Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – रायपुर का स्टेडियम, उम्मीदों का मंच या अव्यवस्थाओं का दूसरा नाम?

-सुभाष मिश्र

भारत में अगर किसी चीज़ को ‘धर्म के बाद सबसे बड़ा धर्मÓ कहा जाए तो वह क्रिकेट है। क्रिकेट मैदान सिर्फ खेल का मैदान नहीं, भावनाओं का, राष्ट्रीय गौरव और करोड़ों लोगों के सपनों का मंच है। जब ऐसा आयोजन हमारे अपने शहर में हो तो उत्साह अपने चरम पर होना स्वाभाविक है।
नवा रायपुर का शहीद वीर नारायण सिंह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम वर्षों तक एक ‘सफेद हाथीÓ की तरह खड़ा रहा—बिना मैच, बिना रोशनी, बिना भविष्य। छत्तीसगढ़ क्रिकेट संघ (सीएससीएस) ने इसे पाने के लिए 7 वर्षों का संघर्ष किया। बिजली कटने से लेकर टूटी कुर्सियों तक इस स्टेडियम ने उपेक्षा के दिन भी देखे। लेकिन बीसीसीआई द्वारा इसे अपने अधीन लेने के बाद उम्मीदें जगने लगी थीं कि अब यह मैदान भी देश के बड़े वैन्यूज़ की कतार में खड़ा होगा।
3 दिसंबर के भारत-दक्षिण अफ्रीका वनडे ने इन उम्मीदों को फिर जगाया भी और तोड़ा भी। जगाया इसलिए कि स्टेडियम खचाखच भरा था, पिच और आउटफील्ड की बीसीसीआई अधिकारी राजीव शुक्ला, देवजीत सैकिया, प्रभतेज भाटिया, अजीत अगरकर ने जमकर तारीफ़ की। रायपुर अब टेस्ट वैन्यू बनने की दहलीज़ पर खड़ा है और तोड़ा इसलिए कि मैच में जो अव्यवस्था सामने आई, उसने प्रश्न खड़ा कर दिया क्या हम वाकई टेस्ट स्तरीय जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं?
क्रिकेट मैच में रोमांच गेंद-बल्ले के बीच होना चाहिए, टिकट खरीदने की जंग में नहीं। लेकिन रायपुर में सबसे पहली कड़ी वहीं टूटी। ऑनलाइन टिकटें मिनटों में कैसे गायब हो गईं? इतने बड़े पैमाने पर टिकट कालाबाजारियों तक कैसे पहुँची? क्या सिस्टम में सेंध लगी या सेंध लगाने दी गई? आम दर्शक तो छोडि़ए सांसद, विधायक, मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी तक टिकट के लिए भटकते रहे। कई जनप्रतिनिधियों ने तो ‘अपमानजनक संख्याÓ मिलने पर टिकट लौटा भी दिए। किसी भी अंतरराष्ट्रीय आयोजन का पहला पैमाना होता है दर्शक को सम्मान। रायपुर में दर्शक को टिकट नहीं मिला, भीड़ मिली। पास नहीं मिले, धक्का-मुक्की मिली। यह क्रिकेट प्रेम का सम्मान था या उसकी परीक्षा?
सुरक्षा की दूसरी बड़ी चूक थी। मैच के बीच दर्शक सुरक्षा घेरा तोड़कर मैदान में घुस आए। यह दूसरी बार हुआ और बीसीसीआई

