सुभाष मिश्र
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि ना खाऊँगा, ना खाने दूँगा। भाजपा ने बढ़चढ़ कर सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रणाली देने का आश्वासन दिया था। अन्ना आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी ने भी सुचिता , सादगी और कट्टर ईमानदारी की बात की। कांग्रेस लंबे समय से सत्ता में रही इसलिए उसके नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों की लंबी फ़ेहरिस्त है। ऐसी ही बातें बहुत सारी रीजनल पार्टियों ने भी की। कहा जाता है की कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है सामाजिक सौहार्द्रता, राष्ट्रीय एकता के मामले में भारत एक हो ना हो पर सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामले में भारत एक है। मध्यप्रदेश में पिछले 18 साल से भाजपा की सरकार है। इस सरकार की चांवल की हांडी के कुछ दाने कांस्टेबल सौरभ शर्मा के भ्रष्टाचार के रूप में सामने आये तो लोग भौंचक रह गये। यहां सवाल यह है कि क्या कोई कांस्टेबल अपने स्तर पर इतना पैसा कमा सकता है। बात मध्यप्रदेश की हो या छत्तीसगढ़ की जब किसी छोटे कर्मचारी, छोटे नेता और बिचौलियों के पास आय से बहुत अधिक संपत्ति मिलती है तो सीधे-सीधे इसमें बड़े लोगों की संलिप्तता दिखती है किंतु हल्ला कांस्टेबल, पटवारी, बीआरसी, सब-इंजीनियर के नाम का ज़्यादा मचता है। चाहे मध्यप्रदेश का आरटीओ घोटाला हो या छत्तीसगढ़ का महादेव एप घोटाला। दोनों ही मामलों में बड़े-बड़े अफ़सर, नेताओं की भूमिका संदिग्ध है पर कार्यवाही के नाम पर कुछ छोटों को ही घेरा जा रहा है। यह बताता है कि भ्रष्टाचार की जड़ें नीचे से कहीं ज़्यादा उपर मज़बूत हैं।
सरकारी तंत्र और उसके प्रभा मंडल के इर्द-गिर्द मंडराने और उससे प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाभ और सुविधाएं हासिल करने वाले जलवा चमकाने वाले जिनमें संबंधित अधिकारी-कर्मचारी के बीवी बच्चे, रिश्तेदार और आसपास के बहुत सारे लोग जानते हैं कि सरकार में कमाई वाला विभाग कौन सा है। उप्र की अकूत कमाई की पोस्टिंग कौन सी है। यही वजह है कि बहुत सारे अधिकारी है, नौकरशाह सत्ता दल के नेताओं, लाईजनरों के आगे पीछे घूमते हैं ताकि उनकी पोस्टिंग ऐसी जगह हो जहां से उनको ऊपर की कमाई हो,उनका जलवा खींचे।
आम बोलचाल में हमे जिसे आरटीओ बोलते हैं उस आरटीओ आफिस में, चेकपोस्ट में पोस्टिंग के लिए बहुत सारे सरकारी कर्मचारी, अधिकारी लालायित रहते हैं। बात चाहे वह मध्य प्रदेश की हो या छत्तीसगढ़ की यहां बहुत सारे लोग डेपुटेशन पर जाना चाहते हैं पुलिस के लोग भी जाते हैं, प्रशासनिक अधिकारी भी। चूँकि हमारे देश में सब जगह रेल नहीं है तो सड़क परिवहन है वही एक बड़ा माध्यम है। सड़क परिवहन के माध्यम से इतनी गाडिय़ां निकलती है उन गाडिय़ों को अलग-अलग तरीके से चेक करना उनका लाइसेंस देना और बहुत सारी चीजों में परिवहन विभाग की भूमिका होती है और वहां पर जो लोग काम करते हैं तो वह सब जानते हैं कि जितने इसके चेकपोस्ट होते हैं वहां से बड़ी कमाई होती है। प्रसंगवश यहां बात हो रही है मध्य प्रदेश में अनुकंपा नियुक्ति से बने एक आरटीओ कांस्टेबल सौरभ शर्मा की जिसकी कमाई देखकर लोग भौचक हो गए हैं। सौरभ शर्मा ने कुछ समय अनुकंपा से मिली नौकरी की,उसके बाद उसने वीआरएस ले लिया। उसके बाद बहुत सारे निर्माण कार्यों में, धंधों में लग गया और नेता, अधिकारी के गठजोड़ से उसने कम समय में अनाप-शनाप संपत्ति अर्जित कर ली।
