:राजकुमार मल:
भाटापारा- 1800 से 2000 रुपए किलो। और तेज हो सकती है चिरौंजी की कीमत क्योंकि चार के वृक्ष तेजी से खत्म हो रहे हैं। पीछे वह मखाना भी नहीं है, जिसकी खेती का रकबा दिनों-दिन कम हो रहा है। 1100 से 1800 रुपए किलो जैसी कीमत उपभोक्ताओं को ही नहीं, खुदरा बाजार को भी हैरान कर रही है।
सूखे मेवों में चिरौंजी, मखाना, अखरोट और अंजीर में आ रही गर्मी के बाद उपभोक्ता मांग में अब खरीदी की मात्रा कम होने की खबर है। यह देखकर खुदरा बाजार के भविष्य को देखते हुए सतर्कता के साथ ऑर्डर दे रहा है। यह सावधानी चिरौंजी के साथ मखाना में ज्यादा देखी जा रही है।
घट रहा रुझान, कट रहे वृक्ष
बिहार और नेपाल की सीमा से लगे भारतीय गांव। यहां के तालाबों में मखाने की खेती होती है। इस बरस मखाना की खेती का रकबा बेहद कम हुआ है क्योंकि नई पीढ़ी मेहनत भरी मखाना की खेती से पीछे हट रही है। खासकर बोनी में जो मेहनत लगती है, उसकी तुलना में लाभ का प्रतिशत काफी कम होता है। पूरे साल मांग में रहती है, चिरौंजी लेकिन वनों के घटते क्षेत्रफल में चिरौंजी के वृक्ष भी आ गए हैं। इसलिए चार और चिरौंजी की फसल घटते क्रम पर है। कीमत की बात करें, तो यह 1800 से 2000 रुपए किलो पर मजबूत है। जबकि 1100 से 1800 रुपए किलो जैसी कीमत पर मखाना सूखे मेवों में दूसरे नंबर पर महंगा मेवा है।
और तेज होंगे यह दोनों
800 से 1800 रुपए किलो की कीमत के साथ अंजीर ने तेजी के संकेत दिए हुए हैं। अखरोट कीमत के मामले में चौथा ऐसा मेवा है, जिसमें प्रति किलो भाव 600 से 1000 रुपए बोले जा रहे हैं। मखाना और चिरौंजी की तुलना में भले ही इसमें मांग कम निकलती है लेकिन शादी- ब्याह और अन्य घरेलू आयोजनों में मौजूदगी अनिवार्य मानी जाती है। इसके बावजूद कीमत में तेजी की आशंका प्रबल है।
सतर्क खरीदी
आ रही गर्मी और संभावित तेजी की आशंका के बाद खुदरा मांग में कमी आती देखकर अब रिटेल काउंटर चिरौंजी, मखाना, अंजीर और अखरोट की खरीदी को लेकर बेहद सतर्क हैं। भंडारण उतना ही किया जा रहा है, जितनी रोजाना की मांग है। ऐसी ही रणनीति होलसेल मार्केट ने भी बनाई हुई है। यानी चिरौंजी, मखाना, अंजीर और अखरोट को लेकर होलसेल से लेकर उपभोक्ता तक हर कोई हलाकान है।