Women empowerment- सरकार के महिला सशक्तिकरण की भावनाओं व उद्देश्यों की उड़ रही धज्जियां कैसे होंगी सशक्त

महिलायें नाम की निर्वाचित जनप्रतिनिधि
अधिकारी भी जानते हुवे चुप रहने मजबूर
शासकीय दस्तावेजों में भी हस्ताक्षर कर रहे

दिलीप गुप्ता
सरायपाली। देश में 140 करोड़ की आबादी में लगभग आधी आबादी के महत्व से परिचित महिलाओं को सरकार चाहती है कि पुरुषों के बराबर उन्हें भी उनका अधिकार मिले व देश के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी सक्रिय भागीदारी हो सके । डेज़ह में इसके साथ ही ऐसा कोई भी क्षेत्र नही है जहां महिलाओं की सहभागिता व सक्रियता नही हैं । अपने प्रतिभाओं व कार्यो के प्रति उनकी जिम्मेदारी , जवाबदारी व समर्पण भावना के चलते वे आज देश के शीर्ष स्थानों पर भी अपनी भागीदारी निभा रही हैं । देश के राष्ट्रीय व राज्य स्तरों के अधिकांश क्षेत्रो में चुनी गई महिलाये स्वतंत्र होकर कार्यो को अंजाम देती हैं उनके इन कार्यो में पतियों या परिजनों का हस्तक्षेप न के बराबर होता है । वहां महिला सशक्तीकरण का उद्देश्य पूर्ण होता दिखाई देता है किंतु महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य को सर्वाधिक पलीता ग्राम पंचायतों , जनपद पंचायतों , नगर पंचायतो व नगरपालिका परिषदों जो कि स्थानीय स्तर के निकाय हैं में दिखाई देता है ।

इन क्षेत्रों में काफी संख्या में महिलाओं को आरक्षण व अन्य सुविधाएं उनके समाज व राजनीति के साथ साथ अन्य क्षेत्रों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर यह निर्णय लिया गया है ताकि महिलाओं को उनकी प्रतिभा व क्षमताओं का समुचित विस्तार हो सके । किंतु सरकार की इस भावनाओ व उद्देश्यों को उन्ही की पार्टी के सदस्य , पदाधिकारी व चुनी गई महिला जनप्रतिनिधियों के पति , पुत्र व संबंधित लोग लगा रहे हैं । किसी भी शासकीय कार्यक्रमो , शिविरों , व अन्य अवसरों पर बाकायदा कलेक्टर , एसडीएम व सीईओ के साथ महिला प्रतिनिधि दिखाई नही देंगी दिखाई देंगे तो उनके पति या पुत्र । अधिकारियों को भी यह अहसास है कि महिला जनप्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पति या पुत्र कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं पर उनकी यह मजबूरी है कि इसका विरोध वे कर नही सकते । सत्ताधारी पार्टी के नेताओ को कैसे मना किया जा सकता है ।
ऐसा ही नजारा सरायपाली के नगरपालिका परिषद व जनपद पंचायत में चुने गए अधिकांश महिला जनप्रतिनिधियों के पति या पुत्र ही महिलाओं के स्थान पर कार्य करते देखा जा सकता है । कुछ शिक्षित व समझदार महिलाये तो कुछ हद तक स्वयं जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं पर आज भी अनेक ऐसी महिलाएं हैं जो कम शिक्षित हैं व सिर्फ हस्ताक्षर करना जानती है । उस स्थान पर उनके पति या पुत्र कार्यालय से संबंधित पूरी जिम्मेदारी देखते हैं । अभी विभिन्न ग्रामो में शासन की ओर से विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जा रहा है इन आयोजनों में निर्वाचित महिलाओं की कितनी उपस्थिति रही यह प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है । अभी दो दिन पूर्व ही सिंघोड़ा में आयोजित समाधान शिविर में महिला जनप्रतिनिधियों के स्थान पर उनके पतियों व पुत्रो की भागीदारी दिखाई दी । इसी तरह किसी भी कार्यालयों व विद्यालयो में कोई भी शासकीय या संस्थागत कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं तो नाम तो होता है महिला जनप्रतिनिधियों के पर भाग लेते हैं उनके पति या पुत्र । विगत दिनों स्वास्थ्य विभाग में ऐसा ही नजारा दिखाई दिया । अधिकारों व आयोजक भी जानते व समझते हैं कि जिन महिलाओं को आमंत्रित किया गया है उनके स्थान पर उनके परिजन उपस्थित हैं पर उनकी मजबूरी यह है वे जान कर भी इसका विरोध नही कर सकते ।

