक रूप हो सकता है, लेकिन सदन में खुली बहस न होना किसी भी विज़न की विश्वसनीयता को कमजोर करता है। सरकार भविष्य की बात कर रही है, विपक्ष वर्तमान के सवाल उठा रहा है। दोनों के बीच संतुलन ही लोकतांत्रिक विमर्श की ताकत है।
आखिरकार जनता कागज़ी लक्ष्यों से नहीं, ज़मीनी बदलाव से संतुष्ट होती है। सवाल यही है—क्या यह विज़न छत्तीसगढ़ को वास्तव में विकसित बनाएगा, या यह भी कई दस्तावेज़ों की तरह फाइलों में सिमट कर रह जाएगा? इसका उत्तर सरकार, विपक्ष और सबसे बढ़कर नागरिकों की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करता है ।