प्रेस क्लब रायपुर द्वारा आज शाम 5:00 बजे IST पर विरोध प्रदर्शन प्रस्तावित है, यह मुद्दा तभी शांत हो सकता है जब सरकार अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करे या प्रेस के साथ बातचीत करे। स्वास्थ्य मंत्री का पहले का वादा पत्रकारों को समर्थन देने का दबाव बढ़ाता है।
रायपुर मेडिकल कॉलेज और छत्तीसगढ़ स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी हालिया सर्कुलर को लेकर एक गंभीर विवाद सामने आया है। बहुत से पत्रकार और रायपुर प्रेस के पदाधिकारी इसे प्रेस की आज़ादी पर हमला बताकर इसका पुरज़ोर विरोध कर रहे हैं । रायपुर प्रेस क्लब के नेतृत्व में चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा मीडिया सेंसरशिप के संबंध में जारी दिशा-निर्देशों के खिलाफ पत्रकारों का विरोध प्रदर्शन 18 जून 2025 शाम 05 बजे अम्बेडकर प्रतिमा के सामने, कलेक्टोरेट चौक, रायपुर में किया जाना है ।
प्रेस क्लब द्वारा पत्रकार साथियों, प्रबुद्धजनों और आम नागरिकों की उपस्थिति का आग्रह इस टैग लाईन @पत्रकार डरते नहीं हैं, और लिखेंगे और बोलेंगे से किया गया है ।
पत्रकारों की नाराज़गी पिछले दिनों मेडिकल कॉलेज में हुई घटना को लेकर थी।रायपुर मेडिकल कॉलेज में तैनात सुरक्षाकर्मियों (बाउंसरों) के साथ झड़प, और इसके बाद पत्रकारों के विरोध प्रदर्शन की घटनाओं के जवाब में 13 जून 2025 को स्वास्थ्य विभाग ने एक सर्कुलर जारी किया है।
इस सर्कुलर में मीडिया की पहुंच को नियंत्रित करने के प्रोटोकॉल दिए गए हैं। स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने पहले पत्रकारों को काम करने की आजादी का आश्वासन दिया था, लेकिन नई गाइडलाइंस को उनके आश्वासन के खिलाफ माना जा रहा है, जिससे मीडिया सेंसरशिप और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमले के आरोप लग रहे हैं।
क्या है देश दुनिया के बड़े अस्पतालों का प्रोटोकॉल जरा इसे जान लेते हैं।
दुनियाभर के बड़े अस्पतालों, जिसमें भारत और विदेश के शामिल हैं, में मीडिया की पहुंच और मरीजों की गोपनीयता, सुरक्षा, और संचालन दक्षता के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रोटोकॉल होते हैं। अस्पतालों में जो सामान्य प्रथाएँ प्रचलित है हमारे देश के AIIMS (नई दिल्ली) और अपोलो अस्पतालों में आमतौर पर मीडिया लाइजन अधिकारी नियुक्त होते हैं जो पत्रकारों से समन्वय करते हैं। पहुंच सीमित होती है (जैसे प्रेस कॉन्फ्रेंस रूम) और पूर्व अनुमति की जरूरत होती है। इमरजेंसी वार्ड और ICU में अनधिकृत लोगों की एंट्री प्रतिबंधित होती है ताकि मरीजों की गोपनीयता बनी रहे । विदेशों में खास करके अमेरिका (जैसे मेयो क्लिनिक) या ब्रिटेन (जैसे NHS अस्पतालों) में गोपनीयता कानून (जैसे अमेरिका में HIPAA) के तहत मीडिया पहुंच सख्ती से नियंत्रित होती है। पत्रकारों को अनुमति लेनी पड़ती है, और संवेदनशील क्षेत्रों में फिल्मांकन या फोटोग्राफी बिना सहमति के प्रतिबंधित होती है। सुरक्षा कर्मी नियम लागू करते हैं, लेकिन शारीरिक झड़पें दुर्लभ होती हैं और आमतौर पर बातचीत या कानूनी माध्यम से सुलझाई जाती हैं।