:राजकुमार मल:
भाटापारा- अहम है खेतिहर भूमि का भौगोलिक ज्ञान। ऐसे में ऊंची भूमि के लिए छह प्रजातियों की बोनी को सही माना जा रहा है। मध्य भूमि में 8 ऐसी प्रजाति हैं, जो बेहतर परिणाम देती हैं। गहरी भूमि के लिए सबसे ज्यादा तेरह ऐसी प्रजातियां हैं, जो सही प्रबंधन होने पर रिकॉर्ड उत्पादन देतीं हैं।
बारिश की अनियमित चाल को देखते हुए कृषि वैज्ञानिक अलर्ट मोड पर हैं। धान उत्पादक किसानों से कहा जा रहा है कि बोनी के पूर्व खेतों की भौगोलिक स्थिति का भली- भांति आकलन करें। इसी तरह की सावधानी धान बीज के लिए प्रजाति चयन में भी रखें। बोनी से लेकर कटाई तक प्रबंधन चुस्त रखें, तब ही अपेक्षित उत्पादन हासिल कर पाएंगे।
भौगोलिक स्थिति इसलिए अहम
ऊंची भूमि में जल प्रबंधन हमेशा से कठिन रहा है क्योंकि बहाव नीचे की ओर जाता है। यह स्थिति समय पर पानी की जरूरत को पूरा नहीं होने देती। ऐसी ही स्थिति मध्य भूमि में भी बनती है क्योंकि नीचे की भूमि, उच्च और मध्य भूमि का जल, रिसाव के जरिए खींच लेती है। इसलिए बोनी के पूर्व धान की ऐसी प्रजातियों का चयन करना अहम होगा, जो प्रतिकूल स्थिति का सामना करने में सक्षम हैं।
शॉर्ट ड्यूरेशन में 6 प्रजातियां
ऊंची जमीन पर 100 दिन में तैयार होने वाली प्रजातियों में पूर्णिमा, इंदिरा बरानी, नागकेसर, क्रांति, बस्तर धान- वन और शामला की अनुशंसा की गई है। यह प्रजातियां न केवल सूखा सहिष्णु हैं बल्कि प्रतिकूल मौसम में भी बेहतर उत्पादन देती है लेकिन अहम है खरपतवार नियंत्रण और सही प्रबंधन का किया जाना।
आठ प्रजातियां 115 से 120 दिन में
मीडियम ड्यूरेशन वाली प्रजातियों में जिंक राइस, विक्रम-टी सी आर, एम टी यू- 1010, सी जी-1919, महामाया, राजेश्वरी, आई आर-64, स्वर्णा सब -1, एम टी यू -1153। यह आठ ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी बोनी मध्य कम की भूमि में की जा सकती है। परिपक्वता अवधि 115 से 120 दिन मानी गई है।
गहरे खेतों के लिए यह तेरह
जल भराव वाले खेतों के लिए तेरह ऐसी प्रजातियों को अनुशंसित किया गया है, जिनकी बोनी किसान काफी पहले से करते आ रहे हैं। 125 से 135 दिनों की परिपक्वता अवधि वाली इन प्रजातियों में भी प्रबंधन बेहद अहम होगा। विशेषकर पुष्पन की अवधि में निगरानी बढ़ानी होगी। दुर्गेश्वरी, करमा मासूरी, जल दूबी और स्वर्णा तो है ही, साथ ही सुगंधित धान की 8 ऐसी प्रजातियों की भी बोनी किसान कर सकते हैं, जिनकी मांग पूरे साल रहती है। इनमें विष्णुभोग, सिलेक्शन-वन, सांभा मासूरी, दूबराज, रामजीरा-श्याम जीरा, जवांफूल, जीराफूल और तुलसी मंजरी मुख्य है।
भौगोलिक स्थिति के अनुसार करें किस्मों का चुनाव
धान की प्रजातियों का चयन खेत की स्थलाकृति के अनुसार किया जाना चाहिए। ऊँची भूमि में जल संचयन कठिन होता है, अतः शॉर्ट ड्यूरेशन व सूखा सहिष्णु किस्में बेहतर होती हैं। वहीं, मध्यम भूमि में मध्यम अवधि की और गहरी भूमि में अधिक अवधि की किस्में अधिक उत्पादन देती हैं। साथ ही, खरपतवार नियंत्रण, पोषक तत्व प्रबंधन और समय पर कीट नियंत्रण से ही इन प्रजातियों की उत्पादकता सुनिश्चित की जा सकती है।
डॉ. दिनेश पांडे एवं डॉ. डी.जे.शर्मा, साइंटिस्ट, बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर