Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – कैसी होगी इस बार गाँव की सरकार

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनने के बाद शहर और गांव की सरकार बनाने की क़वायद भी पूरी हो गई है। शहर के सभी दस नगर निगम, अधिकांश नगर पालिका, नगर पंचायत में भाजपा के चुने हुए जनप्रतिनिधि क़ाबिज़ हो गये हैं। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवहार के अंतर्गत तीन चरण के चुनाव सम्पन्न हो गये, दो चरण के परिणाम भी आ गये, तीसरे चरण के परिणाम आज यानी 25 फऱवरी को आ जाएंगे।
पंचायती राज अधिनियम 1992 के अंतर्गत पंचायतों को सशक्त और स्वावलंबी बनाने के उद्देश्य से पूरे देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू करके पंचायतों को अधिकार सम्पन्न बनाते हुए उन्हें बहुत सारे अधिकार दिये गये। कुछ राज्यों ने अधिनियम की भावना के अनुरूप काम किया और कुछ राज्यों में पंचायतों को कलेक्टर के अधीन बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से इसका माखौल उड़ाया। यदि हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो पिछली बार की तुलना में इस बार यहां की पंचायती राज व्यवस्था थोड़ी बदली हुई होगी ।
छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत कार्यान्वित की जा रही है। यह गांधीजी के ग्राम स्वराज पर आधारित ऐसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है जिसके ज़रियेगांवों का विकास स्थानीय स्तर पर हो सके।
छत्तीसगढ़ में पंचायती राज व्यवस्था त्रिस्तरीय है। जिसमें ग्राम पंचायत (गांव स्तर), जनपद पंचायत (ब्लॉक स्तर) जिला पंचायत (जिला स्तर ) शामिल है। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के अंतर्गत पंचायतों की शक्तियांऔर जिम्मेदारियां तय की गई हैं उनमें ग्रामीण विकास योजनाओं का क्रियान्वयन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल और सफाई व्यवस्था की देखरेख, कृषि और सिंचाई से संबंधित योजनाओं का संचालन, सड़क, बिजली और अन्य बुनियादी ढांचे का निर्माण शामिल है। पंचायती राज व्यवस्था का उद्देश्य ग्रामीण जनता को आत्मनिर्भर बनाना और उनके सशक्तिकरण को बढ़ावा देना है।
इस बार पंचायती राज का पैटर्न थोडा बड़ा हुआ होगा। पहली बार छत्तीसगढ़ में आरक्षण के पैटर्न में बदलाव आया। 25 प्रतिशत ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग ) देने को अनिवार्यता थी, वह समाप्त हुई और आरक्षण की अपर लिमिट 50 प्रतिशत तक सीमित की गई। जब यह व्यवस्था लागू हुई तो ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के नेताओ ने काफी विवाद किया, विशेषकर के आदिवासी क्षेत्रों से ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग ) नेतृत्व 0 प्रतिशत समझा जाने लगा। किन्तु अब जब चुनाव परिणाम सामने आ गए हैं तो यह लग रहा है कि प्रदेश में पूर्व में जिस तरह से ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग ) का प्रतिनिधित्व था, वह यथावत बना हुआ है। क्योंकि प्रदेश में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) की संख्या अधिक है और वह चुन के आये हैं। पंचायती राज में महिलाओ को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। पिछले बार की तरह इस बार भी 50 प्रतिशत से अधिक 55 प्रतिशत तक चुन के आई है। इस बार पंचायतो को 15 वें वित्त आयोग की राशि मिलेगी। इसके अलावा 16वें वित्त आयोग का लाभ इस बार पंचायतों को मिलेगा। छोटी सी छोटी पंचायत को 7-8 लाख और बड़ी पंचायत को 35 से 40 लाख वित्त आयोग के जरिये मिलता है। इसके अलावा पंचायतों को समग्रता से मिलने वाली राशि का आंकलन करें तो छोटी पंचायतों को 25 लाख तथा बड़ी पंचायतों को 1 करोड़ तक मिल जाते हंै। जिन पंचायतों के पास रेत, गिट्टी, जैसी खनिज सम्पदा है उन्हें रायल्टी के रूप

