0 सड्डू स्थित जनमंच में हरिशंकर परसाई की 9 लघु कथाओं के कोलाज के रुप में मंचन

रायपुर। रायपुर के सड्डू स्थित जनमंच में आयोजित तीन दिवसीय रंग परसाई में दूसरे दिन श्रीमती रचना मिश्रा के निर्देशन में हरिशंकर परसाई की 9 लघु कथाओं के कोलाज के रुप में दर्शकों ने परसाई की व्यंग्य विविधता के अलग-अलग 9 रंगों, स्थितियों को देखा। परसाई की लघुकथा रोटी, चौबेजी की कथा, जाति, उपदेश, सुशीला, होनहार, अनुशासन, अश्लील पुस्तकें तथा एक वैष्णव कथा के जरिए समाज में व्याप्त कई तरह की विसंगतियां, दोगलेपन और बदलती परिस्थितियों का पर्दाफाश किया गया। प्रेमचंद के बाद परसाई ही ऐसे लेखक हैं जिनके पास विषय विविधता के साथ संपन्न पाठकों का एक बड़ा वर्ग है। परसाई के नौ रंग नाट्य प्रस्तुति में हेमंत यादव, उमेश उपाध्याय, संध्या वर्मा, श्रीमती सीमा सोनी, धावेन्द्र रजक, भूपेन्द्र कुमार, महेश्वर ध्रुव ने अलग-अलग भूमिकाएं निभाई। रंग परसाई की नेपथ्य परे व्यवस्था में सुश्री प्रीति भोकासे, नाट्य प्रस्तुति में संगीत संयोजन प्रथम गुप्ता ने किया। प्रकाश एवं प्रचार प्रसार व्यवस्था महेन्द्र सिंह राजपूत, योगेश साहू, संदीप जांगड़े की थी। वेशभूषा में सुमित भारती, कौशल्या यादव ने सहयोग किया।

परसाई की रचनाओं के नाट्य कोलाज के रुप में सबसे पहले उनकी लघुकथा रोटी की प्रस्तुति की गई। रोटी के जरिए व्यवस्था की क्रूरता और असंवेदनशीलता को उजागर किया गया है। कहानी कुछ इस तरह है- प्रजातन्त्र के राजा ने जहाँगीर की तरह अपने महल के सामने एक जंजीर लटका रखी थी। घोषणा करवा दी थी कि जिसे फरियाद करना हो, वह जंजीर खींचे, राजा साहब खुद फरियाद सुनेंगे। एक दिन अत्यन्त दुबला, कमजोर आदमी लडख़ड़ाता वहाँ आया और उसने निर्बल हाथों से जंजीर खींची। प्रजातन्त्र का राजा तुरन्त महल की बालकनी पर आया और बोला, फरियादी, क्या चाहते हो? फरियादी बोला, राजा, तेरे राज में हम भूखे मर रहे हैं। हमें अन्न का दाना नहीं मिलता। मुझे रोटी चाहिए। मैंने कई दिनों से अन्न नहीं खाया। मैं रोटी मांगने आया हूँ। राजा ने बड़ी सहानुभूति से कहा, भाई, तेरे दु:ख से मेरा हृदय द्रवित हो गया है। मैं तेरी रोटी की समस्या पर आज ही एक उपसमिति बिठाता हूँ। पर तुझसे मेरी एक प्रार्थना है- उपसमिति की रिपोर्ट प्रकाशित होने के पहले तू मरना मत।
चौबेजी की कथा के जरिए वर पक्ष की दहेज लालच और वधु पक्ष की विवशता का चित्रण है। किन्तु नये दौर में यदि लड़कियां पढ़कर लड़कों से आगे निकलती हैं तो वे अपने से कमतर लड़कों को किस तरह खारिज कर रही है, इस बदलते दौर की यह कहानी है। कथा सार कुछ इस तरह का है-चौबेजी का पुत्र है अशोक। एमए पहले दर्जे में कर लिया है। नौकरी की कोशिश में है। चौबेजी सोचते हैं, नौकरी तो लग ही जायेगी। इसकी शादी कर देनी चाहिए। मिश्रजी की लड़की है-शीला। वह भी एम. ए. पहले दर्जे में कर चुकी है। उसे भी दो साल बैठे