Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – ईवीएम का क्या कसूर

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

सुभाष मिश्रा

हमारे देश में जब भी चुनाव आता है ईवीएम को लेकर एक बहस जरूर छिड़ती है। आम आदमी पार्टी से लेकर कांग्रेस और अन्य राजनितिक दल समय-समय पर ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं। पश्चिम के कई देशों में आज भी पुराने तरीके से ही चुनाव प्रक्रिया संपन्न होती है। छत्तीसगढ़ सहित पांच राज्यों में करीब तीन महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव के दौरान भी कुछ लोगों द्वारा ईवीएम को कटघरे में खड़ा किया गया था।
वैसे तो चुनाव के मौसम में ईवीएम को लेकर तरह तरह की बातें शुरू हो जाती है। हल ही में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो 384 प्रत्याशी उतारने और ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की अपील की है। अभी चुनाव होना है तमाम सर्वे और अनुमान बता रहे हैं कि मोदी की अगुवाई वाली भाजपा की स्थिति मजबूत है। ऐसे में पहले ही ईवीएम को कटघेरे में खड़ा कर कांग्रेस क्या संदेश देना चाह रही है। भूपेश बघेल ने एक सभा में कार्यकर्ताओं से कहा कि ज्यादा से ज्यादा लोग नामांकन दाखिल करें, क्योंकि अगर 384 से ज्यादा उम्मीदवार एक सीट पर होंगे तो निर्वाचन आयोग को बैलेट पेपर से मतदान कराना होगा। उन्होंने कहा कि, इस बार लोकसभा चुनाव ईवीएम से नहीं होने देना चाहते हैं। बैलेट पेपर से चुनाव हुआ तो भाजपा की असलियत सामने आ जाएगी। हमसे कहा जाता है कि जब हार जाते हैं, तो ईवीएम पर सवाल उठाते हैं। सच्चाई ये है कि कांग्रेस का शुरू से स्टैंड रहा है कि बैलेट से चुनाव होना चाहिए, क्योंकि ईवीएम को हैक किया जा सकता है।
भूपेश बघेल के इस बयान के बाद सियासी घमासान मचा हुआ है। भाजपा इसके खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गई है। बीजेपी का आरोप है कि भूपेश ईवीएम के खिलाफ भडक़ा रहे हैं। कांग्रेस लगातार ईवीएम को लेकर सवाल खड़ा कर रही है। भारत जोड़ो यात्रा की समाप्ति के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि राजा की आत्मा ईवीएम में है। 3 महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद भी ईवीएम को दोषी ठहराया गया था। इसके पहले कांग्रेस के कई राष्ट्रीय नेताओं ने भी ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की सिफारिश की है। कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी समेत अन्य दलों के नेताओं ने भी ईवीएम को लेकर सवाल खड़े किए हैं, लेकिन ये अब तक किस ने साबित नहीं कर पाया है कि ईवीएम को कैसे हैक किया जा सकता है। लेकिन सवाल जरूर खड़े किए जा रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के साथ अलग-अलग हाईकोर्ट द्वारा इससे जुड़ी प्रक्रिया को बारीकी से कई बार जांचा जा चुका है। आयोग ने ऐसे ही एक सवाल में बताया है कि यह ईवीएम और वीवीपैट का निर्माण केंद्र सरकार से जुड़े उपक्रमों के जरिए सुरक्षित तरीके से किया जाता है। जहां किसी को आने-जाने की अनुमति नहीं रहती है। इसके साथ ही छेड़छाड़ से जुड़े एक और सवाल में आयोग ने बताया है कि ईवीएम में पडऩे वाले वोटों की मिलान की व्यवस्था में अब तक 38156 ईवीएम में पड़े 2.3 करोड़ वोटों का मिलान किया गया है, जिसमें यह पाया गया कि एक भी वोट बेकार नहीं हुआ। प्रत्येक वोट जिसे दिया गया था उस व्यक्ति को ही मिला था।