अधिकतर प्रोटोकॉल में नियुक्त संपर्क बिंदु (जैसे पब्लिक रिलेशंस ऑफिसर), प्रतिबंधित क्षेत्र, और इमरजेंसी रिपोर्टिंग के लिए दिशानिर्देश शामिल होते हैं। पत्रकारों की हिंसा या गिरफ्तारी असाधारण होती है और आमतौर पर संचार या लागू करने में खराबी का संकेत देती है।
छत्तीसगढ़ का सर्कुलर इन प्रथाओं के अनुरूप है, जिसमें मीडिया लाइजन ऑफिसर नियुक्त करना और अनधिकृत पहुंच पर रोक शामिल है। हालांकि, बाउंसरों का इस्तेमाल और रिपोर्टेड झड़प सुझाव देती है कि इसकी लागू करने की शैली आक्रामक रही, जो अच्छे प्रबंधित अस्पतालों में मानक नहीं है।
क्या सर्कुलर आपत्तिजनक है और प्रेस स्वतंत्रता पर हमला है?यह सवाल सबसे ज़्यादा अहम है ।
सर्कुलर अपने आप में, अगर मरीजों की गोपनीयता और अस्पताल संचालन की सुरक्षा के लिए है, तो आपत्तिजनक नहीं है—यह वैश्विक सिद्धांतों से मेल खाता है। लेकिन इसकी लागू करने की शैली और संदर्भ चिंता पैदा करते हैं ।बाउंसर की गिरफ्तारी और मंत्री के पहले के आश्वासन के विपरीत नई पाबंदियाँ सेंसरशिप की कहानी को बढ़ावा दे रही हैं। अगर सर्कुलर भ्रष्टाचार की रिपोर्टिंग को दबाने के लिए इस्तेमाल हो रहा है (जैसा प्रेस क्लब का आरोप है), तो यह अतिरिक्त हस्तक्षेप हो सकता है।
जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ख़तरे की बात है तो प्रेस की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार है, और किसी भी पाबंदी का अनुपात होना चाहिए। अनधिकृत एंट्री रोकने के लिए सर्कुलर प्रभावी हो सकता है, बिना पत्रकारों को अलग-थलग किए, शायद बेहतर समन्वय से न कि शारीरिक बाधाओं या गिरफ्तारियों से।प्रेस क्लब स्वास्थ्य विभाग के सर्कुलर को पत्रकारिता की अखंडता के लिए खतरा मान रहा है, खासकर अगर इसमें पारदर्शिता या मीडिया हितधारकों के साथ विचार-विमर्श की कमी है।
जहां तक जारी सर्कुलर के नियम , निदेशों की बात है तो यह सर्कुलर मीडिया पहुंच को नियंत्रित करने की जरूरत को दर्शाता है, जो अस्पताल प्रबंधन के लिए वैध चिंता है। हालांकि, आक्रामक लागू करना (जैसे बाउंसर तैनाती, गिरफ्तारी) और पत्रकारों के साथ संवाद की कमी ने इसे विवाद का केंद्र बना दिया है। यह प्रेस स्वतंत्रता पर हमला है या नहीं, यह इसके इरादे और लागू करने पर निर्भर करता है—अगर यह सुरक्षा उपाय है, तो यह बचाव योग्य है; अगर यह आलोचना को दबाने का साधन है, तो यह समस्याग्रस्त है।
चिकित्सा शिक्षा विभाग के वे आदेश जिसमें विभाग का अपना अलग दृष्टिकोण है. वहीं मीडिया इस आदेश को अलग नजरिए से देख रही है.
अस्पताल में रोगियों की गोपनीयता, सुरक्षा और शांति बनी रहे, साथ ही मीडिया को भी आवश्यक जानकारी समय पर और सही तरीके से मिल सके इस हेतु कुछ प्रमुख दिशा-निर्देश जारी किये जाते है.
