:विशाल ठाकुर:
धमतरी । दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण मे श्रीमद् भागवत कथा चल रही है। इस कथा में भागवताचार्य द्वारा गिरिराज महाराज की पूजा और भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया गया।
भागवताचार्य धाम वृद्धावन पूर्वी शुक्ला ने गिरिराज पर्वत के महत्व का वर्णन करते हुए बताया कि गोकुल के सभी ग्रामवासी पहले भगवान इंद्र की पूजा करते थे। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि वे इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं। नंद बाबा ने उत्तर दिया कि इंद्र उनके भगवान हैं।

भगवान श्रीकृष्ण ने नंद बाबा को समझाया कि गोवर्धन पर्वत पर उनकी गौ माताएं घास चरती हैं और विचरण करती हैं, इसलिए उन्हें गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। नंद बाबा पहले तो संशय में पड़ गए कि इंद्र की पूजा न करने पर वे नाराज हो सकते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण के बार-बार समझाने पर नंद बाबा सहमत हुए। उन्होंने सभी गांववासियों को एकत्रित कर पकवान और पूजा सामग्री तैयार करवाई। गोवर्धन पर्वत पर पहुंचकर सभी ने पूजा-अर्चना शुरू की। यह देखकर इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी।

वर्षा से गोकुलवासी और गोवंश हाहाकार करने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और उसके नीचे सभी गोवंश तथा गोकुलवासियों को आश्रय दिया। इंद्र ने भरपूर वर्षा की, लेकिन वे उनका कुछ भी बिगाड़ नहीं सके। तभी से गिरिराज महाराज की पूजा प्रतिदिन होने लगी। दंतेश्वरी मंदिर प्रांगण मे मे चल रही श्रीमद् भागवत कथा में शनिवार देर शाम को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। कथा के दौरान जैसे भगवान का जन्म हुआ तो पूरा पंडाल नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की के जयकारों से गूंज उठा। इस दौरान लोग झूमने-नाचने लगे।
कथा व्यास पूज्य पूर्वी शुक्ला वृन्दावन ने कहा कि कलयुग में भागवत की कथा सुनने मात्र से हर प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है। कथावाचक ने कहा कि भागवत कथा एक ऐसी कथा है जिसे ग्रहण करने मात्र से ही मन को शांति मिलती है। भागवत कथा सुनने से अहंकार का नाश होता है। भागवत कथा के आयोजन से श्रद्धालुओं में खुशी का माहौल है। भगवान श्रीकृष्ण की वेश में नन्हें बालक के दर्शन करने के लिए लोग लालायित नजर आ रहे थे। कथा वाचक ने कहा कि जब धरती पर चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई, चारों ओर अत्याचार, अनाचार का साम्राज्य फैल गया तब भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी के आठवें गर्भ के रूप में जन्म लेकर कंस का संहार किया। इस अवसर पर उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की विभिन्न बाल लीलाओं का वर्णन किया।