Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से- मेसी टूर बना अव्यवस्था और राजनीति का अखाड़ा


-सुभाष मिश्र

पश्चिम बंगाल की राजनीति में चुनावी सरगर्मी तेज होते ही हर सार्वजनिक घटना सत्ता और विपक्ष के बीच सियासी हथियार में बदल जाती है। हाल में कोलकाता में लियोनेल मेसी के दौरे के दौरान जो हुआ, उसने इस सच्चाई को एक बार फिर उजागर कर दिया। एक अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन, जो बंगाल की सांस्कृतिक पहचान और फुटबॉल प्रेम का उत्सव बन सकता था, वह भीड़ प्रबंधन की विफलता और प्रशासनिक अव्यवस्था के कारण राजनीतिक विवाद का केंद्र बन गया। यही घटना आज के संदर्भ में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच बढ़ते टकराव की प्रतीक बन चुकी है।
मेसी के कोलकाता आगमन को लेकर जिस तरह का उत्साह था, वह असाधारण था। साल्टलेक स्टेडियम के आसपास हजारों प्रशंसक सिर्फ एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़े। लेकिन तैयारी उस अनुपात में नहीं थी। प्रवेश व्यवस्था, यातायात नियंत्रण और सुरक्षा इंतजाम चरमरा गए। हालात इतने बिगड़े कि आयोजक की गिरफ्तारी हुई और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। सत्ता में बैठी सरकार के लिए यह एक असहज क्षण था, क्योंकि यह घटना ऐसे समय हुई जब पश्चिम बंगाल प्रशासन खुद को ‘इवेंट फ्रेंडलीÓ और ‘वैश्विक आयोजनों के लिए सक्षमÓ बताता रहा है।
भाजपा ने इसी घटना को पकड़कर तृणमूल सरकार पर सीधा हमला बोला। पार्टी का आरोप है कि मेसी जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के कार्यक्रम में अव्यवस्था सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि भारत और बंगाल दोनों की छवि को नुकसान पहुंचाने वाला मामला है। भाजपा इसे वर्षों से चली आ रही शासन विफलता की कड़ी बताती है, जिसमें राजनीतिक रैलियों, धार्मिक आयोजनों और सांस्कृतिक उत्सवों के दौरान भीड़ नियंत्रण बार-बार फेल होता रहा है। पार्टी का तर्क है कि यह कोई अपवाद नहीं, बल्कि एक पैटर्न है।
तृणमूल कांग्रेस इन आरोपों को चुनावी राजनीति करार देती है। पार्टी का कहना है कि बंगाल की जनता का उत्साह और भावनात्मक जुड़ाव स्वाभाविक है, और ऐसे आयोजनों में चुनौतियां आती हैं। मुख्यमंत्री द्वारा माफी मांगने को तृणमूल प्रशासनिक संवेदनशीलता और जिम्मेदारी का उदाहरण बताती है, लेकिन राजनीति में माफी अक्सर कमजोरी के रूप में भी पढ़ी जाती है और भाजपा इसी व्याख्या को मतदाताओं तक पहुंचाने की कोशिश कर रही है।
मेसी प्रकरण ने एक पुरानी बहस को फिर जीवित कर दिया है, क्या पश्चिम बंगाल का प्रशासन बड़े आयोजनों और भारी भीड़ को संभालने के लिए पर्याप्त रूप से तैयार है? इससे पहले भी राज्य में धार्मिक आयोजनों, दुर्गा पूजा के पंडालों, राजनीतिक रैलियों और विरोध प्रदर्शनों के दौरान अव्यवस्था के दृश्य सामने आते रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार मामला अंतरराष्ट्रीय था और निगाहें देश-विदेश तक गईं। यही कारण है कि इसका राजनीतिक असर भी कहीं अधिक गहरा हो गया।
आगामी चुनावों में भाजपा इसी मुद्दे को कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक क्षमता के बड़े फ्रेम में पेश करेगी। पार्टी यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि तृणमूल सरकार में शासन एक सतही शो बनकर रह गया है, जहां प्रतीक और आयोजन तो बड़े हैं, लेकिन उनकी बुनियादी तैयारी कमजोर है। दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस ‘बाहरी बनाम बंगाल की परिचित रणनीति के तहत यह कहेगी कि विपक्ष राज्य की पहचान और उसकी सांस्कृतिक जीवंतता को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है।
इस टकराव के बीच असली सवाल जनता के सामने है। क्या मेसी के दौरे जैसी घटनाएं सिर्फ एक दिन की सुर्खियां बनकर रह जाएंगी, या मतदाता इन्हें शासन की कसौटी पर परखेंगे? बंगाल का मतदाता भावनात्मक जरूर है, लेकिन राजनीतिक रूप से परिपक्व भी रहा है। वह यह समझता है कि उत्सव और अव्यवस्था के बीच फर्क होता है, और प्रशासन की जिम्मेदारी सिर्फ आयोजन करना नहीं, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना भी है।
मेसी का दौरा इस मायने में एक प्रतीक बन गया है। यह दिखाता है कि भारत में क्रिकेट के बाद फुटबॉल का क्रेज किस स्तर तक पहुंच चुका है, लेकिन साथ ही यह भी उजागर करता है कि इस क्रेज को संभालने के लिए प्रशासनिक क्षमता कितनी जरूरी है। यदि सरकारें इस संतुलन में चूकती है तो खेल का जश्न भी राजनीतिक संकट में बदल सकता है।
पश्चिम बंगाल का आने वाला चुनाव सिर्फ सत्ता परिवर्तन या निरंतरता का फैसला नहीं करेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि मतदाता प्रशासनिक विफलताओं को कितनी गंभीरता से लेते हैं। मेसी के दौरे के दौरान हुई अव्यवस्था अब सिर्फ एक घटना नहीं रही, यह चुनावी बहस का हिस्सा बन चुकी है और यही वह बिंदु है, जहां खेल, शासन और राजनीति एक-दूसरे से टकराते हुए बंगाल की चुनावी कहानी को नया मोड़ दे रहे हैं।

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