Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से -कहानी की मूल प्रेरणा कुतूहल

Editor-in-Chief

-सुभाष मिश्र

कि़स्से कहानी हमें हमेशा अच्छे लगते है। हमारे यहाँ किस्सोगोई की परंपरा पुरानी है। रहस्य-रोमांच, राजा-रानी, प्रेम और अपराध की कहानी ज़्यादा लोकप्रिय है। कहानी कहना भी एक कला है। पूरे मनोभाव और रोचक तरीक़े से कही गई कहानी ज़्यादा प्रभाव डालती है। कहानी की मूल प्रेरणा है कुतूहल। बच्चे इसी कुतूहल के साथ दादी-नानी के पास जाते थे। उनके पास कहानियों का खज़ाना था। जब वे अपना पिटारा खोलती थीं तो अनुभव और स्मृतियों की एक नयी दुनिया खुल जाती थी। बच्चों की दिलचस्पी को जगाये रखने और उन्हें सीख देने के लिए कहानियाँ कहने का चलन सदियों से है। इन कहानियों में राजा-रानी, घोड़ा-हाथी, शेर-भालू, बंदर-बिलाव, भूत-प्रेत, देवी-देवता, दैत्य-राक्षस और न जाने किस-किस तरह के पात्र हैं। कल्पना और यथार्थ के मेल से बनी हुई एक अनोखी दुनिया इन कहानियों में मौजूद है। रामायण और महाभारत की कहानियों में हमारा देश साँस लेता है और हमारी स्मृतियाँ निरंतर धडक़ती हैं। सदियों तक कहानियाँ लोकशिक्षण का काम करती रहीं। हमारे देश में पंचतंत्र और हितोपदेश की कहानियाँ रची गयीं। वे हमारे देश तक सीमित नहीं रहीं। ईसप की कहानियों की जड़ें भी भारत में ही हैं। हमारे अठारह पुराणों, वेदों-उपनिषदों में अनेक कहानियाँ हैं, जिनसे हमारा जातीय अनुभव-संसार बना है। वेताल पचीसी, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानियाँ जिज्ञासा और कल्पना के अद्भुत लोक की सैर पर ले जाती हैं। गाँवों में लोककथाओं का विलक्षण संसार है, जिसमें सदियों का अनुभव संचित है।
यदि हम कल्पना करें की कहानी की शुरुआत कैसे हुई होगी? तो लगता है मानो किसी जंगली जानवर से डरकर आदिम मनुष्य जब गुफा में लौटा होगा, तब उसने अपने भीतर घुमड़ते भावों को व्यक्त करने लिए गुफा की दीवार पर उस जानवर का चित्र बनाया होगा। यही संसार की पहली कहानी होगी। यह मनुष्य और जानवर की मुठभेड़ की कहानी थी, जिसने मनुष्य के भीतर अभिव्यक्ति की अकुलाहट के कारण जब आकार लिया होगा तो चीख़ बनकर वह फूट पड़ी होगी। लेकिन, चीख में पूरी तरह व्यक्त न हो पाने के कारण कहानी ने चित्र का रूप ले लिया होगा। पहली कहानी इस प्रकार शब्दों में नहीं रची गयी, बल्कि चित्र में उकेरी गयी। तब से अनगिन कहानियाँ रची जा चुकी हैं, किन्तु मालूम पड़ता है। इन तमाम कहानियों का मूल सरोकार लगभग ज्यों-का-त्यों बना हुआ है। यह सरोकार है- समय के साथ मनुष्य के सम्बन्धों को समझने की कोशिश। मनुष्य के जीवन-संघर्ष का बखान करते युग बीत गये, मगर कहानी थकी नहीं। उसने सभ्यता के लगातार बदलते दौर के साथ अपने को बदलने की कोशिश में अनेक रूप धरे। कथा, आख्यान, पुराण, रूपक, इतिवृत्त, गल्प, इतिहास, मिथक, आख्यायिका, गाथा, निजंधर, लोकवार्ता, परीकथा, बोधकथा, दृष्टान्त, रोमान्स, उपन्यास आदि कितने ही रूपों में कहानी अपने को बदलती रही लेकिन अपना मूल प्रयोजन नहीं बदला। वह आज तक मनुष्य और उसके परिवेश के बीच द्वन्द्व के नये-नये अर्थ की तलाश में जुटी हुई है।
