Equation of balance- सरकार बदलने से केवल तंत्र ही नहीं बदलता, व्यवस्था और रिवाज भी बदल जाते हैं..

Equation of balance

0एशियन का खास कार्यक्रम संतुलन का समीकरण आयोजन
0क्या सरकार बदलने से तंत्र बदलता है, विषय पर परिचर्चा का आयोजन

रायपुर। ‘क्या सरकार बदलने से तंत्र बदलता है’ विषय पर एशियन न्यूज़ की ओर शुक्रवार को हर्षित कॉर्पोरेट में संतुलन का समीकरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जहां लोगों से चर्चा कर बैलेंस इक्वेशन तलाशने की कोशिश की गई। इस अवसर पर अलग-अलग क्षेत्र के लोग शामिल हुए और अपनी बात रखें। इसमें साहित्यकार, पूर्व आईएएस, राजनीतिक दलों के नेता, कर्मचारी नेता, छात्र और आम नागरिक भी शामिल हुए। अलग-अलग क्षेत्र के लोगों ने क्या सरकार बदलने से तंत्र बदलता है विषय पर एशियन न्यूज के माध्यम से सभी ने मुखर होकर अपनी बात रखी।
इस अवसर पर एशियन न्यूज के प्रधान संपादक सुभाष मिश्रा ने कहा कि आज का जो विषय है वह सरकार और तंत्र से जुड़ी है। इसमें हम लोगों से जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार बदलने से तंत्र पर कितना प्रभाव पड़ता है, इस विषय पर अलग-अलग क्षेत्र के लोगों ने अपनी बात रखे। उन्होंने कहा कि सभी पार्टी सत्ता में आने से पहले खूब दावे करती है लेकिन बाद में आलम कुछ और होता है। उन्होंने कहा कि होता ऐसा है की कई बार सरकारी तो बदल जाती है लेकिन जो तंत्र में अधिकारी है वही रहते हैं और सभी चीज वही ढर्रे पर भी चलती है। वहीं अवमुमन सरकार बदलते ही प्रशासनिक सर्जरी भी देखने को मिलता है और बड़े पैमाने पर प्रशासनिक फेर बदल भी होता है।

