Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – सवा दो घंटे के भाषण पर सवाल अब भी खड़े हैं !

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से - सवा दो घंटे के भाषण पर सवाल अब भी खड़े हैं !
-सुभाष मिश्र

 

मोदी सरकार के खिलाफ लाया गया अविश्वास प्रस्ताव गिर गया। हालांकि संख्याबल के नजर से देखा जाए तो इसे गिरना ही था, लेकिन देश की सबसे बड़ी पंचायत में सरकार के प्रति अविश्वास जाहिर करने के लिए विपक्ष ने ये कवायद की। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए धन्यवाद देते हुए इसे खुद के लिए एक मौका बताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंत में अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस को जमकर कोसा, पंडित नेहरू से लेकर कई पूर्व सरकारों को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधा। इस दौरान उन्होंने परिवारवाद का मुद्दा भी उठाया और इसको लेकर कांग्रेस पर जमकर निशाना भी साधा। भले ही प्रधानमंत्री परिवारवाद के नाम पर गांधी परिवार को निशाना साध रहे हों, लेकिन क्या आज भाजपा और दूसरी पार्टी इसके दंश से बाहर हैं। अगर परिवारवाद को लेकर नजर दौड़ाएं तो आज भाजपा कांग्रेस से किसी मायने में कम नजर नहीं आती। कई प्रमुख नेताओं के बेटे सीधे पैराशूट लैंड करते हुए लोकसभा और विधानसभा पहुंच चुके हैं। इनमें चाहे छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह हों या फिर राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह, हिमाचल के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धुमल के बेटे अनुराग ठाकुर, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह जैसे कई नाम हैं, जिन्हें इतनी आसानी से राजनीति में जगह मिल गई। वे कई सीनियर कार्यकर्ताओं से पहले तरजीह पाते हुए उन पदों पर पहुंच गए जहां सामान्य कार्यकर्ताओं को पहुंचने में बड़ा वक्त लगता है। वाकई में लोकतंत्र में परिवारवाद की जगह नहीं होनी चाहिए। इसे एक बुराई के तौर पर देखा जाता रहा है। प्रधानमंत्री मोदी खुद इसको लेकर कई बार कांग्रेस को आड़े हाथ लेते रहे हैं, लेकिन वे अपनी पार्टी में पनप रही इस बुराई को नजर अंदाज करते हैं। अक्सर चुनाव के वक्त आम कार्यकर्ता या समर्पित कार्यकर्ता के ऊपर किसी नेता पुत्र या उसके परिवार के अन्य सदस्य को थोपने में भाजपा पीछे नहीं रही है। ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान इस पर इतना लंबा ज्ञान जो देश के प्रधानमंत्री ने दिया उसका मतलब नहीं निकलता।
पीएम मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देते हुए 2 घंटे 12 मिनट का भाषण दिया। इस लंबे भाषण के आखिर 20 मिनटों में संक्षेप में मणिपुर का जिक्र किया। इससे पहले उन्होंने मेघालय में इंदिरा गांधी की सरकार के वक्त की घटना का विस्तार से बयान किया। जबकि विपक्ष ने उन पर मणिपुर पर बोलने के लिए काफी कुछ दिया था। जिस तरह से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ने मणिपुर की हालत बयां की उससे तो इस पर बोलना बहुत जरूरी था।
प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा जैसे कई राज्यों का नाम लेकर गिनाया कि पिछले कई सालों से इन राज्यों के लोगों को नकार दिया है। इस दौरान प्रधानमंत्री आम सभा में भाषण देने के अंदाज में अपने साथी सांसदों से नारेबाजी कराते नजर आए, वे बोलते कांग्रेस तो उनके साथी कहते नो कांग्रेस। इस तरह का नजारा लोकसभा में देखने को मिला। हालांकि जिन राज्यों का नाम पीएम ले रहे थे कि तमिलनाडु में साठ साल से ज्यादा वक्त से कांग्रेस नहीं आई, बंगाल में इतने वर्षों से तो सवाल ये भी उठता है कि भाजपा भी तो इतने सालों में इन राज्यों में ठीक से खड़े भी नहीं हो पाई। अगर हम सिर्फ दूसरों में कमी या बुराई खोजते रहेंगे तो आपकी बातों का वजन कम होने लगता है। आप सिर्फ आकर्षक शैली में भाषण देकर, अपने संख्या बल के दम पर. विपक्ष की कमियां गिनाकर, देश को आगे कोई आदर्श प्रस्तुत नहीं कर पाएंगे। सवा दो घंटे से लंबा भाषण प्रधानमंत्री ने दिया लेकिन कुछ ऐसे सवाल हैं जो अब भी खड़े हैं।

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