इस बीच कहानी को लेकर बहुत सारे आंदोलन भी खड़े हुए। कहानी की वाचिक और लिखित परंपरा के बाद कहानी को दृश्य माध्यम के ज़रिए कहने की कला सिनेमा के माध्यम से विकसित हुआ। आज के सिनेमा में कहानी हीरो है। यदि सिनेमा की पटकथा अच्छी होती तो वह बिना स्टारकास्ट के भी सफल होता है। सिनेमा में सर्वाधिक विषय वस्तु प्रेम विषयक होती है। हमारे देश में प्रेम कथा के बिना सिनेमा की कल्पना संभव नहीं है। हम चाहे कितनी ही यथार्थ पर्क कहानियों की बात कर लें, किन्तु अधिकांश कहानियाँ मनुष्य की अद्भुत कल्पना की उपज हैं। कल्पना, उत्सुकता और जिज्ञासा का समाधान करने की कोशिश करती है। वह सौंदर्य का अवतार लेती है। वह हमें वास्तविकता के कऱीब ले जाने की कोशिश करती है, लेकिन आधुनिक युग की जटिल वास्तविकता का सामना करने में वह पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी। तब कल्पना वास्तविकता का कन्धा पकड़ कर सहारा लेती है। आधुनिक कहानी जीवन की प्रत्यक्ष वास्तविकता को रचने की कोशिश करती है। इस कोशिश में कल्पना दूर तक उसका साथ नहीं दे पाती। तब पुरानी कहानियों के गल्प या आख्यान से आधुनिक कहानी किस्सागोई को साथ लेकर उस दुनिया को रचने का प्रयत्न करती है जो हमारी आँखों के सामने है। यह हमारे यथार्थ की दुनिया है, जिसमें काल्पनिक पात्र नहीं जीवन से उठाये गए मामूली पात्र हैं। मगर ये वास्तविक पात्र हैं। चाहे वह प्रेमचंद का होरी हो, या नागार्जुन का बलचनमा हो, या पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी की कारी हो।
हिंदी कहानी की यात्रा आज से सवा सौ वर्ष पहले माधवराव सप्रे की कहानी ‘एक टोकरी भर मिटटी’ के साथ शुरू हुई थी। वह आगे चल कर उन चरित्रों को रचने में लगातार लगी रही जो इस देश की मिटटी से ही जन्मे वास्तविक चरित्र थे। तब से आज के जटिल संसार में मनुष्य को उसकी उलझनों, खुशियों, सुख-दु:ख, आशा-निराशा के साथ वह लगातार गढ़ रही है। आज की कहानी आज के मनुष्य और समाज के इस जटिल अनुभव संसार को खोलने की कोशिश है।
कथादेश कथा-विमर्श और छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट्स सोसाइटी के संयुक्त तत्वधान में छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर के मैनपाट में हिंदी कहानी पर एकाग्र आयोजन प्रथम कथा समाख्या हुआ। इस कार्यक्रम में ‘कहानी का नवाचार, विषय पर कथाकार और कथा-आलोचकों ने विधा से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की। इस तीन दिवसीय चर्चा की विशेषता यह थी कि इसमें अनौपचारिक और मुक्त संवाद हुआ। इस दौरान हिंदी कहानी के 100 वर्ष से अधिक के इतिहास और वर्तमान के विधागत विकास और उसकी परंपरा पर विचार किया गया। इस