में दो- तीन करोड़ रूपए तक प्राप्त होंगे।
इसके अलावा नगरीय क्षेत्र से लगी पंचायतों को भवन, कॉलोनी, फैक्टरी की ्रएनओसी देने के लिए भी काफी कुछ राशि मिलती है। इस बार के पंचायत चुनाव में यह साफ़ तौर पर देखा कि शहरों से लगी पंचायतों के उम्मीदवारों ने वैसा ही प्रचार किया और धुआंधार पैसा खर्च किया। जैसा कि विधानसभा चुनाव में होता है। चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए साड़ी, मिठाई, मुर्गा, शराब, नगद पैसे सब कुछ बांटे और तो और कईयों ने वोटरों का मन रखने के लिए गर्मी का मौसम लग जाने के बाद भी कंबल तक बंटवा दिया। वोटिंग के दूसरे चरण के बाद आबकारी विभाग ने बताया कि उसने फरवरी के पहले पखवाड़े में 33,874 लीटर देशी और विदेशी मदिरा जब्त की है, जिसकी कीमत 2.23 करोड़ रुपए है। ये केवल 7 जिलों के आंकड़े हंै जबकि छत्तीसगढ़ के कुल 33 जिलों में चुनाव हुए हैं। पूरे रिजल्ट के बाद शराब की खपत के आंकड़े बढ़ेंगे। पंच, सरपंच, जनपद और जिला पंचायत के पदाधिकारी खर्च किये गए पैसों की वसूली किस रफ़्तार से करते हैं, यह आने वाला समय बताएगा।
छत्तीसगढ़ के 21 जिले आदिवासी बाहुल्य हैं। छत्तीसगढ़ में और जिले के लिए पेसा कानून लागू है। 5वीं अनुसूची के अन्तर्गत पंचायतों को यहां बहुत सारे अधिकार दिए गए हैं क्योंकि छत्तीसगढ़ में आदिवासी मुख्यमंत्री के नेतृत्व में सरकार संचालित है ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज को वास्तविक हक़ मिलेगा।
छत्तीसगढ़ में पंचायत चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण में 50 ब्लॉक में 53 लाख से ज्यादा मतदाताओं के लिए 11,430 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। आखिरी राउंड की वोटिंग में 30 हजार 900 पंच, 3 हजार 802 सरपंच, 1 हजार 122 जनपद सदस्य और 143 जिला पंचायत सदस्य के पद के लिए मतदान हो रहा है। निर्वाचन आयोग से मिली जानकारी के मुताबिक, तीसरे चरण की वोटिंग में 26 लाख 37 हजार 306 पुरुष, 26 लाख 19 हजार महिला और 65 थर्ड जेंडर वोटर हैं। छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री विजय शर्मा ने 23 फरवरी को कहा कि पूर्ववर्ती गांव में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि यह गांव आजादी के बाद से अब तक किसी भी चुनाव का हिस्सा नहीं रहा। पूर्ववर्ती और केरलापेंदा सहित 10 गांव में पहली बार बना मतदान केंद्र बने हैं। हिड़मा जैसे कुख्यात नक्सली का घर होने के बावजूद इस गांव के लोग आजादी के बाद पहली बार अपने वोट के अधिकार का पूरे उत्साह से इस्तेमाल कर रहे हैं। पूर्ववर्ती गांव के ग्रामीणों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जो न केवल उनके लोकतांत्रिक अधिकार की विजय है, बल्कि यह नक्सलवाद के खिलाफ उनके संघर्ष का भी प्रतीक है। इस बार के पंचायती राज चुनाव के तीसरे और आखिरी चरण में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में हुए मतदान में काफी उत्साह देखा गया। इसे हम सरकार की मार्च 2026 में नक्सल समाप्ति की पहल के रूप में जनता की स्वीकार्यता के रूप में देख सकते हैं।
भूपेश बघेल की सरकार द्वारा गौठानो की व्यवस्था को मजबूत करते हुए कांजी हाउस की व्यवस्था को लगभग ठप्प कर दिया गया है। अब दोनों ही व्यवस्थाएं ठप्प हंै। ऐसे में जानवर खुलेआम सड़कों पर विचरण कर रहे हैं। सरकार चाहे तो कांजी हाउस की व्यवस्था को बेहतर तरीके से संचालित कर सकती है। पिछले पंचायती राज व्यवस्था से परे हटकर इस बार पंचायतों को उद्दयता के लिए प्रेरित किया जा रहा है। पंचायतें स्वयं के आय के स्त्रोत विकसित कर सृजन करें इसलिए केंद्र और राज्य सरकार की बहुत सारी योजनाएं हैं पंचायतों की सार्वजनिक संपत्तिया हंै जिसका लाभ उठाया जा सकता है ऐसा करने से उनकी सुरक्षा होगी और पंचायतो को आर्थिक लाभ भी होगा। मुंशी प्रेमचंद की कहानी पंच परमेश्वर की तरह यदि पंचायत प्रतिनिधि आचरण और न्याय करेंगे तभी छत्तीसगढ़ में सुशासन दिखेगा वरना सब धान 22 पसेरी ही है।

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