Editor-in-Chief सुभाष मिश्र की कलम से – चलो स्कूल चलें हम

चलो स्कूल चलें हम

खूब पढ़ो, आगे बढ़ो और छत्तीसगढ़ का गौरव बनो

-सुभाष मिश्र
छत्तीसगढ़ में गर्मी की छुट्टी के बाद 16 जून से स्कूल खुल गये। सभी बच्चों ने एक दूसरो से कहा चलो स्कूल चले हम। जो स्कूल नहीं जाना चाहते थे, उन्हें भी उनके माता-पिता ने स्कूल का रास्ता दिखाया। तमाम युक्तियुक्तकरण, पढ़ो-बढ़ो अभियान और नई शिक्षा नीति के प्रभावी क्रियान्वयन के बावजूद अभी भी बहुत से बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है। यदि हम इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करें तो पायेंगे की माता-पिता में जागरूकता की कमी, स्कूल से घर की दूरी और गरीबी के कारण बहुत सारे घरो के बच्चों की प्राथमिकता बदल जाती है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जरूर प्यारे बच्चों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं कि आज से स्कूल की घंटी फिर से गूंजने लगी है। नई किताबों की खुशबू, नई कक्षा का उत्साह और नए सपनों के साथ फिर से एक नई शुरुआत हो रही है। आज का यह दिन हम सबके लिए विशेष है। मैं आप सभी से कहना चाहता हूँ कि खूब मन लगाकर पढिय़े, जिज्ञासा के साथ प्रश्न पूछिए, उत्तर खोजिए और आगे बढि़ए।

आपकी शिक्षा, आपका उज्ज्वल भविष्य हमारी प्राथमिकता है। हमारी सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि अब कोई भी विद्यालय शिक्षक विहीन न रहे। हम हर वह प्रयास कर रहे हैं, जिससे शिक्षा का बेहतर वातावरण बने। हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई शिक्षा शिक्षा नीति के संकल्पों के अनुरूप बदलाव कर पूरे प्रदेश के भविष्य को संवारने का प्रयास किया है। आप केवल मन लगाकर पढिय़े, बाकी की चिंता मुझ पर छोड़ दीजिये। खूब पढ़ो, आगे बढ़ो और छत्तीसगढ़ के गौरव बनो। छत्तीसगढ़ में नये शिक्षा सत्र में कई महत्वपूर्ण बदलावों और सुधारों के साथ आया है, जिनमें शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण, एक ही कैंपस में संचालित विभिन्न नियंत्रण वाले स्कूलों का एकीकरण, नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) का क्रियान्वयन, और शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी मैदानी चुनौतियाँ शामिल हैं।

सरकार ने एक ही कैंपस में चल रहे अलग-अलग नियंत्रण वाले स्कूलों को एक करने का फैसला किया, जिससे 10,372 स्कूलों का एकीकरण होगा। नई शिक्षा नीति में यह प्रवधान है कि स्कूल काम्पलेक्स का निर्माण किया जाये ताकि एक ही परिसर में हाईस्कूल, मीडिल स्कूल और प्राइमरी स्कूल संचालित हो। अभी स्कूलों में कहीं बीईओ का नियंत्रण है तो कहीं संकुल के प्रचार्य का वे कई बार एक दूसरे के बात नहीं मानते। अब एक नियंत्रणकर्ता अधिकारी होने से बेहतर संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और वे संसाधनों का आपस में बांट भी सकेगें। अक्सर बच्चों को नि:शुल्क वितरित की जाने वाली पाठ्यपुस्तकों के वितरण में गडबड़ी और उनके बाजार में रद्दी में बिकने की खबरें आती थी। इस वर्ष पुस्तकों में डबल बार कोर्ड किया गया है। पुस्तक के पैकेट के उपर जिला और संकुल का बार कोर्ड होगा और किताबों में अलग से बार कोर्ड होगा जिस स्कूल में पहुंचने के बाद स्केन होने के बाद ही किताब वितरित की जायेगी। यदि कोई किताब बाहर काबाड़ में बेची जाती है तो यह असानी से पता चल जायेगा कि किस जिले की किस संकुल की, और किस स्कूल की किताब है। इस बार सरकारी स्कूल के बच्चों को निशुल्क दी जाने वाली गणवेश को निजी स्कूलों में गणवेश के अनुरूप अलग कलर देकर अपग्रेड किया जा रहा है। ताकि बच्चों में एक अलग तरह का कॉन्फिडेंस बना रहें हैं। निजी विद्यालयों को भी इस बार बहुत सारी हिदायतें दी गई है, विशेष कर के उनके द्वारा संचालित बसों का रख-रखाव व अनुभवी ड्राइवर की नियुक्ति पर। स्कूली शिक्षा मेंं हो रहे सुधारों की वजह से स्कूल छोडऩे की दर कम होगी, स्थानांतरण प्रमाणपत्र की आवश्यकता समाप्त होगी, और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की पहुंच बढ़ेगी। सुविधाओं जैसे कंप्यूटर लैब, विज्ञान लैब, खेल, और सांस्कृतिक गतिविधियों में सुधार की उम्मीद है, साथ ही प्रशासनिक प्रणाली मजबूत होगी।

छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों और स्कूलों के युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया शुरू की है। इसका उद्देश्य शिक्षक-विहीन स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती और संसाधनों का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना है। युक्तियुक्तकरण के आँकड़े, पर नजर डाले तो हम पाते है कि राज्य में 453 शिक्षक-विहीन स्कूलों में से 447 स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती कर दी गई है। 14,000 से अधिक शिक्षकों की नई पदस्थापना की गई, जिससे एकल शिक्षक वाले स्कूलों की समस्या को भी संबोधित किया गया। शिक्षा विभाग के अनुसार, 5,370 शिक्षक (3,608 प्राथमिक और 1,762 पूर्व माध्यमिक) अतिशेष पाए गए, जिन्हें जरूरतमंद स्कूलों में स्थानांतरित किया जा रहा है।

वहीं दूसरी ओर युक्तियुक्तकरण नीति को लेकर शिक्षकों में गहरा असंतोष है। शिक्षक साझा मंच ने इस नीति को ‘दोषपूर्ण’ करार देते हुए विरोध शुरू किया है। 16 जून को पहले दिन शिक्षकों ने काली पट्टी बाँधकर प्रदर्शन किया और आंदोलन को विस्तार देने की रणनीति बनाई। शिक्षकों का कहना है कि स्थानांतरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और स्थानीय परिस्थितियों को नजर अंदाज किया गया है। वहीं मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का कहना है कि युक्तियुक्तकरण का निर्णय छात्रों के हित में है और इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। सरकार ने स्पष्ट किया कि कोई स्कूल बंद नहीं होगा, केवल अतिशेष शिक्षकों को अन्य स्कूलों में स्थानांतरित किया जाएगा। सरकार द्वारा नये शिक्षा सत्र की पहल करते हुए एक नियोजनकर्ता को जिम्मेदाराी सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ में कई स्कूल एक ही कैंपस में अलग-अलग प्रशासनिक नियंत्रण (जैसे प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक) के तहत संचालित हो रहे थे। सरकार ने इन्हें एकीकृत करने का निर्णय लिया है ताकि संसाधनों का बेहतर उपयोग हो और प्रशासनिक जटिलताएँ कम हों।

शिक्षक-छात्र अनुपात (पीटीआर) की बात की जाये तो छत्तीसगढ़ का प्राथमिक स्कूलों में पीटीआर 20:1 है, जो राष्ट्रीय औसत (29:1) से बेहतर है। पूर्व माध्यमिक स्कूलों में भी पीटीआर राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। सरकार जल्द ही 5,000 शिक्षकों की भर्ती शुरू करने जा रही है, जिससे शिक्षक-छात्र अनुपात और बेहतर होगा।
मैदानी चुनौतियाँ में शिक्षकों की कमी, स्कूल भवनों की खराब स्थिति, और संसाधनों की कमी शामिल हैं। 22प्रतिशत स्कूल भवनों को मरम्मत की जरूरत है, और 14प्रतिशत शिक्षकों ने टॉयलेट, बिजली, और पेयजल सुविधाओं की कमी की शिकायत की है। भाषा असमानता भी एक चुनौती है, क्योंकि 54-68प्रतिशत छात्रों के लिए घर और स्कूल की भाषा एक जैसी नहीं है। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) 2017 के अनुसार, छात्रों का प्रदर्शन विषय और कक्षा के अनुसार भिन्न है, जैसे कक्षा 3 में गणित (60प्रतिशत), ईवीएस (62प्रतिशत), भाषा (65प्रतिशत), कक्षा 5 में गणित (47प्रतिशत), ईवीएस (53प्रतिशत), भाषा (55प्रतिशत), और कक्षा 8 में भाषा (56प्रतिशत), विज्ञान ईवीएस (44प्रतिशत), गणित ईवीएस (36प्रतिशत), समाजिक विज्ञान (45प्रतिशत)। जिला-वार प्रदर्शन में सुरजपुर और बलरामपुर अग्रणी है, जबकि दंतेवाड़ा और कांकेर पिछड़े हुए हैं।

एएसईआर 2024 की रिपोर्ट राष्ट्रीय और छत्तीसगढ़ के संदर्भ में देखा जाये तो एएसईआर 2024 की रिपोर्ट, जो 28 जनवरी 2025 को जारी की गई, ग्रामीण भारत में मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता (Foundational Literacy and Numeracy – FLN) पर केंद्रित है। यह 6,49,491 बच्चों को कवर करते हुए 17,997 गाँवों में आयोजित की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, कोविड के बाद सीखने की रिकवरी दिख रही है, लेकिन कई क्षेत्रों में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख निष्कर्ष (एएसईआर2024) के अनुसार कक्षा 8 के 45.8 फीसदी छात्र बुनियादी अंकगणितीय समस्याएँ (जैसे तीन अंकों की संख्या को एक अंक से भाग देना) हल कर सकते हैं, जो पिछले वर्षों की तुलना में मामूली सुधार दर्शाता है। कक्षा 5 के लगभग 50 पीसदी छात्र कक्षा 2 स्तर की पाठ्यपुस्तक पढ़ सकते हैं, लेकिन कक्षा 8 तक यह आँकड़ा 75 पीसदी तक पहुँचता है। 6-14 वर्ष आयु वर्ग के 96 फीसदी से अधिक बच्चे स्कूल में नामांकित हैं, लेकिन निजी स्कूलों में नामांकन में मामूली वृद्धि देखी गई। लड़कियों का प्रदर्शन पढऩे में लडक़ों से बेहतर है, लेकिन अंकगणित में अंतर कम है।