हबीब तनवीर , दाऊ मंदराजी , रामचन्द्र देशमुख , रामदयाल तिवारी के छत्तीसगढ़ की संगीत नाट्य परम्परा को , यहां के रंगमंच को और सूरूज बाई खांडे जैसी भरथरी गायिका की गायन कथा को अपने नाटक भरतरी के ज़रिए भूपेन्द्र साहू ने जीवंत कर दिया । रायपुर के रंग मंदिर में अरसे बाद भरतरी वैराग्य की गाथा के रूप में एक शानदार प्रस्तुति हुई , कुछ दर्शकों को रतन थियम के यहां हुए नाटक की याद ताज़ा हो गई ।नाटक को मंत्री टंकराम वर्मा और उनके साथ राजनीति से जुड़े लोगों पूरा देखा और मंच से नाटक की सराहना की और मंत्री टंकराम वर्मा ने गाना भी गाया । इस मौक़े पर पद्मश्री मदन चौहान , ममता चन्द्राकर .आर एस बारले सहित बड़ी संख्या में कला संस्कृति और सिनेमा से जुड़े दर्शक उपस्थित थे ।
नाटक का कथा सार –
रानी फुलवा सब तरह की सुख सुविधा , ऐश्वर्य के बाद संतान नहीं होने से दुखी है । भगवान प्रकट होकर उसे आशीर्वाद देते और भरथरी पैदा होता है ।बड़ा होकर भरथरी पशु शिकार के कारण अभिशप्त हो जाता । वो पश्चाताप के लिए भगवान गोरखनाथ के पास जाकर वैराग्य की बात करता है । गोरखनाथ उसे जाकर विवाह करने , परिवार बसाने की सलाह देते है । भरथरी का विवाह धूमधाम से होता ।
सुहागरात को उसका चाँदी का पलंग टूट जाता है और उसकी पत्नी रानी सामगेई ठहाके लगाती है । वह जब इस हँसी की वजह जानना चाहता है तो रानी सामदई उसे ये जानने अपनी बहन रानी रूपदई के पास दिल्ली भेजती है । रूपदई भरथरी से 7 जन्म पूर्ण होने के बाद पलंग टूटने का रहस्य बता सकती है । दोनों के बीच संवाद होता है और रानी रूपदेही बताती है की उसके जीवन का यह अंतिम दिन है ।
वो सात जन्म के बाद यह रहस्य बतायेगी ।रानो रूपदेही और राजा भरथरी के बीच हो रहे थे. जिसके बाद रानी ने सुवा, कछुआ गाय जैसे अनेक पशुओं के शरीर में जन्म लेकर रानी रूपदई सूआ के अलग-अलग परिधान में आती है ,और अंत में राजा भरथरी के यहां बेटी के रूप में जन्म लेती है इसके बाद रानी रूपदेही राजा भरथरी, बताती है तुम्हारी रानी सामदेई तुम्हारे पहाले जन्म में तुम्हारी माँ थी ।
भगवान गोरखनाथ राजा भरथरी को अपनी पत्नी के सामने माँ संबोधन के साथ भिक्षा माँगकर लाने कहते हैं तभी उन्हें वे अपना शिष्य बनायेंगे । पूरे नाटक में भरथरी गायन का मूल गीत स्वर सुनाई देता है ।
“घोड़ा रोय घोड़सार म अउ हाथी रोवय हाथीसार म, भोर रानी ये ओ महल म रोवय, मोर राजा रोवय दरबारे ओ. दरबारे ओ. भाई ये दे जी…” । भरथरी गायन की प्रस्तुति घोड़ा रोये गायन के बिना अधूरी है। भरथरी गायन और संगीत की शुरुआत इससे होती है। उज्जैन के महाराजा भरथरी की जीवनगाथा पर आधारित वैराग्य नाट्य की प्रस्तुति ने रंग मंदिर में मौजूद सभी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया ।
थोड़ी बात नाटक के कथानक ओर भरथरी गायन के बारे में छत्तीसगढ़ में भरथरी की कथा एक प्राचीन और लोकप्रिय लोकगाथा है, जो राजा भरथरी (भर्तृहरि) और उनकी रानी पिंगला के जीवन से जुड़ी है। यह कथा उज्जैन के राजा भरथरी, जो राजा विक्रमादित्य के भाई थे, के वैराग्य, त्याग और दुखों की कहानी है। यह गाथा छत्तीसगढ़ में योगियों द्वारा सांरण या एकतारा जैसे पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ गाई जाती है, और इसे “भरथरी गायन” के नाम से जाना जाता है। इस गायन में भावनात्मक और आध्यात्मिक गहराई होती है, जो श्रोताओं को जोड़ती है।
भरथरी गायन की विशेषताएँ की बात की जाए तो भूपेन्द्र साहू ने अपने नाटक में भरथरी गायन में राजा भरथरी के जीवन, रानी पिंगला के साथ उनके संबंध, और अंततः वैराग्य की ओर उनकी यात्रा को दर्शाया गया है।
