Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – उत्तराखंड में यूसीसी- क्या खतरे में पड़ेगा अनेकता में एकता ?

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

हमारा देश बहु धर्म, संस्कृति, विचारधारा को मानने वाला है। यहां विभिन्न मतों को मानने वाले अपने धार्मिक नियमों और परंपराओं के आधार पर जीवन यापन करते हैं। सदियों से ये हमारी पहचान रही है। पिछले कुछ समय से सियासी गलियारे में यूसीसी का मुद्दा भी रह रहकर तापमान बढ़ाते रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि यूसीसी यानि सामान नागरिक संहिता लागू करने से हमारी सामाजिक संरचना पर असर पड़ेगा। हमारी बहुसंस्कृति को अघात पहुंचेगा। आज हम यूसीसी की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उत्तराखंड सरकार ने इसे अपने राज्य में लागू करने के लिए एक कदम बढ़ा दिया है। मंगलवार को विधानसभा के पटल पर समान नागरिक संहिता (यूसीसी) बिल पेश किया गया है। सदन में बीजेपी विधायकों ने जय श्रीराम के नारे लगाए. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे युगांतकारी घटना बताया है। राज्य सरकार जल्द ही इस विधेयक को कानून का रूप देकर पूरे राज्य में लागू करने वाली है इसके समर्थकों द्वारा उत्तराखंड को मॉडल के रूप में पेश किया जा रहा है। सवाल ये भी है कि क्या ये आम चुनाव से पहले बीजेपी की कोई रणनीति का हिस्सा है क्या। उत्तराखंड का ये कदम देश को क्या मैसेज दे सकता है क्योंकि इस दौर में जब सियासत में सूचना क्रांति हावी है तब मैसेज की राजनीति ने बहुत रंग दिखाया है। यूसीसी सभी धर्मों के लोगों के लिए व्यक्तिगत कानूनों को एक समान संहिता रखने का विचार है। व्यक्तिगत कानून में विरासत, विवाह, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और गुजारा भत्ता जैसे कई पहलू शामिल हैं। हालांकि, वर्तमान में भारत के व्यक्तिगत कानून काफी जटिल और विविध हैं, प्रत्येक धर्म अपने विशिष्ट नियमों का पालन करता है।

यूसीसी को लेकर समाज और सियासत दो भागों में बंटा नजर आ रहा है. इसके समर्थकों ने इसके पक्ष में कई दलील दी है। इनका मानना है कि देश दो कानून से नहीं चल सकता। इस संबंध में प्रधानमंत्री मोदी ने कई बार कहा है कि समान नागरिक संहिता का विरोध वोटबैंक की राजनीति की वजह से की जा रही है। पीएम ने आगे कहा कि एक परिवार में एक सदस्य के लिए अलग कानून और अन्य के लिए अलग कानून से परिवार कैसे चलेगा? दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चलेगा? संविधान में नागरिकों को समान अधिकार की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी समान नागरिक संहिता लागू किए जाने की बात कही है। वहीं असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता इस मामले में प्रधानमंत्री की आलोचना करते हुए कहते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री भारत की विविधता और इसके बहुलवाद को एक समस्या मानते हैं। इसलिए, वह ऐसी बातें कहते हैं।

मुस्लिम समुदाय यूसीसी को धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देखते हैं। दरअसल, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तहत शरीयत के आधार पर मुस्लिमों के लिए कानून तय होते हैं। कुछ मुस्लिम स्कॉलर्स का मानना है कि मजहबी मामलत में दुनियावी दखलदांजी अच्छी नहीं होती है। दुनियावी कानून में सुधार होते रहते हैं पर शरीयत में तब्दीली मुमकिन नहीं। यूसीसी का विरोध करने वाले मुस्लिम धर्मगुरुओं का मानना है कि यूसीसी की वजह से मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का वजूद खतरे में पड़ जाएगा। जो सीधे तौर पर मुस्लिमों के अधिकारों का हनन होगा। मुस्लिम धर्मगुरुओं का कहना है कि शरीयत में महिलाओं को संरक्षण मिला हुआ है, इसके लिए अलग से किसी कानून को बनाए जाने की जरूरत नहीं है।

कोड के पक्ष में दलील दी जाती है कि धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ होने की वजह से संविधान के पंथनिरपेक्ष की भावना का उल्लंघन होता है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है। ये बोर्ड दलील देता है कि संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के मुताबिक जीने की अनुमति देता है। इसी अधिकार की वजह से अल्पसंख्यकों और आदिवासी वर्गों को अपने रीति-रिवाज, आस्था और परंपरा के मुताबिक अलग पर्सनल लॉ के पालन करने की छूट है।

गौरतलब है कि उत्तराखंड में यूसीसी के ड्राफ्ट में वहां के जनजातियों को छूट दी गई है। यूसीसी का मुद्दा भाजपा के लिए बड़ा राजनीति मुद्दा रहा है। जब चुनाव से पहले अयोध्या में बने राममंदिर का लाभ भाजपा को मिलते नजर आ रहा है. उसी दौर में यूसीसी का मुद्दा इस लाभ को और बढ़ सकता है वैसे भी समाना नागरिक संहिता से भाजपा का नाता बहुत पुराना है। भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जम्मू-कश्मीर की धरती से एक देश में दो निशान, दो प्रधान, दो विधान नहीं चलेंगे का नारा दिया था। तब से भी जन संघ फिर बाद में भाजपा इसकी वकालत करती रही है।

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून बनाना बीजेपी का चुनावी घोषणापत्र वाला वादा था। धामी सरकार ने इस चुनावी वादे को पूरा कर दिया है, ऐसे में केन्द्र की ओर से भी मैसेज दिया जा रहा है कि विधि आयोग की रिपोर्ट के बाद इस दिशा में विचार किया जाएगा। बहुत से लोगों का यह भी तर्क है कि देश में यूसीसी लागू होने से विवाह, तलाक, गोद लेने और संपत्ति बंटवारे में सभी के लिए एक नियम बन जाएगा। अलग-अलग कानून का झंझट दूर होगा।
दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है। इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं। इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है। यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है। दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है। चुनाव के ठीक पहले भाजपा इसे एक मैसेज की तरह इस्तेमाल करें। हालांकि इसे जमीनी स्तर पर उतारने में कई चुनौतियां हैं, चुनाव से पहले इनमें फंसने का खतरा भाजपा नेतृत्व नहीं लेगी।

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