नगरपालिका में विगत चुनाव में अध्यक्ष सहित कुल 6 महिलाये चुनाव जीत कर आयी हैं । आज भी अध्यक्ष पति को कार्यालय में बैठते व अधिकारी कर्मचारीयो को आदेशित व निर्देशित करते देखा जा सकता है । वही निर्माणाधीन गौरवपथ में किये जा रहे निर्माण कार्यो में अधिकारी व ठेकेदार को निर्देश देते कई बार देखा गया है । इसी तरह की स्थिति कुछ महिला पार्षदों की है । पति व पुत्र ही पार्षद बनकर सभी कार्य अपने अपने वार्डो में कर रहे हैं ।

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जनपद पंचायत के अंतर्गत कुल 107 ग्राम पंचायतें हैं जिनमे 64 महिलाएं सरपंच व 1391 पंचों में 834 महिलाये जीत कर आई हैं । इसी तरह 25 जनपद सदस्यों में 19 महिलाएं जनपद सदस्य व जिला पंचायत के 3 सदस्यों में 2 महिलाएं जिला जनपद सदस्य चुनी गई हैं । जिनमे एक जिला पंचायत महिला सदस्य मोंगरा पटेल जिला पंचायत अध्यक्ष तक पहुंच गई व जनपद अध्यक्ष लक्ष्मी पटेल निर्वाचित हुई ।

आज भी अनेक शासकीय , शिक्षण संस्थाओं , निजी कार्यकर्मो , विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं में मुख्य अतिथि या अध्यक्षता में निर्वाचित महिलाओं का नाम तो रहता है पर अधिकांश कार्यक्रमो में पति या पुत्र ही कार्यक्रमो की शोभा बढ़ाते हैं ।
इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रो में अधिकांश निर्वाचित महिला जनप्रतिनिधियों के कार्य महिलाओं के स्थान पर उनके परिजनों को कार्य करते देखा जा सकता है । कुछ जगहों से यह भी जानकारी आ रही है कि शासकीय व अन्य दस्तावेजो में निर्वाचित महिलाओं के स्थान पर उनके पति या पुत्र महिलाओं के नाम से हस्ताक्षर कर रहे हैं । इसी तरह अपने वार्डो , पंचायतो आदि में निर्माण व विकास कार्यो की स्वीकृति के लिए पतिदेवो को कार्यालयों , पटवारियों आदि के पास चक्कर लगाते देखा जा सकता है । निर्वाचित अधिकांश महिलाएं आज भी अपने अधिकारों , कार्यो व दायित्वों से अनभिज्ञ हैं । जब निर्वाचित महिलाओं को कार्यबाही नही करने दिया जाएगा तो उन्हें जानकारी उन्हें कहाँ से मिलेगी ।वे कैसे समझ पाएंगी की हमे करना क्या है । सिर्फ आरक्षण के झुनझुना पकड़ा दिए जाने से महिलाओं में जागृति व समझदारी नही आयेगी । इसके लिए व्यवहारिक ज्ञान आवश्यक है और वह इन्हें मिल नही रहा है । व्यवहारिक ज्ञान व काम कैसे व किससे करना है इससे अनभिज्ञ महिलाएं कैसे अपने क्षेत्रों का विकास कर पायेगी ।

यदि देश मे व महिलाओं को वास्तविक रूप से सशक्त बनाना है व महिला सशक्तिकरण के उद्देश्यों को पंचायत स्तर तक सफल बनाना है तो महिलाओं को उनके अधिकार , कर्तव्यों के साथ ही उन्हें व्यवहारिक जानकारी व फ्री हैंड देना आवश्यक है साथ ही सरकार को भी स्पष्ट निर्देश जारी करना चाहिए कि वे महिलाओं के कार्यो में हस्तक्षेप न करें

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