आयोजन में देश के प्रख्यात कथाकारों, संपादकों और आलोचकों में हरि नारायण, मनोज रुपडा, जय प्रकाश, आनंद हर्षुल, रामकुमार तिवारी, आशुतोष, सुभाष मिश्र, त्रिलोक महावर और हरीचरण ने भाग लिया। इसी तरह बड़ौदा में आयोजित दूसरे कथा समाख्या में ‘कहानी में नव प्रयोग’ विषय पर चर्चा की गई। इसमें योगेन्द्र आहूजा, ओमा शर्मा, हर्षिकेश सुलभ, आंनद हर्षुल, रामकुमार तिवारी, चरण सिंह पथिक, नारायण सिंह, आशुतोष और शशिकला राय ने भाग लिया। इसमें उन कहानियों का रेखांकित किया गया, जो कथ्य और शिल्प की दृष्टी नए प्रयोगों के माध्यम से हिंदी कहानी के क्षितिज का विस्तार करती है। पुणे में संपन्न ‘आज के सवाल और हिन्दी कहानी: बदलते गाँव की दास्तान विषय पर केंद्रित कथा समाख्या-3 हुई। इस कार्यक्रम में चर्चा का स्वरूप पूरी तरह अनौपचारिक था। तीन सत्रों में संपन्न बातचीत में कथादेश के संपादक हरिनारायण, कथाकार शिवमूर्ति, महेश कटारे, नारायण सिंह, हर्षिकेश सुलभ, आनंद हर्षुल, देवेन्द्र, दीर्घ नारायण, आशुतोष के अलावा रंगकर्मी सुभाष मिश्र और आलोचक जयप्रकाश ने भाग लिया। वहीं कथा समाख्या-4 का विषय गाँव की कहानी रहा। छतीसगढ़ के बार नवापारा में आयोजित कथा समाख्या में हिंदी कहानी की ग्राम केन्द्रित धरा पर वूस्टर से विचार-विमर्श हुआ। इसमें सत्यनारायण, मनोज रूपड़ा, अरुणेश शुक्ल, हर्षिकेश सुलभ, रामकुमार तिवारी, आनंद हर्षुल, जयप्रकाश, सुभाष मिश्र और हरिनारायण ने भाग लिया। राजस्थान के सवाई माधोपुर में आयोजित कथा समाख्या-5 में पूर्व नए रचनाकारों की कहानियाँ आमंत्रित की गईं। उनमें से छह कहानियाँ चुनी गई। इन कहानियों में मध्य प्रदेश के बैतूल के अक्षत पाठक की रचना ‘आधे का पूरा एक हो जाना’, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के जगदीश सौरभ की कहानी ‘न तुझे पता न मुझे पता’, जयपुर के दिव्या विजय लिखित ‘यूँ तो प्रेमी पिचहत्तर हमारे’, बिहार के भागलपुर की सिनीवाली शर्मा की ‘महादान’, दिल्ली के अभिषेक कुमार पाण्डेय की ‘बोझ’ और दिल्ली के घनश्याम कुमार देवांश की रचना ‘आखिरी अटेंप्ट’ चुनी गई। कथा समाख्या में कथाकार जितेन्द्र भाटिया, सत्यनारायण, हर्षिकेश सुलभ, योगेन्द्र आहूजा, रामकुमार सिंह, आलोचक रविभूषण, हिमांशु पांड्या, जयप्रकाश और कथादेश के संपादक हरिनारायण ने भाग लिया। इस कार्यक्रम के स्थानीय संयोजक कथाकार सत्यनारायण और कवि विनोद पदरज थे।
कथा समाख्या का छठा आयोजन उत्तर प्रदेश के बरेली और पीलीभीत में हुआ। इसमें कहानी के गढंत विषय पर विचार-विमर्श हुआ। इसमें भालचन्द्र जोशी, योगेन्द्र आहूजा, नवीन कुमार नैथानी, प्रियम अंकित, शशिभूषण दिवेदी, प्रियदर्शन मालवीय, रामकुमार तिवारी, आनंद हर्षुल, सुभाष मिश्र, हरिनारायण और सुकेश साहनी ने भाग लिया। छत्तीसगढ़ के बस्तर के चित्रकोट और जगदलपुर में सातवाँ कथा समाख्या हुआ। इसमें युवा कथाकारों की कहानियों पर चर्चा हुई। इस दौरान मिथिलेश प्रियदर्शी की रचना सहिया, श्रीधर करुणानिधि की सेंध, उमेश चपरे की बारिश, माधव राठौड़ की बूटा, गोरिल्ला और टोंगरी, के अलावा विवेक आसरी की बेकार लोगों की कहानी पर सत्यनारायण, योगेन्द्र आहूजा, देवेन्द, ओमा वर्मा, प्रियदर्शन मालवीय, रामकुमार तिवारी, जयप्रकाश, आनंद हर्षुल और हरिनारायण ने विचार-विमर्श किया। मध्य प्रदेश के जिला निवाड़ी के ओरछा में आयोजित आठवें कथा समाख्या में नए कथाकारों की रचनाओं पर केन्द्रित गोष्ठियां हुई। इसमें जयपुर के उषा दशोरा की रचना ‘तुम्हारा रणबीर’, जोधपुर के उज्मा कलाम की ‘माई च्वाइस माई राईट’, श्रधा श्रीवास्तव की ‘कोई कहीं घर होता’, रायपुर की सुमेघा अग्रहरी की ‘सलवा जुडूम जारी है’, गया की टिवंकल रक्षिता की ‘दोबारा नहीं’ और बीना की काव्या कटारे की ‘ऐसा अंत’ पर शशांक, महेश कटारे, सत्यनारायण, तरुण भटनागर, अमिता नीरव, वैभव सिंह, प्रियम अंकित ने चर्चा की। छत्तीसगढ़ के शिवरीनारायण और कोरबा में कथा समाख्या का नौवां आयोजन हुआ। वन क्षेत्र में स्थित बाँध के निकट हुई चर्चा में सविता पाण्डेय की रचना ‘ड्रीम गर्ल’, निहाल परासर की ‘रश्क’, सुदीप सोहनी की ‘गैरिज वाली खोली’, प्रीति प्रकाश की ‘तबस्सुम बाजी की भूरी गाय’, श्री कुमार की ‘मुख्य अतिथि’, गरिमा पाण्डेय की ‘बूढा स्वेटर’ और सुमन शेखर की ‘बारह साल की स्त्रियाँ’ शामिल रही। इन कहानियों पर कथाकार जितेन्द्र भाटिया, कथाकार-नाटय लेखक हृषिकेश सुलभ, कथाकार भालचन्द्र जोशी, कवि-कथाकार रामकुमार तिवारी, कथाकार उपासना, कथाकार आनंद हर्षुल, रंगकर्मी-संपादक सुभाष मिश्र, आलोचक जयप्रकाश, कथाकार-आलोचक राकेश बिहारी और आलोचक राहुल सिंह ने विमर्श किया। प्रेम कहानियों पर आधारित दशवाँ कथा समाख्या गोवा में होगा। इसमें निर्मल वर्मा की कहानी ‘पिता और प्रेमी’ पर योगेन्द्र आहूजा, शैलेश मटियानी की ‘अर्धागिनी’ पर जयप्रकाश, यून फोस्से की ‘मैं तुम्हे बता नहीं सकता था’ पर आनंद हर्षुल, चेखव की ‘डार्लिंग’ पर रामकुमार तिवारी और जगदंबा प्रसाद की कहानी ‘मुहब्बत’ पर सत्यनारायण शर्मा, जयशंकर प्रसाद की कहानी ‘आकाशदीप’ पर उषा दशोरा, इवान बुबिन की ‘इडा’ पर ओमा शर्मा और सैयद मुस्तफा सिराज की कहानी ‘लाली के लिए’ पर भालचन्द्र जोशी समीक्षात्मक टिप्पणी करेंगे। इसके अलावा ‘हमारे शहर की भावी लोककथा’ पर अक्षत पाठक, शुभम सुमित की ‘जादूगर’ और मनोज रूपड़ा की कहानी ‘ईश्वर का द्वंद’ पर सुभाष मिश्रा विचार व्यक्त करेंगे। गोवा सरकार के कला एवं संस्कृति निदेशालय के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में कोंकणी भाषा के ज्ञानपीठ पुरस्कार और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मूर्धन्य साहित्यकार दामोदर माउजी अध्यक्षता करेंगे। उद्घाटन सत्र के प्रमुख अतिथि गोवा सरकार के कला एवं संस्कृति निदेशालय के संचालक सगुण वेलिप करेंगे।

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