Tribal dominated Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ के आदिवासियों में रची-बसी है गोदना संस्कृति
Tribal dominated Chhattisgarh : बिलासपुर ! आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में प्राचीन गोदना संस्कृति यहां के आदिवासियों में आदिकाल से रची-बसी है और यह संस्कृति न केवल लोकरुचि का परिचायक है बल्कि धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और ऐतिहासिक तथ्यों से भी जुड़ी हुई है।
गोदना शब्द का शाब्दिक अर्थ चुभाना है। शरीर में सुई चुभोकर उसमें काले या नीले रंग का लेप लगाकर कई तरह की आकृतियों को आकार दिया जाता है । गोदना को अंग्रेजी में टैटू भी कहते हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गोदना को एक्यूपंचर के रूप में भी समझा जा सकता है। एक्यूपंचर पद्धति से शरीर के न्यूरो हार्मोनल सिस्टम को क्रियाशील किया जाता है।
आदिवासी समुदाय के लोगों की धारणा है कि गोदना न केवल खूबसूरती का एक अंग है बल्कि वात रोग, चोट अथवा अन्य किसी प्रकार के दर्द से राहत भी मिलता है।
छत्तीसगढ़ में बस्तर और सरगुजा आदिवासी बहुल क्षेत्र हैं। गोदना संस्कृति बस्तर, सरगुजा, कांकेर, कवर्धा(अब कबीरधाम) और जशपुर जिलों की जनजातीय संस्कृति से जुड़ी हुई है। बस्तर अंचल की अबुझमाडियां दण्डामी माडियां, मुरिया, दोरला, परजा, घुरुवा जनजाति की महिलाओं में गोदना गुदवाने का रिवाज पारम्परिक है। यहां की जनजातियों में लड़कियों का विवाह पूर्व गोदना गुदवाने की प्रथा है।
इसी प्रकार सरगुजा अंचल की जनजातियां सम्पूर्ण शरीर में गोदना गुदवाती हैं। सभी अंगों के गोदना के अलग-अलग नाम और उसका महत्व होते हैं।
छत्तीसगढ की संस्कृति एवं पुरातत्व निदेशालय की ओर से राज्य की सांस्कृतिक विरासतों के संकलित दस्तावेजों के मुताबिक राज्य में गोदना संस्कृति के मुख्य परिचायक रमरमिहा संप्रदाय के लोगों में आदिम गोदना प्रथा से बिलकुल विपरीत रामनामी गोदना प्रचलित है।
महानदी के तटवर्ती ग्रामों में निवासरत इस सम्प्रदाय के लोगों की आबादी शिवरीनारायण, रायगढ़, सारंगढ, चन्द्रपुर, मालखरौदा, बिलाइगढ़, कसडोल, चांपा-जांजगीर और बलौदाबाजार के ग्रामीण अंचलों में है।
इन्हें रामनमिहा और रामनामी भी कहा जाता है। रामनामी गोदना महिला और पुरुष दोंनों ही शरीर के प्रत्येक अंगों में राम-राम गुदवाते हैं। इस सम्प्रदाय के लोग भगवान श्री राम को निर्गुण रुप में मानते हैं। शिवरीनारायण का माघी मेला रामनामी सम्प्रदाय का प्रसिद्व मेला है।
रामनामी गोदना के संबंध में रमरमिहा जाति के लोगों की मान्यता है कि मरने के बाद स्वर्ग में भक्त के रुप में भगवान पहचान लेते हैं। इनकी मान्यता है कि शरीर में राम का नाम लिखना राम का हस्ताक्षर है।
दूसरी तरफ बदलते जमाने और वैश्विक उदारीकरण के इस दौर में आदिवासियों की यह प्रथा धीरे-धीरे लुप्तप्राय होती जा रही है। नयी पीढ़ी के लोग इस प्रथा को स्वीकार नहीं कर रहे हें। आधुनिक पीढ़ी के लोगों का मानना है कि शरीर में गोदना गुदवाने से इसकी सुन्दरता बिगड जाती है।
बदलते दौर में शरीर के बजाय अब कपड़ों पर गोदना की चित्रकारी कला सामने आई है। सरगुजा जिले के लखनपुर और उदयपुर क्षेत्र में कपडों पर गोदना आर्ट की चित्रकारी की जा रही है। कपडों पर गोदना के उन्ही पारंपरिक चित्रों को बनाया जा रहा है , जो पहले शरीर में बनाए जाते थे। इससे गोदना संस्कृति कायम रहने के साथ ही आय का महत्वपूर्ण साधन भी बना है।
गोदना आर्ट की चित्रकारी में फैब्रिक कलर के साथ हर्रा, बहेरा, धवईं फूल, परसा फूल, और रोहिना की छाली को पानी में खौलाकर मिलाया जाता है। प्राकृतिक फल, फूल, पत्ती तथा छाल के रंगों को मिलाने से और अधिक पक्का रंग बनता है।
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Tribal dominated Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से गोदना आर्ट को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर इसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है।