मध्यप्रदेश से अलग होकर बने छत्तीसगढ़ की कहानी भी कुछ इसी तरह की है।
यहाँ भी मध्यप्रदेश के व्यापम की तरह पीएससी का घोटाला उजागर हुआ है। परंपरागत रूप से कमाई वाले विभागों में शुमार पीडब्ल्यूडी, पीएचई, इरिगेशन, हेल्थ के अलावा अब शिक्षा , जल जीवन मिशन, पंचायत, ग्रामीण विकास, टाऊन प्लानिंग विभाग भी पीछे नहीं है। हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के एक आरटीओ कांस्टेबल की। छत्तीसगढ़ में भी महादेव एप भ्रष्टाचार में भी एक कांस्टेबल की अहम भूमिका रही है, जो अभी जेल में है। दोनों ही राज्य के बहुत से अधिकारी भी जेल की सलाख़ों के पीछे है। राजनेताओं के इशारे पर नियम क़ानून को बलायताक रखकर काम करने वाले लोगों की वजह से बहुत से लोग जो अपना काम नियम प्रक्रिया से करते हैं, हाशिये पर डाल दिये जाते हैं।
मध्य प्रदेश में परिवहन विभाग के पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति अर्जित करने के गंभीर आरोप लगे हैं। उनके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग और लोकायुक्त जैसी एजेंसियों ने संयुक्त रूप से कार्रवाई की है। ईडी की जांच में सौरभ शर्मा और उनके सहयोगियों के पास लगभग 93 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का खुलासा हुआ है, जिसमें भोपाल में 54 किलो सोना, 200 किलो चांदी और 11 करोड़ रुपये नकद शामिल है। जांच में सौरभ शर्मा के रिश्तेदारों, जैसे उनके मौसेरे जीजा और दामाद की भी संलिप्तता पाई गई है, जिन्होंने सोने और नकदी को छिपाने में मदद की।
सौरभ शर्मा के मामले की जांच के दौरान लोकायुक्त विभाग में चार डीएसपी, छह निरीक्षक और 24 कॉन्स्टेबल का तबादला किया गया, जिससे जांच की पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके। ईडी ने ग्वालियर में पूर्व सीनियर सब-रजिस्ट्रार केके अरोरा के निवास पर छापा मारा, जो सौरभ शर्मा के करीबी माने जाते हैं।
सौरभ शर्मा ने गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत याचिका दायर की है, लेकिन जांच एजेंसियां उनके खिलाफ साक्ष्य एकत्रित कर रही है। इस बीच यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि घोटाले में शमिल बहुत से पॉवरफूल लोग अपना नाम उजागर होने की आशंका में सौरभ शर्मा की हत्या भी करवा सकते हैं।
कांग्रेस नेता जीतू पटवारी ने सौरभ शर्मा की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की है और उनकी हत्या की आशंका जताई है, जिससे कई उच्च पदस्थ व्यक्तियों के नाम उजागर हो सकते हैं। हमारे पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार इतने गहरे से समाहित हो गया है कि कोई अब यह कल्पना भी नहीं कर सकते कि बिना कुछ लिए-दिए सरकारी तंत्र से कोई काम कराया जा सकता है जबकि हकीकत यह है कि इस सिस्टम में कुछ थोड़े से लोग सौरभ शर्मा जैसे जुगाड़ु हैं जो सिस्टम का फ़ायदा उठाकर नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों के हितों के संरक्षण के लिए तत्पर रहकर कम समय में बहुत कुछ हासिल करना चाहते हैं। यह मामला मध्य प्रदेश में सरकारी अधिकारियों के बीच व्याप्त भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर करता है। ऐसे ही मामले समय-समय पर अलग-अलग राज्यों, सरकारों में उजागर होते रहते हैं।