नाटक में काफ्ट के ज़रिये चीतल , घोड़े की बहुत नृत्यात्मक प्रस्तुति की गई ।कुछ किंवदन्तियों, दंत कथाओं और लोक कल्पनाओं के सतत् प्रवाह के इतर भी कुछ लोक गाथा ऐसी हैं, जो इतिहास के साक्षी रहे हैं।छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरातल पर एक ऐसी ही समृध्द लोक गाथा है “भरथरी” जिसमें एक ओर सिसकते दाम्पत्य की विरह वेदना के करुण स्वर हैं, तो दूसरी ओर हैं, त्याग, तपस्या, और संकल्पित वैराग्य का प्रखर भाव भी ।
लोक गाथा “भरथरी” देश के अन्य राज्यों में भी अपने पृथक स्वरूपों के साथ विद्यमान है ।
भूपेन्द्र साहू ने अपनी प्रस्तुति “भरथरी” वैराग्य की गाथा, छत्तीसगढ़ में प्रचलित व मान्य तथ्यों को चूंकि छत्तीसगढ़ में भरथरी, गायन शैली में प्रचलित है, यहां की भरथरी गायन शैली को पहली बार मंच पर नाटक शैली में प्रस्तुत किया गया जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा ।
रहस्य और रोमांच से भरी भरथरी वैराग्य की यह नाट्य प्रस्तुति 1 घंटे 20 मिनट थी ।भूपेन्द्र साहू ने अपनी इस नाट्य में राजा भरथरी की जीवनगाथा को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया ।इस नाट्य मंचन ने राजा भरथरी की गाथा को जीवंत कर दिया। नाटक में राजा भरथरी के संघर्ष, प्रेम और वैराग्य को बखूबी दर्शाया गया, नाटक के कलाकारों ने अपने अभिनय से दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने में सफलता प्राप्त की। संवादों और पारंपरिक संगीत ने प्रस्तुति को और भी प्रभावशाली बना दिया। समय काल के अनुसार परिवेश , परिधान , मंच सज्जा , प्रकाश व्यवस्था थी जिसने दर्शकों को प्रभावित किया । रंग सरोवर और संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन के संयुक्त तत्वावधान में लोकनाट्य उत्सव का दो दिवसीय आयोजन लगातार रायपुर , भिलाई और राजनांदगाँव में होने जा रहा है ।
भरथरी नाटक में अभिनय ,काफ्ट और संगीत मय गायन की संतुलित प्रस्तुति देखते बनती थी । भरथरी की कथा ने दर्शकों को अंत तक बाँधे रखा । नाटक समाप्त होने के बाद भी दर्शक अपनी जगह पर बैठे रहे ।नाटक का आलेख गीत संगीत और निर्देशन भूपेन्द्र साहू का था ।भारत भवन में बतौर कलाकार 13 सालों तक काम करने वाले भूपेन्द्र ने बाबा कारंत , बी एम शाह , रॉबिन दास , सुभाष उदगाता , शेखर वैष्णवी , फ्रिट्ज बेनेविटज ( जर्मन ) जार्ज लावान्दो ( फ्रांस ) जॉन मार्टिन (लंदन ) जैसे दिग्गज रंग निदेशकों के सानिध्य में जो सीखा , उसकी साफ़ झलक आज की प्रस्तुति में दिखाई दी ।गरियाबंद जिले में आने वाले अपने गाँव बारूका में 2006 से रंग सरोवर संस्था का संचालन करने वाले भूपेन्द्र साहू ने छत्तीसगढ़ी सिनेमा में गीत -संगीत , पटकथा लेखक और निदेशक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । वे अभी तक छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश , उड़ीसा में 1500 सेअधिक मंचीय प्रस्तुति दे चुके हैं ।उनकी प्रमुख नाट्य प्रस्तुतियों में मया के मड़वा (छत्तीसगढ़ी आदिवासी समाज के विवाह संस्कार पर आधारित प्रेममयी प्रस्तुति)
रंग चौमासा (छत्तीसगढ़ की पुरातन लोक परंपराओं पर आधारित प्रस्तुति),मिठाईवाला (हास्य नाटक का चंथन)
मया के बैधना (ऐतिहासिक नाटक),मुसाफिरी छत्तीसगढ़ के घुमन्तु जाति की संस्कृति पर आधारित),दामिनी (महिला उत्पीड़न पर आधारित गीत नाटक)
