Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली “ऋतु करिधाल” के बारे मे कितना जानते है आप

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली "ऋतु करिधाल" के बारे मे कितना जानते है आप

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली “ऋतु करिधाल” के बारे मे कितना जानते है आप

 

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान 3 मिशन आज सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया है . चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने के लिए इसरो की जो टीम दिनरात काम कर रही है उनमें ऋतु करिधाल भी शामिल हैं. ऋतु लांचिंग टीम का अहम हिस्सा हैं और उन पर बड़ी जिम्मेदारी है. आइए जानते हैं कौन हैं ऋतु करिधाल?

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली "ऋतु करिधाल" के बारे मे कितना जानते है आप
Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली “ऋतु करिधाल” के बारे मे कितना जानते है आप

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Mission Chandrayaan-3 : ऋतु करिधाल लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा हैं. वह लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली हैं. ऋतु की स्कूली शिक्षा नवयुग कन्या महाविद्यालय लखनऊ से हुई. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में 1991 में बीएससी भौतिक विज्ञान से किया. 1996 में भौतिक विज्ञान में डिग्री ली.

उनकी बचपन से ही स्पेस फिजिक्स में रचि थी. वह भौतिक विज्ञान से पीएचडी करने के लिए दाखिला लिया लेकिन 6 महीने के अंदर 1997 में उनक चयन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान में हो गया. इसरो में चयन के बाद वह पीएचडी पूरी नहीं कर पाईं.

इसरो ने चंद्रयान-3 लैंडिंग की जिम्मेदारी रितु के हाथों में दी हैं. ऋतु के निर्देशन में ही बाकी अन्य लोग इस मिशन को कामयाब बनाने में लगे हैं. वह मिशन की डायरेक्टर के रूप में अपनी भूमिका निभा रही हैं. ऋतु मंगलयान मिशन की ऑपरेशन डिप्टी डायरेक्टर रह चुकी हैं. ऋतु करिधाल इसरो में कई अन्य भूमिका निभा चुकी हैं.

2007 में ऋतु को यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड भी मिल चुका है. ऋतु को डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम युवा वैज्ञानिक पुरस्कार, मार्स आर्बिट्रेटर मिशन के लिए इसरो टीम पुरस्कार, एएसआई टीम पुस्कार, सोसाइटी ऑफ इंडियन एरोस्पेस टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्रीज द्वारा एरोस्पेस महिला पुरस्कार भी मिल भी चुका है.

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली "ऋतु करिधाल" के बारे मे कितना जानते है आप
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बता दें कि पूरा देश आज भारत के तीसरे चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-3’ के सफल प्रक्षेपण का बेसब्री से इंतजार कर रहा है. चंद्रयान कार्यक्रम की कल्पना भारत सरकार द्वारा की गई थी और औपचारिक रूप से 15 अगस्त 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा इसकी घोषणा की गई थी.

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इसके बाद, वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत तब रंग लाई जब 22 अक्टूबर, 2008 को इसरो के विश्वसनीय पीएसएलवी-सी 11 रॉकेट के जरिए पहले मिशन ‘चंद्रयान-1’ का प्रक्षेपण हुआ.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के अनुसार, पीएसएलवी-सी11, पीएसएलवी के मानक विन्यास का एक अपडेट संस्करण था. प्रक्षेपण के समय 320 टन वजनी इस वाहन में उच्च उपकरण क्षमता प्राप्त करने के लिए बड़ी ‘स्ट्रैप-ऑन मोटर्स’ का उपयोग किया गया था. इसमें भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित

11 वैज्ञानिक उपकरण थे. तमिलनाडु से संबंध रखने वाले प्रसिद्ध वैज्ञानिक मयिलसामी अन्नादुरई ने ‘चंद्रयान-1’ मिशन के निदेशक के रूप में इस परियोजना का नेतृत्व किया था. अंतरिक्ष यान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज विज्ञान और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण के लिए चंद्र सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा

Mission Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 अभियान को सफल बनाने मे अहम भूमिका निभाने वाली "ऋतु करिधाल" के बारे मे कितना जानते है आप
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था. मिशन ने जब सभी वांछित उद्देश्य हासिल कर लिए, तो प्रक्षेपण के कुछ महीनों बाद मई 2009 में अंतरिक्ष यान की कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया.

उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक चक्कर लगाए, जो इसरो टीम की अपेक्षा से अधिक थे. मिशन अंततः समाप्त हुआ और अंतरिक्ष एजेंसी के वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि 29 अगस्त, 2009 को अंतरिक्ष यान से संपर्क टूट गया. विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम ने पीएसएलवी-सी11 को डिजाइन और विकसित

किया था. इस सफलता से उत्साहित होकर, इसरो ने एक जटिल मिशन के रूप में ‘चंद्रयान-2’ की कल्पना की थी. यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जांच के लिए एक ‘ऑर्बिटर’, ‘लैंडर’ और ‘रोवर’ ले गया था. चंद्रयान-2 मिशन 22 जुलाई, 2019 को उड़ान भरने के बाद उसी वर्ष 20 अगस्त को सफलतापूर्वक चंद्र कक्षा में स्थापित कर दिया गया था.

अंतरिक्ष यान का हर कदम सटीक था और चंद्रमा की सतह पर उतरने की तैयारी में ‘लैंडर’ सफलतापूर्वक ‘ऑर्बिटर’ से अलग हो गया. एक सौ किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा का चक्कर लगाने के बाद, ‘लैंडर’ का चंद्र सतह की ओर आना योजना के अनुसार था और 2.1 किमी की ऊंचाई तक यह सामान्य था. हालाँकि, मिशन अचानक तब समाप्त

हो गया जब वैज्ञानिकों का ‘विक्रम’ से संपर्क टूट गया. ‘विक्रम’ का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक दिवंगत विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया था. ‘चंद्रयान-2’ मिशन चंद्रमा की सतह पर वांछित ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने में विफल रहा, जिससे इसरो टीम को काफी दुख हुआ. उस समय वैज्ञानिक उपलब्धि को देखने के लिए इसरो मुख्यालय

में मौजूद रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को तत्कालीन इसरो प्रमुख के. सिवन को सांत्वना देते देखा गया जो भावुक हो गए थे और वे तस्वीरें आज भी लोगों की यादों में ताजा हैं. ‘चंद्रयान-2’ मिशन का उद्देश्य स्थलाकृति, भूकंप विवरण, खनिज पहचान, सतह की रासायनिक संरचना और ऊपरी मिट्टी की तापीय-भौतिक विशेषताओं के विस्तृत अध्ययन

के माध्यम से चंद्र वैज्ञानिक ज्ञान का विस्तार करना था, जिससे चंद्रमा की उत्पत्ति और विकास की नयी समझ पैदा हो सके.

शुक्रवार को चंद्र यात्रा पर रवाना होने वाला तीसरा मिशन पूर्ववर्ती ‘चंद्रयान-2’ का अनुवर्ती मिशन है जिसका लक्ष्य चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में महारत हासिल करना है. चंद्रमा की सतह पर सफल ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ से भारत ऐसी उपलब्धि हासिल कर चुके अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ जैसे देशों के क्लब में शामिल हो जाएगा.

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