Hindi literature : हिन्दी साहित्य के अनमोल धरोहर डॉ. भगवती शरण मिश्र किये गये याद

Hindi literature :

Hindi literature : हिन्दी साहित्य के अनमोल धरोहर डॉ. भगवती शरण मिश्र किये गये याद

Hindi literature :  नयी दिल्ली !  विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं पौराणिक उपन्यासकर डॉ. भगवती शरण मिश्र को शनिवार को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर जानीमानी हस्तियों और परिजनों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी।

https://jandhara24.com/news/109790/the-dead-body-of-the-middle-aged-found-in-the-breaking-kachana-pond-sensation-spread-in-the-area/

Hindi literature :  चिकित्सा के क्षेत्र में सिरमौर लगातार तीन बार भारत के राष्ट्रपति के निजी चिकित्सक रहे डॉ. मोहसिन वली ने अपने श्रद्धांजलि संदेश में कहा, “डाॅ. मिश्र जैसी हस्तियां बार-बार धरती पर नहीं आतीं।

Hindi literature :  एक प्रशासनिक अधिकारी की महती भूमिका का बखूबी निर्वहन करते हुए साहित्य सृजन करना, वह भी है एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं बल्कि 100 से अधिक ‘पुस्तकों का हिमालय’ खड़ा करना, किसी अवतारी पुरुष के ही वश में है।

Hindi literature :  उनकी उपस्थिति साहित्य जगत के आकाश में सूरज की तरह थी। उन्होंने अपनी संतानों काे बहुत अच्छे संस्कार दिये। उनका आशीर्वाद हमेशा बना रहे। हम उन्हें आज के दिन उनकी कमी कुछ ज्यादा ही खल रही हैं। मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि।”

Hindi literature :  पूर्व समाचार संपादक दीपक बिष्ट ने डॉ. मिश्र को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि साहित्य सृजन के क्षेत्र में वह उनके ‘गुरु’ थे।

Hindi literature :
Hindi literature : हिन्दी साहित्य के अनमोल धरोहर डॉ. भगवती शरण मिश्र किये गये याद

बिष्ट ने कहा,“मेरी पहली पुस्तक ‘श्री वृंदावनधाम’ डॉ. मिश्र के प्रयास से छपी थी और उन्होंने पुस्तक की भूमिका भी लिखी थी। बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस अप्रतिम लेखक के नहीं रहने से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है।”

उन्होंने कहा,“ डाॅ. मिश्र की विशेषता यह थी कि वह जो कुछ लिखते थे, उसे जीवन में उतारते भी थे। उनकी कथनी और करनी में तथा आदर्श और व्यवहार में कोई अंतर नहीं था। इस दृष्टि से वह मात्र एक साहित्यकार ही नहीं, बल्कि सच्चे अर्थों में एक मनीषी भी थे।”

संयुक्त राष्ट्र में वरिष्ठ सलाहकार एवं डॉ. मिश्र की सबसे छोटी संतान उषा मिश्रा ने पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए,“ मेरा यह सौभाग्य है कि मैं डॉ. भगवती शरण मिश्र की बेटी कहलाती हूं।

उनको मैं विश्व की महान हस्तियों में इसलिए नहीं शुमार करती हूं कि वह मेरे पिता हैं, बल्कि इसलिए कि वाकई में वह अद्भुत थे। वह महान और विलक्षण व्यक्तित्व थे। साहित्य के क्षेत्र में उनका योगदान अनमोल है।

मैं पिता के रूप में उन्हें महानत की श्रेणी में रखती हूं क्योंकि उनकी परछाईं में हम पले -बढ़े और उनकी सभी क्षमताओं के हम साक्षी बने। उनकी महानता का शब्दों में बयान करना मुश्किल है। अनुशासनपूर्ण एवं संयमित जीवन के सच्चे उदाहरण मेरे पिता जी गुणों की खान थे।

Hindi literature :  अति सुंदर एवं लुभावने रंग-रूप और ऊंची कद-काठी वाले मेरे पिता जी दूर से चमकते थे। उनके चेहरे पर सदा मुस्कान और तेज रहता था। विश्वास नहीं होता कि हमारे सिर से उनका साया उठ गया। बहुत याद आते हैं हमें हमारे ‘हीरो’ हमारे पिता।”

Chhattisgarh’s festival pola : हर्षोल्लास के साथ मनाया गया छत्तीसगढ़ का पर्व पोला

डाॅ. मिश्र की सबसे बड़ी संतान एवं जानेमाने कवि-लेखक जर्नादन मिश्र ने पिता की याद में साहित्यिक संस्था ‘डॉ भगवती शरण मिश्र साहित्य संस्थान’की स्थापना की है। उन्होंने पिता को श्रद्धांजलि देने के लिए बिहार के आरा में आज ‘साहित्य और अध्यत्म विषयक संगोष्ठि’ के नाम से विशेष साहित्य समेल्लन का अयोजन किया है, जिसमें साहित्य क्षेत्र की नामचीन हस्तियां शामिल हो रही हैं।

उन्होंने पिता को श्रद्धांजलि देते हुए कहा,“ मुझे पिता का जाने का गहरा दुख है और यह जीवन भर के लिए है। मैं उन्हें हर वक्त याद करता हूं। उनके संस्कारों को अंगीकार करने और पद चिह्नों पर चलने की कोशिश करता हूं। वह मेरे आदर्श हैं और रहेंगे।”

संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषा के प्रचंड विद्वान की दूसरी संतान एवं भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी. एम. आर) में अधिकारी के रूप में सेवाएं दे चुकी माया पांडेय ने पिता काे याद करते हुए कहा,“जीवन में कभी भी ऐसा मौका नहीं आया जब मैंने किसी चीज की कामना की और उन्होंने उसको पूरा नहीं किया। बचपन में एक बार रात के करीब 12 बजे मैंने जूता खरीदने की जिद और कुछ देर तक रोती रही।

पिता जी उस समय दरभंगा में नगरपालिका में विशेष अधिकारी थे। कुछ देर तक मना करने के बाद कहा कि रात में कहा जूते मिलेंगे, वह अचानक तैयार हो गये। मुझे कार में बैठाकर बाजार घूमाने ले गए। संयोग से एक दुकान खुली थी, जहां से उन्होंने मुझे जूते दिलवाये। ऐसे दयालु थे मेरे पिता जी। जीवन उन्हीं की यादों में गुजर रहा है। उनके जाने के बाद जिन्दगी बेजान-सी हो गयी है। आखिर कैसे भूला सकती हूं मैं उस ‘कोहिनूर’ से पिता को?”

दूसरी पुत्री एवं पटना उच्च न्यायालय में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ( एनआईए) की विशेष अधिवक्ता छाया मिश्रा ने पिता को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा,“ पिता जी के व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में पूरी दुनिया जानती है। मैं तो बस इतना जानती हूं कि आज मैं जिस मुकाम पर हूं वह पिता जी की प्रेरणा का फल है।

जब मैं करीब आठ वर्ष की थी तो उन्होंने किसी बात पर मेरे जवाब को सुनकर कह दिया था ,“ ये बेटी तो वकील बनेगी।” दिल विश्वास ही नहीं करता कि वह इस दुनिया में नहीं है। हर पल उनकी हर बात कानों में गूंजती रहती है। ईश्वर से यही प्रार्थना है वह हर जन्म मेरे पिता बने।”

दूसरे पुत्र एवं भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, कोलकाता,के सहायक महाप्रबन्धक ( राजभाषा), डाॅ. दुर्गाशरण मिश्र ने उनकी पुण्य स्मृति को याद करते हुए कहा,“ पिताजी की अमोघ लेखनी ने मंद पड़े भावों,निस्तेज घटनाक्रमों,धूमिल समय पर चित्रित अविस्मरणीय, अगणित ऐतिहासिक और पौराणिक रेखाचित्रों को स्वर्णिम आभा प्रदान किया था।

उनकी लेखनी सुधी पाठकों को अमृतपान कराती हुई, उन्हें समुज्ज्वल भावों के उच्चतम स्तर पर प्रतिष्ठित कर देती थी। उनकी शतधिक कालजयी साहित्यिक कृतियाँ ( पीताम्बरा,पहला सूरज , प्रथम पुरुष, का के लागूँ पाँव, पावक, पुरुषोत्तम, पद्मनेत्रा, पवन पुत्र, शांतिदूत, मैं राम बोल रहा हूँ , नदी नहीं मुड़ती, सूरज के आने तक, एक और अहल्या इत्यादि) शाश्वत रूप से माँ भारती के चरणों की अमूल्य निधियाँ बनकर भारतीय मानस को उद्वेलित और संस्कारित करती रहेंगी।”

तीसरे पुत्र एवं फिल्म पट कथा लेखक रोहत मिश्र ने पिता को याद करते हुए कहा,‘‘पिता जी सचमुच ऐसी हस्ती थे जो न केवल ‘साहित्यिक गलियारा’ और अतिविशिष्ट प्रशासनिक कला के क्षेत्र में सदियों तक याद किये जायेंगे बल्कि ऐसे लोगों की सूची भी बहुत लंबी है जिन्हें उन्होंने रोजी-रोटी दी। कई स्थानों पर उन्होंने मंदीर बनवाये और शुरू से ही वेतन का 10वां हिस्सा सद्कर्मों के लिए दान दिये। मैं उनकी किस बात जिक्र करूं जिसमें वह अद्वितीय नहीं ? आप हमेशा याद आते हैं मेरे प्यारे पापा। ”

प्रखर प्रवक्ता एवं अर्थशास्त्र में ऐसी पुस्तक लिखने वाले जिनके सुझावों को एक मंत्री ने नगरपालिका में कर निर्धारण के लिए लागू भी किया था,की तीसरी पुत्री एवं एशिया की सर्वश्रेष्ठ समाचार एजेंसी ‘यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूनीवार्ता) में चीफ सब एडिटर डॉ. आशा मिश्रा उपाध्याय ने पिता को भावभीनी श्रद्धांजलि दी और कहा,“ पिता के नहीं रहने पर मेरे लेखन पर जैसे विराम लग गया है।

मैंने अपनी पहली काव्य पुस्तक ‘वह तो शाहजादों -सा शहर था’ उन्हीं की प्रेरणा से लिखी थी। उन्होंने हम सभी भाई-बहनों को अपनी करनी और कथनी से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। वह हमारे लिए किसी ‘देवदूत’ से कम नहीं थे। एक बात कहना चाहती हूं कि वह अभी भी हमारे साथ हैं,विशाल बट वृक्ष की तरह अपनी भुजाओं में हमे समेटे हुए। दिलो-दिमाग में बसे हैं आप ,कैसे कह दूं आप नहीं!”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

MENU