Chhattisgarh’s festival pola : हर्षोल्लास के साथ मनाया गया छत्तीसगढ़ का पर्व पोला

Chhattisgarh's festival pola :

Chhattisgarh’s festival pola : हर्षोल्लास के साथ मनाया गया छत्तीसगढ़ का पर्व पोला

Chhattisgarh’s festival pola : गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व पोला जिले में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। घरों में सुबह से ही त्योहार का खुशनुमा माहौल रहा। कृषि कार्य बंद रखकर किसानों ने कृषि में सहयोग करने वाले मवेशियों की पूजा की।

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Chhattisgarh’s festival pola : त्योहार विशेष पर बनाए जाने वाले पंरपरागत पकवान कृ षक के घरों में बनाए गए।वही नन्हे बच्चों को मिट्टी के बैल और मिट्टी के खिलौनों से बने बर्तनो को सजा कर इस त्योहार का आनंद उठाते देखा गया, पोला पर्व को लेकर बच्चों में काफी उत्साह रहा।

Chhattisgarh’s festival pola : बच्चे मिट्टी के खिलौनों के साथ खेलने में व्यस्त रहे। लोग सुबह से ही पोला पर्व की तैयारियों में जुटे रहे। सुबह से 12 बजे तक परिवार के साथ मिट्टी के नादिया बैल की पूजा नारियल, फूल सहित अन्य पूजन सामग्री चढ़ाकर की गई। पोला पर्व पर चीला भोग का प्रसाद भी चढ़ाया गया।

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Chhattisgarh’s festival pola : हर्षोल्लास के साथ मनाया गया छत्तीसगढ़ का पर्व पोला

किसानों ने अपने पशुधन का पूजन कर आरती उतारी। गांवों में लोग शीतला मंदिर पूजन करने बड़ी संख्या में पहुंचे और पूरे गांव के सुख समृद्धि की कामना की छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व का अपना विशेष महत्व है।

Chhattisgarh’s festival pola :  छत्तीसगढ़ में भादों माह की अमावस्या तिथि को पोला तिहार मनाए जाने के बाद हरतालिका तीजा पर्व बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है, महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं। महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए तीजा पर्व के एक दिन पहले करूभात ग्रहण कर निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से सुहागिन स्त्रियों को शिव-पार्वती अखंड सौभाग्य का वरदान देते हैं, वहीं कुंवारी लड़कियों को मनचाहे वर की प्राप्ति होती है।

छत्तीसगढ़ का पोरा तिहार मूल रूप से खेती किसानी से जुड़ा पर्व है।

खेती किसानी में बैल और गौवंशी पशुओं के महत्व को देखते हुए इस दिन उनके प्रति आभार प्रकट करने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ के गांवों में इस पर्व में बैलों को विशेष रूप से सजाया जाता है।

उनकी पूजा की जाती है। इस मौके पर घरों में बच्चे मिट्टी से बने नंदी बैल और बर्तनों के खिलौनों से खेलते हैं। घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़चीला, गुलगुला, भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं और उत्सव मनाया जाता है। इस पर्व के अवसर पर बैलों की दौड़ भी आयोजित की जाती है।

छत्तीसगढ़ में तीजा (हरतालिका तीज) की विशिष्ट परम्परा

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तीजहारिन महिलाएं तीजा मनाने ससुराल से मायके आती हैं। तीजा मनाने के लिए बेटियों को पिता या भाई ससुराल से लिवाकर लाते है। छत्तीसगढ़ में तीजा पर्व की इतना अधिक महत्व है कि बुजुर्ग महिलाएं भी इस खास मौके पर मायके आने के लिए उत्सुक रहती हैं।

महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए तीजा पर्व के एक दिन पहले करू भात ग्रहण कर निर्जला व्रत रखती हैं। तीजा के दिन बालू से शिव लिंग बनाया जाता है, फूलों का फुलेरा बनाकर साज-सज्जा की जाती है और महिलाएं भजन-कीर्तन कर पूरी रात जागकर शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं।

मान्यता और पुराणों में उल्लेख मिलता है

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विष्णु भगवान जब कान्हा के रूप में धरती में आये थे, जिसे कृष्ण जन्माष्टमी के रूप मे मनाया जाता है. तब जन्म से ही उनके कंस मामा उनकी जान के दुश्मन बने हुए थे. कान्हा जब छोटे थे और वासुदेव-यशोदा के यहाँ रहते थे, तब कंस ने कई बार कई असुरों को उन्हें मारने भेजा था.

एक बार कंस ने पोलासुर नामक असुर को भेजा था, इसे भी कृष्ण ने अपनी लीला के चलते मार दिया था, और सबको अचंभित कर दिया था. वह दिन भादों माह की अमावस्या का दिन था, इस दिन से इसे पोला कहा जाने लगा.सभी जानते है श्री कृष्ण गाय बैलो के साथ अधिकांश समय व्यतीत करते थे आज पोरा छत्तीसगढ़ में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा …!!!

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