हो गये। मिश्र-मिश्राइन उसकी जल्दी शादी कर देना चाहते हैं। चौबेजी से बातचीत चली। लेन-देन तय होने लगा। एकाएक चौबेजी दुखी हो गये। सिर ठोंका और गाली देने लगे। साले,नीच कमीने कमीशनवाले। चौबेजी ने कहा, अरी, यही आर्डर महीने भर पहले आता तो डिप्टी कलेक्टर लड़के के तीस-पैतीस हजार नहीं मिल जाते। आपको यह जानकर और भी प्रसन्नता होगी कि शीला का निर्णय है कि मैं किसी जूनियर सरकारी नौकर से शादी नहीं करूँगी। इस सम्बन्ध को तोड़ते हुए मुझे, बड़ा हर्ष हो रहा है।

लघुकथा जाति के जरिए परसाईजी ने जातिगत व्यवस्था और उसकी जड़ें कितनी मजबूत हैं, इस पर तीखा व्यंग्य किया गया है-कारखाना खुला। कर्मचारियों के लिये बस्ती बन गई। ठाकुरपुरा से ठाकुर साहब और ब्राह्मणपुरा से पंडितजी कारखाने में नौकरी करने लगे और पास-पास के ब्लॉक में रहने लगे। ठाकुर साहब का लड़का और पंडितजी की लड़की दोनों जवान थे।
उपदेश लघुकथा के जरिए कथनी और करनी का अंतर तथा स्त्रियों की आजादी का सार्वजनिक समर्थन पर घर की चारदीवारी में रखने की सच्चाई का वर्णन है-सेवकजी नारी आन्दोलन के बड़े समर्थक थे। स्त्री की सामाजिक स्वतंत्रता के लिए वे कठोर संघर्ष करते थे। एक सभा में उन्होंने भाषण दिया हमें नारी को स्वतन्त्रता देना होगा, उसके व्यक्तित्व को स्वीकारना होगा। उसे घर में कैद करके हमने सदियों से समाज के आधे भाग को निष्क्रिय कर दिया है। अब समय बदल गया है। सेवकजी की आँखें चढ़ गयीं-बोले, कह दे, कहीं नहीं जाना है। जहाँ देखो वहाँ, मुँह उठाये चल दीं। कुछ लाज-शरम भी है या नहीं। लड़का था वाचाल।
सुशीला लघुकथा में परसाई नये दौर के बदलते लड़के-लड़कियों की समझदारी और दहेज को लेकर घर में उत्पन्न स्थिति का खुलासा करते हैं। कथा सार कुछ इस तरह है-सुशीला पाण्डेजी की लड़की थी। सुशीला नाम था। अच्छी पढ़ी-लिखी थी। सुन्दर थी। पाण्डेजो सरयूपारी ब्राह्मण थे। दो पीढ़ी पहले वे सरयू छोड़कर मध्यप्रदेश में आ बसे थे। यहाँ की रोटी खायी थी। पाण्डेजी रिटायर हो चुके थे। सुशीला से छोटा एक लड़का था। उन्हें लड़की की शादी की बड़ी चिन्ता थी। वे वर तलाशने उत्तरप्रदेश के चक्कर लगाते थे। वहाँ के शुद्ध सरयूपारी ब्राह्मण आम बाजार-भाव से तो लड़के की कीमत मांगते ही थे, इनके अशुद्ध होने का दण्ड पाँच-छह हजार और मांगते थे। सुशीला एक कायस्थ इन्जीनियर के साथ भागकर बम्बई चली गयी। बम्बई में इंजीनियर के बहिन-बहनोई थे। वे उनके यहाँ ठहरे। कोर्ट में शादी हो गयी। कुछ दिन बाद पाण्डेजी को सुशीला की चि_ी मिली। लिखा या -पूज्य बाबूजी, आप बहुत दुखी और नाराज होंगे।
जागो कहानी होनहार बिरवान के होत चिकने पात का बेहतरीन उदाहरण है-एक स्त्री अपने लड़के को एक ज्योतिषी के पास ले गयी और बोली, पण्डितजी, इस लड़के का भविष्य बतलाइए। आगे चलकर यह क्या होगा? ज्योतिषी ने कहा, माता, तू इसके कुछ लक्षण बता। इसमें तूने क्या विशेष बात देखी?