इस पर नाराज़ है। जब बीसीसीआई नए टेस्ट वैन्यू ढूंढ रहा हो और रायपुर दावेदार हो तो ऐसी घटनाएं सिर्फ सुरक्षा त्रुटि नहीं, भरोसे की चूक है।
स्टेडियम के भीतर पानी, पेय, फास्ट फूड सब कुछ तीन से चार गुना कीमत पर। दर्शक ने टिकट खरीदा या ‘टैक्सÓ भरा? जब पूरे देश में बीसीसीआई का बैंक बैलेंस 2019 में 6,059 करोड़ से बढ़कर 2024 में 20,686 करोड़ हो जाए, तो सवाल उठना स्वाभाविक है क्या क्रिकेट का उद्देश्य रोमांच है या सिफऱ् रेवेन्यू?
अंदरखाने यह भी चर्चा रही कि पासों का वितरण ‘योग्यता से नहीं, ‘परिचय से हुआ। जो पास ‘खेल या ‘खिलाडिय़ों के लिए होने चाहिए, वो कहीं ‘दोस्तीÓ, कहीं ‘पसंदÓ, कहीं ‘दबावÓ के आधार पर बंटे। जब क्रिकेट संगठन अपने ही लोगों को ‘प्राथमिकता दे दें और जनता जो क्रिकेट की असली मालिक है, वह बाहर कतार में खड़ी रहे, तो यह क्रिकेट प्रशासन नहीं, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का मंच बन जाता है।
लोढ़ा कमेटी ने इसी राजनीति और अपारदर्शिता को खत्म करने के लिए नियम बनाए थे। पर क्या नियम लागू हुए या सिफऱ् किताबों में रखे गए?
भारत के कई आधुनिक स्टेडियम इस अव्यवस्था का विकल्प और मॉडल दिखाते हैं। अहमदाबाद का नरेंद्र मोदी स्टेडियम 1,32,000 क्षमता दुनिया में नंबर वन। चार ड्रेसिंग रूम, बेहतर प्रवेश-एग्जिट, विशाल पार्किंग। दर्शकों के लिए मेडिकल मिनी आईसीयू, स्वच्छ पेयजल, शौचालय। टिकटिंग की पारदर्शी ई-सिस्टम। भीड़-नियंत्रण टीम और ट्रेंड वॉलिंटियर्स विभाग, पुणे, धर्मशाला, ईडेन, वानखेडे हर नए या अपग्रेडेड स्टेडियम में दर्शक अनुभव प्राथमिकता पर है। यही कारण है इन जगहों पर क्रिकेट ‘जुनूनÓ है, अफरा-तफरी नहीं। यदि अन्य शहर यह कर सकते हैं तो क्या रायपुर नहीं कर सकता? कर सकता है, करना चाहिए, बस नीयत और प्रबंधन चाहिए।
रायपुर एक बड़ा वैन्यू बन सकता है पर इसके लिए ईमानदारी चाहिए। रायपुर का मैदान वास्तव में अंतरराष्ट्रीय स्तर का है। फुल-लेंथ आउटफील्ड, समान नेचर वाली पिचें, तेज़ आउटफील्ड, टेस्ट के लिए बाउंड्री 90 यार्ड तक बनाने की क्षमता। बीसीसीआई भी नए टेस्ट वैन्यू ढूंढ रहा है। राजीव शुक्ला ने घोषित किया है ‘रायपुर टेस्ट के लिए फिट है।Ó पर स्टेडियम की गुणवत्ता से पहले, प्रशासन की विश्वसनीयता जरूरी है। क्योंकि क्रिकेट सिफऱ् बल्ले-गेंद का खेल नहीं, यह प्रबंधन, पारदर्शिता और जनता के विश्वास की नींव पर खड़ा है।
क्रिकेट में पैसा बहुत है, पर जवाबदेही कहां है? जिस खेल का जुनून भारत को एक सूत्र में बाँधता है, उसमें अव्यवस्था, कालाबाज़ारी, और कृत्रिम अभाव यह सब न तो खेल के हित में है, न छत्तीसगढ़ के, न क्रिकेट प्रेमियों के।
बीसीसीआई का खजाना भरा है पर दर्शकों का अनुभव खाली क्यों? मैदान चमक रहा है पर व्यवस्था धुंधली क्यों? स्टेडियम नया है पर सोच पुरानी क्यों?
अंत में रायपुर को चेतना चाहिए, हतोत्साहित नहीं होना चाहिए। हमारी मंशा सिफऱ् आलोचना की नहीं है, सुधार की चेतावनी देने की है। रायपुर टेस्ट वैन्यू बनता है तो यह छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। लेकिन अगर आज की अव्यवस्था भविष्य में दोहराई गई तो यह उपलब्धि टिकेगी नहीं। दर्शक सिर्फ टिकट नहीं खरीदते, वे क्रिकेट की अर्थव्यवस्था चलाते हैं, वे स्टेडियम में जान फूंकते हैं, वे क्रिकेट की आत्मा होते हैं। इसलिए अगले मैच से पहले पास सिस्टम में सफाई, टिकटिंग में पारदर्शिता, सुरक्षा में सख्ती, वेंडरों पर नियंत्रण और दर्शक अनुभव पर प्राथमिकता इन पाँचों स्तंभों को मजबूत करना अनिवार्य है।
क्योंकि अगर क्रिकेट लोगों का उत्सव है तो आयोजकों की जि़म्मेदारी भी उतनी ही पवित्र है और यही संदेश हम आज देना चाहते हैं क्रिकेट को आयोजन नहीं, आचरण बनाइए। तभी रायपुर भारत का नया क्रिकेट राजधानी बन सकेगा।

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