देश में प्रयोग के तौर पर पहली बार इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग 1982 में केरल ‘पारुर विधानसभा’ क्षेत्र में किया गया था। इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनावों में भारत में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का प्रयोग सीमित निर्वाचन क्षेत्रों में किया गया था, जबकि 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद से भारत में प्रत्येक लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान की प्रक्रिया पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन द्वारा ही संपन्न करायी जा रही है। ईवीएम का इस्तेमाल भारत के अलावा ब्राजील, फिलीपींस, बेल्जियम, एस्टोनिया, संयुक्त अरब अमीरात, वेनेजुएला, जॉर्डन, मालदीव, नामीबिया, नेपाल, भूटान, मिस्र में किया जा रहा है।
भारत में इस्तेमाल की जा रही ईवीएम में अधिकतम 2,000 वोट रिकॉर्ड किये जा सकते हैं। इन ईवीएम को सार्वजनिक क्षेत्र के दो उपक्रमों, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बैंगलोर और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के सहयोग से चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति द्वारा तैयार और डिजाइन किया गया है।
ईवीएम को चलाने के लिए बिजली की जरूरत भी नहीं पड़ती है क्योंकि इनमें पहले से ही बैटरी बैक-उप की व्यवस्था होती है। इसलिए इन मशीनों की मदद से उन इलाकों में भी चुनाव कराया जा सकता है जहाँ पर बिजली नहीं होती है। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र का आधार है। भारत ने संसदीय प्रणाली की सरकार की ब्रिटिश वेस्टमिन्सटर प्रणाली अपनाई है। देश में निर्वाचित राष्ट्रपति, निर्वाचित उपराष्ट्रपति, निर्वाचित संसद तथा प्रत्येक राज्य के लिए निर्वाचित राज्य विधानमण्डल है।
कम-से-कम 24 देश ऐसे हैं जहाँ किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग या इस तरह की अन्य प्रणाली को अपनाया गया है। इनमें एस्टोनिया जैसे छोटे देशों से लेकर सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका तक शामिल है। लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है जहाँ शत-प्रतिशत मतदान ईवीएम के माध्यम से होता है। जर्मनी जैसे कुछ देशों ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाई थी और बाद में मतपत्र प्रणाली पर लौट गए। किसी-न-किसी प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग प्रणाली अपनाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, ब्राजील, कनाडा, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्राँस, जर्मनी, भारत, आयरलैंड, इटली, कजिाखस्तान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, नॉर्वे, फिलिपींस, रोमानिया, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेनेडजुएला शामिल हैं। अमेरिका 241 साल पुराना लोकतंत्र है, लेकिन वहाँ अब भी कोई एक समान मतदान प्रणाली नहीं है। कई राज्य मतपत्रों का इस्तेमाल करते हैं तो कुछ वोटिंग मशीनों से चुनाव कराते हैं।
बैलट से चुनाव कराने के समर्थक कहते हैं कि इसमें आपत्ति क्यों है? दुनिया के सभी विकसित देशों में बैलट पेपर से चुनाव होते हैं, तो क्या वे पिछड़े और तकनीकी रूप से अक्षम हैं? लेकिन बात तकनीक की नहीं है, समय के पहिये को दो दशक पहले की तरफ घुमाने से कोई लाभ होने वाला नहीं है। आज के 18-20 वर्ष के अधिकांश युवा मतदाताओं ने तो बैलट पेपर देखा ही नहीं है। इसलिये जो लोग इसके समर्थक हैं और जो इसके विरोधी हैं, उन्हें यह समझना होगा कि ‘सिस्टम खराब है’ या ‘सिस्टम में खराबी है’ दो निहायत अलग बातें हैं। यदि कोई खामी है भी तो सुधारात्मक ‘सुझावों’ की ओर जाना चाहिये, न कि वापस पुराने ढर्रे पर लौटना चाहिये। भारतीय ईवीएम एक स्व तंत्र प्रणाली है, जो किसी भी नेटवर्क से नहीं जुड़ी है। इसलिये व्यसक्तिगत रूप से किसी के लिये भी 1.4 मिलियन मशीनों के साथ छेड़छाड़ करना असंभव है। मतदान के दौरान देश में पहले होने वाली चुनावी हिंसा एवं फर्जी मतदान, बूथ कैप्चरिंग आदि जैसी अन्य चुनाव संबंधी गलत प्रचलनों को देखते हुए ईवीएम भारत के लिये सर्वाधिक अनुकूल है।

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