प्रदेश के ख्याति प्राप्त साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि यह विषय बहुत सटीक और सामयिक है। उन्होंने कहा की आजादी के इन 76 वर्षों में हमने अमृत महोत्सव तो मान लिया लेकिन अभी लोकतंत्र का महोत्सव बनना बाकी है। जिस लोग की बात हम करते हैं वह लोग तंत्र के आगे इतना विवश हो चुका है कि वह छटपटाता रहता है कि कैसे है हमारा लोकतंत्र? जिसका सपना हमारे बड़े-बड़े आजादी के नायकों ने देखे थे वह सपना कब साकार होगा यह पता नहीं है। उन्होंने कहा कि जैसा कि पहले ही सुभाष मिश्रा ने कहा कि ये जो तंत्र है इसको जो चलाने वाला सिस्टम है तंत्र है जिसे हम ब्यूरो क्रेट्स भी कहते हैं। सरकारें बदल जाती हैं, ब्यूरो क्रेट्स बदल जाते हैं तंत्र वही रहता है। उन्होंने कहा कि इस पर हमने कई व्यंग भी लिखे हैं। देश में सबसे ज्यादा कोई पलटू राम है तो हमारे देश के अफसर हैं और उनकी सबसे बड़ी मजबूरी यह है कि अगर उनको टिके रहना है तो उसको इस ढांचे में ढालना भी पड़ता है। क्योंकि सरकार से तालमेल मिलाकर चलना उनकी मजबूरी भी होती है। अगर ऐसा नहीं करेंगे तो आगे उनको काम करने का मौका ही नहीं मिलेगा। ऐसे तंत्र को अफसर मानते हैं, और यही ढर्रा चलता आ रहा है। वहीं उन्होंने कहा की अफसरों में एक भ्रम रहता है कि सरकार हम चला रहे हैं। हमीं सभी योजनाओं को बनाते हैं। जब तक यह भ्रम दूर नहीं होगा तब तक देश का लोक तंत्र नहीं बदलेगा।
पूर्व आईएएस अधिकारी बीकेएस राय ने कहा कि आज की जो राजनीतिक माहौल है इसमें सरकार बदलते ही कई परिवर्तन आते हैं। कई परिवर्तन राजनीतिक से प्रेरित होते हैं। क्योंकि राजनीतिक और प्रशासन के बीच जो दूरियां है वह दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। राजनीतिक प्रशासन को प्रभावित कर रहा है। वही प्रशासन राजनीति को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि मेरा अनुभव है कि प्रशासन और शासन चलाने के जो मूलभूत सिद्धांत हैं उसमें तो कोई खास परिवर्तन नहीं होता है। इसमें हम लोग एक रूल और रेगुलेशन के मुताबिक रहते हैं। इसका व्यवस्थित तरीका होता है। यह सही है कि जो सत्ता में परिवर्तन होता है उसका असर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रशासन और शासन पर पड़ता है।
अशोक चंद्रवानसी ने कहा कि सरकार बदलने से केवल तंत्र ही नहीं बदलते रिवाज भी बदलते हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ को बने लगभग 23 साल हो गए हैं। इतने सालों में चुनाव मुद्दों और और समस्याओं पर लड़ी जाती है। तो केवल तंत्र नहीं रिवाज भी बदल जाते हैं। उन्होंने कहा कि तंत्र एक मेकैनिज्म है जो इस मेकैनिज्म को समझ गया वहीं कई सालों तक सरकार चला लेता है। बस जरूरत है तंत्र को समझने की ओर उसे चलाने की।
सपा नेता ब्रिजेश चौरसिया ने कहा कि यह बात सही है कि सरकार बदलने से तंत्र भी बदलता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से देश में सरकार बदलती है उसी प्रकार से सभी अधिकारी और कर्मचारियों में भी फेर बदल होते हैं।  उन्होंने कहा कि एक तरफ देखा जाए तो सरकार बनते ही नेता बदले की भावना से शासन करते हैं। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। यहां तक की कई योजनाएं भी बदले जाते हैं इसमें नुकसान केवल जनता को होता है।
स्वास्थ्य कर्मचारी नेता सेंट साहू ने कहा कि सरकार बदलने से तंत्र पर  प्रभाव तो पड़ता है। उन्होंने कहा कि सभी सरकार अपने-अपनी योजनाएं और मुद्दे लेकर आते हैं। हमारा काम है कि उनके नक्शे कदम पर चलना और जो आदेश आते हैं उनका पालन करना।
एनएसयूआई कार्यकर्ता सुजीत ने कहा कि राजनेता जनता और सरकार सभी एक दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने कहा कि सरकार बदलने से नेता और लोग भी बदलते हैं। वहीं लोग एक दूसरे से मुंह भी फेरते हैं। उन्होंने कहा की सरकार ऐसी हो जो जन कल्याणकारी योजनाओं पर ज्यादा ध्यान दें ना कि जनकल्याणकारी योजना बंद कर दे।
एनएसयूआई छात्र शुभम शर्मा ने कहा कि एक सरकार आती है जो जनता को मजबूत करती है और एक सरकार अधिकारियों को मजबूत करती है। इसके पूर्व में जो सरकार थी वह लोगों के लिए आम जनता के लिए काम कर रही थी लेकिन सरकार बदलने से यह कार्य प्रभावित हुआ है। शोभा ठाकुर ने कहा की सरकार में आने से पहले राजनेता बड़े-बड़े पोस्टर लगाकर बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा करते हैं। लेकिन सरकार बनने के बाद वह इससे मुंह फेर लेते हैं। जनता कई समस्याओं को फेस करती हैं। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि अगर योजनाएं हैं तो वह किसके लिए क्योंकि इसमें यह देखा जाता है कि करीब और गरीब हो रहे हैं और अमीर और अमीर हो रहे हैं। इन योजनाओं का लाभ किनको मिलता है। कर्मचारियों को अधिकारियों को या फिर नेता खुद इसका उपयोग करते हैं इसका पता नहीं चलता। उन्होंने कहा कि गरीबों की समस्या समाधान होने के बजाय ओर भी बढ़ रही है।
पूर्व कर्मचारी और आप नेता विजय झा ने कहा की सरकार बदलते ही नेता एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करते हैं। सरकार बदती है तो तंत्र भी बदल जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार बदलती है योजनाएं वही रहती है लेकिन उसको अलग अलग तरीके से लूटा जाता है। साहित्यकार सुधीर शर्मा ने कहा कि सरकार बदलने से सब कुछ बदलता है या नहीं भी बदलता है। लेकिन कई लोग जोखिम उठाना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा व्यवस्था को बिगाडऩे के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। ये नौकरशाह कौन है ये तो हमारे बीच के ही लोग हैं आज सरकार से लेकर नौकरशाह और छात्र नेता, सामाजिक कार्यक्रता सभी बदल गए हैं। इस देश में पहले जैसा कुछ नहीं है।
बीजेपी नेता आलोक ने कहा की आज हमलोग केवल व्यवस्था को कोस रहे हैं। इस व्यवस्था में कोई भी उतरने को तैयार नहीं है जब तक अच्छे लोग इस व्यवस्था में नहीं आएंगे तबतक चीजें नहीं बदलेगी। उन्होंने कहा की सरकार बदने से तंत्र बदलता है। लेकिन इसमें सुधार करने की जरूरत है।
विशाल ने कहा कि सरकार बदलने से तंत्र बदलता है लेकिन इसमें संतुलन बिठाने की जरूरत है। क्योंकि तंत्र भी सरकार के अंडर होती है बस तंत्र में जो अधिकारी है उससे काम लेने की जरूरत है। डॉ गंधर्व पांडे ने कहा कि बिलकुल सरकार और तंत्र एक दूसरे के पूरक हैं लेकिन दोनों के सांठ-गाठ से हो सरकार चलेगी। वर्तमान में देश बदला है। लोग ज्यातर डिजिटल माध्यम पर शिफ्ट हो रहे हैं। इससे जाहिर होता है कि देश बदल रहा है। बस आवश्यकता है तंत्र के अधिकारियों से सही दिशा में काम करवाया जाए।
बीजेपी युवा मोर्चा के जयश कुकरेजा ने कहा कि सरकार बदने से तंत्र बदलता है इसका जीता जागता उदाहरण है कि सरकार आने के बाद अगर काम नहीं करते हैं तो उसके जनता नकार देती है।

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