ऊजी (मिथिलेश्वर की कहानी बाबूजी पर आधारित नाठक का छत्तीसगढ़ी नाचा शैली में चंथन)
कुर्बानी (देशभक्ति पर आधारित लघु नाटिका)
सुध (छत्तीसगढ़ के बिसरते गीतकारों, संगीतकारों एवं गायक, गायिकाओं पर आधारित प्रस्तुति शमिल है ।
भरथरी नाटक का हर पक्ष बहुत सधा हुआ था यदि नाटक के मंच पर काम करने वाले कलाकारों की बात की जाये तो मंच पर राजा भरथरी की भूमिका में मिथुन खोटे
रानी फुलवा (भरथरी की माँ) के रोल में भावना वाघमारे
भगवान / गोरखनाथ की भूमिका में चन्द्रहास बघेल
रानी सामदेई (भरथरी की पत्नी) की भूमिका में योगिता मढ़रिया रानी रूपदेई (भरथरी की साली)की भूमिका में जागेश्वरी मेश्राम
कैना के रोल में जागेश्वरी मेश्राम,चंपा चेरी के रूप में निधि साहू / रोशनी वर्मा ,काला मिरगा/सेउक की भूमिका में दीपक कुमार ध्रुव,मिरगिन के रोल में रोशनी वर्मा, निधि, योगिता, सिन्धु, जागेश्वरी,कथावाचक (बबा) अमरसिंह लहरे और कथा सुनने की ज़िद करने वाले नाती की भूमिका में – उत्तम साहू थे । सभी ने बहुत ही सहज अभिनय किया ।
चूँकि नाटक गायन शैली में था और जिसने दर्शकों को बांधे रखा गायन स्वर देने वालों में राजेन्द्र साहू, गंगा प्रसाद साहू, योगिता मढ़रिया, सिन्धु सोन शमिल थे वाद्य वृन्द पर
भारत बघेल, मोहन साहू, मोनू पाटिल, खोम यादव गिरवर साहू संगीत को संयोजित कर रहे थे ।मंच परे
मंच सज्जा उत्तम साहू, दीपक ध्रुव, चन्द्राहास बघेलवेशभूषा एवं हस्त सामग्री भावना वाघमारे, दीपक ध्रुव ,ध्वनि प्रभावचेतन साहू
प्रकाश प्रभाव ,भूपेन्द्र साहू/लव कुमार साहू/बड़का
प्रस्तुति व्यवस्थापक , मलयज साहू/लव कुमार साहू
प्रचार प्रसार , मलयज साहू/अजय मेश्राम
समन्वयक , पद्मश्री आर.एस. बारले उद्घोषणा ,RJ नमित साहू
प्रस्तुति रंग सरोवर की थी जिसका पता-ग्राम बारूका, पोस्ट-पोड़, तहसील व जिला-गरियाबंदछत्तीसगढ़, पिन – 492109
सूरुज बाई खांडे की स्मृति को समर्पित इस आयोजन में बीच मंच पर उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धांजलि दी गई ।
सूरुज बाई खांडे छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध भरथरी गायिका थीं, जिन्होंने इस लोकगाथा को अपनी विशिष्ट गायकी से देश-विदेश में प्रसिद्धि दिलाई। उनका जन्म बिलासपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था, और उन्होंने भरथरी गायन को मंच पर एक नई पहचान दी। उनकी गायकी में भावनात्मक गहराई और पारंपरिक शैली का अनूठा संगम था, जिसने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया। सूरुज बाई ने न केवल भरथरी, बल्कि लोरिक-चंदा कथा जैसे अन्य लोकगीतों को भी गाया। दुर्भाग्यवश, 10 मार्च 2018 को 69 वर्ष की आयु में बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु को “एक सूरज का अस्त” कहा गया, क्योंकि उन्होंने छत्तीसगढ़ की लोककला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
सूरुज बाई के अलावा, छत्तीसगढ़ में कई अन्य कलाकारों हैं , दो भरथरी कथा कहते है उनमें रेखा जलक्षत्री (रेखा देवार): सूरुज बाई के बाद रेखा जलक्षत्री को भरथरी गायन की प्रमुख गायिका माना जाता है। वे मांढर, रायपुर से हैं और छत्तीसगढ़ी लोकगाथाओं को अपनी गायकी से जीवंत करती हैं।सरस्वती निषाद: दुध मोंगरा, गंडई की यह गायिका भी भरथरी गायन के लिए जानी जाती हैं। उनकी शैली में पारंपरिक छत्तीसगढ़ी लोक की झलक मिलती है। छत्तीसगढ़ में भरथरी गायन की परंपरा में योगी समुदाय का विशेष योगदान रहा है। वे सांरण या एकतारा के साथ गीत गाते हैं और अपने आपको गीतों में “योगी” कहते हैं।