Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – मोदी और भाजपा के दांव

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

मोदी की गारंटी कहें या भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिए जाने वाले निर्णय ये सब जनता के साथ-साथ विपक्ष को भी चौंका रहे हैं। बात चाहे सीएए की हो या फिर हरियाणा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा द्वारा जिस तरह ताबड़तोड़ निर्णय लिए जा रहे हैं और गठबंधन बनाए जा रहे हैं, वह चौंकाने वाले हैं। ऐसा लगता है कि हर राज्य के हिसाब से रणनीति बनाई गई है। हरियाणा में जेजेपी की शर्त पूरा नहीं होने पर जेजेपी-बीजेपी का गठबंधन टूटा तो बिना देर किए तत्काल मुख्यमंत्री बदल दिया गया। चट मंगनी और पट ब्याह की तर्ज पर मनोहर लाल खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया तो विधायक दल की बैठक कर नायब सिंह सैनी नेता चुन लिया गया। अब सैनी हरियाणा के नए मुख्यमंत्री बन गए। इस कवायद में मोदी का 400 पार का नारा के साथ दीर्घकालिक रणनीति दिख रही है।
भाजपा उन दलों को अपने साथ जोड़ रही है जो पहले से ही पतनशील हैं और सौदेबाजी में कमजोर पड़ते हैं, जिनके पतन को और तेज किया जा सकता है और भाजपा उनकी जगह पर काबिज हो सकती है। इसी रणनीति के तहत भाजपा ने असम में 2016 में असम गण परिषद (एजीपी) और बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ गठबंधन करके चुनाव जीता और बाद में बीपीएफ का पत्ता काट कर दूसरी जनजातीय पार्टी, प्रमोद बोरो के नेतृत्व वाली यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपी-एल) को साथी बना लिया। 2022 में, काफी कमजोर हो चुकी बीपीएफ इस गठबंधन में वापस आई, जबकि एजीपी भी अपने मूल स्वरूप की छाया भर रह गई है। ऐसा ही बिहार में भी हुआ। भाजपा ने नीतीश कुमार को कमजोर करने के लिए चिराग पासवान का इस्तेमाल किया। विधानसभा चुनाव में चिराग ने खुद को मोदी जी का हनुमान बताते हुए जदयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए थे और जब भाजपा जदयू के सांसदों को तोडऩे में लगी थी तो नीतीश के पास फिर से दलबदल करके वापस लौटने के सिवाय कोई उपाय नहीं रह गया था। गठबंधन का यही खेल आंध्र प्रदेश और हरियाणा में भी चल रहा है। आंध्र में कमजोर हो चुकी टीडीपी 2029 में परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेतृत्व में और ज्यादा कमजोर ही पडऩे वाली है। हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की जेजेपी लगभग खत्म ही हो चुकी है। महाराष्ट्र में भी पुरानी सहयोगी शिवसेना दो टुकड़े हो चुके हैं जबकि नए सहयोगी, एनसीपी से टूटे घटक का भाजपा के बिना कोई भविष्य नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस गति से यात्राएं, उद्घाटन और शिलान्यास करते हैं और दूरदराज की जगहों में भाषण देते घूम रहे हैं, उससे यही संकेत मिलता है कि वह भाजपा 370 और एनडीए 400 पार के संकल्प का लक्ष्य को चिडिय़ा की आँख की ओर देखकर काम कर रहे हैं। मोदी आज कहां-कहां और किस तरह प्रचार कर रहे हैं और क्या कुछ कह रहे हैं? उदाहरण के लिए वे तमिलनाडु और केरल को कितना समय और कितनी ऊर्जा दे रहे हैं? यह देखकर डीएमके के नेता भी अनौपचारिक बातचीत में कबूल कर रहे हैं कि भाजपा अपने बूते भले कोई सीट न जीते मगर उसका वोट प्रतिशत काफी बढ़ सकता है। कुछ लोग तो उसे 15-17 प्रतिशत वोट मिलने की बातें भी कर रहे हैं।
मोदी तमिलनाडु में जो अभियान चला रहे हैं, उसे 2029 के लिए तैयारी के रूप में देखा जा सकता है। केरल मोदी के लिए दूसरा अवसर प्रस्तुत कर रहा है। भाजपा वहां के ईसाई समुदाय की ओर किस तरह लगातार हाथ बढ़ा रही है। इस समुदाय का सुनिश्चित वोट कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूडीएफ की राजनीति का आधार है। यूडीएफ के दूसरे वोटबैंक-मुस्लिम और ईसाई समुदाय के बीच पुराने संदेह कायम है। कुछ ईसाई वोट भाजपा की ओर गए तो मुस्लिम वोट वाम दलों की ओर मुड़ सकते हैं, क्योंकि वे कांग्रेस और यूडीएफ को कमजोर होते देख रहे हैं। तब भाजपा के लिए काफी जगह बन जाएगी। इसी उम्मीद में मोदी वहां अभियान चला रहे हैं और उन नेताओं को अपने साथ ले रहे हैं, जिनके कांग्रेस में होने की उम्मीद की जाती थी। मसलन, कांग्रेस के दो पूर्व सीएम एके एंटनी और के. करुणाकरन की संतानें।
तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार चार सौ पार…भाजपा के गढ़े ये नारे पार्टी की दूरगामी रणनीति की ओर इशारा करते हैं। इस नारे ने लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक के प्रति मजबूत अवधारणा बनाने का काम किया है। इन नारों ने चुनावी बहस को एनडीए की हार-जीत से परे, गठबंधन को तीसरी और बीते दो चुनाव से बड़ी जीत हासिल करने का माहौल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाकर विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। इस बार भी एक तरफ अब तक अजेय ब्रांड मोदी हैं तो दूसरी ओर एक साथ आने की कोशिश में लगातार बिखरता विपक्ष है। हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की जमीन और मजबूत होने के बीच भाजपा वोट प्रतिशत और सीटें बढ़ाने के लिए एक-एक कर पुराने सहयोगियों को साध रही है। राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 का खात्मा, तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाने, संसद व विधानसभाओं में महिलाओं की 33 फीसदी हिस्सेदारी के बाद अब नागरिकता संशोधन कानून लागू करने की तैयारी है। उत्तराखंड से इसकी शुरुआत हो गई है। विपक्ष की आरक्षण, जाति गणना की पुरानी लीक वाली सामाजिक न्याय की राजनीति के समानांतर प्रधानमंत्री मोदी ने नई सामाजिक न्याय की अवधारणा पेश करते हुए गरीब, युवा, महिला और किसान को चार जातियां बताई हैं। यह बात लोगों के समझ से परे है कि एक ओर नरेन्द्र मोदी और भाजपा युवाओं अपने साथ जोडऩे की बात करती है, वहीं वो दूसरी पार्टी खास करके कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को अपने साथ जोड़ रही है। भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते-करते कांग्रेस युक्त भारत की ओर बढ़ रही है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की आलोचना करते हुए भाजपा अपने साथ किसी भी पार्टी के दागदार नेता को भी अपने साथ जोडऩे, गठबंधन में गुरेज नहीं कर रही है। आने वाला समय और लोकसभा के परिणाम बतलाएंगे कि भाजपा की यह रणनीति कितनी कारगर सिद्घ होती है?

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