छत्तीसगढ़ के बीज से हिमाचल में तैयार होंगे बबूल के जंगल…वीरान होते जंगल, दरकते पहाड़ों को बचाने नई कवायद

अवैध कटाई। वीरान होते जंगल। दरकते पहाड़ और नए जंगल तैयार करने को लेकर अनिच्छा को देखते हुए हिमाचल प्रदेश की निजी क्षेत्र की रोपणियों को ऐसी प्रजाति के वृक्ष की तलाश थी, जो इन सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सके। तलाश अपने छत्तीसगढ़ में पूरी हुई, जहां इस समय भरपूर मात्रा में बबूल बीज उपलब्ध है।


पहला रुझान इनका

हिमाचल प्रदेश की नर्सरियां पहली बार छत्तीसगढ़ के बबूल बीज की उपभोक्ता बन रहीं हैं। वनोपज बाजार के अनुसार यह नर्सरियां अपने स्तर पर मांग के अनुसार बबूल के पौधे तैयार करेंगी। पौधों में मांग बेहतर जाने की संभावना इसलिए है क्योंकि उपलब्ध अन्य प्रजातियों के पौधों की तुलना में बबूल के पौधे अपेक्षाकृत सस्ते होंगे।


करेंगे तैयार बबूल के वन

कीमती प्रजातियों के वृक्षों के होने से हिमाचल प्रदेश में भी अवैध कटाई की शिकायतें तेजी से बढ़ रहीं हैं। यह समस्या घटता वन क्षेत्र और वीरान होते पहाड़ों के रूप में सामने खड़ी है। चिंता इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि लैंडस्लाइड जैसी घटनाएं बढ़ रहीं हैं क्योंकि पहाड़ों की मिट्टी को बांधकर रखने वाले पेड़ तेजी से घट रहे हैं।


पूछ-परख शुरू

बीते 2 साल से अच्छे दिन की आस में बबूल फिलहाल 2000 रुपए क्विंटल पर शांत है। उपभोक्ता राज्य बिहार भी मौन है। ऐसे में छत्तीसगढ़ के वनोपज बाजार को हिमाचल प्रदेश की निजी नर्सरियों की पूछ-परख से मजबूत सहारा मिलने की संभावना है क्योंकि मांग की संभावित मात्रा उत्साह बढ़ाने वाली मानी जा रही है।

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