Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – संविधान नागरिक जीवन की आचरण संहिता

Editor-in-Chief सुभाष मिश्र

-सुभाष मिश्र

संविधान भारत के नागरिक जीवन की आचरण संहिता है। उसमें आधुनिक भारत की आत्मा प्रकट हुई है। संविधान ने लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों में एकता, समानता और भाईचारा को हमारे जीवन में उतारने की प्रेरणा दी और उसे चरितार्थ करने का रास्ता सुझाया। नागरिक स्वतंत्रता, साम्प्रदायिक सौहाद्र्र मानवीय गरिमा को प्रतिष्ठित करने की दिशा दिखाई। वह संकीर्णता, शोषण और भेदभाव के विरुद्ध है। स्त्री, दलित, अल्पसंख्यक और श्रमजीवी समाज की आकांक्षाओं को संविधान ने वाणी दी है।
संविधान एक खुला दस्तावेज है जिसने संसद को उसमें समयानुकूल परिवर्तन और संशोधन की छूट दी है। यह संविधान की ताक़त है कि वह आवश्यकतानुसार ढाला जा सकता है, लेकिन यही ताक़त उसकी कमज़ोरी बन सकती है। यदि संख्या बल के चलते बहुसंख्यक वर्ग अपने राजनीतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए मनमानी पर उतर आये और अन्य समूहों को पीछे धकियाने और उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन करने लगे, ऐसे ख़तरे दिखाई भी देने लगे हैं।
हमारे आम चुनाव बहुमत के जिस सिद्धांत के आधार पर होते हैं, उसमें एक वोट से विजयी प्रत्याशी भी समूचे निर्वाचक समूह का प्रतिनिधि होता है लेकिन क्या वह उनकी आवाज़ भी बन सकता है, जिन्होंने उसे वोट न दिया हो। असहमत और अल्पमत को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाना अभी भी बाक़ी है। आजकल संविधान पर बहुत बात हो रही है। संविधान की किताब का जब इसके बारे में यह कहा जाता है कि ‘संविधान खतरे में हैÓ या कोई पार्टी जैसे भाजपा, ‘संविधान से खिलवाड़ कर रही हैÓ तो इसका तात्पर्य है कि संविधान की मूल भावना, सिद्धांतों या प्रावधानों का पालन करने में अनदेखी या हेरफेर किया जा रहा है। यह आरोप कई बार राजनीतिक दलों, संगठनों और विश्लेषकों द्वारा लगाया जाता है।
पहले इतना प्रदर्शन नहीं हुआ, संविधान खतरे में है या बदला जाए। यह ध्वनि भी लगातार सुनाई देते हंै। सभी पार्टियां संविधान की दुहाई देती है किन्तु क्या वाकई में संविधान की मंशा के अनुरूप उनका आचरण है। विपक्षी पार्टियों की ओर से अक्सर देखने सुनने में आता है कि हमारी संवैधानिक संस्थाओं जैसे न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सीबीआई या राज्यपाल के कार्यालय का इस्तेमाल पार्टी के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है। मूल भावना को अनदेखा कर भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता, समानता और लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के विपरीत कोई कदम उठाया जा रहा हो। संसद में उचित बहस के बिना या विपक्ष की आवाज को दबाकर कानूनों को पारित करने की लगातार कोशिश हो रही है। लोकतांत्रिक परंपराओं और प्रक्रियाओं को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है।
उस समय देश में जब हम संविधान की स्थापना के रूप में गणतंत्र दिवस के 75 साल पूरे कर रहे हैं तब देश में धर्मनिरपेक्षता और बहुलवाद पर सवाल उठाते हुए विपक्ष भाजपा पर यह आरोप लगा रही है कि वह भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को कमजोर कर रही है और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा दे रही है। उसके उदहारण स्वरुप सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम)को मुसलमानों के साथ भेदभावपूर्ण कहा गया। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने को कुछ लोग संविधान की भावना के खिलाफ मानते हैं। आलोचकों का कहना है कि यह कदम राज्य के लोगों से उनकी सहमति के बिना उठाया गया। लव जिहाद और धार्मिक धर्मांतरण कानून इसे भी संविधान के अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के खिलाफ बताया गया।
लोकतांत्रिक संस्थाओं को प्रभावहीन करने का आरोप भी सत्तारूढ़ दल पर लगाया जाता है। विपक्ष भाजपा सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं जैसे चुनाव आयोग, सीबीआई और न्यायपालिका पर अपने प्रभाव का उपयोग करने के आरोप है। उसके ठीक विपरीत में भाजपा का अपना तर्क पक्ष है। भाजपा ने

कहा कि अनुच्छेद 370 हटाना या सीएए लागू करना संवैधानिक प्रक्रियाओं के तहत किया गया है। भाजपा का दावा है कि उसकी नीतियां किसी धर्म के खिलाफ नहीं है बल्कि ‘सभी के विकासÓ (सबका साथ, सबका विकास) के उद्देश्य से बनाई गई है। भाजपा का कहना है कि वह देश की सुरक्षा और अखंडता को बनाए रखने के लिए कठोर निर्णय ले रही है।
भाजपा ऐतिहासिक संदर्भ का हवाला देते हुए कांग्रेस को संविधान के साथ खिलवाड़ करने की बात कहती है। आपातकाल कॉम इसको बताते हुए कहती है कि (1975-77) को इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाकर मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया था। मंडल आयोग के कारण समाज में विभाजन बढ़ा।
इन सारी बातों के बीच हम सब संविधान के 75 वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे हैं। भारतीय संविधान को लागू हुए आज 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं, जिसे समारोह का केंद्र बिंदु बनाया गया है। परेड के दौरान दो विशेष झांकियां संविधान के इस महत्वपूर्ण मील के पत्थर को प्रदर्शित करेंगी। इसके अतिरिक्त फूलों की सजावट और कार्यक्रम के अंत में छोड़े जाने वाले गुब्बारे भी इस थीम को दर्शाएंगे। गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया है। उनके साथ 160 सदस्यीय मार्चिंग दल और 190 सदस्यीय बैंड दल भी परेड में भाग लेगा, जो भारत और इंडोनेशिया के बीच मजबूत होते संबंधों का प्रतीक है। परेड की शुरुआत 300 सांस्कृतिक कलाकारों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों के संगीत, वाद्ययंत्र बजाकर की जाएगी जो भारत की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करने जा रहे हंै।
गणतंत्र दिवस समारोह की श्रृंखलाओं में वीर गाथा का आयोजन किया जा रहा है। जिसमे सशस्त्र बलों के वीरतापूर्ण कार्यों और बलिदानों के बारे में बच्चों को प्रेरित करने के लिए ‘वीर गाथाÓ का तीसरा संस्करण आयोजित किया गया, जिसमें पूरे भारत से लगभग 1.76 करोड़ छात्रों ने भाग लिया।
यदि हम अपने ‘गणतंत्रÓ को मजबूत करना चाहते हैं तो हमें संविधान की प्रस्तावना के अनुरुप ‘हम भारत के लोगÓ की भावना को समझना होगा।

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