स्त्री ने कहा, यह रात को एकाएक चिल्ला पड़ता है- जागो ! जागो ! आगे बढ़ो ! आगे बढ़ो ! है? ज्योतिषी ने पूछा, अच्छा, जब यह ऐसा चिल्लाता है, तब स्वयं क्या करता स्त्री बोली, यह तो सोया रहता है-पत्थर-सरीखा।
अनुशासन कहानी के जरिए कथित ब्यूरोक्रेसी और उसका अपने अधिनस्थों के आचरण को उजागर करती है। एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था। मास्टर की पत्नी बीमार थी। अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का आर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उनका बंगला मास्टर के घर से दिखता था। वह उनके बंगले के सामने से निकलता तो उन्हें सादर नमस्ते कर लेता। मास्टर ने सोचा, साहब से कहूँ तो वे फिलहाल मेरा तबादला रोक देंगे । वह साहब के घर गया। बरामदे में बड़े साहव ने पूछा त्यों? क्या बात है? साहब, एक प्रार्थना है। बोलो । – मेरी पत्नी अस्पताल में भर्ती है।
अश्लील पुस्तकें परसाई की बहुचर्चित लघुकथा है। जिसके जरिए समाज में कथित अश्लीलता का विरोध करने वालों की मनोवृत्ति का बखान करते हुए परसाई कहते हैं कि अश्लील पुस्तकें कभी नहीं जलाई गई। वे अब अधिक व्यवस्थित रुप से पढ़ी जाती है।
कोलॉज की अंतिम कथा एक वैष्णव कथा थी जो शासन तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार,उसे दबाने के लिए आग लगाने की घटना, अपने भ्रष्टाचार गलत कामों को छिपाने के लिए भगवान का सहारा लेने की कथा है। कुछ चुटीले संवाद-यह कहानी मैंने वैष्णवों के लिए लिखी है। मगर इसके पहले मैं वैष्णवों की एक पुरानी कथा सुनाना चाहता हूं। यह पुरानी कथा पोथी से लेकर भजन तक में पाई जाती है।
एक दिन एक हाथी पानी पीने नदी में घुसा। वहां एक मगर ने उसका पांव पकड़ लिया। बड़ी देर तक दोनों में लड़ाई होती रही और हाथी हार गया। मगर उसे निगलने की तैयारी कर रहा था कि हाथी ने भगवान को पुकारा। उसकी करुण पुकार सुनकर भगवान पैदल ही भागे आए। उन्होंने मगर को मारा और हाथी का उद्धार किया। वैष्णव-भजनावली में इस घटना को स्थान मिला।
अब वैष्णवों के लिए मेरी कहानी शुरू होती है। एक दिन एक शहर के अखबार में खबर छपी। पिछली रात अमुक विभाग के दफ्तर में अचानक आग लग गई। (दफ्तर का नाम नहीं बता रहा हूं, क्योंकि इससे नए सिरे से जांच शुरू हो जाएगी। दफ्तर में रखे हुए रजिस्टर, फाइलें और दूसरे कागज एक दिन उस दफ्तर के बाबू… (बाबू का नाम नहीं खोलूंगा, क्योंकि जांच फिर शुरू हो जाएगी) ने बबुआइन से कहा, बुरे फंस गए। लाखों का गोलमाल है।
एक भक्तिन ने पति के सारे डिपार्टमेंट को बचा लिया। पुलिस पता लगाते-लगाते हार गई, पर आग का कारण ज्ञात नहीं हो सका।
लगे भी कैसे ? वह आग तो दैवी चमत्कार थी। मनुष्य की क्या औकात कि दैवीलीला को समझे!
यह कथा सत्य है और वैष्णवों के लाभार्थ मैंने कही है। कथा से दो शिक्षाएं मिलती हैं । 1. वैष्णव बेखटके गबन कर सकता है, चोरी कर सकता है, काला पैसा जमा कर सकता है। 2. किसी दफ्तर में आग लग जाए तो शासन को उसकी जांच की कोशिश नहीं करनी चाहिए। विश्वास कर लेना चाहिए कि आग दैवी इच्छा से लगी है। दैवी इच्छा में मनुष्य को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
आज का कार्यक्रम
कार्यक्रम के अंतिम दिन 24 अगस्त को अग्रज नाट्य दल, बिलासपुर द्वारा प्रेमियों की वापसी की प्रस्तुति दी जाएगी। जिसके निर्देशक सुनील चिपड़े हैं। कलाकारों में विक्रम सिंह, आकांक्षा बाजपेई, अरुण भागे, प्रियंका हर्षल, मनीष सोनवानी, राजेश्वरी राजपूत, ऐश्वर्य लक्ष्मी बाजपेई, हर्षल नागदेवते, स्वप्निल तावड़कर, क्षितिज महोबिया रहेंगे। बैक स्टेज : चंपा भट्टाचार्य, कुणाल भागे, सुनील।