Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – क्या राजनीति में बढ़ते धनबल पर लगेगी रोक ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

चुनाव चंदा के इलेक्टोरल बांड के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने इलेक्शन कमीशन से 13 मार्च तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की जानकारी पब्लिश करने के लिए कहा है। इस दिन पता चलेगा कि किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया । भाजपा ने इस योजना से अधिकांश धन प्राप्त किया है, जबकि मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी सहित अन्य पार्टियों को कुल राशि का 10वां हिस्सा ही मिला है.
जब 2017 में जब इलेक्टोरल बान्ड को लागू किया जा रहा था तब इसके बारे में कहा गया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता लाया जा सकता है. लेकिन कुछ समय बाद ही इलेक्टोरल बॉन्ड विवादों के घेरे में आ गया, और कुछ नेता इसका विरोध करने लगे. और आखिरकार इस पर रोक लग ही गया, इधर केन्द्र सरकार का मानना है कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता के लिए चुनावी बॉन्ड जरूरी है. इससे काले धन पर रोक लगेगी.
आम चुनाव से ठीक पहले चुनावी बॉन्ड पर रोक लग गई है. ऐसे में चुनावी चंदे लेने के प्लान पर राजनीतिक दलों को झटका लगा है. राजनीतिक दलों को चंदे की समस्या से जूझना होगा. चुनाव में खर्च के लिए अन्य सोर्स पर बात करनी होगी. आगे चंदा कैसे लिया जाएगा, इसका विकल्प तलाशना होगा. चुनाव आयोग से राय-मशविरा करनी होगी. कोर्ट से भी विकल्प देने की मांग की जा सकती है.
इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता था. हाल ही में 2 जनवरी से 11 जनवरी तक चुनावी बॉन्ड के लिए विंडो खोला गया था. 11 जनवरी को विंडो बंद हो गया था. जो चंदा आया होगा, वो 15 दिन में इनकैश हो गया था. चुनावी बॉन्ड के लिए एक बार फिर विंडो खोली जानी थी. लेकिन कोर्ट के फैसले के चलते इसे टाल दिया था.
जिस तरह से देश की राजनीति में धनबल का वर्चस्व बढ़ा है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का दूरगामी परिणाम हो सकता है. चंदा देने के लिए इलेक्टोरल बांड अच्छा तरीका हो सकता है, लेकिन दानदाता की पहचान नहीं छुपाई जानी चाहिए देने और लेने वाले का नाम आम होना चाहिए जिससे वोटर्स को पता रहे कि किस पार्टी को कौन चंदा दे रहा है. अगर इस बात की जानकारी नहीं होगी तो इस बात का खतरा बना रहेगा गुप्त रूप से चंदा देकर कोई अपने हित में नीति बनवा सकता है. सरकार के काम काज को प्रभावित भी कर सकता है, ऐसे में सुचिता बनाए रखने के लिए भी फिलहाल जो व्यव्स्था इलेक्टोरल बांड के नाम से बपनी है समें बदलाव जरूरी है. फिर क सवाल ये भी है कि किसी राजनीतिक दल को इतनी राशि की जरूरत क्यों है, अगर हम राजनीति में इस तरह पुंजी को प्रवेश कराएंगे तो क्या सभी के लिए चुनावी राजनीति में बराबर संभावना मिलेगा. क्या आम आदमी जिसके पास उस तरह का संसाधन नहीं है वो धनबल का सामना कर सकेगा. जब चुनावी खर्चे को लेकर नियम हैं तो पार्टियों के लिए भी कुछ नियम बनाने होंगे. साथ ही इस बात की गुंजाइश हमेशा बनाकर रखनी होगी कि राजनीति में हर व्यक्ति के लिए संभावना है. तभी सही मायने में लोकतंत्र की जय होगी.

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