:मनीषा तिवारी:
आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व जब देश में बड़ी संख्या में महिलाएं घर की चारदीवारी तक ही सीमित थी और कार्यस्थलों पर उनकी मौजूदगी बहुत कम दिखाई देती थी, तब राजस्थान के भीलवाड़ा जिले की एक साहसी सामुदायिक कार्यकर्ता भंवरी देवी’ ने ऐसा साहस दिखाया जिसने भारत की हर कार्यरत महिला के लिए उनके कार्यस्थल पर सुरक्षा की नयी किन्तु महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी भंवरी देवी के साहस ने और महिला सुरक्षा के सामाजिक पैरवीकारों के संघर्ष ने देश की न्याय व्यवस्था को झकझोर कर रख दिया और जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1997 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा के निमित्त ‘विशाखा दिशानिर्देश जारी किए। यह दिशानिर्देश कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न के व्यवहारों की पहचान, रोकथाम और ऐसा करने वालों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही के प्रथम औपचारिक और कानूनी आधार बने। वर्ष 2013 मे भारत शासन से इस दिशानिर्देशको विधा रूप देते हुए कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम 2013 लागू किया जिसे आमतौर पर पोश ऐक्ट (POSH ACT) के रूप में जाना जाता है।

पिछले कुछ समय से कार्यस्थल पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ने के बावजूद, देश के विभिन्न राज्यों से यौन उत्पीड़न की जनक घटनाएं सामने आती रही हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के सतारा जिले के शासकीय अस्पताल में कार्यरत एक महिला चिकित्सक ने लगातार हो रहे उत्पीड़न से परेशान होकर अपनी जान तक दे दी। यह घटना न केवल दुखद है यरिक समाज और संस्थागत व्यवस्थाओं के लिए एक गंभीर चेतावनी भी है राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट बताती है कि देश में वर्ष 2018 से 2022 के दौरान कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के औसतन 400 मामले प्रतिवर्ष दर्ज हुए हैं।
यहाँ एक तथ्य विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो में कार्यस्थल पर होने वाले यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों के लिए कोई अलग से निर्दिष्ट श्रेणी उपलब्ध नहीं है। परिणामस्वरूप ऐसी घटनाओं के संबंध में आनेवाली शिकायतों का स्वतंत्र रूप से रेकॉर्ड संकलित नहीं हो पाता और न ही इससे संबंधित डाटा सार्वजनिक रूप से स्पष्ट रूप में उपलब्ध हो पाता है। इस प्रकार के वर्गीकृत रिपोर्टिग का अभाव, कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े वास्तविक परिदृश्य को समझने का पूरा अवसर नहीं देता। इसके अतिरिक्त हम इस तथ्य से भी इंकार नहीं कर सकते कि कई ऐसी घटनायें डर शर्म, सामाजिक दबाव और शिकायत करने की कानूनी प्रक्रिया की अनभिज्ञता के कारण भी सामने नहीं आ पाती। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की वास्तविक घटनाओ की संख्या NCRB की रिपोर्ट से कहीं ज्यादा है।
कानून क्या कहता है ?
इस अधिनियम के अनुसार, किसी भी कार्यस्थल पर या कार्य के लिए किसी अन्य स्थान पर गयी महिला के साथ किसी व्यक्ति द्वारा चहे वह सहकर्मी हो, वरिष्ठ अधिकारी हो या कार्य से जुड़े उद्देश्य से कार्यस्थल (दफ्तर या दफ्तर के अतिरिक्त कोई स्वान) पर आया कोई अन्य व्यक्ति हो के द्वारा यदि शारीरिक, मौखिक व इशारों के माध्यम से अवांछित अनुचित और आपतिजनक व्यवहार किया जाता है, तो यह यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।
शिकायत कहाँ करें ?
किसी संस्थान में कम से कम 10 या इससे अधिक कर्मचारी काम करते हो वहां नियोजक द्वारा एक आंतरिक समिति का गठन अनिवार्य है, जिसकी अध्यक्षता नियोजन कार्यालय के किसी वरिष्ठ महिला सदस्य द्वारा की जाती है। पीड़ित महिला अपनी लिखित शिकायत आंतरिक समिति को देती है। यदि महिला असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है जैसे किसी खेत दुकान पर व निर्माण स्थल पर तो यह स्थानीय समिति में शिकायत देगी जिसका गठन कलेक्टर या मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में किया जाता है परंतु स्थानीय स्तर पर ऐसी शिकायतों को लेने एवं अग्रिम कार्यवाही के लिए सरपंच पार्षद, ब्लॉक अधिकारी आदि नामित किए जाते हैं।
शिकायत दर्ज करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
• शिकायत लिखित रूप मे POSH ACT 2013 का उल्लेख करते हुए दें और शिकायत दर्ज किए जाने की पावती र्स, अथवा डाक से रजिस्टरी भेजें.
घटना की तिथि से तीन माह के भीतर शिकायत दें, हालांकि सक्षम कारणों के होते हुए शिकायत में देरी की छूट दी जा सकती है।
यदि पीड़ित स्वयं शिकायत ना कर पाये तो उसकी तरफ से उसके सगे-संबंधी भी शिकायत दे सकते हैं।
यौन उत्पीड़न के संकेत
• अनुचित स्पर्श
• यौन संकेतों वाली टिप्पणियां • यौन / आपत्तिजनक प्रस्ताव • अश्लील सामग्री दिखाना
• डराना धमकाना, मानसिक दवाव बनाना आदि।
समिति शिकायत मिलने पर क्या करती है ?
शिकायत मिलने के 90 दिनों के भीतर समिति जांच पूर्ण करती है;
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• यदि पीड़िता चाहती है तो समिति दोनों पक्षों के बीच आपसी समझौता (बिना किसी लेन-देन के) भी करवा सकती है
• जांच की गोपनियता, महिला की गरिमा और निष्पक्ष प्रक्रिया बनाए रखना समिति की प्रमुख जिम्मेदारी है
• पीड़िता की शिकायत जांच के पश्चात सच पाये जाने पर नियोजक संबन्धित पुलिस को दोषी के विरुद्ध अपराध दर्ज किए जाने की सिफारिश करता है.
कार्यस्थल पर महिलाओं की सुरक्षा किसी एक व्यक्ति या संस्था का दायित्व नहीं, बल्कि एक संवेदनशील, सुरक्षित और सम्मानजनक कार्यसंस्कृति की बहुआयामी जिम्मेदारी है, परंतु व्यवहार में ऐसा नहीं दिखाई पड़ता। आज भी अनेक स्त्रियों भंवरी देवी के जन्मे वहस को जीने की कोशिश करती हैं परंतु उनके रास्ते में डर समाज की नजरें,
संस्थागत उदासीनता और महिला पर ही उठने वाले सवाल जैसी चुनौतियाँ अक्सर खड़ी मिलती है। भंवरी देवी होना सामाजिक अस्वीकृति के विरुद्ध जिला खड़े होने का साहस मांगता है, व्यवस्था से संघर्ष करने की ऊर्जा मांगता है और सबसे बढ़कर सच बोलने की कीमत चुकाने का साहस मांगता है।
लेखिका निबंधकार और स्त्रीधारा की संयोजिका हैं. स्त्रीधारा लेख के लिए इस नंबर 9109607787 पर लेख वाट्सएप करें.