राजकुमार मल, भाटापारा- नागर मोथा। एकमात्र ऐसा खरपतवार है जिसमें अत्यधिक वृद्धि की ताकत होती है। इसके ही दम पर यह फसलोत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। प्रारंभिक अनुसंधान में इसमें कई ऐसे औषधिय तत्वों का होना पाया गया है, जिसकी मदद से त्वचा रोग और मधुमेह को काबू में रखा जा सकता है।
कृषि वानिकी वैज्ञानिकों का ध्यान पहली बार एक ऐसे खरपतवार ने आकर्षित किया है, जिसे नागर मोथा के नाम से जाना जाता है। अत्यधिक बढ़वार और खतरनाक नागर मोथा को नियंत्रित तरीके से उगाने का प्रयास इसलिए संभव होने जा रहा है क्योंकि इसमें ऐसे मेडिशनल प्रॉपर्टीज मिले हैं, जो किसानों की आय बढ़ा सकते हैं।
इसलिए खतरनाक
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नागर मोथा। नटग्रास या मूथा घास जैसे नाम से ही पहचाना जाता है। अपने प्रदेश के हर गांव में मिल जाता है यह खरपतवार। खतरनाक इसलिए क्योंकि सबसे तेज होती हैं इसकी बढ़वार। यह क्षमता कई फसलों के उत्पादन को बेतरह प्रभावित करने वाली मानी गई है। बचाव के उपाय केवल खरपतवारनाशक के दवाओं का छिड़काव ही है। इसके बावजूद कंद नष्ट नहीं होते, जिसकी वजह से यह फिर से तैयार हो जाते हैं।
कृषि वानिकी में अहम
नागर मोथा का कंद मिट्टी में जैविक तत्वों की मात्रा बढ़ाता हैं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। मिट्टी में होने वाले अपघटन को तीव्रता से रोकता है। सूखारोधी गुण का होना अहम है क्योंकि अल्प वर्षा वाले क्षेत्र की मिट्टी में नमी की मानक मात्रा बनाए रखने में मदद करता है यह गुण। इसके अलावा नागर मोथा पारिस्थितिकी संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

मिले यह मेडिशनल प्रॉपर्टीज
आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा प्रजातियों के लिए जरूरी एंटीऑक्सीडेंट, एंटीबैक्टीरियल एवं एंटी इन्फ्लेमेंटरी जैसे मेडिशनल प्रॉपर्टीज अहम हैं। यह प्रॉपर्टीज नागर मोथा के कंद में होने का खुलासा इस प्रारंभिक अनुसंधान में हुआ है। इन तत्वों की मदद से अपच और दस्त जैसी समस्या दूर की जा सकती है। साथ ही फंगस और जलन जैसी दिक्कत से छुटकारा पाया जा सकता है।
अनुसंधान व प्रबंधन रणनीति आवश्यक
नागरमोथा को पूरी तरह से हानिकारक खरपतवार के रूप में देखने की बजाय, इसके व्यावसायिक और औषधीय महत्व को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान और प्रबंधन रणनीतियां विकसित करनी चाहिए। यदि इसे नियंत्रित रूप से उगाया जाए, तो यह किसानों के लिए एक लाभदायक फसल साबित हो सकता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर