-सुभाष मिश्र
नवा रायपुर में जारी 60वें अखिल भारतीय ष्ठत्रक्क–ढ्ढत्र सम्मेलन के बीच सुरक्षा विमर्श नए युग की लकीरें खींच रहा है। ‘विकसित भारत, सुरक्षित भारतÓ की थीम बताती है कि चिंता केवल आंकड़ों में प्रगति की नहीं, बल्कि उस प्रगति की सुरक्षा गारंटी की भी है।
सम्मेलन का सबसे अहम अंतर्निहित संदेश संघीय ढाँचेे में राज्यों की भूमिका को लेकर है। इंटरऑपरेबल पुलिस कम्युनिकेशन ग्रिड, साझा स्ह्रक्कह्य और सीमावर्ती राज्यों को मिलने वाला लॉजिस्टिक सहयोग यह साफ़ करता है कि सुरक्षा व्यवस्था का भार अब एकल आदेश श्रृंखला भर नहीं, बल्कि समन्वित क्षमता मॉडल से उठेगा। केंद्र-राज्य तालमेल जितना मज़बूत, प्रतिक्रिया उतनी तेज़।
इसी फेडरल चुनौती को सरहद पार की जटिल राजनीति और पेचीदा बनाती है। भारत भौगोलिक निकटता के स्तर पर अलग-अलग मनोविज्ञान वाले पड़ोसियों से घिरा है। खुली सीमा के सुरक्षा आरोहों में नेपाल-भारत सीमा लगातार चुनौती देता है। राजनीति और कट्टर नैरेटिव के टकराव की ऊर्जा बांग्लादेश-भारत सीमा से भीतर तक असर डालती है। प्रॉक्सी नेटवर्क, फंडिंग और आतंकवाद निरोध की पुरानी-नई धमनियाँ पाकिस्तान-भारत सुरक्षा गलियारा में पढ़ी जाती रही हैं। वैश्विक रणनीति की बड़ी शतरंज में डोनाल्ड रीगन के बाद के अमेरिका रणनीति प्रतिष्ठान आज भी भारत को रिश्तों की साझेदारी प्रतिस्पर्धा के धुँधले क्षेत्र में रखता है। एशियाई दबाव और तकनीकी मोर्चों पर दीर्घकालिक चुनौती भारत-चीन तनाव रेखा से आती है।
लेकिन खतरे अब जंगलों और घाटियों तक सीमित नहीं। भारत के लिये हाइब्रिड युद्ध के नए मोर्चे—ड्रोन से नशे/हथियारों की तस्करी, डीपफेक मॉनिटर, डार्क वेब क्रिप्टो फंडिंग और समाज को अस्थिर करने वाली विदेश प्रेरित मुहिमें यह दिखाती हैं कि इंटेलिजेंस का होना काफी नहीं, उसका समय पर अनुवाद अहम है।
साथ-साथ, पुनर्वास नीति भी सुरक्षा-शांति की समांतर रेखा है। बस्तर पुनर्वास मॉडल यह तय करेगा कि हिंसा छोड़कर लौटे युवाओं के लिये पैकेज केवल घोषणा न हो, बल्कि संस्थागत भरोसे का पुल बने। तकनीक प्रधान सुधारों के बीच पुलिस मानव संसाधन की थकान, तनाव और प्रशिक्षण की सीमा को सुधार की अनिवार्य शर्त के रूप में पढऩा होगा।
अमल का असली प्रश्न यही है— क्या तैयारी बदलते ख़तरों की गति जितनी तेज़ी से बदलेगी? यदि हाँ, तो विकसित भारत केवल नीति वाक्य नहीं, बल्कि सुरक्षित भविष्य का प्रमाण बनेगा।