समस्त भाासकीय चिकित्सा महाविद्यालय संबद्ध चिकित्सालयों में एक नामित मीडिया सम्पर्क अधिकारी ( Media Liaison Officer) या जनसम्पर्क अधिकारी ( Public Relations Officer) प्रथम एवं द्वितीय श्रेणी अधिकारी स्तर का नियुक्त करे। इस अधिकारी के माध्यम से ही मीडिया को आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी.
मरीज की गोपनीयता का सम्मान सर्वोपरि है। मीडिया को किसी भी रोगी के बारे में जानकारी, फोटो या वीडियो लेने की अनुमति नहीं दिया जाना है, जब तक की रोगी या उसके कानूनी अभिभावक से लिखित सहमति न हो ।
अस्पताल के अंदर रोगियों के वार्डो या संवेदनशील क्षेत्रों में मीडिया के प्रवेश पर सक्त प्रतिबंध निर्धारित किया जाये।
किसी भी घटना या दुर्घटना के मामले में, रोगियों के नाम, पहचान या चिकित्सा स्थिति का खुलासा नहीं किया जाना है, जब तक कि कानून द्वारा आवश्यक न हो.
मीडिया को अस्पताल परिसर में प्रवेश करने से पहले नामित मीडिया सम्पर्क अधिकारी (Media Liaison Officer) या जनसम्पर्क अधिकारी (Public Relations Officer) से अनुमति लेनी होगी ।
कवरेज के लिए विशिष्ट क्षेत्रों और समय का निर्धारण किया जाये ।
फोटो, वीडियोग्राफी केवल उन्ही क्षेत्रों में अनुमति दिया जाये, जहां कोई रोगी या अन्य संवेदनशील जानकारी उजागर न हो।
लाईव रिपोर्टिंग के लिए भी निर्धारित स्थान और समय निर्धारित किया जाये। ताकि अस्पताल के सामान्य कामकाज में बाधा न हो।
अस्पताल को मीडिया को सही और सटीक जानकारी प्रदान करने लिए एक तंत्र स्थापित किया जाये।
किसी भी महत्वपूर्ण घटना या सार्वजनिक हित के मामले में, अस्पताल को एक प्रेस विज्ञाप्ति जारी करनी होगी या एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करनी होगी ।
मीडिया को दी जाने वाली जानकारी को सत्यापित और अधिकारिक होना चाहिए।
किसी बड़ी दुर्घटना या आपदा की स्थिति में, एक स्पष्ट प्रोटोकॉल होना निर्धारित किया जाये
चिकित्सालयों में एक नामित क्षेत्र स्थापित किया जाये जहां मीडिया कर्मी एकत्र होकर मीडिया सम्पर्क अधिकारी (Media Liaison Officer) या जनसम्पर्क अधिकारी (Public Relations Officer) से जानकारी प्राप्त कर सके.
अस्पताल को अपने सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से भी अस्पताल से संबंधित जानकारी साझा करने के लिए एक नीति बनाये।
सोशल मीडिया पर साझा किये जाने वाली जानकारी अधिकारिक और सत्यापित होनी चाहिए ।
सोशल मीडिया पर रोगियों की गोपनीयता का विषेश ध्यान रखना होगा।
चिकित्सालयों के कर्मचारियों को मीडिया प्रबंधन प्रोटोकॉल के बारे में प्रशिक्षित किया जाये, ताकि वे मीडिया से संबंधित स्थितियों को ठीक से संभाल सके।
यदि कोई मीडिया कर्मी नियमों का उल्लंघन करता है, तो इस संबंध में संबंधित समाचार पत्र एवं न्यूज चैनल के मुख्य संपादक को अस्पताल प्रबंधन द्वारा अवगत कराया जाना चाहिए ।
अस्पताल की छवि और प्रतिष्ठा को बनाये रखना
मीडिया के साथ प्रभावी ढंग से संवाद करना ।
सटीक और समय पर जानकारी प्रदान करना।