शिव महापुराण कथा का दिव्य प्रवाह…शिव–पार्वती विवाह प्रसंग ने भक्तों किया भाव-विभोर

आज के प्रवचन में स्वामी ज्योतिर्मयानंद सरस्वती जी ने शिव–पार्वती विवाह प्रसंग को अत्यंत भावपूर्ण और शास्त्रोक्त विधि से प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—ये चारों पुरुषार्थ शिव आराधना से सहजता से प्राप्त होते हैं, क्योंकि शिव ही ज्ञान, ऊर्जा, प्राण और समग्र सृष्टि के आधार हैं।
स्वामी जी ने कहा कि शिव ने शक्ति को आदिशक्ति जगदम्बा के रूप में प्रकट कर सृष्टि की रचना का शुभारंभ किया। आदिशक्ति की अष्टभुजाएं अपार सामर्थ्य का प्रतीक हैं, जिनकी उपासना से मनुष्य को दिव्य बल प्राप्त होता है।

सूत जी महाराज के पुराण वचनों का उल्लेख करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि आदिशक्ति जगत को मोहिनी रूप में संचालित करती हैं, वहीं शिव कर्पूर-गौर रूप धारण कर कामदेव को भी मोहित कर देते हैं। धतूरा, शमीपत्र, अक्षत और जलाभिषेक शिव को अत्यंत प्रिय हैं, जो उनके सर्वांग पूजा का आधार है।

गौ महिमा पर बोलते हुए स्वामी जी ने कहा कि गौ सेवा ही देव सेवा है, क्योंकि 33 करोड़ देवता गौ माता के शरीर में वास करते हैं। उन्होंने बताया कि मृत्यु के समय मनुष्य का कोई साथ न दे, परंतु गौ माता का दर्शन और स्पर्श ही जीव को मोक्ष की ओर ले जाता है।

स्वामी जी ने बताया कि सलधा स्थित सपाद लक्ष्मेश्वर धाम में सवा लाख शिवलिंग स्थापना का विराट आयोजन चल रहा है, जहां देश-विदेश से श्रद्धालु अपने और अपने परिजनों के नाम से शिवलिंग अर्पित कर रहे हैं। यहां एक शिवलिंग से सवा लाख शिवलिंगों का जलाभिषेक होने का अद्भुत पुण्य प्राप्त होगा। धाम में गौ सेवा, विद्यार्थी शिक्षा और लोककल्याण के विविध कार्य भी संचालित हैं।

कथा के समापन में स्वामी जी ने कहा कि शिव स्मरण मात्र से ही जीव को पुण्य प्राप्त होता है, और पार्थिव पूजा करने वाला भक्त सायुज्य मुक्ति का अधिकारी बन जाता है। उन्होंने बताया कि काशी शिव को अत्यंत प्रिय है और उसका निर्माण स्वयं भगवान शिव ने किया है।
भक्तों ने स्वामी जी के दिव्य प्रवचनों का आनंद लिया और कथा स्थल पूरे दिन शिवमय माहौल से आलोकित रहा

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